- ईद मिलादुन्नबी का मतलब क्या है?
- मिलादुन्नबी मनाने की शुरुआत किसने और कब की?
- क्या हकीक़त में मिलादुन्नबी तीसरी ईद है?
- ईद मिलादुन्नबी सुन्नत है या बिद्अत?
- मिलादुन्नबी को गुनाह क्यों समझा जाता है?
- बारह (12) रबी-उल-अव्वल की हक़ीक़त (विलादत या वफ़ात)?
- नबी (ﷺ) की विलादत की ख़ुशी या वफ़ात का ग़म?
- नबी (ﷺ) की वफ़ात के दिन का मंज़र
- क्या हमें ईद मिलादुन्नबी मनाना चाहिए?
- किन आयतों, हदीसों और बातों का हवाला देकर मिलादुन्नबी मनाया जाता है?
- मिलादुन्नबी-नबी (ﷺ) की मोहब्बत या उनके खिलाफ अमल
- मिलादुन्नबी मनाने के बारे में मेरी राय
- मिलादुन्नबी मानाने वालों से मेरे कुछ अहम सवाल?
- मुसलमानों को क्या करना चाहिए?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे प्यारे नबी मोहम्मद (ﷺ) की विलादत (पैदाइश) इस्लामी महीने रबी उल अव्वल में हुई। नबी करीम (ﷺ) को तमाम इंसानों के लिए रहमत बनाकर भेजा गया ताकि इंसानियत को दुनिया और आखिरत में कामयाबी के लिए सीधा रास्ता दिखाया जाए।
"इरबल के हुकमाराम मलिक मुजफ्फर अबू सईद एक बेदीन और फासिक़ बादशाह था। उस ने अपने जमाने के उल्लमा को हुक्म दिया कि वह अपनी राय के मुताबिक अमल करें और किसी भी मकतब ए शरियत को तर्क कर दे। अहल ए इल्म का एक गिरोह उसकी तरफ माइल हो गया। उसने (उस बादशाह) ने रबी उल अव्वल के महीने में मौलूद (मिलादुन्नबी) की मजलिसें नाआक़िद (आयोजित) वह पहला बादशाह था जिसने इस रिवाज को शुरू करायां।" [अल-कौंल अल मुतआमद]
मलिक मुजफ्फर अबू सईद दीन से गाफिल, बड़ा जालिम, अपनी क़ौम पर बहुत सख्त और जाबिर था। मिलाद से दो दिन पहले वह ढोल बजाने वाले, गाने वालों और गाने वालों के साथ ऊंट, मवेशियों और भेड़ों की बड़ी तादाद को मैदान में भेजता था। इस्लाम में म्यूजिक और ढोल बजाने पर पाबंदी है फिर भी मलिक मुजफ्फर अबू सईद ने इन कामों की हिमायत की।
मेजोरिटी का सबसे मशहूर क़ौल ये है कि, रसूल अल्लाह (ﷺ) की वफ़ात 12 रबी-उल-अव्वल 11 हिजरी को हुई थी।[रिफरेन्स: What Is the Date of Prophet Muhammad’s Birth and Death?]
1. क्या यह बताया गया था कि हजरत अबू बकर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ), जो उनके सबसे करीबी लोग में थे और जो उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते थे, उन्होंने आप (ﷺ) का जन्मदिन मनाया?
कुल मिलाकर 28 दफा इस महीने से होकर गुजरने के बाद भी इन चारों सहाबियों ने रबी उल अव्वल नहीं मनाया।
क्या हमें ईद मिलादुन्नबी मनाना चाहिए? रसूल अल्लाह (ﷺ) ने खुद ऐसा नहीं किया था या किसी को भी ऐसा करने का हुक्म नहीं दिया, न तो अपनी ज़िन्दगी में न अपनी मौत के बाद। हकीकत में, उन्होंने सहाबा से कहा कि वह उसके बारे में हद से ज़्यादा न बढ़ें क्योंकि ईसाइयों ने ईसा (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) के बारे में हद से ज़्यादा बढ़ गए थें। आप (ﷺ) ने कहा: "मुझे तारीफ में हद से आगे न बढ़ाना, जिस तरह ईसा (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) को ईसाईयों ने तारीफ में हद से आगे बढ़ा दिया (और अल्लाह का बेटा मान लिया), मैं तो सिर्फ अल्लाह का बाँदा हूं, इसलिए कहो, 'अल्लाह का बाँदा और उसके रसूल।" [सहीह बुखारी-3445]
"हज़रते इबने अब्बास व हसन व क़तादह (رضي الله عنهم) ने कहा के अल्लाह के फ़ज़ल से इस्लाम और उसकी रहमत से क़ुरआन मुराद है, एक क़ौल ये है के फ़ज़्लुल्लाह से क़ुरान और रहमत से अहादीस मुराद हैं।" [फैजाने क़ुरआन, पेज 311]
लिहाजा आयत का मतलब यह है कि अल्लाह ताला ने हजरत इब्राहिम (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) से कहा की उन खास खास वाक्यात का हवाला देकर अपनी कौम को नसीहत कीजिए कि वह मेरी (अल्लाह ताला की) फरमाबरदार अख्तियार करें।
अल्लाह ने हमारे दरमियान रसूल अल्लाह (ﷺ) को हमारी इस्लाह के लिए भेजा ना कि उनकी विलादत का जश्न मनाने के लिए।
इस हदीस में दिन के बारे में बताया गया जो कि सोमवार था ना की तारीख।
इब्न उमर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) बयान फरमाते हैं, "हर बिद्अत गुमराही है अगरचे लोग उसे अच्छा ख्याल करें।" [ऐ तिक़ादू अहलिसुन्नह-126]
यह सेलिब्रेशन का दिन है तो फिर इसमें इख्तिलाफ क्यों है बिल्कुल वाज़ेह क्यों नहीं किया गया दोनों ईद की तरह। आपके मुताबिक़ ये एक जायज अमल है तो फिर ख़ुद ही बताएं नबी करीम (स०) की फरमा बरदारी के बाद भी आप दुनियां में जलील और रुसवा क्यों हो रहे हो, आप के जान, माल, इज्ज़त तो क्या आपकी इबादत गाह भी महफूज़ नहीं जबकि शायर कहता है:
"की मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं!
