Isa as (Jesus) Ka Nazil Hona Aur Qayamat Ki Das Nishaniyan

 ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 7)


Isa as (Jesus) Ka Nazil Hona Aur Qayamat Ki Das Nishaniyan


क्या ईसा अ० करीब ऐ कयामत दोबारा दुनियाँ में तशरीफ लायेंगे है? कयामत की जिन 10 निशानियों का जिक्र हदीसों में किया गया है वों हमें क़ुरआन में क्यों नहीं मिलती है?


क़यामत की जिन 10 निशानियों का जिक्र सही अहादीसों में मिलता है, वो दर्जेजील है-

1. ईसा अ० का नुज़ूल
2. दज़्ज़ाल का जहूर
3. याजूज-माजूज का खुरूज़
4. जमीनी चौपाये का निकलना
तीन जगहों पे जमीन का धँसना-
5. मशरिक में
6. मगरिब में
7. जजीरा ऐ अरब मे
8. आसमान में धुँवें का जहूर
9. सूरज का पच्छिम से तुलू होना
10. जमीन से आग का निकलना



जब हम क़ुरआन वा सही अहादीसों का गहराई से मुताअला करते है तो ऐसे कई अधूरे कामों और सवालों का जिक्र मिलता है। जिन्हें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि ये सब किसी अंज़ाम ऐ खास (या किसी खास वक़्त) के लिये अधूरे छोड़े गये है। तब मन में कुछ सवाल जन्म लेते है कि -

  • क्या ये कभी पूरे भी होंगे?
  • अगर हाँ! तो कब पूरे होंगे?

इन्हीं अधूरे कामों और अनसुलझे सवालों के पशेमंज़र में हम क़यामत के क़ब्ल रुनुमा होने वाली दसों निशानियों का बारी-बारी जायज़ा लेंगे-


1. ईसा अ० का नुज़ूल


इस मुद्दे पर ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला ( पार्ट- 6) में हम तफसीली गुफ्तगूँ कर चुके है। अब इस जिम्न में जो बचा है वो ये है कि, 

अल्लाह ने हक़ वा बातिल के माबैन आखिरी और निर्णायक जंग के लिये ईसा अ० को ही क्यों मुन्तख़ब किया?

इस सवाल का जवाब पाने के लिये हमें अहले किताब की तारीख को देखना पड़ेंगा। अहले-किताब का इब्तेदा से ही जादू, करिश्मे और मोअज़ज़्ज़ात की जानिब बहुत स्ट्रांग रुझान रहा है। आयत (2:102) - इस नुक्ते की स्ट्रांग दलील है। लेकिन प्रॉब्लम शुरू से ये रही है कि इन लोगों ने कभी भी नबियों के मोअज़ज़्ज़ात को हक़ तस्लीम नहीं किया। हमेशा उन्हें जादू का ही नाम दिया। शुरू से ही इनके यहाँ जादू को बहुत फौकियत दी जाती रही है।

इसलिए अल्लाह पाक ने इन लोगों को जादू और मोअज़्ज़ज़े में फर्क समझाने के लिये पै दर पै कई रसूल भेजे, जिनके दौर में जादू चरम सीमा पर था। इन लोगों को अहद ऐ सुलेमानी दिखाई, मूसा अ० का जमाना दिखाया और बाद में ईसा अ० के रूप में मोअज़्ज़ज़ों का खजाना इनके सामने ला खड़ा किया। लेकिन फिर भी ये लोग आज तक जादू और मोअज़्ज़ज़ों में फर्क को ना समझ सके।

जादू बातिल और मोअज़्ज़ज़े हक़ है।


चूँकि ईसा अ० ही बनी-इस्राइल सिलसिले के आखिरी पैगम्बर है तो इन्हीं के जरिये इन बनी इस्राइल के इक़्तेदार और तकब्बुर के साम्राज्य को अपने आखिरी अंज़ाम तक पहुँचाने के लिये ईसा अ० का इंतेखाब किया गया। और बातिल पे, हक़ की जीत को दिखाने के लिये ईसा अ० को मोअज़ज़्ज़ाती तौर पे कयामत आने तक के लिये आसमानी दुनियाँ पर उठा लिया गया। कयामत के क़ब्ल, यें अहले किताब अपनी ना-समझी या कम इल्मी की वजह से दज़्ज़ाल रूपी जादू को हक़ समझ कर उसके ताँबेय हो जायेंगे। तब इनकी आँखों से इस भ्रम को हटाने के लिये ईसा अ० मोअज़ज़्ज़ाती तौर पर दुनियाँ में फिर से भेजे जायेंगे। तब अल्लाह पाक उनके हाथों इस दज़्ज़ाल रूपी बातिल को मिटा कर, हक़ की बातिल पे जीत (सत्यमेव जयते) को साबित करेंगा।


