जनाब जाहिद फखरी साहब ने जो कुछ बयान किया है वो हर मुसलमान की तमन्ना है, जो भी सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ से मोहब्बत करता है। ज़रा सोचिए! क्या अगर अल्लाह हमें सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ के दौर में पैदा कर देता तो हम यही सब करते जो जनाब ने बयान किया है?
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता
सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ ने फरमाया:-
तुम में से कोई शख्स ईमान वाला न होगा, जब तक उसके वालिद, उसकी औलाद और तमाम लोगों से ज्यादा उसके दिल में मेरी मोहब्बत न हो जाए
📓(सहीह बुखारी : 15)
काश!!!
दौड़ पीछे की तरफ, ऐ गर्दिश ए अय्याम तू,
सारी सदियों पर जो भारी है, वो लम्हा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
आपको देखता मक्के से, मैं हिजरत करते,
आपका नक्शे क़दम आपका रस्ता मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
आपको देखता ताईफ में दुआएं देते
यूं मेरे सब्र ओ तहम्मुल को सलीका मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
आपके सामने रख देता, मैं सब कुछ लाकर,
नुसरतें दीन के लिए जब भी इशारा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
अपना घरबार लूटा देता तो उसके बदले,
हुब्बे सरकारे मदीना का खज़ाना मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
आपके पीछे खड़े होके नमाजें पढ़ता,
आपके कदमों के पीछे मुझे सजदा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
और भूल जाता मैं किसी ताक में रखकर आंखें,
आपको देखते रहने का बहाना मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
आपकी तरह बिठाता मैं उसे शानो पर,
राह में आपका जब कोई नवासा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
ज़िन्दगी आपके कदमों में बसर हो जाती,
जान फिदा करने के खातिर मुझे गज़वा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
हश्र तक मेरी गुलामी यूहीं कायम रहती,
मेरी हर नस्ल को फखरी यही विरसा मिलता।
काश! सरकार ए दो आलम का ज़माना मिलता!!
जनाब जाहिद फखरी साहब ने जो कुछ बयान किया है वो हर मुसलमान की तमन्ना है। जो भी सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ से मोहब्बत करता है। ज़रा सोचिए! क्या अगर अल्लाह हमें सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ के दौर में पैदा कर देता तो हम यही सब करते जो जनाब ने बयान किया है? क्या हम नबी ﷺ का साथ देने वालों में से होते? या हम अबू जेहल और कुफ्फार का साथ देने वालों में से होते? क्या हम नबी ﷺ से मोहब्बत करने वालों में से होते? या नबी ﷺ से जंग करने वालों में से होते?
आप थोड़ी देर के लिए फ़र्ज़ करो कि:-
अल्लाह ने हमें नबी ﷺ के दौर में पैदा कर दिया और फिर हम अपना जाईजा लेंगे कि हम किसकी पार्टी के लोग होते? हम नबी ﷺ का साथ देते या काफिरों का? क्या हम नबी ﷺ पर ईमान लाकर उन मुश्किलों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार है जो सहावा इकराम ने बर्दाश्त की? अगर हिम्मत करके हम ईमान ले भी आते तो क्या हम नबी ﷺ के रास्ते में मुश्किलों और तकलीफों को देखकर कहीं हम मुनाफिकों में से तो नहीं हो जाते?