ऐसे अमल ना करें जिनपर अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) का हुक्म नाज़िल ना हुआ हो। अगर आप अल्लाह के रसूल (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत करते हैं, तो उन्होंने जो किया उसकी पैरवी करें और जो उन्होंने नहीं किया उसे छोड़ दें।
कयामत की यह निशानी जाहिर हो चुकी है। अब मस्जिदों की तामीर में कंपटीशन होते हैं। लोग ऐसे मौकों पर मस्जिदों को सजाते हैं। एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले की मस्जिद को कंपेयर किया जाता है और मसला यहां आना का बन जाता है कि हमारे मोहल्ले की मस्जिद अच्छी है या उनके मोहल्ले की। नमाज पढ़ने के लिए किसी को नहीं जाना, मस्जिद अच्छी होनी चाहिए, मस्जिद में ऐ. सी. (एयर कंडीशन) होना चाहिए, जमीन पर टाइल्स होने चाहिए और अफसोस के मस्जिद खाली भी होनी चाहिए।
मुझे उन लोगों से कोई रंजिश नहीं है जो वह इस दिन को मनाते हैं। मुझे तो बस अपने उन गुमराह मुस्लमान भाइयों की फिक्र है जो शैतान की गिरफ्त मे हैं उसके बहकावे मे आकर कुरान और सुन्नत से दूर होते जा रहे हैं। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया, "दीन में नई बातों (बिदअतों) से अपने आप को बचाना इसलिए कि हर बिदअत गुमराही हैं।" [इब्न माजा-42, सहीह]
नबी (ﷺ) से मोहब्बत ईमान की अलामत है। नबी (ﷺ) की सुन्नत पर चलना है, न की झंडे गड़ना, चीख पुकार करना। अगर वह समझते हैं कि यह लोगों को उनके मजहब और आप (ﷺ) की जिंदगी के बारे में और ज्यादा जानने का एक अच्छा तरीका है तो ये उनका इंतखाब है और अल्लाह ही बेहतर जानता है। मेरी बस यही दुआ है कि अल्लाह ताला उन गुमराह मुसलमानों को हिदायत दे जो कुरान और सुन्नत से दूर होकर गुमराही को अपना दीन बनाए बैठे हैं। आमीन
b. क्या नबी (ﷺ) और सलफ सालिहीन ने इसे नहीं किया?
क्या यह मुमकिन है कि इस्लाम में कोई नेक अमल हो और उसको अल्लाह के नबी (ﷺ) ने, सहाबा ने और सलफ सालिहीन ने न किया हो? जबकि ये लोग बहुत ज्यादा मुत्तक़ी और दीनदार थें। क्या यह मुमकिन है कि हम उनसे आगे बढ़ सके?
c. क्या अल्लाह के नबी (ﷺ) ने दीन के उमूर में से हमसे कुछ छुपाया?
क्या यह मुमकिन है कि नबी (ﷺ) इसके मामले में कुछ जानते रहे हो और हमें ना बताया हो?
हमारे मज़हब इस्लाम में सिर्फ दो दिन को मनाने के अलावा कोई तीसरा दिन नहीं है। हमारे पास एक ऐसे इंसान का मजहब है जो तमाम कायनात के लिए रहमत है और अल्लाह की मखलूक में सबसे बेहतर है। हमे मिलादुन्नबी मनाने की जगह दूसरे अमल करने चाहिए जैसे:
1. इस तरह की गुमराही में जो आप पैसे खर्च करते हैं, वक्त और मेहनत बर्बाद करते हैं, उससे तो कोई फायदा नहीं मिलने वाला इसकी जगह आप सदका दें, दूसरों की मदद करें और नफील नमाज़ की अदायगी करें।
2. लोगों के लिए आसानी पैदा करें ना की रैली निकालकर या डीजे बजाकर लोगों को परेशान करें।
3. वक्त की कीमत को समझें और अपने इस कीमती वक्त को नेक कामों में खर्च करें, अपनी इबादतों में खर्च करें, अपनी आखिरत को बेहतर बनाने में खर्च करें।
4. सच्ची उम्मत हमेशा प्यारे नबी के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करती है। सच्ची उम्मत बनने की कोशिश करें। बेशक कोशिश करने वाला एक दिन अपनी मंजिल को पहुँच ही जाता है।
5. हर सोमवार (पीर/Monday) रोज़ा रखें। रसूलुल्लाह (ﷺ) इस दिन रोज़ा रखते थे क्यूंकि उनकी विलादत सोमवार को हुई थी, उनका दीन फ़ैलाने का मिशन इसी दिन शुरू हुआ, इसी दिन उन पर वही उत्तरी और उनकी वफ़ात भी इसी दिन हुई।
1. ईद मिलादुन्नबी का मतलब क्या है?
रबी उल अव्वल की 12 तारीख को मुसलमान खासतौर पर नबी (ﷺ) की पैदाइश के दिन के तौर पर मनाते हैं। इसे "ईद मिलादुन्नबी या मौलिद अल-नबी" कहा जाता है। कुछ मुसलमान मुल्कों में इस दिन पब्लिक हॉलीडे (कॉलेज ऑफिस वगैरा बंद) होती है।
2. मिलादुन्नबी मनाने की शुरुआत किसने और कब की?
अहल ए इल्म का कहना है कि मिलादुन्नबी सबसे पहले इराक के शहर मौसूल (इलाका इरबल) का हाकिम मलिक मुजफ्फर अबू सईद इब्ने जैनुद्दीन था। यह दौर नबूवत के 600 साल बाद का था। आलामा मोइज़उद्दीन हसन खवारज़िमी अपनी किताब अल-कौंल अल मुतआमद में फरमाते हैं:"इरबल के हुकमाराम मलिक मुजफ्फर अबू सईद एक बेदीन और फासिक़ बादशाह था। उस ने अपने जमाने के उल्लमा को हुक्म दिया कि वह अपनी राय के मुताबिक अमल करें और किसी भी मकतब ए शरियत को तर्क कर दे। अहल ए इल्म का एक गिरोह उसकी तरफ माइल हो गया। उसने (उस बादशाह) ने रबी उल अव्वल के महीने में मौलूद (मिलादुन्नबी) की मजलिसें नाआक़िद (आयोजित) वह पहला बादशाह था जिसने इस रिवाज को शुरू करायां।" [अल-कौंल अल मुतआमद]
मलिक मुजफ्फर अबू सईद दीन से गाफिल, बड़ा जालिम, अपनी क़ौम पर बहुत सख्त और जाबिर था। मिलाद से दो दिन पहले वह ढोल बजाने वाले, गाने वालों और गाने वालों के साथ ऊंट, मवेशियों और भेड़ों की बड़ी तादाद को मैदान में भेजता था। इस्लाम में म्यूजिक और ढोल बजाने पर पाबंदी है फिर भी मलिक मुजफ्फर अबू सईद ने इन कामों की हिमायत की।
3. क्या हकीक़त में मिलादुन्नबी तीसरी ईद है?
इस्लामी में कुरान और हदीस की रोशनी में सिर्फ दो ईदों का जिक्र मिलता है
a. ईद उल फितर
b. ईद उल अजहा
हजरत अनस बिन मलिक (رضي الله عنه) से रिवायत है कि जब रसूल अल्लाह (ﷺ) मदीने तशरीफ लाये, तो अहले मदीना ने दो दिन मुर्करर किये हुए थे जिनमे वो खेल - कूंद करते चले आ रहे थें।
आप (ﷺ) ने पूछा: यह दो दिन क्या है?
