Kya Isa as (Jesus) Dobara Duniya Mein Aayenge?

  ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 6)


6. Kya Isa as (Jesus) Dobara Duniya Mein Aayenge


Table Of Content

ईसा अ० की दोबारा आमद या दज़्ज़ाल का जिक्र क़ुरआन में क्यों नहीं आया है?



क्या ईसा अलैहिस्सलाम करीब ऐ कयामत दोबारा दुनियाँ में तशरीफ लायेंगे?


क़ुरआन में दर्ज अम्बियाओं की हिस्ट्री में, आदम अ० के अलावा, ईसा अ० इकलौते ऐसे पैगम्बर है, जिनकी विलादत इतनी मोअज़ज़्ज़ाती हुई है। इनकी बचपन से लेकर जवानी तक की जिंदगी मोज़ज़्ज़ातों से लबरेज़ रही है तों इनकी मौत इतनी नार्मल कैसे हों सकती है?

अपने जिस बन्दे को अल्लाह पाक ने, पैदाइश के वक़्त, शैतान के चुटकी काटने तक से महफूज़ रखा, उसे सूली पे चढ़ने जैसी तकलीफ देह मौत मेरा रब कैसे दे सकता था?


"मरियम का बेटा इसके सिवाय कुछ ना था कि एक बन्दा था जिस पर हमने ईनाम किया और बनी-इसराईल के लिये अपनी क़ुदरत का एक नमूना बना दिया।" 
[क़ुरआन 43:59]


★ इनकी पूरी जिंदगी इतनी मोअज़ज़्ज़ाती क्यों रही है? क्योंकि अल्लाह पाक ने इनको कयामत की एक निशानी बनाने के लिये पैदा किया है?


"और वो असल में क़यामत की एक निशानी है, तो तुम इसमें शक ना करो और मेरी बात मान लो, यही सीधा रास्ता है।" 
[क़ुरआन 43:61]


★ सही हदीसों में भी अल्लाह के रसूल ﷺ ने, कयामत के करीब रुनुमा होने वाली जिन अलामतों का जिक्र किया है, उन्हीं में ये मज़कूरा है कि - करीब ऐ कयामत, अल्लाह पाक ईसा अ० को दोबारा इस दुनियाँ में नाज़िल करेंगा, वों दज़्ज़ाल से जंग करेंगे और उसके ख़ात्मे के बाद 40 साल तक दुनियाँ में हुक़ूमत करेंगे

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:- 

"कयामत इस वक़्त तक कायम ना होंगी, जब तक ईसा इब्ने मरियम का नुज़ूल तुम्हारें दरमियान एक आदिल हुक्मरान की हैसियत से ना हो जाये। वों सलीब को तोड़ देंगे, खिंज़ीर को कत्ल कर देंगे और जज़िया को खत्म कर देंगे। इस दौर में माल की इतनी कसरत होंगी कि कोई (सदका) कुबूल करने वाला ना मिलेंगा।"
【सही बुखारी: 2222, 2476, 3448, 3449, सही मुस्लिम:389, 391, तिर्मिज़ी:2233, इब्ने माज़ा:4078, अल-सिलसिला:2682, मुसनद अहमद:13015, 13018, 13021】


★ लेकिन ये बनी-इस्राइल फिर भी उन पर ईमान ना लाये, बल्कि वों इससे भी बड़े किसी और मोअज़्ज़ज़े के इन्तिज़ार में बैठे है। इसका इशारा क़ुरआन की दर्जेजील आयत में मिलता है,


"क्या अब लोग इसके इन्तिज़ार में हैं कि उनके सामने फ़रिश्ते आ खड़े हों, या तुम्हारा रब ख़ुद आ जाए, या तुम्हारे रब की कुछ वाज़ेह निशानियाँ सामने आ जाएँ? जिस दिन तुम्हारे रब की कुछ ख़ास निशानियाँ सामने आ जाएँगी फिर किसी ऐसे आदमी को उसका ईमान कुछ फ़ायदा ना देगा जो पहले ईमान ना लाया हो या जिसने अपने ईमान में कोई भलाई ना कमाई हो। ऐ नबी! इनसे कह दो कि अच्छा, तुम इंतेज़ार करो, हम भी इंतेज़ार करते हैं।"
[क़ुरआन 6:158]