एक दूसरा नुक्ता ये है कि हमेशा से इन अहले किताब की वक़्त के अम्बियाओं से ये तलब बनी रही कि हमे अपने आगे सरेंडर कराने के लिये हमारें मुर्दा बाप-दादाओं को जिंदा करके दिखाओ और वों जिंदा होकर इस बात की गवाही दे कि तुम अल्लाह के वहीं आखिरी पैगम्बर हो, जिसकी पेशेंगोई हमारें लिट्रेचर में मौजूद है। तभी हम तुम पर ईमान लायेंगे,


"और जब हमारी साफ़-साफ़ आयतें इन्हें सुनाई जाती हैं तो इनके पास कोई दलील इसके सिवाय नहीं होती कि उठा लाओ हमारे बाप-दादा को अगर तुम सच्चे हो।" 
[क़ुरआन 45:25]


"अगर सच्चे हो तो हमारे बाप-दादों को जिंदा करके दिखाओं ।" 
[क़ुरआन 44:36]


تَرۡجِعُوۡنَہَاۤ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ 
"इसे वापस ला के दिखाओ, अगर तुम सच्चे हो।" 
[क़ुरआन 56:87]


ईसा अ० का दोबारा दुनियाँ में आना इसी तलब का जवाब है। दुनियाँ में आकर और उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ जॉइन करके वों इस बात की तस्दीक कर देंगे कि मुहम्मद ﷺ की नुबूवत सच्ची है और वों भी इस पर बैअत करते है। तब तो ला मुहाला उनके फॉलोवर्स को भी उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ पे ईमान लाना ही पड़ेंगा।


■ अल्लाह पाक ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि मैं इनकी तलब के मुताबिक मोअज़ज़्ज़ात दिखाने पे कादिर हूँ,


"हम चाहें तो आसमान से ऐसी निशानी उतार सकते हैं कि इनकी गर्दनें उसके आगे झुक जाएँ।"
[क़ुरआन 26:4]


तो ऐसी निशानी जिसे क़ुरआन पहले ही कयामत की निशानी कह चुका है (यानी ईसा अ० को) आसमान से नाज़िल कर देंगा। जिसे देखके ये अपनी आँखें मलेंगे, अपने आपको चुटकियाँ काटेंगे कि कही वों ख्वाब तो नहीं देख रहे है।


■ अल्लाह जानता है और इनकी तारीख भी गवाह है कि इन कुफ्फार और मुनाफिकीन का हक़ को तस्लीम करना वक़्ती और किसी खौफ या प्रेशर की वजह से होता है दिल से कभी नहीं इसीलिये अल्लाह पाक ने साथ-साथ ये ऐलान भी कर दिया था कि अगर अपने मनमाँगे मोअज़्ज़ज़े को देखने के बाद तुम लोगों ने इसका इनकार कर दिया तो फिर हलाकत तुम्हारा नसीब होंगी,


قَالَ اللّٰہُ اِنِّیۡ مُنَزِّلُہَا عَلَیۡکُمۡ ۚ فَمَنۡ یَّکۡفُرۡ بَعۡدُ مِنۡکُمۡ فَاِنِّیۡۤ اُعَذِّبُہٗ عَذَابًا لَّاۤ اُعَذِّبُہٗۤ اَحَدًا مِّنَ الۡعٰلَمِیۡنَ 
"फरमाया अल्लाह पाक ने," यक़ीनन मैं नाज़िल कर दूँगा इसे तुम लोगों पर, फिर तुममें से जिसनें भी इंकार किया तो यक़ीनन मैं उसे ऐसा अज़ाब दूँगा जो इससे पहले दुनियाँ में किसी को ना दिया होंगा।" 
[क़ुरआन 5:115]


और होगा भी यहीं....


