1. क्या सब ख़ुदाओं की ताक़त बराबर होगी?
2. दोनों ख़ुदा में से सर्वज्ञाता कौन?
3. सारे खुदा में किसका स्टेटस ज़्यादा
4. सब खुदा एक जैसे होंगे या अलग-अलग
5. कायनात को बनाने वाला कौनसा ख़ुदा?
6. कायनात को चलाने वाला कौनसा ख़ुदा?
7. दूसरे ख़ुदा के कामों में दखलंदाज़ी?
8. स्वर्ग/नर्क किस ख़ुदा के अधिकार में?
9. इख़्तिलाफ़ की सूरत में
निष्कर्ष
ऐकेश्वरवाद और अनेकेश्वरवाद का तार्किक विश्लेषण
इस दुनिया मे खुदा को मानने वाले आपको दो तरह के इंसान मिलेंगे एक वो जो इस कायनात का मालिक सिर्फ एक खुदा को मानते है दूसरे वो जो एक से ज्यादा खुदाओ को इस कायनात का मालिक मानते है। जो एक से ज्यादा खुदाओ को इस कायनात का मालिक मानते है वो कहते है कि आखिर इस कायनात के मालिक एक से ज्यादा खुदा क्यो नहीं हो सकते है? और वो एक मिसाल देते है कि जैसे फैक्ट्री में किसी गाड़ी, फोन, मशीन या कोई भी चीज को बनाने के लिए अलग-अलग विभाग और लोगों की जरूरत पड़ती है। उनमें इलेक्ट्रीशियन भी होता है, मैकेनिक भी और लेबर भी काम करती है। अलग-अलग विभाग मिलकर उस गाड़ी को बनाते है जिससे वो गाड़ी अच्छी तरह डिज़ाइन की हुई बनती है वैसे ही हमारी कायनात को अलग-अलग खुदाओ ने मिलकर बनाया है।
तो आइए जानते है कि गाड़ी की ये मिसाल ख़ुदा पर भी लागू होगी या नहीं? आखिर एक से ज्यादा ख़ुदा क्यों नहीं हो सकते है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले हम ख़ुदा को समझते है कि आखिर खुदा कहते किसे है? ख़ुदा उस जात को कहते है जो सर्वशक्तिमान (omnipotent) हो यानी हर चीज को करने की ताकत रखता हो, सर्वज्ञाता यानी हर चीज का जानने वाला (omniscient) हो, ख़ुदा का वुजूद इस कायनात के लिए जरूरी हो यानी ये कायनात उसके बिना नहीं चल सकती हो, जो अपनी हर इच्छा को पूरी कर सकता हो, उसमें कोई भी ऐब या कमी न हो, उसे कुछ भी करने के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत ना हो, वो अपने काम के लिए किसी के सामने जवाबदेह ना हो, ये खुदा की बहुत सी सिफात मे से कुछ सिफात मैने आपके सामने रखी।
कुछ अक़्ली सवाल:
1. क्या सब ख़ुदाओं की ताक़त बराबर होगी?
पहला सवाल- क्या सब ख़ुदाओं की ताक़त बराबर होगी? या कुछ ख़ुदाओं की ताक़त कम होगी और कुछ ख़ुदाओं की ताक़त ज्यादा होगी?
मिसाल के लिए मान लीजिये कि दो खुदा है, तो क्या दोनो खुदाओ के पास ताक़त बराबर होगी? या एक खुदा के पास ताकत ज्यादा होगी और दूसरे के पास कम?
• अब अगर कोई ये कहे कि एक खुदा के पास ताकत ज्यादा है और दूसरे खुदा के पास ताकत कम है, तो ऐसी स्थिति मे ये याद रखिये कि ताकत कम होना एक ऐब (defect) या कमी है और जिस जात मे भी ऐब हो वो खुदा नहीं हो सकता। लिहाजा आपका वो खुदा जिसको आप कमतर समझते हो दूसरे खुदा के मुकाबले मे, वो खुदा हो ही नहीं सकता, लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक ही है क्योकि खुदा के अंदर तमाम खूबियों का होना जरूरी है और उसके अंदर किसी भी ऐब या कमी का होना नामुमकिन है। और ये अक़्ली बात भी कि हम ऐसे खुदा कि इबादत क्यों करे जिसके अंदर ऐब या कमी हो। और जिसके अंदर ऐब या कमी हो वो खुदा कैसे हो सकता है?