इस आयत में दुनियाँ वालों (अहले-किताब) के जिस इंतेज़ार का जिक्र आया है। वों दज़्ज़ाल के आने का इंतेज़ार कर रहे है। इनके हिसाब से वों आखिरी नबी अभी नहीं आया है जिसको इनकी नस्ल (इब्राहिम अ० की आल) में पैदा होना था। लिहाज़ा जब दज़्ज़ाल जाहिर होंगा तो ये लोग उसे अपना वहीं आखिरी नबी तस्लीम कर लेंगे जो ईसा अ० से भी ज्यादा मोअज़्ज़ज़े दिखायेगा।


और इसी आयत में, नबी ﷺ की उम्मत को जिस निशानी के लिए इंतेज़ार करने की बात कही जा रही है। वों ईसा इब्ने मरियम ही है। क्योंकि कयामत की 10 निशानियों का अल्लाह के रसूल ﷺ की सही हदीसों में जिक्र आया है। और ईसा अ० उन 10 निशानियों में से एक निशानी है,

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: 

"कयामत उस वक़्त तक कायम ना होंगी, जब तक, तुम लोग 10 निशानियाँ ना देख लो,
"सूरज का पच्छिम से निकलना, दज़्ज़ाल, धुँआ, जमीनी चौपाये का निकलना, याजूज-माजूज का खुरूज़, ईसा अ० का नुज़ूल, 3 जगहें जमीन का धँसना - 1-मशरिक में, 2- मगरिब में, 3-जजीरा ऐ अरब में। और इन सब निशानियों के बाद एक आग पैदा होंगी, जों यमन की तरफ से अदन की गहराई से निकलेंगी और लोगो को हाँकती हुई मैदान ऐ महशर तक ले जायेंगी।"
[सही मुस्लिम:7285, अबू दावूद:4311, इब्ने माज़ा:4055, मुसनद अहमद:12846, 13058, मिश्कात:5464]


★ इतनी दलीलें होने के बाद भी बहुत से उलेमा ईसा अ० की दोबारा आमद और दज़्ज़ाल को मोहददासींन के दिमाग का फितूर (सिर्फ एक कल्पना) ही समझते है। उनके ऐसा समझने के पीछे उनके अपने लॉजिक है जो दर्जे जील है,


1- ये कहते है कि अगर ये बात इतनी महत्वपूर्ण थी तो क़ुरआन में कहीं दज़्ज़ाल या ईसा अ० की दोबारा आमद का जिक्र क्यों नहीं आया है?

2- कयामत की जिन 10 निशानियों का जिक्र हदीसों में किया गया है वों क़ुरआन में क्यों नहीं मिलती है?

3- अगर बिल्फ़र्ज़ ये तस्लीम कर लिया जाये कि ईसा अ० का दोबारा नुज़ूल होंगा और वों दुनियाँ में आकर उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ को जॉइन कर लेंगे यानी तब मसीहियत और यहूदियत, उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ में merge (मिल जाना) हो जायेंगी। - इस नुक्ते का क़ुरआनी आधार कहाँ है?


ईसा अ० की दोबारा आमद या दज़्ज़ाल का जिक्र क़ुरआन में क्यों नहीं आया है?


1. ईसा अ० की दोबारा आमद
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हम लोग बचपन मे Puzzle (पहेली) खेलते थे - खज़ाना सर्च करना होता था, Road Map पे कुछ Clues drop किये जाते थे और हिदायत होती थी कि Pick clues & get treasure.

बिल्कुल उसी तरह, क़ुरआन में कुछ बातें डायरेक्टली बयान की गयी है तो कुछ इशारों में, यानी सुराग छोड़े गये है, दिमाग की बत्ती जलाओ, Clues Pick करों और उस मंज़िल तक पहुँच जाओ।

■ ईसा अ० की दुनियाँ में दोबारा आमद के मुताल्लिक पहला क्लू मिलता है,


"मरियम का बेटा इसके सिवाय कुछ ना था कि एक बन्दा था जिस पर हमने ईनाम किया और बनी-इसराईल के लिये अपनी क़ुदरत का एक नमूना बना दिया। हम चाहें तो तुमसे फ़रिश्ते पैदा कर दें,जो ज़मीन में तुम्हारे जानशीनी करते। और वों (ईसा इब्ने मरियम) असल में क़यामत की एक निशानी है, तो तुम इसमें शक ना करो और मेरी बात मान लो, यही सीधा रास्ता है।" 
[क़ुरआन 43:59-61]