ईसा अ० की जिंदगी तक ये लोग सिर्फ अपने बनावटी ईमान का दिखावा करेंगे और उनकी मौत होते ही वापस अपनी पुरानी रविश (कुफ्र) पर आने लगेंगे। इसीलिये ईसा अ० की मौत को कयामत का पेश ऐ खेमा (Gate) बताया गया है। उनकी मौत और इन अहले किताब के पलटी मार जाने के बाद, क़यामत की फाइनल अलामतें ज़हूर में आना शुरू हो जायेंगी हत्ता ये कि वों इन पर वाकेय हो जायेंगी।


2. दज़्ज़ाल का जहूर


यूँ तो दज़्ज़ाल के बारे में हम तफसीली गुफ्तगूँ इसी सीरीज के ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला पार्ट- 6) में कर आये है। नबी स० ने कई बार मसीह दज़्ज़ाल का जिक्र फ़रमाया, उसकी अलामतें और कारनामे बताये और हमेशा अपनी दुआओं में उससे पनाह माँगनी सिखाई तो दिल के किसी कोने में ये सवाल पैदा होता है कि आखिर ये कब आयेगा?


बहुत से सहाबा रज़ि० ने भी जब इससे मिलती-जुलती अलामतों वाले किसी शख्स को देखा तो गुमान करने लगे कि यहीं दज़्ज़ाल है। हदीसों में इस ताल्लुक से कई रवायतें मौजूद है।


हदीसों में ये भी मिलता है कि क़यामत कायम होने तक 33 या 30 दज़्ज़ाल जाहिर होंगे और वों सब नुबूवत का दावा करेंगे। काना दज़्ज़ाल उसी सिलसिले की आखिरी कड़ी होंगा। एक सवाल आया है कि,


क़यामत लाने के लिये दज़्ज़ाल की जरूरत क्यों है?


अल्लाह पाक की एक सुन्नत है कि जब तक वों किसी कौम पे अपनी हुज़्ज़त कायम नहीं कर देता और उनके बीच समझाने वाला अपना रसूल नहीं भेज देता, तब तक उसका खात्मा नहीं करता है। क़ुरआन में जितनी बस्तियों और कौमो की हलाकत का जिक्र आया है सबमें यहीं सुन्नत देखने को मिली है।


जों पैदा किया गया है वों खत्म भी होंगा। ये अल्लाह का तय शुदा निज़ाम है। ख़ात्मे की इस फेहरिश्त में अब आखिरी नंबर उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ का है, जिसका The End कयामत के साथ वा-बस्ता है। फिल वक़्त दुनियाँ में बनी आदम के रूप में, सिर्फ उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ ही survive नहीं कर रहीं है। बल्कि अहले किताब और मुश्रिकींन कौमे भी साथ ही सर्वाइव कर रहीं है। तो बनी आदम के मुकम्मल ख़ात्मे के लिये पहले सारी नस्लों को उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ में कन्वर्ट करना होंगा, जों इतना आसान ना होंगा। उसके लिये वक़्त के नबी के पैरोकारों और बातिल ताकतों (दज़्जाली ताकतों) में एक निर्णायक महासंग्राम होना तय है। क्योंकि इनका इतिहास गवाह है कि बिना लड़े और पराजय का मुँह देखे बगैर, ये सरेंडर नहीं होंगे यानी बातिल की हार ही, इन पर हक़ की हुज़्ज़त तमाम होने का ऐलान होंगी।


■ इतिहास की 2 मिसालों के जरिये इस नुक्ते को समझये-


1. मूसा अ० ने जब जुबानी हक़ पेश करके और मोअज़ज़्ज़ात दिखा कर फिरौन को कायल करना चाहा तो फिरौन और भी सरकश हो गया। उसने पहले तो मूसा अ० पर अपने जादूगरों का रौब ग़ालिब करना चाहा। उनके मुकाबले में जादूगरों की एक बड़ी फौज मैदान में उतार दी। मुकाबला हुआ, जादूगर तो तुरंत जादू और मोअज़्ज़ज़े का फर्क समझ गये और मूसा अ० वा हारून अ० के रब पे ईमान ले आये।
 