•अब अगर कोई कहे कि दोनो खुदाओ के पास बराबर ताकत है कोई भी किसी से कमतर या बड़ा हुआ नहीं है, इस स्थिति मे बराबरी भी एक ऐब है क्योकि अगर ताकत मे बराबरी है तो इससे हमे ये मालूम हुआ कि कोई एक खुदा दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता क्योंकि दोनो के पास बराबर ताकत है। इस स्थिति मे एक खुदा का दूसरे खुदा को हरा ना पाना, उस खुदा का असमर्थ (incapable) होना है और असमर्थ (incapable) होना एक ऐब है लिहाजा जिस जात के अंदर ऐब हो, वो जात खुदा नहीं हो सकती। अगर दोनो खुदा ताकत के ऐतबार से बराबर है तो एक खुदा दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता और किसी चीज को न कर पाना एक ऐब है और जिस जात मे ऐब हो वो खुदा नहीं हो सकता।
• अब अगर कोई कहे कि एक खुदा दूसरे खुदा को हरा सकता है तो इस स्थिति मे हार जाना भी एक ऐब है लिहाजा जो हार गया वो खुदा हो ही नहीं सकता, लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक ही है।
• कोई ये भी कह सकता है कि उन खुदाओ के पास ताकत बराबर है लेकिन उनकी आपस मे कभी लड़ाई नहीं होती, तो ऐसी स्थिति मे भी हम यही कहेंगे और मानने पर मजबूर होंगे कि सारे खुदा एक दूसरे को बर्दास्त किये बैठे है यानी उन्होंने अपनी कमजोरी का इजहार कर दिया कि एक खुदा है और उसकी मौजूदगी मे दूसरे खुदा भी मौजूद है लिहाजा कोई खुदा भी किसी दूसरे खुदा को हरा नहीं सकता है इसलिए ये लड़ ही नहीं रहे है गोया कि मजबूरन वो बैठे हुए है और मजबूर होना भी एक ऐब है जो खुदा कि जात मे नहीं हो सकता, इसलिए अल्लाह ने क़ुरआन की पहली आयत मे ही फरमा दिया;
"अल्हम्दु लिल्लाहीं रब्बिल आलमीन" - सारी तारीफे अल्लाह के लिए ही है जो सारे जहाँ का रब है।
क़ुरआन 1:1
यहा पर अल्लाह अस-शुक्र भी ला सकते थे अस-सना भी ला सकते थे और भी अल्फाज ला सकते थे जो तारीफ के लिए इस्तेमाल होते है लेकिन अल्लाह ने यहा अल-हम्द का इस्तेमाल किया है क्योकि अल-हम्द मे तमाम तारीफे, तमाम कमालात (खूबिया), तमाम बेहतरीन सिफात (Attributes) सिर्फ अल्लाह के लिए है,
इसलिए अगर एक से ज्यादा खुदा माने जाये तो उन सब खुदाओ कि ताकत क्या होगी? बराबर होगी? या कम होगी? या ज्यादा होगी?
2. दोनों ख़ुदा में से सर्वज्ञाता कौन?
दूसरा सवाल- क्या वो अलग-अलग खुदा अपने राजों और अपने भेदों को दूसरे खुदा से छिपा सकते है या नहीं?
उदाहरण के लिए खुदा A अपने राजों और अपने भेदों को खुदा B से छिपा सकता है या नहीं?