इन तीनों आयतों की क़ुरआनी तफ़्सीर पे अगर गौर करें तो पता लगता है कि जो कौम इब्राहिम अ० से वज़ूद में आई, जिसका नामकरण उनके पोते याक़ूब अ० (जिसका मुआशरे में उपनाम इसराइल था) के नाम पर बनी-इसराइल हुआ। इब्राहिम अ० जब अपनी हयात में काबे की तामीर कर रहें थे तब उन्होंने कुछ दुआएँ माँगी थी। जिसमें एक दुआँ ये थी कि - अब रहती दुनियाँ तक, आपकी जानिब से, जो भी नबी और रसूल इस संसार मे भेजा जाये वों मेरी नस्ल से हो,


"याद करो कि जब इब्राहिम अ० को उसके रब ने कुछ बातों में आज़माया और वो उन सब में पूरा उतर गया, तो उसने कहा, “मैं तुझे सब लोगों का ईमाम बनाने वाला हूँ।” इब्राहिम अ० ने कहा, “और क्या मेरी औलाद से भी यही वायदा है?” उसने (अल्लाह ने) जवाब दिया, “मेरा वायदा ज़ालिमों (तेरी औलादों में जो) हो, उसके बारे में नहीं है।” 
[क़ुरआन 2:124]


☆ इसलिये इब्राहिम अ० और याक़ूब अ० ने अपने बेटों को मरते वक्त वसीयत की?


"और वसीयत की इब्राहिम अ० और याक़ूब अ० ने उनके बेटों को ; “ऐ मेरे बेटों, अल्लाह ने तुम्हारे लिये इसी दीनुल्लाह को पसन्द किया है, इसलिये मरते दम तक मुस्लिम ही रहना।” 
[क़ुरआन 2:132]


☆ अल्लाह पाक ने उनकी ये दुआँ कुबूल कर ली थी और उसने ऐसा ही किया,


"और हमने उसे इस्हाक़ और याक़ूब (जैसी औलाद) दी और उसकी नस्ल में नुबूवत और किताब रख दी और उसे दुनिया में उसका बदला दिया और आख़िरत में वो यक़ीनन नेक लोगों में से होगा।" 
[क़ुरआन 29:27, 6:89, 45:16, 57:26]


☆ इस बात से ये बनी- इसराइल तकब्बुर में फूल गये और अपने को खास नस्ल यानी ब्लू ब्लड समझने लगे

क़ुरआन में नाज़िल - (یٰبَنِیۡۤ اِسۡرَآءِیۡلَ اذۡکُرُوۡا نِعۡمَتِیَ الَّتِیۡۤ اَنۡعَمۡتُ عَلَیۡکُمۡ وَ اَنِّیۡ فَضَّلۡتُکُمۡ عَلَی الۡعٰلَمِیۡنَ) - जैसी आयतों ने इनके तकब्बुर में और इज़ाफ़ा कर दिया। तो ये लोग अपने आप को अल्लाह के बेटे या अल्लाह के वली और जन्नत के only वारिस समझने लगे,


 وَ قَالَتِ الۡیَہُوۡدُ وَ النَّصٰرٰی نَحۡنُ اَبۡنٰٓؤُا اللّٰہِ وَ اَحِبَّآؤُہٗ...
" और यहूद और नसारा कहने लगे कि हम लोग अल्लाह की संतान है और उसके चहेते है।" 
[क़ुरआन 5:18]


☆ इब्राहिम अ० की उन्हीं दुआओं में एक दुआँ थी कि,


 "और ऐ रब ! इन लोगों में ख़ुद इन्हीं की क़ौम से एक ऐसा रसूल उठाना, जो इन्हें तेरी आयतें सुनाए, इनको किताब और हिकमत की तालीम दे और इनकी ज़िन्दगियाँ सँवारे। तू बड़ा ज़बरदस्त और हिकमत वाला है।" 
[क़ुरआन 2:129]


☆ अल्लाह पाक ने इस दुआँ को सर्फ ऐ कुबूलियत से नवाजा और मुहम्मद ﷺ की शक़्ल में, उनके बीच उस मतलूब नबी को मबऊस कर दिया,