अब आप इन सवालों को ज़ेहन में रखकर नबी ﷺ दौर को देखिए, जब नबी ﷺ ने नुबुवत का ऐलान किया तो उनके खानदान वाले ही उनके खिलाफ हो गए जो समाज उन्हें सादिक (सच्चा) और अमीन (अमानत दार) कहता था वहीं समाज उन्हें कहने लगा कि ये खुद अल्लाह का कलाम लिखते है और आकर हमें बताते है। एक बार नबी ﷺ के चाचा अबू लहब मक्का के लोगों के सामने कहते है कि ये देखो मेरा भतीजा मुहम्मद ﷺ और उनकी बीवी खदीजा और एक बच्चा अली, अभी ये सिर्फ तीन है और मेरा भतीजा मुहम्मद ﷺ कह रहे है कि इनके कदमों में कैसर और किसरा (रोमन और पर्सियन एम्पायर) के ताज लाकर रख दिए जाएंगे। इस पर सब लोग नबी ﷺ का मजाक उड़ाने लग गए। क्या उस वक़्त हम उन कूफ्फार ए मक्का में से नहीं होते? नबी ﷺ पर ईमान लाने का मतलब था कि पूरे मक्का से दुश्मनी मौल ले लेनी, और जो ईमान लाते थे उन्हें काफिर जुल्मों ज्यादती की भट्टी में झोंक देते थे। उनका समाज से बॉयकॉट कर दिया जाता था। क्या हम भी आज इन तकलीफों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार है? ज्यादा तफसील में जाने का यहां समय नहीं है उसके लिए आप तफसील से सीरत का मुताला करेंगे तो आपको पता चलेगा कि कैसा था वो दौर, और अल्लाह का शुक्र अदा करे कि अल्लाह ने हम पर कितना बड़ा अहसान कर दिया कि हमें उस दौर की आजमाइशों से बचा लिया और हमें मुफ्त में ईमान की दौलत से नवाज दिया। अल्लाह के हमें इस दौर में पैदा करने की भी हिकमत है। क्योंकि अल्लाह के यहां तुक्के नहीं चलते की बस उसने हमें इस दौर में यूहीं पैदा कर दिया हो। अल्लाह का कोई भी काम हिकमत से खाली नहीं होता क्योंकि अल्लाह अल-हकीम (हिकमत वाला) है। अल्लाह हम से यही चाहता है कि जो काम उस दौर में सहावा इकराम ने किया कि वहीं हम आज के दौर में करें। जो कुर्बानियां सहावा इकराम ने उस दौर में इस दीन के लिए दी है वहीं कुर्बानियां हम आज के दौर में दें। और सहावा इकराम की सरकार ए दो आलम ﷺ से मोहब्बत ही थी कि उन्होंने उनके दीन को पूरी दुनिया पर गालिब कर दिया था। आज भी जो सरकार ए दो आलम ﷺ के ज़माने में होने की तमन्ना करता है उसे भी सहावा इकराम वाला काम करना होगा और दीन ए हक को पूरी दुनिया में फिर से कायम करना होगा। यही सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ से असल मोहब्बत है।
सरकार ए दो आलम से मोहब्बत का तकाज़ा
अगर आप सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ से मोहब्बत करते है और आप सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ की पैरवी नहीं करते तो आपका मोहब्बत का दावा सिर्फ एक झूठ के सिवा और कुछ नहीं। क्योंकि -
सरकार ए दो आलम ﷺ ने फ़रमाया:-
सारी उम्मत जन्नत में जाएगी सिवाए उनके जिन्होंने इन्कार किया। सहाबा ने अर्ज़ किया: ऐ अल्लाह के रसूल ! इन्कार कौन करेगा? फ़रमाया जो मेरी इताअत करेगा वो जन्नत में दाख़िल होगा और जो मेरी ना-फ़रमानी करेगा उसने इन्कार किया।
📓(सहीह बुख़ारी हदीस 7280)
इस हदीस से हमें यही पता चलता है कि जिसने भी सरकार ए दो आलम ﷺ की पैरवी नहीं की गोया कि उसने सरकार ए दो आलम ﷺ के नबी होने का ही इनकार कर दिया।