• अगर कोई ये कहे कि खुदा A अपने राजों और अपने भेदों को खुदा B से छिपा सकता है तो खुदा B से दूसरी जात कि राजों और भेदों का छिप जाना ये नवाकफ़ियत और ला इल्मी (अज्ञानी) होना है, और किसी चीज़ के बारे मे ना जान पाना भी एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता है क्योकि खुदा कहते ही उसको है जो हर चीज का जानने वाला हो।
• अब अगर कोई ये कहे कि ख़ुदा A अपने राजों और भेदों को खुदा B से नही छिपा सकता, इस स्थिति मे ख़ुदा A अपने राजों और भेदों को ख़ुदा B से छिपाने मे असमर्थ (incapable) हो जायेगा, क्योकि ख़ुदा A चाहकर भी अपने राजों को ख़ुदा B से नहीं छिपा सकता और ये छिपा ना पाना एक बेबसी है, जोकि एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता।
दोनो स्थिति मे जो भी अपने राजों और अपने भेदों को छिपा पाने मे असमर्थ हो रहा है वो खुदाई के दायरे से बाहर हो जायेगा और जो बच रहा है वही खुदा है, लिहाजा साबित हुआ की खुदा सिर्फ एक है जो हर चीज का जानने वाला है, इसको अल्लाह ने क़ुरआन मे कुछ इस तरह फरमाया:
जो कुछ बन्दों के सामने है, उसे भी वो जानता और जो उनसे ओझल है उसे भी वो जानता है और उसके इल्म मे से कोई चीज उनके पकड़ मे नहीं आ सकती, ये और बात है कि किसी चीज का इल्म वो खुद ही उनको देना चाहे।
📓अल-कुरआन 2:255
अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। कोई भी चीज अल्लाह के इल्म से छिपी नहीं है, कोई चाहकर भी अल्लाह से कोई चीज छिपा नहीं सकता और अल्लाह के इल्म में से कोई भी बात कोई दूसरा नहीं जान सकता जब तक की अल्लाह खुद ना बता दे।
3. सारे खुदा में किसका स्टेटस ज़्यादा
तीसरा सवाल- क्या सभी खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे? या सभी खुदा मकाम और मर्तबे के ऐतबार से मुख्तलिफ दर्जे मे होंगे? यानी अपने स्टेटस के ऐतबार से सब खुदा कैसे होंगे?
इस स्थिति मे दो ही संभावनाए हो सकती है या तो सब खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे या तमाम खुदाओ मे से कुछ ख़ुदा छोटे होंगे और कुछ ख़ुदा बड़े होंगे।
अगर सब खुदा मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से बराबर होंगे तो ये नामुमकिन है क्योकि बराबरी एक जज्बा और एक एहसास है जो खुदा अपने मद्दे मुकाबिल बर्दास्त नहीं कर सकता यानी खुदा by definition ये चाहता है कि उसके बराबर कोई नहीं होगा वो सबसे ऊपर होगा। और अगर हम मक़ाम और मर्तबे के ऐतबार से सब खुदाओ को बराबर माने तो एक ऐतराज ये उठेगा कि खुदा ये बर्दाश्त किये बैठा है कि उसकी मौजूदगी में कोई दूसरा खुदा भी उसके बराबर है। ये भी नामुमकिन है क्योकि ख़ुदा by definition यह चाहता है कि कोई उसके बराबर ना हो।
अगर हम दूसरी संभावना की तरफ़ जाएँ कि उन तमाम खुदाओ मे से कुछ खुदा बड़े होंगे और कुछ खुदा छोटे होंगे तो ये भी गलत है उसकी वजह ये है कि खुदा का छोटा होना और मर्तबे के ऐतबार से कम होना ये एक ऐब है और खुदा के अंदर कोई भी ऐब पाया नहीं जा सकता, लिहाजा मक़ाम और मर्तबे से भी साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक होना चाहिए।
क़ुरआन की सुरह इखलास में अल्लाह के बारे में बताया गया कि:
وَ لَمۡ یَکُنۡ لَّہٗ کُفُوًا اَحَدٌ
और कोई उसका हमसर नहीं है (यानी उसके बराबर नहीं है)।
क़ुरआन 112:4
यानी सारी कायनात में कोई नहीं है, न कभी था और न कभी हो सकता है जो अल्लाह के जैसा या उसके मर्तबे के बराबर हो और पूरी कायनात में कोई नहीं है जो अपनी खूबियों, कामों और इख्तियारात में अल्लाह से किसी दर्जे भी बराबरी रखता हो।
4. सब खुदा एक जैसे होंगे या अलग-अलग
चौथा सवाल*- चौथा सवाल जो कि बहुत बुनियादी तौर पर उठेगा वो identification का उठेगा, कि क्या सब खुदा एक जैसे होंगे या अलग-अलग होंगे?
मिसाल के तौर पर इंसान अगर एक से ज्यादा खुदाओ का तसव्वुर करेगा तो उस इंसान के लिए अपने खुदाओ को पहचानने के लिए अलग-अलग category होगी या नहीं होगी?