"वही है जिसने उम्मियों के अन्दर एक रसूल ख़ुद उन्ही में से उठाया, जो उन्हें उसकी आयात सुनाता है, उनकी ज़िन्दगी सँवारता है और उनको किताब और हिकमत की तालीम देता है। हालाँकि इससे पहले वो खुली गुमराही में पड़े हुए थे।" 
[क़ुरआन 62:2]


☆ वों मतलूबा नबी मुहम्मद ﷺ ही थे इसकी अग्रिम सूचना इनकी किताबों में मौजूद थी जिसका खुलासा क़ुरआन की दर्जेजील आयत करती है,


"और कहा ईसा इब्ने-मरियम ने; "ऐ बनी-इसराईल! मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूँ, तसदीक़ करने वाला हूँ उस तौरात की जो मुझसे पहले आई हुई मौजूद है, और बशारत देने वाला हूँ एक रसूल की जो मेरे बाद आयेंगा जिसका नाम अहमद होगा।" मगर जब वो उनके पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया तो उन्होंने कहा ये तो खुला हुआ जादू है।" 
[क़ुरआन 61:6]


नबी ﷺ का खुद का इरशाद मौजूद है, 

"आना दावतों अबी इब्राहिमा वा बशारतो ईसा।"
"मैं अपने बाप इब्राहिम अ० की दुआँ और ईसा अ० की बशारत और अपनी माँ के देखे ख्वाब का नतीजा हूँ।"
[सिलसिला:3596, मुसनद अहमद:10457, 10466]


☆ फिर भी इन लोगों ने नस्ली तअस्सुब में भर कर, ना ईसा अ० को बा-हैसियत नबी तस्लीम किया और ना मुहम्मद ﷺ को। और आज भी (2:129) में दर्ज इब्राहिम अ० की उस दुआँ के पूरे होने का इंतेज़ार कर रहे है। यानी उस आखिरी नबी के आने का इंतेज़ार कर रहे है।


अब ता क़यामत तक 2 ही टीमें मैदान में है एक तरफ बनी-इसराइल की तकब्बुर और नस्ली तअस्सुब से भरी ये कौम और दूसरी तरफ बनी ईस्माइल से वज़ूद में आयी नबी ﷺ की ताबेदार कौम। अब कयामत तक मैच इन्हीं 2 टीमों के दरमियान चलता रहेगा।


तभी आयत (43:59-61) में बयान किया गया है कि -

•ईसा अ० बनी इसराइल के लिये उसकी कुदरत की एक निशानी है।

•ईसा अ० कयामत की एक निशानी है।


लिहाज़ा इन पर शक ना करो! ये जिस इंसान की बा हैसियत आखिरी नबी तस्दीक कर रहे है, उसे शक़ की निगाहों से ना देखो, नस्ली तअस्सुब में हक़ से मुँह ना मोड़ो, मुहम्मद ﷺ इब्राहिम अ० की ही आल से पैदा वहीं आखिरी नबी है जिसकी बेसत के लिये इब्राहिम अ० ने (2:129) में दुआँ माँगी थी। लिहाज़ा उस पर ईमान ले आओ।


मगर ये ईमान ना लाये जिसके फलस्वरूप ये आज भी उस आखिरी नबी के मुंतज़िर है। इनका ये इंतेज़ार दज़्ज़ाल की शक्ल में पूरा होंगा जो इन्हीं के कबीले से होंगा। जिसके मुकाबले के लिये, अल्लाह की जवाबी कारवाही ये होंगी, जिसका उसने पहले से ऐलान कर रखा है,


"हम चाहें तो आसमान से ऐसी निशानी उतार सकते हैं कि इनकी गर्दनें उसके आगे झुक जाएँ।"
[क़ुरआन 26:4]


और आसमान से वों निशानी जो उतारी जायेंगी वों ईसा बिन मरियम होंगे। जिसे बतौर कयामत की निशानी आयत (43:61) में अल्लाह डिक्लेअर कर चुका है। इस निशानी को देखके ये भौचक्के रह जायेंगे कि इस शख्स को तो झुठला कर, जलील करके हम लोग एक दर्दनाक मौत दे चुके थे तो ये कैसे जिंदा हो गया?