उन्होंने कहा: हम जमाना जहालत में इन में मशगूल रहते थे।
आप (ﷺ) ने फरमाया: बेशक अल्लाह तआला ने इनके बदले इनसे बेहतर चीज़ रखी है कुर्बानी का दिन (ईद उल अजहा) और इफ्तार का दिन (ईद उल फितर) [अबु दाऊद-1134, सहीह]
जब रसूल अल्लाह (ﷺ) ने खुद इस बात का इकरार किया कि सबसे अच्छी किताब अल्लाह की किताब है यानी कुरान है और सबसे बेहतर उनका खुद का तरीका है तो, फिर हम कुरान और सुन्नत के मुताबिक अमल क्यों नहीं करते। कुरान और सुन्नत से मिलादुन्नबी मनाना साबित नहीं होता। ये एक ऐसी गुमराही है जिसका ताल्लुक दीन में नई चीज जोड़ने से है जिसको रसूल अल्लाह (ﷺ) ने एक बदतरीन अमल कहा है।
आज की उम्मत ए मुसलमा की अफसोसनाक हकीकत ये है कि हम में से बहुत से लोगों ने इस्लाम के नाम पर बहुत से ऐसे नए काम शुरू कर दिए हैं जो कुरान और हदीस में कहीं मौजूद नहीं है लेकिन जिन बातों के बारे में कुरान और हदीस ने बार-बार रहनुमाई की है उन पर अमल नहीं किया जाता।
3. यह के सहाबा, ताबईन और ताबा-ताबईन ने इस्लाम पर अमल नहीं किया जैसा कि हम करते हैं। लेकिन नबी (ﷺ) ने फरमाया, "बेहतरीन नस्ल मेरी नस्ल है, फिर वह जो उनकी पैरवी करते हैं, फिर वह जो उनकी पैरवी करते हैं।" [तिर्मिजी-3859 सहीह]
रसूल अल्लाह (ﷺ) के दौर में जिसने भी ईमान की हालत में आप (ﷺ) को देखा और आपकी पैरवी करते उन्हें सहाबा (رضي الله عنهم) कहते है और जिसने भी ईमान की हालत में सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) को देखा और उनकी पैरवी की उसे ताबईन कहते है, और जिसने भी ताबईन को देखा उसे तबा-ताबईन कहते है। यह सबसे बेहतर दौर थे। फिर क्या तीनो नस्लें झूठी है? जी नही, इसलिए हमें यह नतीजा निकालना चाहिए कि अल्लाह की इबादत के लिए नए तरीके नहीं बनाना चाहिए।
a. ईद उल फितर
b. ईद उल अजहा
हजरत अनस बिन मलिक (رضي الله عنه) से रिवायत है कि जब रसूल अल्लाह (ﷺ) मदीने तशरीफ लाये, तो अहले मदीना ने दो दिन मुर्करर किये हुए थे जिनमे वो खेल - कूंद करते चले आ रहे थें।
आप (ﷺ) ने पूछा: यह दो दिन क्या है?
उन्होंने कहा: हम जमाना जहालत में इन में मशगूल रहते थे।
आप (ﷺ) ने फरमाया: बेशक अल्लाह तआला ने इनके बदले इनसे बेहतर चीज़ रखी है कुर्बानी का दिन (ईद उल अजहा) और इफ्तार का दिन (ईद उल फितर) [अबु दाऊद-1134, सहीह]
हमारे मजहब में दो ईदें, दो अहम रस्मो पर अमल करने के बाद आती हैं, रमजान के रोजे और हज। इस तरह जश्न मनाने के लिए किसी और दिन की जरूरत नहीं है बल्कि हमें हर दिन और हर लम्हा अपने नबी मुहम्मद (ﷺ) की जिंदगी की याद मनाने की जरूरत है। यही वजह है कि ज़्यादातर कट्टर मुस्लिम बेहतर इस्लाह ना होने की वजह से मिलादुन्नबी मनाने का मसला रखते हैं।
4. ईद मिलादुन्नबी सुन्नत है या बिद्अत?
ईद मिलादुन्नबी एक गुमरही है, जिसका कोई हवाला कुरान और हदीस में मौजूद नहीं है। नबी करीम (ﷺ) ने खुले तौर पर इस्लाम में कोई नई चीज शामिल करने से मना फरमाया है और इसे "बिद्अत" कहा है। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "सबसे बेहतरीन चीज़ अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतर तरीका मुहम्मद का तरीका है, और सबसे बदतरीन काम दीन में नई-नई बातें पैदा करना है, और हर नई बात गुमराही है।" [इब्न माजा-45; नसई-1578, सहीह]
जब रसूल अल्लाह (ﷺ) ने खुद इस बात का इकरार किया कि सबसे अच्छी किताब अल्लाह की किताब है यानी कुरान है और सबसे बेहतर उनका खुद का तरीका है तो, फिर हम कुरान और सुन्नत के मुताबिक अमल क्यों नहीं करते। कुरान और सुन्नत से मिलादुन्नबी मनाना साबित नहीं होता। ये एक ऐसी गुमराही है जिसका ताल्लुक दीन में नई चीज जोड़ने से है जिसको रसूल अल्लाह (ﷺ) ने एक बदतरीन अमल कहा है।
आज की उम्मत ए मुसलमा की अफसोसनाक हकीकत ये है कि हम में से बहुत से लोगों ने इस्लाम के नाम पर बहुत से ऐसे नए काम शुरू कर दिए हैं जो कुरान और हदीस में कहीं मौजूद नहीं है लेकिन जिन बातों के बारे में कुरान और हदीस ने बार-बार रहनुमाई की है उन पर अमल नहीं किया जाता।
5. मिलादुन्नबी को गुनाह क्यों समझा जाता है?
रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "जिसने हमारे इस (यानी इस्लाम) मे कोई ऐसी चीज एजाद (खोज) की जिसका हमने हुक्म नहीं दिया वह मरदूद है।" [इब्न माजा-14, सहीह]
यहां अहम तसव्वुर इबादत में बिद्अत है। एक चीज जो इस्लाम को दूसरे मज़हबों से मुमताज करती है वह यह है कि हमारे पास इस्लाम के जरिए (कुरान और सुन्नत) मौजूद है जो हमें अल्लाह की इबादत का बेहतरीन तरीका बतातें हैं।
हम अल्लाह की इबादत के नए तरीके नहीं बना सकते। अगर हम ऐसा करते हैं तो इससे कुछ ऐसी चीजें मुराद होंगी जो इस्लाम के बाद कुछ बुनियादी अक़ीदह को झुठला देंगीं जैसे:
1. यह कि इस्लाम ना-मुकम्मल (इंपरफेक्ट या इनकंप्लीट) है, लेकिन कुरान कहता है, "आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, तुम्हारे लिए इस्लाम को बतौर दीन पसंद कर लिया।" [कुरान 5:3]
2. यह के हम नबी से बेहतर जानते हैं कि अल्लाह की इबादत कैसे की जाए या रसूल (ﷺ) हमें इस्लाम सिखाने में नाकाम रहे।
यहां अहम तसव्वुर इबादत में बिद्अत है। एक चीज जो इस्लाम को दूसरे मज़हबों से मुमताज करती है वह यह है कि हमारे पास इस्लाम के जरिए (कुरान और सुन्नत) मौजूद है जो हमें अल्लाह की इबादत का बेहतरीन तरीका बतातें हैं।
हम अल्लाह की इबादत के नए तरीके नहीं बना सकते। अगर हम ऐसा करते हैं तो इससे कुछ ऐसी चीजें मुराद होंगी जो इस्लाम के बाद कुछ बुनियादी अक़ीदह को झुठला देंगीं जैसे:
1. यह कि इस्लाम ना-मुकम्मल (इंपरफेक्ट या इनकंप्लीट) है, लेकिन कुरान कहता है, "आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, तुम्हारे लिए इस्लाम को बतौर दीन पसंद कर लिया।" [कुरान 5:3]
2. यह के हम नबी से बेहतर जानते हैं कि अल्लाह की इबादत कैसे की जाए या रसूल (ﷺ) हमें इस्लाम सिखाने में नाकाम रहे।
3. यह के सहाबा, ताबईन और ताबा-ताबईन ने इस्लाम पर अमल नहीं किया जैसा कि हम करते हैं। लेकिन नबी (ﷺ) ने फरमाया, "बेहतरीन नस्ल मेरी नस्ल है, फिर वह जो उनकी पैरवी करते हैं, फिर वह जो उनकी पैरवी करते हैं।" [तिर्मिजी-3859 सहीह]
रसूल अल्लाह (ﷺ) के दौर में जिसने भी ईमान की हालत में आप (ﷺ) को देखा और आपकी पैरवी करते उन्हें सहाबा (رضي الله عنهم) कहते है और जिसने भी ईमान की हालत में सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) को देखा और उनकी पैरवी की उसे ताबईन कहते है, और जिसने भी ताबईन को देखा उसे तबा-ताबईन कहते है। यह सबसे बेहतर दौर थे। फिर क्या तीनो नस्लें झूठी है? जी नही, इसलिए हमें यह नतीजा निकालना चाहिए कि अल्लाह की इबादत के लिए नए तरीके नहीं बनाना चाहिए।
6. बारह (12) रबी-उल-अव्वल की हक़ीक़त (विलादत या वफ़ात)?