अगर आपको अपने और पूरी कायनात के बनाने वाले अल्लाह से मोहब्बत है तो उसका भी यही तकाज़ा है कि आप सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ की पैरवी करे, क्योंकि अल्लाह ने सुरह आले इमरान में कहा है कि:
قُلۡ اِنۡ کُنۡتُمۡ تُحِبُّوۡنَ اللّٰہَ فَاتَّبِعُوۡنِیۡ یُحۡبِبۡکُمُ اللّٰہُ وَ یَغۡفِرۡ لَکُمۡ ذُنُوۡبَکُمۡ ؕ وَ اللّٰہُ غَفُوۡرٌ رَّحِیۡمٌ
ऐ नबी! लोगों से कह दो कि “अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह से मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा और तुम्हारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा। वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।”
📓(क़ुरआन 3:31)
قُلۡ اَطِیۡعُوا اللّٰہَ وَ الرَّسُوۡلَ ۚ فَاِنۡ تَوَلَّوۡا فَاِنَّ اللّٰہَ لَا یُحِبُّ الۡکٰفِرِیۡنَ
उनसे कहो कि “अल्लाह और रसूल की फ़रमाँबरदारी अपनाओ” फिर अगर वो तुम्हारी ये बात न मानें तो यक़ीनन ये मुमकिन नहीं है कि अल्लाह ऐसे लोगों से मुहब्बत करे जो उसकी और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी से इनकार करते हों।
📓(क़ुरआन 3:32)
सरकार ए दो आलम नबी करीम ﷺ से असल मोहब्बत यह है कि उनकी पैरवी की जाए, उनके बताए हुए तरीके पर अमल किया जाए, और सबसे बढ़कर उनके मकसद को अपना मकसद बना लिया जाए।
सरकार ए दो आलम ﷺ का मकसद
अल्लाह तआला ने हमें क़ुरआन मजीद में तीन जगह पर नबी करीम ﷺ का दुनिया भेजे जाने का मकसद बताया है।
ہُوَ الَّذِیۡۤ اَرۡسَلَ رَسُوۡلَہٗ بِالۡہُدٰی وَ دِیۡنِ الۡحَقِّ لِیُظۡہِرَہٗ عَلَی الدِّیۡنِ کُلِّہٖ ۙ وَ لَوۡ کَرِہَ الۡمُشۡرِکُوۡنَ
वो अल्लाह ही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा है, ताकि उसे दीन की पूरी की पूरी जिंस पर ग़ालिब कर दे , चाहे मुशरिकों को ये कितना ही नागवार हो।
📓(सूरह तौबा आयत 33, सूरह फतह और सूरह सफ)
यहां दीन का लफ्ज़ इस्तेमाल हुआ है और दीन अरबी जबान में ज़िन्दगी के उस निजाम या तरीके के लिए इस्तेमाल होता है जिसके कायम करने वाले को सनद (प्रमाण) और काबिले तस्लीम करके और इस बात को तस्लीम करके कि उसकी पैरवी और फर्माबरदारी ज़रूरी है उसकी पैरवी की जाए। इसलिए रसूल अल्लाह ﷺ को नबी बनाए जाने। का मकसद इस आयत में यह बताया गया है कि वह जिस हिदायत और दीन ए हक को खुदा की तरफ से लाए है उसे दीन की हैसियत रखने वाले तमाम तरीकों और दीनों पर गालिब कर दें। जिस दौर में सरकार ए दो आलम ﷺ तशरीफ लाए थे उन्होंने इस दीन ए हक को तमाम दीनों पर गालिब कर दिया था और इंसानियत को बेहतरीन ज़िन्दगी गुजारने का तरीका बता दिया था।
आज के ज़माने के बारे में हमें सरकार ए दो आलम ﷺ ने फ़रमाया:-
“इस्लाम अजनबियत से शुरू हुआ और फिर (उसी तरह) वो अजनबी हो जाएगा (जिस तरह शुरू में था) और वो सिमटकर मस्जिदों में चला जाएगा उसी तरह जिस तरह साँप सिमटकर अपने छेद (बिल) में चला जाता है।”
📓(सहीह मुस्लिम : 373)