इस स्थिति मे अगर कोई ये कहे कि identification के ऐतबार से सब खुदा एक जैसे है, उनमे कोई फर्क नहीं है, तो मुझे बताइये कि वह इंसान जो इन तमाम खुदाओ पर ईमान लाना चाहता है वह इन तमाम खुदाओं को कैसे पहचान पायेगा? वह इंसान उन सभी खुदाओ मे फर्क नहीं कर सकेगा कि ये पहला खुदा है या दूसरा है या तीसरा या चौथा है... यानी ऐसी कसरत का कोई फायदा ही नहीं जिसमे कोई फर्क ना हो, ऐसी कसरत हमे खुद वहादानियत यानी एक खुदा की तरफ़ लेकर जा रही है, एक जैसे खुदाओ का मौजूद होना फर्जी बात है। इसको आप एक मिसाल से समझो कि आप मार्केट गये और एक ही तरह की शर्ट या दूसरी चीज कसरत से लेना शुरु कर दें अगर वो आप अपने लिए ले रहे है तो कोई भी इंसान आप से यही कहेगा कि भाई पागल हो जो आप सब चीजें एक जैसी ही ले रहे हो अगर आपको लेनी ही है तो मुख्तलिफ ले लो।
अगर कोई ये कहे कि वो सब खुदा identification के ऐतबार से एक जैसे नहीं अलग-अलग होंगे तो सवाल ये उठता है कि उन सब खुदाओ का इख्तिलाफ सकारात्मक (positive) होगा या नकारात्मक (negative) होगा। मिसाल के तौर पर एक खुदा के पास बारिश करने की ताकत होगी और दूसरे के पास तूफ़ान लाने की ताकत होगी और दूसरे खुदा की तूफ़ान वाली ताकत बारिश वाले खुदा के पास नहीं है। यहाँ हम सिर्फ खुदा की सिफात (Attributes) का ही फर्क कर सकते है क्योकि खुदा का जिस्म नहीं होता अगर हम खुदा की सिफात की कमी या ज़्यादती का फर्क माने तो जिस खुदा की सिफात मे कमी होगी तो ये ऐब है अगर सिफात मे ज़्यादती होगी तो दूसरे के लिए ऐब है और खुदा के अंदर कोई भी ऐब मौजूद नहीं हो सकता है। इससे भी यही साबित हुआ कि ख़ुदा सिर्फ एक है।
5. कायनात को बनाने वाला कौनसा ख़ुदा?
पांचवा सवाल- कायनात को बनाने के ऐतबार से उनकी कुदरत का क्या मैयार होगा? क्या इस कायनात को बनाने के लिए हर खुदा मुकम्मल तौर पर कादिर होगा या किसी दूसरे खुदा का मोहताज़ होगा?
अगर कोई ये कहे कि हर खुदा अकेले पूरी कायनात को बनाने की ताकत रखता है तो इस कायनात को बनाने के लिए एक खुदा के अलावा बाकी किसी खुदा की जरूरत ही नहीं होगी क्योकि एक खुदा अकेला ही पूरी कायनात को बना देगा।
अगर कोई ये कहे कि इस कायनात को बनाने के लिए सब खुदा एक दूसरे के मोहताज़ है कोई खुदा भी अकेला इस पूरी कायनात को नहीं बना सकता है तो हम कहेंगे कि खुदा का किसी काम को ना कर पाना मोहताजी है, और मोहताज़ी भी एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता।
6. कायनात को चलाने वाला कौनसा ख़ुदा?
छठा सवाल - चलो मान लिया जाये कि सब खुदाओ ने इस कायनात को मिलकर बना लिया, तो वो सब खुदा इस कायनात के निजाम को कैसे चलाएंगे ?
क्या एक खुदा ही इस कायनात के निजाम को चला सकता है? या सब खुदा मिलकर इस कायनात को चला रहे है?