ईसा अ० का नुज़ूल ही वों मोज़ज़्ज़ा होंगा जो इनके हौसले पस्त कर देंगा। फिर ये ईसा अ० के हाथों दज़्ज़ाल को कत्ल होता देखेंगे तो समझ जायेंगे कि हम लोग गलत थे और तब ये पूरी टीम ईमान ले आयेंगी। और इनके ईमान लाने की दर्जेजील क़ुरआनी पेशेंगोई उस वक़्त सच साबित होंगी,


"और अहले-किताब में से कोई ऐसा ना होगा जो उसकी (ईसा अ० की) मौत से पहले उस पर ईमान ना ले आएगा और क़यामत के दिन वो उस पर गवाही देगा।" 
[क़ुरआन 4:159]


इस तरह हमनें मुशाहिदा किया कि कैसे मुख्तलिफ सुराग जो क़ुरआनी आयतों में बिखरे पड़े है, उनके जरिये ईसा अ० की दोबारा आमद को समझा जा सकता है।


जिस तरह क़ुरआन में आयत (2:129) में इब्राहिम अ० की उस आखिरी नबी को भेजने की अरदास मौजूद है। उसी तरह इन अहले किताब के पास मौजूद लिट्रेचर में भी उस आखिरी नबी के मुताल्लिक रहनुमाई मौजूद थी। उस नबी के औसाफों का बड़ा साफ़ई बयान इन अहले-किताब के उलेमाओं के इल्म में था,


اَلَّذِیۡنَ یَتَّبِعُوۡنَ الرَّسُوۡلَ النَّبِیَّ الۡاُمِّیَّ الَّذِیۡ یَجِدُوۡنَہٗ مَکۡتُوۡبًا عِنۡدَہُمۡ فِی التَّوۡرٰىۃِ وَ الۡاِنۡجِیۡلِ
" जो लोग रसूल ﷺ, उस उम्मी नबी की इत्तेबा कर रहे है जिसका जिक्र पाते है वों लोग (अहले-किताब) लिखा हुआ, अपने यहाँ तौरेत वा इंजील में...."
[क़ुरआन 7:157]


★ लेकिन ये लोग अपने ग़ालिब गुमान के मुताबिक, उस आखिरी नबी की आमद का अपनी नस्ल (बनी इसराइल) में इंतेज़ार कर रहे थे।

क़ुरआन भी उस आखिरी नबी के लिये इनके शदीद इंतेज़ार और उसके आने के बाद उनके इनकार और इनकार की वजह का बड़ा वाज़ेह जिक्र पेश करता है,


"और अब जो एक किताब अल्लाह की तरफ़ से उनके पास आई है, उसके साथ उनका क्या बर्ताव है? इसके बावजूद कि उसके आने से पहले वो ख़ुद कुफ़्र करने वालों के मुक़ाबले में जीत और मदद की दुआएँ माँगा करते थे; [यानी आरज़ू करते थे कि ऐ अल्लाह! वो आखिरी नबी जल्दी से भेज दे ताकि उसके साथ मिलकर हम लोग अपने मुखालफिन के साथ जंग करें।] मगर जब वो चीज़ आ गई, जिसे वो पहचान भी गए, तो उन्होंने उसे मानने से इनकार कर दिया। अल्लाह की लानत इन इनकार करने वालों पर।

कैसा बुरा ज़रिआ है जिससे ये अपने नफ़्स की तसल्ली हासिल करते हैं कि जो हिदायत अल्लाह ने उतारी है उसको क़बूल करने से सिर्फ़ इस ज़िद की वजह से इनकार कर रहे हैं कि अल्लाह ने अपने फ़ज़ल [वाह्य और रिसालत] से अपने जिस बन्दे को ख़ुद चाहा, नवाज़ दिया। इसलिये अब ये ग़ज़ब पर ग़ज़ब के हक़दार हो गए हैं और ऐसे इनकारियों के लिये सख़्त रुसवा करने वाली सज़ा है।"
[क़ुरआन 2:89-90]


★ लेकिन जब मुहम्मद ﷺ को अल्लाह ने बनी-ईस्माइल में मबऊस कर दिया और हिज़रत कराके मदीना (जो इन अहले-किताब का गढ़ था।) भेज दिया तो इन लोगों ने अपनी किताबों में मौजूद अलामतों के आधार पर, इस नबी को इस तरह पहचाना जैसे भीड़ में एक माँ अपने बच्चे को पहचान लेती है,