आज बिल्कुल वहीं दौर है जिसकी पेशंगोई सरकार ए दो आलम ने की थी। आज इस्लाम बस एक मजहब बनकर रह गया है जिसमें कुछ रस्मो रिवाज के अलावा और कुछ नहीं, जबकि सरकार ए दो आलम ने इस्लाम हम तक दीन की हैसियत से पहुंचाया था। लेकिन हमने सरकार ए दो आलम ﷺ के दीन को मजहब बनाकर रख दिया, और ये इसलिए हुआ कि जिस उम्मत को अल्लाह ने दुनिया के इंसानों की रहनुमाई के लिए निकाला था उसने ही नेकी का हुकम देना और बुराई से रोकना छोड़ दिया। तो अल्लाह ने भी इस उम्मत से दुनिया की बागडोर वापस ले ली। क्योंकि सरकार ए दो आलम ﷺ ने फरमाया था :
उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है! तुम मारूफ़ (भलाई) का हुक्म दो और मुनकर (बुराई) से रोको, वरना क़रीब है कि अल्लाह ताला तुम पर अपना अज़ाब भेज दे फिर तुम अल्लाह से दुआ करो और तुम्हारी दुआ कुबूल ना की जाये।
📓(जामे तिर्मिज़ी : 2169)
अल्लाह के दीन को गालिब करना हर मुसलमान का मकसद होना चाहिए अगर वो सरकार ए दो आलम से मोहब्बत का दावा करता है क्योंकि सरकार ए दो आलम इस दुनिया में दीन को गालिब करने ही आए थे। अगर आप दुनिया में दीन को गालिब करने के लिए कोशिश नहीं कर रहे है तो आप सरकार ए दो आलम के दौर में होते तो आप काफिर होते या मुनाफिक। और अगर आप अल्लाह के दीन को गालिब करने की कोशिश कर रहे है तो अल्लाह का शुक्र अदा करे, और अपना सब कुछ इसी दीन के लिए लगा दें। क्योंकि जो लोग सरकार ए दो आलम ﷺ से मोहब्बत करते है वो तो सिर्फ उन्हें देखने के लिए ही सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार रहते है, तो सोचें उनके मकसद लिए वो कितनी कोशिशें करेंगे। दरहकीकत में यही लोग अपने दावा ए मोहब्बत में सच्चे है। और यही लोग सरकार ए दो आलम ﷺ के ज़माने मे भी होते तो वहीं करते जो जनाब जाहिद फखरी साहब ने बयान किया है। और जो लोग आज दीन को दुनिया पर गालिब करने के लिए कोशिशें नहीं कर रहे है। अगर सरकार ए दो आलम ﷺ के दौर में भी होते तो उनकी हैसियत एक मुनाफिक से ज्यादा कुछ नहीं होती।
कि मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे है,
ये जहान क्या चीज है लोहो कलाम तेरे है
सरकार ए दो आलम ﷺ ने फरमाया:-
“मेरी उम्मत में मुझसे सबसे ज्यादा मोहब्बत रखने वाले वो लोग है जो मेरे बाद आयेंगे, उनकी आरजू होगी वो अपना घर और माल कुरबान करके मुझे देख लें।”
📓(सहीह मुस्लिम : 7145)
तू है यशरीब को मदीने में बदलने वाला,
तेरे जैसा तो किसी शहर का वाली ना हुआ।
हर हसीन हुस्ने मुहम्मद से है खैरात तलब,
एक भी तेरे जैसा जमाली ना हुआ।
और तेरे गुलशन में खिले फूल उमर जैसे भी,
तेरे गुलशन में खिले फूल अली जैसे भी,
ओ बागे दुनिया में तुझ जैसा कोई माली ना हुआ।
और तेरी उम्मत के सिवा किसी उम्मत में,
कोई रूमी ना हुआ, कोई ग़ज़ाली ना हुआ।
और कोई पैदा ना हुआ तेरे मुअज्जन जैसा,
फिर अज़ानो में कभी शोजे बिलाली ना हुआ।
मैने हर दौर की तारीख में झांका फखरी,
कोई इंसान मुहम्मद सा मिसाली ना हुआ।
~अकरम हुसैन
4 टिप्पणियाँ
Subhanallah
जवाब देंहटाएंAlhamduLILLAH
जवाब देंहटाएंسبحان الله
जवाब देंहटाएंALLAHu Akbar
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।