अब अगर कोई कहे कि सब खुदा मिलकर इस कायनात के निजाम को चलाते है, तो इससे एक ही नतीजा निकलता है कि कोई भी खुदा अकेला इस कायनात को नहीं चला सकता है, और इस कायनात को चलाने के लिए सभी खुदा एक दूसरे के मोहताज़ है,और मोहताज़ी एक ऐब है और खुदा के अंदर कोई ऐब नहीं हो सकता है लिहाजा उनमे से कोई खुदा नहीं होगा जो एक दूसरे का मोहताज़ हो।
अब अगर कोई ये कहे कि सब खुदा मिलकर इस कायनात के निजाम को तो चला रहे है लेकिन कोई किसी का मोहताज़ नहीं है उनमे से हर एक खुदा ये ताकत रखता है कि वो अकेला ही इस कायनात के निजाम को चलाये, तो इस स्थिति मे एक खुदा के अलावा बाकी तमाम खुदाओ की मौजूदगी उनका वजूद गैर-जरूरी है, यानि उनके वजूद की जरूरत ही नहीं है और मखलूक (creation) को जिस जात की जरूरत न हो वो जात खुदा नहीं हो सकती क्योकि खुदा तो वही है जिसे दूसरों की जरूरत नहीं लेकिन दूसरों को उसकी जरूरत है।
"लोगों तुम्ही अल्लाह के मोहताज़ हो और अल्लाह तो गनी और हमीद है"
अल-क़ुरआन 35:15
इस पूरी कायनात मे हर चीज़ अल्लाह की मोहताज़ है, और अल्लाह किसी चीज़ का मोहताज़ नहीं, हम खुद अल्लाह के मोहताज़ है हमारी जिंदगी एक पल के लिए भी कायम नहीं रह सकती, अगर अल्लाह हमे जिंदा ना रखे और वे असबाब (साधन) हमारे लिए न जुटाये जिनकी बदौलत हम दुनिया मे ज़िंदा रहते है। ऊपर की आयत मे अल्लाह की दो सिफात (Attributes) का ज़िक्र हुआ है एक गनी और दूसरा हमीद। गनी से मुराद यह है कि वह हर चीज़ का मालिक है, हर एक से बेपरवाह और बेनियाज है, किसी की मदद का मोहताज़ नहीं है और हमीद से मुराद यह है कि वह आप-से-आप महमूद (तारीफ किया हुआ) है कोई उसकी हम्द (शुक्र और तारीफ) करे या न करे, मगर हम्द का हक़ उसी को पहुँचता है।
7. दूसरे ख़ुदा के कामों में दखलंदाज़ी?
सातवा सवाल- चलो मान लिया कि वो सब खुदा इस कायनात को चला रहे है तो एक खुदा दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाजी/ मुदाखलत (interfare) कर सकता है या नहीं कर सकता है?
अगर कोई ये कहे कि एक खुदा, दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी कर सकता है तो इस स्थिति मे जिस खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी (interfare) की गयी वो खुदा, खुदा नहीं हो सकता क्योकि वो अपना बचाव नहीं कर पाया और बचाव न कर पाना या किसी चीज़ को अपने खिलाफ होने से न रोक पाना इसी को असमर्थ (incapable) होना कहते है और असमर्थ (incapable) होना एक ऐब है लिहाजा वो खुदा तो नहीं हो सकता जिसके काम मे दखल अंदाज़ी की गयी हो, इससे भी यही साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक है।
अब अगर कोई ये कहे कि अगर कोई खुदा किसी दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाज़ी करता है तो दूसरा खुदा इस बात की ताकत रखता है कि वह अपने काम मे दखल अंदाज़ी न होने दे, तो इस स्थिति मे दखल अंदाज़ी करने वाला खुदा असमर्थ (incapable) हो गया क्योकि वह दूसरे खुदा के काम मे दखल अंदाजी नहीं कर पाया और किसी चीज़ को ना कर पाना एक ऐब है जो खुदा की जात मे नहीं हो सकता लिहाजा साबित हुआ कि खुदा सिर्फ एक है जो हर चीज़ को कर सकता है और वह हर चीज़ पर मुकम्मल इख्तियार रखता है।
8. स्वर्ग/नर्क किस ख़ुदा के अधिकार में?
आठवा सवाल- उन एक से ज्यादा खुदाओ पर ईमान लाने की कैफ़ीयत क्या होगी?
क्या एक इंसान एक खुदा पर ईमान लाये और दूसरे खुदा पर ईमान न लाये तो क्या ये जायज होगा?