मगर जिद्दी फिरौन फिर भी ईमान ना लाया और मूसा अ० समेत सारे ईमान वालों के कत्ल पे आमादा हो गया तो अल्लाह पाक ने उसके सामने समुंदर को फाड़ दिया, ईमान वालों को उससे सही सलामत गुज़ार दिया और फिरौन को जब उसके लश्कर समेत उसमें गर्क करने लगे तब वों ईमान लाने की दुहाई देने लगा।


यहीं मामला अहले किताब का भी होंगा कुछ तो इनमें के ईसा अ० के दोबारा नुज़ूल पर ही ईमान ले आयेंगे। मगर इनमें के जिद्दी अफ़राद जब अपने मसीहा दज़्ज़ाल को ईसा अ० के हाथों कत्ल होते देखेंगे तब उनकी हवा निकलेंगी, वों समझ जायेंगे कि अगला नंबर उनका है। अब ईसा अ० पे ईमान लाने में ही जान की सलामती है। तब वों (मुनाफ़िक़ों की तरह) ईमान ले आयेंगे। इसी बात को क़ुरआन ने यूँ बयान किया है कि -


"और अहले किताब में से कोई ऐसा ना होगा जो उस (ईसा अ०) की मौत से पहले उस पर ईमान ना ले आएगा और क़यामत के दिन वो उस पर गवाही देगा।" 
[क़ुरआन 4:159]


2. मुहम्मद ﷺ की हयात में ही एक दज़्ज़ाल मुसैलमा कज़्जाब का जहूर हो गया था। जिसनें नुबूवत का दावा पेश किया था। तब भी इसके साथ बड़ी तादाद में लोग थे। इसने नबी स० के आगे एक माँग रखी थी कि वों उसे नायब नबी घोषित कर दे। जैसे मूसा अ० के साथ हारून अ० थे। नबी स० ने इसे समझाने के लिये बहुत से लोग भेजे पर नतीज़ा सिफर (कोई नजीता न निकला),


इसी दरमियान नबी स० दुनियाँ से रुखसत हो गये तो इसकी हिमाकते और बढ़ने लगी। इसने इस्लामी शरीयत के पैरेलल एक नई शरीयत बनाई, जिसमें मनचाही आज़ादिया रखी, जिस वजह से मुनाफिकीन लोग तेज़ी से उससे जुड़ने लगे। तब खलीफा अव्वल अबू बक्र सिद्दीक रज़ि० ने इसके खिलाफ मोर्चा खोला, एक बड़ी जंग हुई और इस जंग में अबू सुफियान की बीबी हिन्दा के गुलाम, उस काले हब्शी ने (जिसने अमीर हमज़ा रज़ि० को शहीद किया था।) अपने नेज़े से इस कज़्ज़ाब को मौत के घाट उतार दिया।


यानी बिना लड़े, शराफत से (ईमान वालों के सिवाय) किसी मुशरिक या मुनाफ़िक़ ने कभी हक़ को तस्लीम नहीं किया है, इल्ला माशा अल्लाह


लिहाज़ा इन मुशरिकों और मुनाफिक़ो की पूरी ताकत और गुरूर की इंतेहा के प्रतीक दज़्ज़ाल की तो जरूरत है ही ताकि जब हक़ उसका खात्मा करें तो उसकी मौत के साथ इनके सारे अरमान निकल जाये और इन पर अल्लाह की हुज़्ज़त तमाम हो जाये।


3. याजूज-माजूज का खुरूज़


याजूज और माजूज एक ऐसी कौम है जिनका जिक्र क़ुरआन की सूरः कहफ़ के 93 से 99 तक 7 आयतों में मिलता है। ये कौम बहुत जालिम और जाबिर थी। इर्दगिर्द की कौमे इनसे भयभीत और इनके जुल्मोसितम से त्रस्त थी। ये कौम 2 पहाड़ो के बीच एक वादी में आबाद थी जिससे निकलने का सिर्फ एक ही दर्रा था जिसके आगे अल्लाह पाक ने अपने एक बन्दे जू-अल करनैन के जरिये लोहे की एक दीवार खडी करवा दी थी और उस पर पिघला हुआ तांबा चढ़वा दिया था। ताकि दीवार को कोई भेद ना सके और इस तरह से अल्लाह पाक ने इस कौम को एक खास वक़्त तक के लिये इस दीवार के पीछे कैद कर दिया था। अल्लाह चाहता तो इन्हें जू-अल करनैन के हाथों मरवा भी सकता था लेकिन सिर्फ उनके हाथों इन्हें कैद करवा के छोड़े रखा। क्योंकि अल्लाह ने इनके अंत का कारण बनना किसी और के नसीब में लिखा था। कयामत के क़ब्ल इस कौम को अल्लाह पाक आज़ाद कर देंगा तब ये दुनियाँ में फैल जायेंगे। इसका जिक्र क़ुरआन में यूँ मिलता है,


