ईसा अलैहिस्सलाम की बाबत शक़ूक़ का ईज़ाला (पार्ट- 8)
अगर बिल्फ़र्ज़ ये तस्लीम कर लिया जाये कि ईसा अ० का दोबारा दुनियाँ में नुज़ूल होंगा और वों दुनियाँ में आकर उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ को जॉइन कर लेंगे यानी तब मसीहियत और यहूदियत, उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ में Merge (मिल जाना) हो जायेंगी। - इस नुक्ते का क़ुरआनी आधार कहाँ है?
जब हम क़ुरान ऐ करीम का संजीदगी से मुताअला करते है तों हमें मालूम होता है कि - अल्लाह ने यहूदियों, मसीहियों और इनके अम्बियाओं से कुछ अहद ओ पैमान किया था,
जब हम क़ुरान ऐ करीम का संजीदगी से मुताअला करते है तों हमें मालूम होता है कि - अल्लाह ने यहूदियों, मसीहियों और इनके अम्बियाओं से कुछ अहद ओ पैमान किया था,
1. यहूदियों से अहद
"अल्लाह ने बनी-इसराईल से पुख़्ता अहद लिया था और उनमें बारह नक़ीब मुक़र्रर किए थे और उनसे कहा था कि “मैं तुम्हारे साथ हूँ, अगर तुमने नमाज़ क़ायम रखी और ज़कात दी और मेरे रसूलों को माना और उनकी मदद की और अपने रब को अच्छा क़र्ज़ देते रहे तो यक़ीन रखो कि मैं तुम्हारी बुराइयाँ तुम से मिटा दूँगा और तुमको ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूँगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, मगर इसके बाद जिसने तुममें से कुफ़्र की रविश इख़्तियार की तो हक़ीक़त में वो सीधे रास्ते से भटक गया।”
[क़ुरआन 5:12]
2. मसीहियों से अहद
"इसी तरह हमने उन लोगों से भी पुख़्ता अहद लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम ‘नसारा’ हैं, मगर उनको भी जो सबक़ याद कराया गया था उसका एक बड़ा हिस्सा उन्होंने भुला दिया। आख़िरकार हमने उनके बीच क़यामत तक के लिये दुश्मनी और आपस के हसद और बैर का बीज बो दिया और ज़रूर एक वक़्त आएगा जब अल्लाह उन्हें बताएगा कि वो दुनिया में क्या बनाते रहे हैं।"
[क़ुरआन 5:14]
फिर भी इन अहले-किताब ने अपने अहदों का पाश ओ लिहाज ना रखा, मनमानी और कुफ्र किया, मासूम नबियों को कत्ल किया, फिर ये उनका अपने अहद को तोड़ डालना था, जिसकी वजह से हमने उनको अपनी रहमत से दूर फेंक दिया और उनके दिल सख़्त कर दिए। अब उनका हाल ये है कि लफ़्ज़ों का उलटफेर करके बात को कहीं से कहीं ले जाते हैं, जो तालीम उन्हें दी गई थी उसका बड़ा हिस्सा भूल चुके हैं, और आए दिन तुम्हें उनकी किसी ना किसी ख़यानत का पता चलता रहता है। उनमें से बहुत कम लोग इस बुराई से बचे हुए हैं। तो जब ये इस हाल को पहुँच चुके हैं तो जो शरारतें भी ये करें उनकी तो उनसे उम्मीद ही की जानी चाहिए। इसलिये उन्हें माफ़ करो और उनकी हरकतों को अनदेखा करते रहो, अल्लाह उन लोगों को पसन्द करता है जो एहसान का रवैया अपनाते हैं।"
[क़ुरआन 5:13]
ऐसे लोगों के लिये अल्लाह का ऐलान है कि,
"रहे वो लोग जो अल्लाह के अहद को मज़बूत बाँधने के बाद तोड़ डालते हैं, जो उन रिश्तों को काटते हैं जिन्हें अल्लाह ने जोड़ने का हुक्म दिया है और जो ज़मीन में बिगाड़ फैलाते हैं, वो लानत के क़ाबिल हैं और उनके लिये आख़िरत में बहुत बुरा ठिकाना है।"
[क़ुरआन 13:25, 2:27]
★ इन अहले-किताब को ये जताने के लिये कि नबी स० के सहाबा रिज० ही इब्राहिम अ० के सच्चे पैरोकार है -
"इब्राहिम अ० ना यहूदी थे, ना ईसाई, बल्कि वो तो एक मुस्लिमे-यकसू थे और वो हरगिज़ शिर्क करने वालों में से ना थे। इब्राहिम अ० से ताल्लुक़ रखने का सबसे ज़्यादा हक़ अगर किसी को पहुँचता है तो उन लोगों को पहुँचता है जिन्होंने उसकी पैरवी की, और अब ये नबी अ० और इसके मानने वाले इस ताल्लुक़ के ज़्यादा हक़दार है। अल्लाह सिर्फ़ उन्हीं का हिमायती और मददगार है जो ईमान रखते हों।"