रसूल अल्लाह (ﷺ) की पैदाइश और वफ़ात के दिन और साल एक थे, दिन सोमवार और साल रबी-उल-अव्वल पर तारीख में इख़्तेलाफ़ है आइये जानते हैं उलमा इस पर क्या कहते है:
A. हमारे पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की विलादत की तारीख
हमारे पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की विलादत की तारीख के हवाले से इस बात में कोई इख्तिलाफ नहीं है कि यह सोमवार को हुई थी। आपकी विलादत के महीने और साल के बारे में कोई इख़्तिलाफ़ नहीं है के ये "रबी-उल-अव्वल" का महीना और "हाथी का साल" था । इसी साल में अब्राहा (एक अक्सुमाइट सेना जनरल), 570 में हेजाज़ के हमले में मक्का के कुरैश के खिलाफ एक फौजी मुहिम के साथ आया था जिसे हाथी का साल कहा जाता है। जिस नुक्ते पर अमली इख़्तेलाफ़ है, उसका ताल्लुक़ दिन और महीने से है। हमें इसके बारे में कई राय मिली हैं, जिनमें ये बातें शामिल हैं:
a. दो (2) रबी-उल-अव्वल
इब्न कथीर (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) फरमाते हैं: "कहा जाता था कि उनका जन्म महीने के दूसरे दिन हुआ था। यह इब्न 'अब्द अल-बर्र ने अल-इस्तियाब में कहा था, और अल-वकीदी ने अबू माशर नुजैह इब्न अब्द अर-रहमान अल-मदानी से सुनाया था। [अस-सीरा अन-नबावियाह, 1/199]
b. आठ (8) रबी-उल-अव्वल
इब्न कथिर (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) ने कहा: "कहा जाता था कि उनका जन्म महीने के आठवें दिन हुआ था। यह इब्न हज़्म से अल-हुमायदी द्वारा सुनाई गई थी, और मलिक, 'अकील, यूनुस इब्न यज़ीद और अन्य लोगों ने मुहम्मद इब्न जुबैर इब्न मुतीम से अज़-ज़ुहरी से सुनाई थी। इब्न 'अब्द अल-बर ने बताया कि इतिहासकार इसे सही मानते हैं; यह अल-हाफ़िज़ अल-कबीर मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़वारिज़्मी की तरफ से यक़ीनी तौर से कहा गया था, और अल-हाफ़िज़ अबुल-ख़त्तन इब्न दह्याह ने अपनी किताब तनवीर फी मवलिद अल-बशीर अन-नधीर में इसे सही होने की सबसे अधिक संभावना के रूप में माना था।" [अस-सीरा अन-नबावियाह, 1/199]
c. दस (10) रबी-उल-अव्वल
इब्न कथिर (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) ने कहा, "कहा जाता था कि उनकी विलादत महीने की दसवीं तारीख को हुई थी। यह इब्न दह्याह ने अपनी अपनी किताब में किया था, और इब्न 'असकिर ने अबू जाफर अल-बकीर से सुनाया था। इसे मुजालिद ने राख-शाबी से भी सुनाया था।" [अस-सीरा अन-नबावियाह, 1/199]
d. बारह (12) रबी-उल-अव्वल
इब्न कथिर (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) ने कहा, "कहा जाता था कि उनकी विलादत महीने की बारहवीं तारीख को हुई थी। यह इब्न इशाक ने कहा था। इब्न अबी शायबा ने अपने मुसन्नफ में सईद इब्न मीना से अफ्फान से रिवायत किया है कि जाबिर और इब्न अब्बास (رضي الله عنهم) ने फरमायाः अल्लाह के रसूल (ﷺ) की विलादत हाथी के साल (The Year of the Elephant) सोमवार 12 वें रबी-उल-अव्वल में हुई थी; सोमवार को उनका मिशन शुरू हुआ, सोमवार को उन्हें जन्नत में ले जाया गया, सोमवार को वे चले गए, और सोमवार को उनकी वफ़ात हो गई। ये अक्सरियत के मुताबिक मारूफ राय है। और अल्लाह बेहतर जानता है।" [अस-सीरा अन-नबावियाह, 1/199]
जो बात हमें नज़र आती है वो ये है के रसूल अल्लाह (ﷺ) की विलादत के बारे में सबसे मजबूत राय ये है के आप की विलादत 8वीं और 12वीं रबी-उल-अव्वल के दरमियान हुई।
जो बात हमें नज़र आती है वो ये है के रसूल अल्लाह (ﷺ) की विलादत के बारे में सबसे मजबूत राय ये है के आप की विलादत 8वीं और 12वीं रबी-उल-अव्वल के दरमियान हुई।
B. हमारे पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की वफ़ात की तारीख
हमारे पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) की वफ़ात की तारीख के हवाले से भी इस बात में कोई इख्तिलाफ नहीं है कि यह सोमवार को हुई थी। आपकी वफ़ात के महीने और साल के बारे में भी कोई इख़्तिलाफ़ नहीं है के ये रबी-उल-अव्वल का महीना था।आप (ﷺ) की वफ़ात की तारीख़ के बारे में उलमा का इख़्तिलाफ़ है:
a. दूसरी (2) रबी-उल-अव्वल
इब्न अल-कलबी और अबू मखनाफ का ख्याल है कि यह दूसरी रबी-उल-अव्वल को हुई थी। अस-सुहैली इस इस क़ौल की तरफ मायल थे और अल-हाफ़िज़ इब्न हज्जार (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) ने इसे ज़्यादातर सही क़रार दिया है। [इब्न हज्जार, फत अल-बारी, 8:130।]
b. पहली (1) रबी-उल-अव्वल
अल-खवारिज्मी का ख्याल है कि पहली रबी-उल-अव्वल को हुई थी। [इब्न कथिर, अस-सीरा अन-नबावियाह, 4:509।
c. बारह (12) रबी-उल-अव्वल
अक्सरियत (majority) का मानना है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) की वफ़ात 12वीं रबी-उल-अव्वल को हुई थी। [अस-सुहेली, अर-रवाद अल-उनफ, 4:439-440]
मेजोरिटी का सबसे मशहूर क़ौल ये है कि, रसूल अल्लाह (ﷺ) की वफ़ात 12 रबी-उल-अव्वल 11 हिजरी को हुई थी।
मेजोरिटी ये कहती है के रसूल अल्लाह (ﷺ) की विलादत 8वीं और 12वीं रबी-उल-अव्वल के दरमियान हुई और वफ़ात 12 रबी-उल-अव्वल 11 हिजरी को हुई थी। अमली मसला है: असल तारीख पर इत्तेफाक है। इस बात का बहुत कम सबूत है कि यह असल में 12 रबी उल अव्वल थी।
7. नबी (ﷺ) की विलादत की ख़ुशी या वफ़ात का ग़म?