मान लीजिये कि 5 खुदा है अब अगर मैं 3 खुदा पर ईमान ले आता हूँ और 2 खुदा पर नहीं तो क्या इस स्थिति में, क्या मैं जन्नत में जाऊंगा या जहन्नुम मे जाऊंगा? अगर 3 खुदा यह कहे कि तुम जन्नत में जाओगे तो क्या वह 2 खुदा जिनका मैं इंकार कर रहा हूं क्या वह मुझसे नाराज नहीं होंगे? वह तो यही कहेंगे कि इस को जहन्नुम में भेजो और अगर वह 2 खुदा मुझे जहन्नुम में भेजना चाहे और जिन 3 खुदाओं को मैं पसंद करता हूं उन पर ईमान रखता हूं जिन की मैं इबादत करता हूं वह 3 खुदा अगर झगड़ कर कहे कि इसको हमें जन्नत में ले कर जाना है यह तो हमारा फरमाबरदार था और वह दो खुदा कहे की नहीं नहीं, उसने अगर तुम्हारी मान ली तो क्या हुआ पर हमारा तो इंकार किया तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? मैं जन्नत में जाऊंगा या जहन्नुम में जाऊंगा? क्या एक खुदा का मोमिन दूसरे खुदा का काफिर (इंकारी) हो तो उसका जन्नत और जहन्नुम का फैसला कैसे होगा? और अगर जन्नत और जहन्नुम का फैसला इस बुनियाद पर होने लगे तो कौन सा खुदा आदिल होगा और कौन सा खुदा ज़ालिम होगा? क्या वह खुदा आदिल होगा जो अपने साथ मोहब्बत और इबादत करने वाले को जन्नत में भेज दे और वह खुदा कैसा होगा जो अपने पर ईमान ना लाने की वजह से किसी को जहन्नुम में भेज दे ? चाहे वह दूसरों पर ईमान रखता हो, इसलिए यह बात अक़ली तौर पर नामुमकिन है कि कल कयामत के दिन (Day of judgement) और आज दुनिया के अंदर फैसला करने के लिए आप एक से ज्यादा खुदा मान ले
9. इख़्तिलाफ़ की सूरत में
नवा सवाल- क्या वह एक से ज्यादा खुदा इंफरादी तौर पर अपने इरादे पर इख्तियार रखते होंगे या नहीं?
देखें दो चीजों में फर्क समझे एक है चाहत और एक है इरादा जो अमल की सूरत में जाहिर होता है यानी दो खुदा किसी चीज की चाहत तो कर सकते है लेकिन इरादा उनमें से सिर्फ एक ही कर सकता हैै।
उदाहरण के लिए एक खुदा एक बंदे को मारना चाहता है और दूसरा खुदा उस बंदे को जिंदा रखना चाहता है मगर दोनों खुदा का अपनी चाहत पर अमल करना क्या यह मुमकिन है?
अगर कोई यह कहे कि दोनों खुदाओं का अपनी चाहत पर अमल करना मुमकिन है तो यह दो विपरीत (opposite) बातों को एक जगह इकट्ठा करना है जो कि एक illogical fallacy है।
अब अगर कोई यह कहे कि उन दोनों खुदाओं में से कोई एक ही अपनी चाहत को इरादे में बदल सकता है तो इस स्थिति में यह उस खुदा के लिए ऐब है जो अपनी चाहत को इरादे में नहीं बदल सकता और खुदा के अंदर कोई भी ऐब नहीं हो सकता लिहाजा साबित हुआ कि खुदा एक है जो इस दुनिया के अंदर सब मामलात अपनी मर्जी से चलाता है अगर एक से ज्यादा खुदा होते तो इस दुनिया के अंदर किसी किस्म का निजाम कायम नहीं रह सकता था क्योंकि हर दूसरा खुदा अपने इरादे और इख्तियार को इस्तेमाल करने की कोशिश करता क्योंकि इरादा और इख्तियार इस्तेमाल करने के लिए ही होता है।
निष्कर्ष
निष्कर्ष (Conclusion)- हमने 9 ऐसे सवाल आपके सामने रखे हैं जिनसे अक़ली तौर पर यही बात साबित होती है कि इस कायनात का मालिक सिर्फ एक खुदा ही हो सकता है।