"यहाँ तक कि जब याजूज और माजूज खोल दिये जाएँगे और हर बुलन्दी से दौड़ते हुए आयेंगे।" 
[क़ुरआन 21:96]


ये तो थी याजूज-माजूज की क़ुरआनी तफ़्सीर। क्या अब भी कोई मुनकिर याजूज-माजूज को मोहददासींन के दिमाग की उपज या काल्पनिक किरदार कहेंगा?


हदीसों के मुताबिक, दज़्ज़ाल की मौत के बाद ये याजूज और माजूज खोले जायेंगे, तब चारों ओर इनका आतंक फैल जायेंगा। तब ईसा अ० की दर्दमंदाना दुआँ पर अल्लाह इनकी गर्दनों में कीड़े वाली बीमारी पैदा कर देंगा जिसमें इन सबका समूल नाश हो जायेगा।


★ याजूज-माजूज पे और ज्यादा तफसीरी जानकारी हासिल करने के लिये दर्जेजील हदीसों का मुशाहिदा करें,

【सही मुस्लिम:7373, तिर्मिज़ी:2240, 3153, इब्ने माज़ा:4075, 4079, 4080, 4081, मुसनद अहमद:13024, 13026, मिश्कात:5475】


4. जमीनी चौपाये का निकलना


कयामत के बिल्कुल करीब की अलामतों में से एक अलामत ये जाहिर होंगी कि अल्लाह पाक जमीन से एक अजीब खलकत जानवर निकालेंगे, जों इंसानों से बातें करेंगा। क्योंकि उस वक़्त लोग अमल बिल मारूफ (नेकी का हुक्म करना) और नहि अनिल मुनकर (बदी से रोकना) के फ़रीज़े को अंजाम देना भूल चुके होंगे तो इस जानवर के जरिये अल्लाह पाक आखिरी बार बनी आदम पर अपनी हुज़्ज़त कायम करेंगा और चेतायेंगा कि देखो जिस आखरत का तुम लोग यकीन नहीं करते थे उसका वक़्त अब तुम लोगों पे आन खड़ा हो गया है।


बाज़ रवायतों से ये मालूम होता है कि इस जानवर के जमीन से बरामद होने के साथ ही तौबा का दरवाजा बंद हो जायेगा और इसके फौरन बाद कयामत वाकेय हो जायेंगी। इसका जिक्र हमें क़ुरआन में यूँ मिलता है,


وَ اِذَا وَقَعَ الۡقَوۡلُ عَلَیۡہِمۡ اَخۡرَجۡنَا لَہُمۡ دَآبَّۃً مِّنَ الۡاَرۡضِ تُکَلِّمُہُمۡ ۙ اَنَّ النَّاسَ کَانُوۡا بِاٰیٰتِنَا لَا یُوۡقِنُوۡنَ 
"और जब हमारे कौल के वक़ूअ होने का वक़्त उन पर आ पहुँचेगा तो हम उनके लिये एक जानवर ज़मीन से निकालेंगे जो उनसे बात करेगा कि लोग हमारी आयतों पर यक़ीन नहीं करते थे।" 
[क़ुरआन 27:82]


5-7. तीन जगहों पे जमीन का धँसना [मशरिक, मगरिब और जजीरा ऐ अरब मे]

क़ुरआन में कई मक़ामात पर बनी आदम को अलर्ट किया जा रहा है कि अपनी मक़्क़ारियों और फ़ितनेबाज़ियों से बाज़ आ जाओ, वरना आसमान वाला तुम पर अपना अज़ाब नाज़िल कर देंगा। जमीन में धँसाना भी अज़ाब की शक़्लो में से एक है।