कुछ साल पहले इस दिन को बारह वफ़ात के नाम से मनाया जाता था यानि रसूल अल्लाह (ﷺ) की वफ़ात का दिन, लेकिन बाद में इसे बदल कर मिलादुन्नबी कर दिया गया और फिर इस दिन को ईद मिलादुन्नबी के नाम से मनाया जाने लगा। तो मेरा ये सवाल है के आप रसूल अल्लाह (ﷺ) की विलादत की ख़ुशी मन रहे है या उनकी वफ़ात की?
8. नबी (ﷺ) की वफ़ात के दिन का मंज़र
12 रबी-उल-अव्वल 11 हिजरी को रसूल अल्लाह (ﷺ) की वफ़ात के बाद का मंज़र न-क़ाबिल ए बर्दास्त था, ये वो दिन था जिस दिन :
- हज़रत फातिमा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) के सर से उनके वालिद का साया उठ गया।
- हज़रत हसन और हुसैन (رضي الله عنهم) के नाना इस दुनिया से रुक्सत हो गए।
- उम्मुल मोमिनीन (رضي الله عنهم) (उम्मत ए मुस्लमा की मायें) बेवा हो गई।
- सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) पर ग़म की शिद्दत का पहाड़ टूट पड़ा।
- इस खबर से टूट कर सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) इधर-उधर भागे-भागे फिरते रहे।
- ग़म की सिद्दत से हज़रत अब्दुल्लाह बिन अनस को दिल का दौरा पढ़ गया।
- वही का सिलसिला ख़तम हो गया।
- इसी दिन दुश्मन ए रसूल (ﷺ) ने उनकी वफ़ात की खुशियां मनाई।
ये थे नबी (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत करने वाले और आप क्या कर रहे हैं? क्या आप भी दुश्मन ए रसूल (ﷺ) की तरह खुशियां नहीं मन रहे?
9. क्या हमें ईद मिलादुन्नबी मनाना चाहिए?
यह जानने के लिए हमें तारीख में पलट कर देखना पड़ेगा कि क्या खुद रसूल अल्लाह (ﷺ) ने अपनी सालगिरह मनाई? या उनके साथियों (सहाबा) ने उनकी सालगिरह मनाई? अबू हनीफा, मलिक, शाफी, अहमद (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) इन सभी इमामों ने कभी आप (ﷺ) का जन्मदिन नहीं मनाया।A. क्या रसूल अल्लाह (ﷺ) ने अपनी सालगिरह मनाई?
इस बात का सबूत नहीं है कि उन्होंने अपनी सालगिरह मनाई। रबी उल अव्वल का महीना रसूल अल्लाह (ﷺ) की जिंदगी में 63 बार आया और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने एक भी दफा अपने पैदाइश के दिन या महीने को नहीं मनाया। अगर उनकी सालगिरह मनाना अच्छा होता तो वह खुद ही मनाते। अपनी सालगिरह को मानाने का हुक्म देने के बजाये उन्होंने कहा, "नमाज़ और गुलामों का ख्याल रखो।" [अबू दाउद-5156, सहीह]
B. क्या सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) ने मिलादुन्नबी मनाया?
हम जानते हैं कि सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) वे लोग थे जो रसूल अल्लाह (ﷺ) से सबसे ज़्यादह मुहब्बत करते थे। रसूल अल्लाह (ﷺ) के बाद आने वाली नस्लों (सहाबा इकराम) ने इसे नहीं मनाया। अगर नबी (ﷺ) ने कहा कि वह आपके बाद बेहतरीन नस्ल है और उन्होंने इसे नहीं मनाया तो क्या हम उनसे बेहतर हैं?
1. क्या यह बताया गया था कि हजरत अबू बकर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ), जो उनके सबसे करीबी लोग में थे और जो उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते थे, उन्होंने आप (ﷺ) का जन्मदिन मनाया?
2. हजरत उमर फारुख (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ), उनके ससुर जिन्होंने बारह साल हुकूमत संभाली, या उस्मान गनी (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) जिनकी निकाह में आप (ﷺ) की दो बेटियां रहीं, क्या उन्होंने ऐसा किया?
3. क्या हजरत अली (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ), आप (ﷺ) के चच्चाज़ाद भाई और दामाद ने ऐसा किया?
4. क्या ज़ायद इब्न हरिथा (आप ﷺ गोद लिए बेटे) ने इस बात का ज़िक्र किया?
5. क्या यह बताया गया कि सहाबा (رضي الله عنهم) में से किसी ने ऐसा किया?
6. क्या इसकी वजह ये है के वो इसकी अहमियत से वाक़िफ़ नहीं थे?
5. क्या यह बताया गया कि सहाबा (رضي الله عنهم) में से किसी ने ऐसा किया?
6. क्या इसकी वजह ये है के वो इसकी अहमियत से वाक़िफ़ नहीं थे?
7. या वाक़ई रसूल अल्लाह (ﷺ) से मोहब्बत नहीं करते थे?
ऐसा कोई नहीं कहेगा सिवाय उसके जो भटक गया हो और दूसरों को गुमराह कर रहा हो। हम चारों खुलफा-ए-राशिदीन का दौर देखे तो इनके दौरे खिलाफत में 2 से 12 दफा रबी उल अव्वल का महीना आया ,
- 1. हजरत अबू बकर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) (632-634)- दो दफा
- 2. हजरत उमर फारुख (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) (634-644)- 10 दफा
- 3. उस्मान गनी (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) (644-656)- 12 दफा
- 4. हजरत अली (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) (656-661)- चार दफा
कुल मिलाकर 28 दफा इस महीने से होकर गुजरने के बाद भी इन चारों सहाबियों ने रबी उल अव्वल नहीं मनाया।
C. क्या मारूफ मुस्लिम उल्माओं ने मिलादुन्नबी मनाया?
क्या किसी इमाम-अबू हनीफा, मलिक, अल-शफी, अहमद, अल-हसन अल-बसरी, इब्न सीरीन (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) ने ऐसा किया या दूसरों को ऐसा करने का हुक्म दिया या कहा कि यह अच्छा अमल है? अल्लाह की क़सम, नहीं! पहली और बेहतरीन तीन सदियों के दौरान इसका ज़िक्र तक नहीं किया गया था।
10. किन आयतों, हदीसों और बातों का हवाला देकर मिलादुन्नबी मनाया जाता है?
जब मिलादुन्नबी मानाने वालों से इसे मनाए की वजह पूछी जाती है तो क़ुरान और सुन्नत का हवाला देते है खुद को सही साबित करने के लिए। ये कुछ आयतें और हदीस हैं जिनका गलत मतलब निकला जाता है:
a. अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी मेहरबानी
इस आयत में चीजों से मुराद कुरान, खाने-पीने की चीजें और जरूरत के दूसरे सामान हो सकते हैं। पर गुमराह मुसलमानों ने इसे नबी (ﷺ) की विलादत से तस्लीम किया है। अगर मान भी लें के सही हैं तो क्या रसूल अल्लाह (ﷺ) कोई चीज़ है?