[क़ुरआन 3:67-68]
और उन्ही सहाबा रिज० की ही पैरोकारी करती है ये - उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ। लिहाज़ा इनको जॉइन करना और इनकी मदद करना ही, तुम लोगों की अल्लाह से किये गये अहद की तकमील होंगी। मैं तो इस उम्मत को जॉइन कर रहा हूँ अगर तुम लोगों को मुझसे रत्ती भर भी मोहब्बत है तो तुम लोग भी मेरी ही तरह इस उम्मत को जॉइन कर लो। ताकि मैं कयामत के दिन तुम लोगों के ईमान की, अल्लाह रब्बुल आलमीन की बारगाह में गवाही दे सकू। इसी में तुम लोगों की खैरख्वाही है। इसी हक़ीक़त को अहले किताब को समझाने के लिये, अल्लाह ईसा अ० का दुनियाँ में दोबारा नुज़ूल करेंगे।
3. नबियों से अहद
वक़्त के हर नबी से अल्लाह ने ये मिसाक (अहद) लिया था कि अगर उसकी जिंदगी में अगला नबी मबऊस हो जाये तो वों उस पर ईमान ले आयेंगा,
وَ اِذۡ اَخَذَ اللّٰہُ مِیۡثَاقَ النَّبِیّٖنَ لَمَاۤ اٰتَیۡتُکُمۡ مِّنۡ کِتٰبٍ وَّ حِکۡمَۃٍ ثُمَّ جَآءَکُمۡ رَسُوۡلٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَکُمۡ لَتُؤۡمِنُنَّ بِہٖ وَ لَتَنۡصُرُنَّہٗ ؕ قَالَ ءَاَقۡرَرۡتُمۡ وَ اَخَذۡتُمۡ عَلٰی ذٰلِکُمۡ اِصۡرِیۡ ؕ قَالُوۡۤا اَقۡرَرۡنَا ؕ قَالَ فَاشۡہَدُوۡا وَ اَنَا مَعَکُمۡ مِّنَ الشّٰہِدِیۡنَ
"याद करो, अल्लाह ने पैग़म्बरों से अहद लिया था कि “आज हमने तुम्हें किताब और हिकमत (समझ-बूझ) दी है, फिर अगर कोई दूसरा रसूल तुम्हारे पास उसी तालीम की तसदीक़ करता हुआ आये, जो पहले से तुम्हारे पास मौजूद है, तो तुमको उस पर ईमान लाना होगा और उसकी मदद करनी होगी।” ये बात कहकर अल्लाह ने पुछा, “क्या तुम इसका इक़रार करते हो और इस पर मेरी तरफ़ से अहद की भारी ज़िम्मेदारी उठाते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, हम इक़रार करते हैं।” अल्लाह ने फ़रमाया, “अच्छा तो गवाह रहो और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूँ।"
[क़ुरआन 3:81]
ईसा अ० की जिंदगी अल्लाह पाक ने इतनी तवील रखी और उनकी लाइफ को 2 पार्ट में Split कर दिया था और इन्हीं 2 पार्टों के दौरान चूँकि मुहम्मद ﷺ मबऊस हों गये थे तो अल्लाह से किये गये अहद के ऐतबार से, ईसा अ० का मुहम्मद ﷺ के फेवर में सरेंडर होना बनता ही है।
नबी स० के उम्मती का ईमान सिर्फ मुहम्मद ﷺ पर ही नहीं बल्कि वक़्त के तमाम अम्बियाओं पर भी है। क्योंकि तमाम अम्बियाँ अपने दौर में किताबुल्लाह की ही नसरो-इसाअत करते रहे है। इसी दींन ऐ इस्लाम को एस्टेबिलिश करने के लिये जद्दोजहद करते रहे है।
तो हमारा ये ईमान है कि ईसा अ० अल्लाह के एक सच्चे पैगम्बर है। अपनी Second Inning में जब वों दुनियाँ में वापस लौटेंगे तो उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ को जॉइन करेंगे और एक सच्चे उम्मती की तरह अपनी बाकी उम्र पूरी करेंगे - तब सलीब, सुअर, जज़िया, दज़्ज़ाल, याजूज-माजूज का खात्मा - ये सब उपलब्धियां उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ के नाम शुमार होंगी।
क्योकि तब सारे अहले-किताब मुहम्मद ﷺ और उनकी शरीयत का इक़रार कर लेंगे।
तो साथियों ग़ालिब कौन? उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ या दूसरी नस्लें?
यक़ीनन उम्मत ऐ मोहम्मदियाँ!!!
अल्हम्दुलिल्लाह
I am proud to be a part of UMMAT AE MOHAMMADI.
इस सीरीज को यहीं विराम देता हूँ...
अल्लाह से दुआँ गों हूँ कि मालिक दुनियाँ वालों को ईसा अ० के मामले में सही अक़ीदा कायम करने और क़ुरआनी सच पे ईमान लाने की तौफ़ीक़ अता फरमाये!
आमीन या रब्बुल आलमीन
आपका दीनी भाई
इम्तियाज़ हुसैन
इम्तियाज़ हुसैन
1 टिप्पणियाँ
Ameen 🤲
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।