कयामत की पेशेंगोईयों में ये भी मिलता है कि जब कयामत का वक़्त बहुत करीब आ जायेगा तो जमीन पर जलजलों की आमद बढ़ जायेगी। और इसकी वजह ये होंगी कि इंसान इन जगहों पर शाइरिलला से ज्यादा बुलंद वा बालातर इमारतों की शक्ल में अपनी ताकत की निशानियाँ बिखेर लेगा और इबादत खानों से ज्यादा सनमखाने आबाद कर लेंगा। और जिन पर वों इतराता होंगा।


"और कितनी ही ऐसी बस्तियाँ हम तबाह कर चुके हैं, जिनके लोग अपनी दौलतमन्दी और ख़ुशहाली पर इतरा गए थे। सो देख लो, वो उनके घर पड़े हुए हैं जिनमें उनके बाद कम ही कोई बसा है, आख़िरकार हम ही वारिस होकर रहे।" 
[क़ुरआन 28:58]


☆ यहीं जमीन में धँसाने की वार्निंग उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ को भी मिली,


"क्या तुम इससे बेख़ौफ़ हो कि वो जो आसमान में है तुम्हें ज़मीन में धँसा दे और यकायक ये ज़मीन झकोले खाने लगे?" 
[क़ुरआन 67:16]


☆ और होंगा भी यहीं कयामत के क़ब्ल वों जलजला आयेगा जिससे 3 जगहों की जमीन धँस जायेंगी क्योंकि यें 3 खित्ते नाफरमानियों के उच्चतम शिखर पर होंगे,


"जब ज़मीन अपनी पूरी शिद्दत के साथ हिला डाली जाएगी और ज़मीन अपने अन्दर के सारे बोझ निकालकर बाहर डाल देगी और इंसान कहेगा कि ये उसको क्या हो रहा है?" 
[क़ुरआन 99:1-3]


☆ इसी अंज़ाम से क़ुरआन ने इन्हें बारम्बार डराया था लेकिन ये बेखौफ रहे थे,


"फिर क्या वो लोग जो बुरी से बुरी चालें चल रहे हैं, इस बात से बिलकुल ही निडर हो गए हैं कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धँसा दे, या ऐसे हिस्से से उन पर अज़ाब ले आए जिधर से उसके आने का उनको वहम वा गुमान तक ना हो।" 
[क़ुरआन 16:45, 17:68, 34:9]


8. आसमान में धुवें का जहूर


सूरः दुखान में वाज़ेह तौर पे इसका जिक्र यूँ पेश किया गया है,


"आप मुंतज़िर रहे उस दिन के जब आसमान साफ़-साफ़ धुआँ लिये हुए आएगा। और वो लोगों पर छा जाएगा, ये है दर्दनाक अज़ाब है। (तब कहेंगे) ऐ हमारें रब! हम पर से ये अज़ाब टाल दे, हम ईमान कुबूल करते हैं।” 
[क़ुरआन 44:10-12]


9. सूरज का पश्चिम से निकलना


साइंस में हमें पढ़ाया जाता है कि सूरज पूरब से निकलता है और पश्चिम में डूबता है। और हदीसों में बताया गया कि जिस दिन डूबा सूरज पश्चिम से वापस निकल आयेगा वों कयामत की घड़ी होंगी और हदीसों में कोई बात यूँ ही अलल टप्पू नहीं कही गयी है हर बात का कहीं ना कही जिक्र क़ुरआन ऐ करीम में मौजूद है । कही सीधे-सीधे अंदाज़ में तो कही गायबाना। बस जरूरत है गहरी गौरों फिक्र की।

इस नुक्ते को समझने के लिये जरा नमरूद वा इब्राहिम अ० के बीच की डिबेट मुलाहिज़ा फरमाये,


"क्या तुमने उस आदमी के हाल पर ग़ौर नहीं किया जिसने इब्राहिम अ० से झगड़ा किया था? झगड़ा इस बात पर कि इब्राहिम अ० का रब कौन है? और इस वजह से कि उस आदमी को अल्लाह ने हुकूमत दे रखी थी। जब इब्राहिम अ० ने कहा कि “मेरा रब वो है जिसके इख़्तियार में ज़िन्दगी और मौत है।” तो उसने जवाब दिया, “ज़िन्दगी और मौत मेरे भी इख़्तियार में है।” इब्राहिम अ० ने कहा, “अच्छा, अल्लाह सूरज को पूरब से निकालता है, तू ज़रा उसे पश्चिम से निकाल ला।” ये सुनकर वो हक़ का दुश्मन हक्का-बक्का रह गया, मगर अल्लाह ज़ालिमों को सीधा रास्ता नहीं दिखाया करता।" 
[क़ुरआन 2:258]