قُلۡ بِفَضۡلِ اللّٰہِ وَ بِرَحۡمَتِہٖ فَبِذٰلِکَ فَلۡیَفۡرَحُوۡا ؕ
"ऐ नबी ! कहो कि “ये अल्लाह का फ़ज़ल और उसकी मेहरबानी है कि ये चीज़ उसने भेजी, इसपर तो लोगों को ख़ुशी मनानी चाहिए।” [क़ुरान 10:58]
किताब कंज़ुल इमान में खुद अहमद रजा खान ने इस आयत का तर्जुमा करते हुए इसे कुरान से मुराद लिया है।
किताब कंज़ुल इमान में खुद अहमद रजा खान ने इस आयत का तर्जुमा करते हुए इसे कुरान से मुराद लिया है।
"हज़रते इबने अब्बास व हसन व क़तादह (رضي الله عنهم) ने कहा के अल्लाह के फ़ज़ल से इस्लाम और उसकी रहमत से क़ुरआन मुराद है, एक क़ौल ये है के फ़ज़्लुल्लाह से क़ुरान और रहमत से अहादीस मुराद हैं।" [फैजाने क़ुरआन, पेज 311]
b. उन्हें अल्लाह के दिन याद दिलाओ
अल्लाह ताला ने खास-खास और अहम वाक़्यात दोहराए हैं। जैसे नाफरमान कौम पर अज़ाब का नाजिल होना और फरमाबरदारों को दुश्मनों के मुकाबले में कामयाबी आता होना।
وَ ذَکِّرۡہُمۡ بِاَیّٰىمِ اللّٰہِ
"और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिलाओ" [क़ुरान 14:5]
लिहाजा आयत का मतलब यह है कि अल्लाह ताला ने हजरत इब्राहिम (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) से कहा की उन खास खास वाक्यात का हवाला देकर अपनी कौम को नसीहत कीजिए कि वह मेरी (अल्लाह ताला की) फरमाबरदार अख्तियार करें।
अफसोस के इस आयत का मतलब भी मिलादुन्नबी से जोड़ दिया गया है।
c. मोमिनो के दरमियान उन्ही में से रसूल भेजा
لَقَدۡ مَنَّ اللّٰہُ عَلَی الۡمُؤۡمِنِیۡنَ اِذۡ بَعَثَ فِیۡہِمۡ رَسُوۡلًا مِّنۡ اَنۡفُسِہِمۡ
"हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा एहसान किया कि उनके दरमियान उन्हीं में से एक रसूल भेजा।" [क़ुरान 3:164]
अल्लाह ने हमारे दरमियान रसूल अल्लाह (ﷺ) को हमारी इस्लाह के लिए भेजा ना कि उनकी विलादत का जश्न मनाने के लिए।
d. सोमवार का रोज़ा
अबू क़तादा अल अंसारी (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) ने सोमवार के रोज़े के बारे में पूछा तो आपने फरमाया, "यह वह दिन था जिस दिन मैं पैदा हुआ, जिस दिन मुझे नबूवत दी गई या वही भेजी गई।" [सहीह मुस्लिम-1162]
इस हदीस में दिन के बारे में बताया गया जो कि सोमवार था ना की तारीख।
e. तीसरी ईद
गुमराह मुसलमान इसे तीसरी ईद भी कहते है। जबकि सही हदीस से यह साबित होता है कि इस्लाम में सिर्फ दो ईद हैं।
अब बात ये आती है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने दो ईद बताई तो यह तीसरी ईद कहां से आ गई? इसका मतलब यह है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने इस तीसरी ईद को छुपा लिया था या फिर यह हो सकता है कि उन्हें इस आयत का मतलब ना समझ आया हो तभी सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) ने भी इस पर अमल नहीं किया। अगर ऐसा है तो ये रसूल अल्लाह (ﷺ) पर झूठ बांधना है, उन पर बोहतान लगाना है और ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम है।
f. एक अच्छी बिद्अत
कुछ गुमराह मुसलमान यह मानते हैं कि यह एक बिद्अत है और कहते हैं कि यह एक अच्छी बिद्अत है। इस सवाल का जवाब यह है कि, रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया, "हर बिद्अत गुमराही है।" [सहीह मुस्लिम-867A]
इब्न उमर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) बयान फरमाते हैं, "हर बिद्अत गुमराही है अगरचे लोग उसे अच्छा ख्याल करें।" [ऐ तिक़ादू अहलिसुन्नह-126]
g. इस दिन इब्लीस नाखुश होता है
ईद मिलादुन नबी मानने वाले ये कहते हैं सिवाय इबलीस के जहां सभी खुशियां मना रहे हैं, तो सबमें आपने सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) को कहा (माज अल्लाह), इसके बाद ताबईन और ताबे-ताबईन को कहा क्योंकि इन लोगों ने कभी भी ये जश्न नहीं मनाया। और ये बिदअत 600 सालों बाद शुरू हुई तब तक इन में से कोई जिंदा नहीं था और नबी करीम (ﷺ) ने फ़रमाया मेरे सहाबा को बुरा मत कहो।
यह सेलिब्रेशन का दिन है तो फिर इसमें इख्तिलाफ क्यों है बिल्कुल वाज़ेह क्यों नहीं किया गया दोनों ईद की तरह। आपके मुताबिक़ ये एक जायज अमल है तो फिर ख़ुद ही बताएं नबी करीम (स०) की फरमा बरदारी के बाद भी आप दुनियां में जलील और रुसवा क्यों हो रहे हो, आप के जान, माल, इज्ज़त तो क्या आपकी इबादत गाह भी महफूज़ नहीं जबकि शायर कहता है:
"की मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं!
ये जहां चीज़ क्या है लौहे कलम तेरे हैं!"
अल्लाह का दीन मुकम्मल हो चुका है अब वही का सिलसिला खत्म हो गया। कहीं और से या किसी और से हमारे लिए दीन नहीं आ सकता। जब सारी बातें हो चुकी है तो हम किस तरह से कोई नई चीज अपने दीन में जोड़ सकते हैं।
अब रसूल अल्लाह (ﷺ) से मोहब्बत की बात की जाए तो सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) से ज्यादा मोहब्बत किसने की होगी। इनके ईमान हमसे कई गुना ज्यादा पुख्ता थे और वह सिर्फ कुरान, रसूल अल्लाह (ﷺ) के क़ौल और अमल के मुताबिक जिंदगी गुजारते थें। अल्लाह ने रसूल अल्लाह (ﷺ) को दुनिया के लोगों में सबसे बेहतरीन कहा। उन्होंने तो नहीं मनाया जबकि उनके बाद के उलमा ने 600 साल के बाद इसे शुरू किया।
11. मिलादुन्नबी-नबी (ﷺ) की मोहब्बत या उनके खिलाफ अमल
इस गुमराही में मुब्तिला मुसलमान यह मानते हैं कि वह नबी (ﷺ) से बेहद मोहब्बत करते हैं और उनकी मोहब्बत में मिलादुन्नबी मनाते हैं। तो मेरा आपसे सिर्फ एक ही सवाल है यह कैसी मोहब्बत है जिसमें महबूब के खिलाफ काम किया जाए? हज्जतुल विदा के मौके पर रसूल अल्लाह (ﷺ) पर ये आयत नाजिल हुई, "आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया।" [कुरान 5:3]अल्लाह का दीन मुकम्मल हो चुका है अब वही का सिलसिला खत्म हो गया। कहीं और से या किसी और से हमारे लिए दीन नहीं आ सकता। जब सारी बातें हो चुकी है तो हम किस तरह से कोई नई चीज अपने दीन में जोड़ सकते हैं।
अब रसूल अल्लाह (ﷺ) से मोहब्बत की बात की जाए तो सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) से ज्यादा मोहब्बत किसने की होगी। इनके ईमान हमसे कई गुना ज्यादा पुख्ता थे और वह सिर्फ कुरान, रसूल अल्लाह (ﷺ) के क़ौल और अमल के मुताबिक जिंदगी गुजारते थें। अल्लाह ने रसूल अल्लाह (ﷺ) को दुनिया के लोगों में सबसे बेहतरीन कहा। उन्होंने तो नहीं मनाया जबकि उनके बाद के उलमा ने 600 साल के बाद इसे शुरू किया।
रसूल अल्लाह (ﷺ) के बाद आने वाली नस्लों (सहाबा इकराम) ने इसे नहीं मनाया। अगर नबी (ﷺ) ने कहा कि वह आपके बाद बेहतरीन नस्ल है और उन्होंने इसे नहीं मनाया तो क्या हम उनसे बेहतर हैं?