जो लोग एक से ज्यादा खुदा को मानते हैं उन्होंने जो दलील दी थी जैसे फैक्ट्री में एक गाड़ी को अलग-अलग लोग मिलकर बनाते हैं वैसे ही यह कायनात को अलग-अलग खुदाओं ने मिलकर बनाई है तो मैं उनसे सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि फैक्ट्री के लोगों का किसी चीज को बनाना और खुदा का किसी चीज को बनाना दो अलग-अलग बातें हैं, हम फैक्ट्री के लोगों की तुलना ख़ुदा से नहीं कर सकते है क्योंकि फैक्ट्री के लोगों में ऐब होते है और ख़ुदा हर ऐब से पाक है जैसे फैक्ट्री के लोगों को मुकम्मल इख्तियार नहीं होते हैं, वो हर चीज नहीं कर सकते है, वो किसी दूसरे के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकते, उनको सिर्फ अपने काम की ही जानकारी होती है और इनमें बहुत सी चीजें ऐसी होती हैं जो कि ऐब हैं जिन्हें हम खुदा के बारे में नहीं कह सकते हैं क्योंकि खुदा हर एक ऐब से पाक है और सबसे अहम बात ये है कि ख़ुदा nothing से सब कुछ बनाता है और लोग ख़ुदा के बनाए हुए मटेरियल इस्तेमाल करके कोई चीज बनाते है। इसलिए फैक्ट्री के लोगों की तुलना खुदा से नहीं की जा सकती है
यहां से तमाम अक़ली दलाईल हमें एक खुदा की तरफ लेकर जा रहे हैं जो लोग अल्लाह के एक होने में यकीन करते हैं उनका नजरिया अक़्ल के मुताबिक है और जो लोग एक से ज्यादा खुदाओं का नजरिया रखते हैं उनका यह नजरिया अक्ल के खिलाफ है इसलिए अल्लाह ताला ने तौहीद पर ईमान लाने को लाज़मी करार दिया है और जिस इंसान तक इस्लाम की दावत ठीक से नहीं पहुंचे जैसा कि पहुचनी चाहिए थी तो उस इंसान से अल्लाह अपने वुजूद और तौहीद के मुताबिक ही सवाल करेगा।
अगर इस कायनात के एक से ज्यादा ख़ुदा होते तो ये कायनात कुछ दिन भी नहीं चल सकती थी, पूरी कायनात का निज़ाम दरहम बरहम हो जाता, और सब ख़ुदा पूरी कायनात का मालिक बनने के चक्कर में आपस में ही लड़ जाते। और हम देख रहे है कि कायनात अरबों सालों से यूहीं चली आ रही है और अरबों सालों से कायनात के नियम व कानून में कोई तब्दीली नहीं आई है जिसकी वजह से ही हम मौसम की जानकारी हासिल कर लेते है और सूरज के निकलने और उगने का समय भी एक्यूरेट बता देते है, हम अपनी फसलों के बोने और पकने का भी समय कायनात के नियम की वजह बता सकते है यानी कायनात के नियामों में अरबों साल गुजरने के बाद भी कोई तब्दीली न आना हमें एक खुदा कि तरफ इशारा कर रहे है और मौजूदा दौर के भी सभी साइंटिस्ट इस बात पर मुत्तफिक है कि इस कायनात को चलाने वाला ड्राइविंग फोर्स सिर्फ एक ही है। और अल्लाह इसी बात को अपने आखिरी संदेश कुरआन में कुछ इस तरह बताता है कि:
अगर आसमान और ज़मीन में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ख़ुदा भी होते तो (ज़मीन और आसमानों) दोनों का निज़ाम बिगड़ जाता।
क़ुरआन 21:22
अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है, और कोई दूसरा ख़ुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर ख़ुदा अपनी पैदा की हुई चीज़ों को लेकर अलग हो जाता, और फ़िर वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ते।
क़ुरआन 23:91
अगर अल्लाह के साथ दूसरे ख़ुदा भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो अर्श (सिंहासन) के मालिक के मक़ाम पर पहुंचने की ज़रूर कौशिश करते।
क़ुरआन 17:42
एक शायर ने इस बात को इस ख़ूबसूरत अंदाज़ में बयान किया है -
अगर दो खुदा होते सन्सार मे
अगर दो खुदा होते सन्सार मे
तो दोनो बाला होते सन्सार मे
खतरनाक होता जमाने का रंग
हुआ करती रोज दोनो मे जंग
उधर एक कहता की मेरी सुनो
इधर एक कहता मियाँ चुप रहो
उधर एक कहता की भाई मेरे
रहे आज दुनिया में बारिश रहे
गरज कर उधर दूसरा बोलता
नहीं आज है धूप का फैसला
बिगड़ कर छड़ी मारता एक ख़ुदा
तो फिर दूसरा उसपे चढ़ दौड़ता
ख़ुदा दोनों लड़ते लड़ाते यूँही
शबो रोज़ फ़ितने उठाते यूँही
जमीं काँपती आसमां काँपता
लड़ाई से सारा जहाँ काँपता
हक़ीक़त में सबका खुदा एक है
ख़ुदा को जो माने वही नेक है
मुसन्निफ़ (लेखक): अकरम हुसैन
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