اَلَّذِیۡنَ اٰتَیۡنٰہُمُ الۡکِتٰبَ یَعۡرِفُوۡنَہٗ کَمَا یَعۡرِفُوۡنَ اَبۡنَآءَہُمۡ ؕ وَ اِنَّ فَرِیۡقًا مِّنۡہُمۡ لَیَکۡتُمُوۡنَ الۡحَقَّ وَ ہُمۡ یَعۡلَمُوۡنَ
" (बिल्कुल उसी तरह) अहले-किताब ने पहचाना उसे, जैसे वों अपने बेटों को पहचानते है। और यक़ीनन इनकी एक जमाअत हक़ को छुपा रही है और उन्हें (हक़ीक़त का ) इल्म है।"
[क़ुरआन 2:146]


★ अल्लाह की एक और सुन्नत है कि आप जिस चीज़ से सबसे ज्यादा मोहब्बत करते हो या नफरत करते हो या डरते हो, उसी को बन्दे की आज़माइश बना देता है।

ये बनी इस्राइल उम्मियों को एकदम हक़ीर समझते थे और गिरी नज़रों से देखते थे बस अल्लाह तआला ने अपनी इसी सुन्नत के मुताबिक उम्मियों की कौम में वो आखिरी पैगम्बर मबऊस फरमा कर उनको एक जबरदस्त आज़माइश में डाल दिया लेकिन इस कौम ने इस आज़माइश को अपनी तज़लील के तौर पे समझा है। जिससे ये तिलमिला उठे। दर्जेजील आयत इनके नस्ली तअस्सुब का बयान करती है,


"ये भी ये लोग आपस में कहते हैं कि अपने दींन वाले के सिवाय किसी की बात ना मानो। ऐ नबी! इनसे कह दो कि “असल में हिदायत तो अल्लाह की हिदायत है और ये उसी की देन है कि किसी को वही कुछ दे दिया जाए जो कभी तुमको दिया गया था, या ये कि दूसरों को तुम्हारे रब के सामने पेश करने के लिये, तुम्हारे ख़िलाफ़ ठोस हुज्जत मिल जाए।” ऐ नबी! इनसे कहो कि “इज़्ज़त और बड़ाई तो अल्लाह के इख़्तियार में है, जिसे चाहे दे, वो वसीउन-नज़र है और सब कुछ जानता है। अपनी रहमत के लिये जिसको चाहता है ख़ास कर लेता है और उसका फ़ज़ल बहुत बड़ा है।”
[क़ुरआन 3:73-74]


उस नबी का अपनी सौतेली प्रजाति बनी-ईस्माइल में मबऊस हो जाना इनसे बर्दाश्त ना हो रहा था इसलिये अपनी अना का सिर ऊँचा रखने के लिये उस आखिरुज़्ज़मा नबी अ० को पहचान कर भी तस्लीम नहीं किया और उसका इनकार कर दिया।


★अल्लाह पाक की एक और सुन्नत है कि वो किसी कौम को दी गयी नेमतें तब नहीं वापस लेता, जब तक कौम उनकी ला-कद्री करना नहीं शुरू कर देती है। अल्लाह अगर कोई नेमत दे सकता है तो उसकी ना कद्री करने पर उसे वापस भी ले सकता है। इसी हक़ीक़त को ये यहूदी कौम भूल चुकी थी और तकब्बुर में अल्लाह की हक़्क़नियत को मानने से इनकार कर रही थी।

इसीलिये नुबूवत रूपी नेमत बनी इस्राइल से छीन कर, बनी ईस्माइल में मुंतकिल कर दी गयी। इस तरह अल्लाह का वायदा भी कायम रहा और नुबूवत इब्राहिम अ० की ही आल में बरकरार रही,


"यह अल्लाह की उस सुन्नत के मुताबिक़ हुआ कि वह किसी नेमत को, जो उसने किसी क़ौम को दी हो, उस वक़्त तक नहीं बदलता जब तक कि वह क़ौम ख़ुद अपने तरीक़े को नहीं बदल देती।"
[क़ुरआन 8:53]


इसलिये जिसे ये यतीम, मिस्कीन, भेड़ बकरी चराने वाला, एक अनपढ़ अरबी समझते थे उसी को इनके सिरो पर, रहती दुनिया तक, हाकिम बना कर मुसल्लत कर दिया गया ताकि ये अपने गुस्से, अपनी हसद में जलते रहे, तिलमिलाते रहे। कल तक जिस कौम के यें रहनुमा बने हुए थे आज वही कौम इनसे ज्यादा फ़ज़ीलत वाली हो गयी। कल तक ये अपने को औलिया अल्लाह शुमार कराते थे आज सारे औलिया अल्लाह की खान इसी उम्मी उम्मत को बना दिया गया।