अब जरा आप अपने अंदर झांक कर देखें, आप कुरान पर कितना अमल करते हैं, या सुन्नत पर कितना अमल करते हैं। नबी (ﷺ) से मोहब्बत करने का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ आप उनके जन्मदिन को मनाए या वो काम करें जिनसे उन्होंने दूरी अख्तियार की। आप (ﷺ) ने फरमाया, "जिस अमल पर हमारा हुक्म नहीं वो अमल रद्द हैं।" [सहीह बुखारी-2697]
अब जरा आप अपने अंदर झांक कर देखें, आप कुरान पर कितना अमल करते हैं, या सुन्नत पर कितना अमल करते हैं। नबी (ﷺ) से मोहब्बत करने का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ आप उनके जन्मदिन को मनाए या वो काम करें जिनसे उन्होंने दूरी अख्तियार की। आप (ﷺ) ने फरमाया, "जिस अमल पर हमारा हुक्म नहीं वो अमल रद्द हैं।" [सहीह बुखारी-2697]
ऐसे अमल ना करें जिनपर अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) का हुक्म नाज़िल ना हुआ हो। अगर आप अल्लाह के रसूल (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत करते हैं, तो उन्होंने जो किया उसकी पैरवी करें और जो उन्होंने नहीं किया उसे छोड़ दें।
12. मिलादुन्नबी मनाने के बारे में मेरी राय
मै मिलादुन्नबी नहीं मानती, मै असल में किसी खास दिन को मानाने में यक़ीन नही रखती सिवाए दो ईदों के।अल्लाह ने अपनी इबादत के लिए मुझे ज़िन्दगी बख्शी, इसे गुजरने का सही तरीक़ा बताया और मुस्लमान बनाया। मैं अपनी कीमती ज़िन्दगी को हल्के में नहीं लेती, क़ुरान और सुन्नत पर अमल करती हूँ और यह सबसे अच्छी बात है जो मुझे लगता है कि मैं इसके साथ कर रही हूँ। मिलादुन्नबी मेरे लिए बस एक आम दिन जैसा है। कुछ खास नहीं।
हमारा रोजाना का अमल कुरान, दुआ और नमाज के ज़रिए होना चाहिए। रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया, "मेरी कब्र को ईद की जगह ना बनाओ और मेरे लिए अल्लाह से दुआ करो क्योंकि तुम जहां कहीं भी हो तुम्हारी दुआ मुझे पहुंचती है।" [अबू दाऊद, रियाद अस सालीहीन 1401]
यहाँ दुआ से मुराद आप (ﷺ) पर दरूद भेजना है। मिलादुन्नबी का एक दिन मनाना हमें कभी निजात नहीं दिलाएगा खास तौर पर ऐसी चीजें जो दीनी तालीमात के खिलाफ हैं। इन दिनों के दौरान लोगों को कुरान पढ़ते हुए या पैगंबर और उनकी जिंदगी के बारे में बात करते, मजहबी मसलों को हल करते हुए कम ही देखा जाता है बल्कि मस्जिदों, घरों और मोहल्लो को सजाया जाता है, अच्छा खाना, केक वगैरह बनाया जाता है, ज्यादा हराम काम किए जाते हैं। हजरत अनस से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फरमाया, "कयामत की निशानियों में से एक यह है कि लोग मस्जिदे बनाने में दिखावा करेंगे।" [नसई-689, सहीह]
कयामत की यह निशानी जाहिर हो चुकी है। अब मस्जिदों की तामीर में कंपटीशन होते हैं। लोग ऐसे मौकों पर मस्जिदों को सजाते हैं। एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले की मस्जिद को कंपेयर किया जाता है और मसला यहां आना का बन जाता है कि हमारे मोहल्ले की मस्जिद अच्छी है या उनके मोहल्ले की। नमाज पढ़ने के लिए किसी को नहीं जाना, मस्जिद अच्छी होनी चाहिए, मस्जिद में ऐ. सी. (एयर कंडीशन) होना चाहिए, जमीन पर टाइल्स होने चाहिए और अफसोस के मस्जिद खाली भी होनी चाहिए।
मुझे उन लोगों से कोई रंजिश नहीं है जो वह इस दिन को मनाते हैं। मुझे तो बस अपने उन गुमराह मुस्लमान भाइयों की फिक्र है जो शैतान की गिरफ्त मे हैं उसके बहकावे मे आकर कुरान और सुन्नत से दूर होते जा रहे हैं। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया, "दीन में नई बातों (बिदअतों) से अपने आप को बचाना इसलिए कि हर बिदअत गुमराही हैं।" [इब्न माजा-42, सहीह]
नबी (ﷺ) से मोहब्बत ईमान की अलामत है। नबी (ﷺ) की सुन्नत पर चलना है, न की झंडे गड़ना, चीख पुकार करना। अगर वह समझते हैं कि यह लोगों को उनके मजहब और आप (ﷺ) की जिंदगी के बारे में और ज्यादा जानने का एक अच्छा तरीका है तो ये उनका इंतखाब है और अल्लाह ही बेहतर जानता है। मेरी बस यही दुआ है कि अल्लाह ताला उन गुमराह मुसलमानों को हिदायत दे जो कुरान और सुन्नत से दूर होकर गुमराही को अपना दीन बनाए बैठे हैं। आमीन
13. मिलादुन्नबी मानाने वालों से मेरे कुछ अहम सवाल?
a. क्या नबी (ﷺ) को इस बारे में कुछ मालूम नहीं था?
मुमकिन है कि दीन में कोई नए अमल हो और अल्लाह के नबी (ﷺ) को मालूम ना हो और हमें मालूम हो क्या हम नबी (ﷺ) से ज्यादा जान सकते हैं? जबकि हज़रत आयशा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) फरमाती हैं कि नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया, "मैं तुम्हें सबसे ज्यादा अल्लाह से डरने वाला और अल्लाह के बारे में जानने वाला हूं। " [सहीह बुखारी-20]
मुमकिन है कि दीन में कोई नए अमल हो और अल्लाह के नबी (ﷺ) को मालूम ना हो और हमें मालूम हो क्या हम नबी (ﷺ) से ज्यादा जान सकते हैं? जबकि हज़रत आयशा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) फरमाती हैं कि नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया, "मैं तुम्हें सबसे ज्यादा अल्लाह से डरने वाला और अल्लाह के बारे में जानने वाला हूं। " [सहीह बुखारी-20]
b. क्या नबी (ﷺ) और सलफ सालिहीन ने इसे नहीं किया?
