तशहहुद मे ऊँगली को हरकत देना कैसा??
हज़रत आमिर बिन अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने अपने वालिद से रिवायत करते हुए मुझे हदीस सुनाई उन्होंने कहा नबी अलैहिस्सलाम जब नमाज़ मे बैठते तो अपना बाया पाऊ अपनी रान और अपनी पिंडली के दरमियान कर लेते और अपना दाया हाथ अपनी दायी रान पर रख लेते और अपनी ऊँगली से इशारा करते थे।
-सहीह मुस्लिम 1307
इस सहीह मुस्लिम शरीफ 1307 मे सिर्फ ऊँगली को इशारा करना आया हैं हरकत देना नहीं आया वो आगे हदीस मे आ रहा हैं...
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हज़रत वाईल बिन हुजर रज़ि अन्हु से रिवायत हैं कि एक दफा मैंने अपने दिल मे ख्याल किया कि मे ज़रूर नबी अलैहिस्सलाम कि नमाज़ गौर से देखूंगा कि आप कैसे नमाज़ पढ़ते हैं।
ये एक लम्बी हदीस हैं...
आखिर के अल्फाज़ आपके सामने रख रहा हुँ...
कि जब नबी अलैहिस्सलाम तशहहुद में बैठे तो अपनी बीच कि ऊँगली और अंगूठे का हल्का बनाया और शहादत कि ऊँगली को उठाया चुनाँचे मैंने देखा नबी अलैहिस्सलाम इसे हरकत देतें थे इसके साथ दुआ करते थे |
सुनन नसई 890
तो सुनन नसई 890 से पता चला कि नबी अलैहिस्सलाम तशहहुद मे दुआ के अंदर शहादत कि ऊँगली को उठाकर उससे हरकत दिया करते थे।
लेकिन जो मुस्लिम शरीफ 1307 हदीस हैं उसमे सिर्फ ऊँगली को उठाना आया हैं लेकिन हरकत का ज़िक्र नहीं हैं।
इससे ये पता चला जिस सहाबी ने नबी अलैहिस्सलाम को ऊँगली से हरकत देतें हुए नहीं देखा वो वक़्त हरकत का नहीं था क्यूंकि नबी अलैहिस्सलाम सिर्फ दुआओँ मे अपनी ऊँगली को हरकत करते थे।
जिस सहाबी ने नबी अलैहिस्सलाम को हरकत देतें हुए नहीं देखा उससे ये मतलब निकलता हैं कि नबी अलैहिस्सलाम फ़ौरन बैठते ही ऊँगली हरकत नहीं देतें थे बल्कि थोड़ी देर बाद दुआओ मे हरकत दिया करते थे।
इन सब हदीसो से दो बात पता चली-
कि जो लोग ये कहते हैं (अशहदू अल्लाह) पर ऊँगली उठानी और (इल्लाल्लाह ) पर गिरानी हैं ये इनका अमल इन दो हदीसो से रद्द हो गया क्यूंकि नबी अलैहिस्सलाम सिर्फ दुआओँ मे हरकत दिया करते थे और बैठते ही ऊँगली उठा लिया करते थे।
साबित हुआ हंफी हज़रात का अमल किसी भी सहीह हदीस से साबित नहीं
दूसरी बात ये पता चली कि हमें ऊँगली सिर्फ दुआओँ मे हरकत देनी चाहिए।
और दुआ कब होती हैं पहले अत्तेहियात पढ़ते हैं फिर दुरुद शरीफ फिर दुआ करते हैं।
तीन केटेगरी बन गयी
अत्तेहियात कि तरतीब
(1) अल्लाह कि हम्द
(2) दुरुद शरीफ
(3) दुआ
बस हमें दुआओँ मे ऊँगली हरकत देनी हैं।
अब कुछ लोग कहते हैं कि दुरुद भी एक दुआ हैं तो इसमें हम ऊँगली क्यों ना हिलाये?
तो इसका जवाब ये कि बिलकुल दुरुद शरीफ भी दुआ हैं लेकिन आइये एक हदीस जान लेते हैं कि नबी अलैहिस्सलाम ने खुद इन तीन केटेगरी को बनाया हैं।
हज़रत आयशा रज़ि अन्हा फरमाती हैं के नबी अलैहिस्सलाम रात को मिस्वाक और वुज़ू फरमाते और 9 रकात इस तरह पढ़ते के इनमे से किसी के आखिर मे ना बैठते मगर आठवीं (8th) रकात पर बैठते अल्लाह कि हम्द करते और खुद पर दुरुद पढ़ते और दुआए करते मगर सलाम ना फेरते फिर नोवी (9th) रकात पढ़ कर बैठते और अल्लाह कि हम्द व सना फरमाते और खुद पे दुरुद भेजते और दुआएं करते इतनी आवाज़ से सलाम कहते के हमें सुनाई देता फिर बैठ कर दो रकात पढ़ते।
सुनन नसई 1721
तो इस हदीस से पता चला कि नबी अलैहिस्सलाम तशहुद मे बैठते तो पहले अल्लाह कि हम्द फरमाते फिर अपने ऊपर दुरुद भेजते फिर दुआएं करते।
यानी नबी अलैहिस्सलाम ने खुद हम्द और दुरुद को अलग जाना और नबी अलैहिस्सलाम दुआ मे ही ऊँगली को हरकत देतें थे।
दुआओँ मे याद रखे
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
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