यक़ीनन राई को पहाड़ और पहाड़ को राई बना देना सिर्फ मेरे रब के ही बस में है।


★ अल्लाह तआला बनी-इस्राइल के इसी गुरुर को तोड़ना चाहते थे कि दुनिया की दौलत हो या इल्म की, दोनों अल्लाह का बन्दे को दिया रिज़्क़ है और इसे अल्लाह ही जिसे चाहता है अता करता है। इस पर किसी का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं।

इन बनी-इस्राइल का तकब्बुर तोड़ने, इन्हें घुटनों के बल अपने सामने बेबस करके सरेंडर कराने के लिये, किसी ऐसे खास मोअज़्ज़ज़े की जरूरत थी, जिसके आगे इनकी गर्दने झुक जाये, मुँह से बोल बंद हो जाये और इनके पास ईमान लाने के सिवाय कोई चारा ना बचे। - ईसा अ० की दोबारा आमद उसी मोअज़्ज़ज़े की जीती जागती तकमील है, जिस मोअज़्ज़ज़े के वों मुंतज़िर थे।


2. दज़्ज़ाल का जहूर
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क़ब्ल इसके कि हम कयामत के क़ब्ल जहूर पज़ीर होने वाले दज़्ज़ाल का जिक्र छेड़े, बेहतर समझता हूँ कि इस लफ्ज़ दज़्ज़ाल की वज़ाहत को समझ लिया जाये-

दज़्ज़ाल कौन है?

दज़्ज़ाल एक नाम नहीं बल्कि एक टाइटल है। इस्लाम मे अक्सर नायकों और खलनायकों को एक खास उपाधि से नवाजा गया है। क़ुरआन का मुताअला करें या सही हदीसों का, सबकी दींन के हीरोज और विलेन के बारे में यहीं Terminology (सुन्नत) रही है। मसलन,


★ अल्लाह पाक ने जब इंसान की खलकत करने के बारे में इरादा किया तो अपने मुकर्रब फरिश्तों को खबर दी...


اِنِّیۡ جَاعِلٌ فِی الۡاَرۡضِ خَلِیۡفَۃً
" मैं जमीन पर एक खलीफा बनाने वाला हूँ।"
[क़ुरआन 2:30]


  • अल्लाह तआला ने बनाया तो - इंसान
  • नाम दिया - आदम अ०
  • और फ़रिश्तों को बताया - खलीफा 

  • इंसान- A Common noun (एक प्राणी)
  • आदम अ० - A Proper noun (एक नाम)
  • ख़लीफ़ा- A Title (एक उपाधि)

 इसी तरह मिश्र के हुक़ूमती तख्त पे जो भी आसीन होता था उसे फिरौन के लक़ब से पुकारा जाता था।

  • यूसुफ अ० के वक़्त का फिरौन अलग इंसान था।
  • मूसा अ० के जादूगरों से मुकाबले के वक़्त का फिरौन अलग आदमी था।
  • और जो समुंदर में डूब कर मरा वों फिरौन अलग आदमी था।

 शाह ऐ हब्शा को निज़ाशी के लक़ब से पुकारा जाता था।

★ शाह ऐ फारस को किसरा के लक़ब से।

★ शाह ऐ रूम को कैसर के लक़ब से।

★ शाह ऐ कौम ऐ सबा को तबअ का लक़ब था।

★ जिन्हें अलग-अलग दौर में किताबुल्लाह का हामिल बनाया गया, उनको अहले किताब का लक़ब अता किया गया।

★ इसी तरह हदीसों में कमोबेश 124000 अम्बियाओं का जिक्र मिलता है। सबके नाम अलग-अलग थे, मगर सबको नबी या रसूल के लक़ब से पुकारा जाता है।

★इसी तरह इंसान के सबसे बड़े दुश्मन का नाम तो इब्लीश है लेकिन उसे शैतान का लक़ब हासिल है। हर दौर में शैतान का अलग-अलग लक़बों से धरती पे जहूर हुआ है।