क्या यह मुमकिन है कि इस्लाम में कोई नेक अमल हो और उसको अल्लाह के नबी (ﷺ) ने, सहाबा ने और सलफ सालिहीन ने न किया हो? जबकि ये लोग बहुत ज्यादा मुत्तक़ी और दीनदार थें। क्या यह मुमकिन है कि हम उनसे आगे बढ़ सके?
c. क्या अल्लाह के नबी (ﷺ) ने दीन के उमूर में से हमसे कुछ छुपाया?
क्या यह मुमकिन है कि नबी (ﷺ) इसके मामले में कुछ जानते रहे हो और हमें ना बताया हो?
नहीं! बल्कि दीन की सारी चीजें हम तक पहुंचा दी हैं। हज़रत आयशा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهَا) बयान करती हैं, "किसी ने यह खयाल किया कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने अल्लाह की किताब में से कुछ भी छुपाया तो उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा बुहतान बांधा जबकि अल्लाह कहता है," ए नबी (ﷺ)! आपकी तरफ आपके रब के पास से जो कुछ नाज़िल हुआ है उसे पहुंचा दीजिए और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आपने अपने पैगाम को नहीं पहुंचाया। (कुरान 5:67) [सहीह मुस्लिम-177A]
क्या आपको सिर्फ इन तीन सवालों पर गौर करने की ज़रुरत नहीं पड़ी, अगर नहीं तो अब इसकी ज़रुरत है।
जो इंसान तौहीद को पहचान लेता है वो शिर्क से बच जाता है और जो सुन्नत को पहचान लेता है वो बिदअत से बच जाता है। ज़रूरी ये नहीं कि आप (ﷺ) की विलादत का जश्न मनाया जाए बल्कि इसकी जगह ज़रूरी ये है कि आप (ﷺ) के मिशन को आगे बढ़ाया जाए।
आप (ﷺ) का मिशन क्या था?
दुनियाँ से शिर्क को मिटाना और तौहीद की दावत को आम करना और दुनियां में सामाजिक इन्साफ कायम करना। इसी में पूरा इस्लाम सिमट जाता है।
14. मुसलमानों को क्या करना चाहिए?
मुसलमान की जिंदगी का हर दिन मिलाद है। जब हम कोई तकरीर सुनते हैं तो उसमें कई आयतें और हदीस सुनते हैं, दरूद पढ़ते हैं। हमारे लिए कुरान और हदीस से बेहतर कोई मिलाद है क्या?जो इंसान तौहीद को पहचान लेता है वो शिर्क से बच जाता है और जो सुन्नत को पहचान लेता है वो बिदअत से बच जाता है। ज़रूरी ये नहीं कि आप (ﷺ) की विलादत का जश्न मनाया जाए बल्कि इसकी जगह ज़रूरी ये है कि आप (ﷺ) के मिशन को आगे बढ़ाया जाए।
आप (ﷺ) का मिशन क्या था?
दुनियाँ से शिर्क को मिटाना और तौहीद की दावत को आम करना और दुनियां में सामाजिक इन्साफ कायम करना। इसी में पूरा इस्लाम सिमट जाता है।
हमारे मज़हब इस्लाम में सिर्फ दो दिन को मनाने के अलावा कोई तीसरा दिन नहीं है। हमारे पास एक ऐसे इंसान का मजहब है जो तमाम कायनात के लिए रहमत है और अल्लाह की मखलूक में सबसे बेहतर है। हमे मिलादुन्नबी मनाने की जगह दूसरे अमल करने चाहिए जैसे:
1. इस तरह की गुमराही में जो आप पैसे खर्च करते हैं, वक्त और मेहनत बर्बाद करते हैं, उससे तो कोई फायदा नहीं मिलने वाला इसकी जगह आप सदका दें, दूसरों की मदद करें और नफील नमाज़ की अदायगी करें।
2. लोगों के लिए आसानी पैदा करें ना की रैली निकालकर या डीजे बजाकर लोगों को परेशान करें।
3. वक्त की कीमत को समझें और अपने इस कीमती वक्त को नेक कामों में खर्च करें, अपनी इबादतों में खर्च करें, अपनी आखिरत को बेहतर बनाने में खर्च करें।
4. सच्ची उम्मत हमेशा प्यारे नबी के नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करती है। सच्ची उम्मत बनने की कोशिश करें। बेशक कोशिश करने वाला एक दिन अपनी मंजिल को पहुँच ही जाता है।
5. हर सोमवार (पीर/Monday) रोज़ा रखें। रसूलुल्लाह (ﷺ) इस दिन रोज़ा रखते थे क्यूंकि उनकी विलादत सोमवार को हुई थी, उनका दीन फ़ैलाने का मिशन इसी दिन शुरू हुआ, इसी दिन उन पर वही उत्तरी और उनकी वफ़ात भी इसी दिन हुई।
6. नबी (ﷺ) कही हुई बातों पर अमल करें। उन्होंने जिंदगी जीने का तरीका बताया, उस तरीके को अपनी जिंदगी में शामिल करें, लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है ये सीखें, दुनिया और आखिरत की कामयाबी के बारे में जाने, उस पर अमल करें ना कि उन कामों में उलझ कर रह जाये जिसका दीन से कोई ताल्लुक नहीं है, उसमें पढ़ कर अपनी आखिरत को बर्बाद कर दें।
हजरत अबू हुरैरा (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (ﷺ) ने फरमाया,"मेरी उम्मत में मुझसे सबसे ज्यादा मोहब्बत करने वाले वह लोग हैं, जो मेरे बाद होंगे। उनमें से हर एक शख्स की या ख्वाहिश होगी की, काश! वह अपने अहलो-अयाल (रिश्ते-नातेदार) और माल की कुर्बानी दे कर वह मुझे (यानी रसूल अल्लाह (ﷺ) को) एक बार देख ले।" [सही मुस्लिम-7145 (2832); मिश्कात उल मसाबीह-6284]
रसूल अल्लाह से मोहब्बत यानि क़ुरान और सुन्नत पर अमल, ये दो चीज़ें आपके दिल में इस ख्वाइश को ज़रूर पैदा करेगी। नबी (ﷺ) ने हमें उनकी बात न मानने के खतरे के बारे में बताया, और जो कुछ वह लाये थे उसमें इज़ाफ़े का खतरा था। मिलादुन्नबी मनना हकीकतन उस चीज़ में इज़ाफ़ा है जो वो लाये थे, जैसा कि तमाम उलमा इससे सहमत हैं।
हम अल्लाह ताला से दुआ करते हैं कि,
वह हमें बिदअत से बचाए,
अपने नबी (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत और उनकी इताअत की तौफ़ीक़ अता करे,
हम मुसलमानो को एक और नेक राह पर चलने वाला बनाये,
हमें अपने दीन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए और
सिरत ए मुस्तकिम पर चलने वाला बनाये।
अल्लाह सबसे बेहतर जानने वाला रहीम ओ करीम है।
आमीन
Islamic Theology
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