Akhirat aur iske aqeede ki tashreeh (wazahat)

 

Akhirat aur iske aqeede ki tashreeh (wazahat)


आख़िरत

आख़िरत पर ईमान तौहीद के बाद इस्लाम का दूसरा बुनियादी अकीदा है जिस पर ईमान लाना जरूरी है। अल्लाह ने अपने आखिरी संदेश कुरआन में भी तौहीद के बाद जिस चीज पर ईमान लाना जरूरी बताया, वो आख़िरत पर ही ईमान है। 


اِنَّنِیۡۤ اَنَا اللّٰہُ لَاۤ اِلٰہَ اِلَّاۤ اَنَا فَاعۡبُدۡنِیۡ ۙ وَاَقِمِ الصَّلٰوۃَ لِذِکۡرِیۡ 

"मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं है, इसलिये तू मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिये नमाज़ क़ायम कर।"

اِنَّ السَّاعَۃَ اٰتِیَۃٌ اَکَادُ اُخۡفِیۡہَا لِتُجۡزٰی کُلُّ  نَفۡسٍ ۢ  بِمَا تَسۡعٰی

"क़ियामत की घड़ी ज़रूर आनेवाली है। मैं उसका वक़्त छिपाए रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख़्स अपनी कोशिश के मुताबिक़ बदला पाए।"

[कुरआन 20:14-15]


तौहीद के बाद दूसरी हक़ीक़त जो हर ज़माने में तमाम नबियों पर ज़ाहिर की गई और जिसकी तालीम देने पर वो लगाए गए, आख़िरत है। यहाँ न सिर्फ़ इस हक़ीक़त को बयान किया गया है, बल्कि उसके मक़सद पर भी रौशनी डाली गई है। ये घड़ी जिसका इन्तिज़ार है, इसलिये आएगी कि हर शख़्स ने दुनिया में जो कोशिश की है उसका बदला आख़िरत में पाए। और उसके वक़्त को छिपाकर भी इसलिये रखा गया है कि आज़माइश का मक़सद पूरा हो सके। 

जिसे अपने अंजाम की कुछ फ़िक्र हो उसको हर वक़्त इस घड़ी का खटका लगा रहे और ये खटका ग़लत रास्ते पर जाने से उसे बचाता रहे। और जो दुनिया में गुम रहना चाहता हो, वो इस ख़याल में मगन रहे कि क़ियामत अभी कहीं दूर-दूर भी नज़र नहीं आती। 


आख़िरत के अकीदे की तशरीह

आख़िरत  एक जामेअ (व्यापक) लफ़्ज़ है जो बहुत-से अक़ीदों के लिये बोला जाता है। इसमें नीचे लिखे अक़ीदे शामिल हैं – 

(1) ये कि इन्सान इस दुनिया में ग़ैर-ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि अपने तमाम आमाल के लिये ख़ुदा के सामने जवाबदेह है। 

(2) ये कि दुनिया का मौजूदा निज़ाम हमेशा रहनेवाला नहीं है, बल्कि एक वक़्त पर, जिसे सिर्फ़ ख़ुदा ही जानता है, इसका ख़ातिमा हो जाएगा। 

(3) ये कि इस आलम (दुनिया) के ख़ातिमे के बाद ख़ुदा एक दूसरी दुनिया बनाएगा और उसमें सारे इन्सानों को, जो दुनिया के शुरू से लेकर क़ियामत तक ज़मीन पर पैदा हुए थे, एक साथ दोबारा पैदा करेगा, और सबको जमा करके उनके आमाल का हिसाब लेगा, और हर एक को उसके किये का पूरा-पूरा बदला देगा। 

(4) ये कि ख़ुदा के इस फ़ैसले के मुताबिक़ जो लोग नेक क़रार पाएँ जाएँगे, जन्नत में जाएँगे और जो लोग बुरे ठहरेंगे वो दोज़ख़ में डाले जाएँगे। 

(5) ये कि कामयाबी और नाकामी का असली मैयार मौजूदा ज़िन्दगी की ख़ुशहाली और बदहाली नहीं है, बल्कि हक़ीक़त में कामयाब इन्सान वो है जो ख़ुदा के आख़िरी फ़ैसले में कामयाब ठहरे, और नाकाम वो है जो वहाँ नाकाम हो। 


وَ اتَّقُوۡا یَوۡمًا لَّا تَجۡزِیۡ نَفۡسٌ عَنۡ نَّفۡسٍ شَیۡئًا وَّ لَا یُقۡبَلُ مِنۡہَا شَفَاعَۃٌ وَّ لَا یُؤۡخَذُ مِنۡہَا عَدۡلٌ وَّ لَا ہُمۡ یُنۡصَرُوۡنَ

"और डरो उस दिन से जब कोई किसी के कुछ काम न आएगा, न किसी की तरफ़ से सिफ़ारिश क़बूल होगी, न किसी को फ़िदया  [ जुर्माना] लेकर छोड़ा जाएगा, और न मुजरिमों को कहीं से मदद मिल सकेगी।"

[कुरआन 2:48]


فَکَیۡفَ اِذَا جَمَعۡنٰہُمۡ لِیَوۡمٍ لَّا رَیۡبَ فِیۡہِ ۟ وَ وُفِّیَتۡ کُلُّ نَفۡسٍ مَّا کَسَبَتۡ وَ ہُمۡ لَا یُظۡلَمُوۡنَ

"मगर क्या बनेगी उनपर जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे जिसका आना यक़ीनी है? उस दिन हर शख़्स को उसकी कमाई का बदला पूरा-पूरा दे दिया जाएगा और किसी पर ज़ुल्म न होगा।"

[कुरआन 3:25]





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Subscribe

Follow Us

WhatsApp
Chat With Us
WhatsApp
WhatsApp Chat ×

Assalamu Alaikum 👋
How can we help you?

Start Chat