इस केस में तो नमरूद ने जेल से सजा ऐ मौत पाये 2 कैदी दरबार मे तलब किये। एक कैदी को सज़ा माफ करके जिंदगी बख़्श दी और दूसरे को तलवार से गर्दन उड़ा कर मौत दे दी और ऐसे उसनें अपने को जिंदगी और मौत का मालिक साबित किया।


मगर दज़्ज़ाल रूपी इब्लीश एक आदमी को बीच से फाड़ कर 2 टुकड़े कर देंगा और फिर हुक्म देंगा की जुड़ जा तो दोनों टुकड़े जुड़ जायेंगे और वों इंसान फिर से जिंदा हो जायेगा। इस तरह वों अपने को सच्चा मसीहा साबित करेंगा, लेकिन इसके जवाब में अल्लाह इसी आयत के आखिरी जुज़ में तलब किया मोअज़ज़्ज़ा दिखायेंगे यानी वों मोअज़ज़्ज़ा जो शैतान की इस्तेताअत से बाहर था - सूरज का पश्चिम से निकलना और इस मोअज़्ज़ज़े के जरिये वों अपनी रुबूबियत साबित करेंगे।


10. जमीन से आग का निकलना


आग को लेकर इनका दावा था कि,


 وَ قَالُوۡا لَنۡ تَمَسَّنَا النَّارُ اِلَّاۤ اَیَّامًا مَّعۡدُوۡدَۃً 
"और ये कहते है कि आग हमें छुवेंगी भी नहीं सिवाय चंद दिनों के।" 
[क़ुरआन 2:80]


☆ इनके इसी मुगालते को दूर करने के लिये कयामत के क़ब्ल यमन के कुओं से एक आग रुनुमा होंगी जो इन्हें खदेड़ते हुए महशर के मैदान में जमा कर देंगी,


"जिस दिन उन्हें धक्के मार-मारकर जहन्नुम की आग की तरफ़ ले जाया जायेंगा। उस वक़्त उनसे कहा जाएगा कि "ये वही आग है जिसे तुम झुठलाया करते थे। अब बताओ ये जादू है या तुम्हें सूझ नहीं रहा है?" 
[क़ुरआन 52:13-15]


"और ज़रा उस वक़्त का ख़याल करो जब अल्लाह के ये दुश्मन जहन्नुम की तरफ़ जाने के लिये घेर कर लाये जाएँगे। और इनको जमा कर दिया जायेंगा।" 
[क़ुरआन 41:19]


"काश, हक़ के इन इन्कारियों को उस वक़्त का कुछ इल्म होता जबकि ये ना अपने मुँह आग से बचा सकेंगे, न अपनी पीठें और न इनको कहीं से मदद पहुँचेगी।" 
क़ुरआन 21:39]


☆ इस इंसिडेंट से अल्लाह पाक ये साबित कर देंगे कि ये आग सिर्फ मेरा हुक्म पहचानती है किसी नस्ल विशेष को नहीं, इसीलिये क़ुरआन ने बारम्बार आग से पनाह माँगने की नसीहत की है,


 وَ اتَّقُوا النَّارَ الَّتِیۡۤ اُعِدَّتۡ لِلۡکٰفِرِیۡنَ 
"डरो इस आग से जो काफिरों के लिये ही तैयार की गई है।" 
[क़ुरआन 3:131]


इस तरह हमनें मुशाहिदा किया कि वों 10 निशानियाँ जिनका जिक्र हदीसों में आया है, क़ुरआन में भी उनका वाज़ेह जिक्र मौजूद है।


तवालत के पेशेनज़र इस पार्ट को यहीं मोअख्खर करता हूँ ...

जुड़े रहे...

ये चर्चा इंशा अल्लाह यूँ ही जारी रहेगी...

अल्लाह से दुआँ गों हूँ कि मालिक दुनियाँ वालों को इस मामले में सही अक़ीदा कायम करने और क़ुरआनी सच पे ईमान लाने की तौफ़ीक़ अता फरमाये!

आमीन या रब्बुल आलमीन



आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन



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