☆ इब्राहिम अ० के दौर में नमरूद लक़ब से।

☆ मूसा अ० के दौर में फिरौन लक़ब से।

 और ईसा अ० के दौर में दज़्ज़ाल लक़ब से आयेगा।


जैसे शतरंज का खेल होता है जिसमें काली और सफेद 2 फौजें होती है। उसी तरह इस दुनियाँ की इब्तेदा में, आदम अ० (हक़) और इब्लीश (बातिल) के दरमियान जो बिसात बिछाई गई थी वों बिसात ताक़यामत तक बिछी रहेंगी। इस बिसात पर हमेशा warriors (योद्धा) बदलते रहे, मगर जंग का फैसला नहीं हो सका। क्योंकि इब्लीश ने इतनी बार शह मिलने के बाद भी हार तस्लीम नहीं की, जिसकी वजह ये थी कि उसे अल्लाह पाक की तरफ से कयामत तक की जिंदगी मिली हुई है और इस जिंदगी में वों अपने तमाम हरबे इस्तेमाल करके (यानी सारे घोड़े खोल के) देख लेना चाहता है। इसीलिये,

  • कभी इस बिसात पर वों नमरूद की शक्ल में इब्राहिम अ० के साथ जद्दोजहद करते दिखा।
  • कभी फिरौन बनकर मूसा अ० के साथ।
  • तो कभी मुहम्मद ﷺ के साथ मुश्रिकीन ऐ मक्का के मुतकब्बिर सरदारान की शक्ल में।

आखिर कभी तो हक़ और बातिल की इस जंग का खात्मा होना ही था। इस जंग के खात्मे के लिये Final Battle ईसा अ० वा दज़्ज़ाल के बीच होंगा।

जिसमें ईसा अ० अल्लाह की लफ़्ज़े कुन की पावर को Represent करेंगे और दज़्ज़ाल नामी सुपर विलेन इब्लीश की तमाम शक्तियों के साथ मैदान में आयेगा।


★इस एडवेंचरस फाइट को आसान अंदाज़ में समझने के लिये मैंने एक पोस्ट लिखी थी, वक़्त के एक नबी अ० के खिलाफ इब्लीश का जेहाद -गोया शतरंज का खेल 


★ इसी तरह दज़्ज़ाल के ऊपर एक सवाल और पूछा गया था, उस पर भी जवाब एक पोस्ट की शक्ल में मौजूद है, दज़्ज़ाल जहन्नुमी क्यों है?


इस्लाम की तारीख मे खलनायक नं०-1 की जो उपाधि है, वों दज़्ज़ाल है। दज़्ज़ाल के बारे में ऐसे सवाल खड़े करने वालों में ये मुगालता उपाधि को नाम समझ लेने की वजह से पैदा हुआ है। इससे पता चलता है कि ऐसे सवाल खड़े करने वालों के इल्म की गहराई कितनी है? [यानी ये लोग इल्म के समुंदर में कितनी गहरी डुबकी मारकर आये है?


उम्मत में गुमराही का सबसे बड़ा सबब इल्म की कमी या इल्म का बिल्कुल ना होना है। अगर हमारें अहले इल्म ईमानदारी से उम्मत को बुजुर्गों के किस्से कहानियाँ सुनाने के बजाय, हक़ायक़ और सही गौरों फिक्र पे मबनी इस्लामिक साहित्य बताना शुरू कर दे तो ये गुमराही का अँधेरा बहुत जल्द मिट जायेंगा।


उम्मीद है कि इतनी तफ़सीलात पढ़ने के बाद अब कोई ये सवाल करने की हिमाकत नहीं करेंगा कि दज़्ज़ाल का जिक्र क़ुरआन में क्यों नहीं आया है? क़ुरआन में हर दौर के दज़्ज़ाल का जिक्र मौजूद है। बस पढ़ने वाली निगाहें चाहिये।


तवालत के पेशेनज़र इस पार्ट को यहीं मोअख्खर करता हूँ ...

जुड़े रहे...

ये चर्चा इंशा अल्लाह यूँ ही जारी रहेगी...

अल्लाह से दुआँ गों हूँ कि मालिक दुनियाँ वालों को इस मामले में सही अक़ीदा कायम करने और क़ुरआनी सच पे ईमान लाने की तौफ़ीक़ अता फरमाये!

आमीन या रब्बुल आलमीन



आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन



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