इंसान समेत पूरी कायनात अल्लाह ने तख्लीक की है यह हरगिज़ खुद ब खुद नहीं बनी। कायनात में मौजूद चीजों में पाई जाने वाली हिकमत ये बताती है इनको किसी मकसद के लिए बनाया गया है। इंसान का कायनात में अशराफुल मखलूका़त होना इस बात का सबूत है कि इसकी तख्लीक सबसे ज्यादा बामकसद व और बामायनी है। मौजूदा मुआशरे में एंब्रीयॉनिक पीरियड से जब इंसान अपने अक्लमंदी को पहुंचता है तो उसको अपनी जिंदगी का मकसद अच्छा खाना पीना, रहना सहना, अच्छी नौकरी हासिल करना, माल और दौलत हासिल करना और दुनिया की जिंदगी में कामयाब होना ही नजर आता है और उसके घर वाले भी उसे यही बताते हैं और इसलिए इस रास्ते पर चलने के लिए फोर्स करते हैं। इसलिए वह अपने हालात और सलाहियतों के मुताबिक इस मकसद के उसूल में अपनी जिंदगी लगाने का अहद कर लेता है।
अगर किसी पर हकीकत ज़ाहिर ना हो तो वह समझता है कि ये पौधे, जानवर, इंसान खुद ब खुद कुदरती निजाम के तहत पैदा होते चले जा रहे हैं। यह सूरज, चाँद वगैरह कायदे (rules) के तहत खुद-ब-खुद रवाँ-दवाँ है तो ऐसे शख्स को अपनी ख्वाहिशों की तकमील के सिवा और मकसद नजर नहीं आएगा, लेकिन हकीकत समझ आने वालों के लिए यह मकसद काफी नहीं रहता है। हकीकत से आगाह इंसान को सोचने पर मजबूर कर देती है के कायनात उसकी खिदमत में क्यों लगी हुई है।
हां अल्लाह कामिल है। हां, उसे हमारी कोई जरूरत नहीं है। बल्कि, हमें उसकी जरूरत है। जब उसने हमें पैदा किया तो उसने हमें अपने फायदे के लिए नहीं बल्कि हमारे लिए पैदा किया। उसने हमें अपने फायदे के लिए पैदा किया ना के उसके। अल्लाह को इबादत की जरूरत नहीं। बल्कि, हमें उसकी इबादत करने की जरूरत है। सिर्फ अल्लाह ही है जो हमारी जरूरत पूरी करता है, हमारी मदद करता है और हमें हिफाजत देता है।
जमीन पर हमारे वजूद का मकसद दुनियावी फायदे के गुलाम होने से ज्यादा मायने रखता है। हमारे ख़ालिक, अल्लाह की तरफ से दी हुई से बेहतर कोई बा-मकसद जिंदगी नहीं हो सकती। अल्लाह के तरीके के मुताबिक हर अमल इबादत है। इंसान फायदा उठाने वाला है और अल्लाह बेनियाज़ है। कुरान कहता है जिसका मतलब है:
हमें अपने वजूद को महसूस करने और जिंदगी की खुशियां चखने के लिए अल्लाह की जरूरत है। हमारे लिए उसकी जरूरत ऐसे ही है जैसे एक बच्चे की जरूरत एक बाप और मेहरबान मां की। हमें उसके सामने अपनी बेबसी का ऐतराफ करने की जरूरत है और सिर्फ वही हमें ताकत देने के लिए काफी है इस बात पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि वह तमाम ताकत और ताकत का सर-चश्मा है। एक हदीस में आता है:
अल्लाह ताला फरमाता है:
अल्लाह की सबसे बड़ी सिफ़त में से एक हिकमत है, और उसका सबसे बड़ा नाम अल-हकीम (सबसे ज़्यादा हिकमत वाला) है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसने कुछ भी बेकार नहीं बनाया है। अल्लाह ऐसी चीज़ से बहुत बुलंद है। बल्कि वह चीजों को अज़ीम और हकीमाना वजूहात और आला मक़सद के लिए चीज़ों को तख़लीक़ करता है। जो उन्हें जानते हैं वे उन्हें जानते हैं और जो उन्हें नहीं जानते वे उन्हें नहीं जानते। अल्लाह ने अपनी किताब में ये बयान किया है की जहां वह कहता है कि उसने इंसानो को बेमक़सद पैदा नहीं किया और उसने आसमान और ज़मीन को बेकार पैदा किया। अल्लाह ताला फरमाता है, ताला ने उसे खास काम के लिए बनाया है, इरशाद-ए-बरी ताला है:
अल्लाह ताला ने इंसान को खाने, पीने और बढ़ने के लिए नहीं बनाया, अगर उसने सिर्फ इन कामों के लिए बनाया होता तो वह जानवरों की तरह होता। अल्लाह ताला ने इंसान को और उसे अपनी मखलूक में से बहुत से लोगों पर फजी़लत लगती है, लेकिन बहुत से लोग को प्रॉपर इसरार करते हैं, इसलिए वह उनके तख्लीक के पीछे की हकीकी हिकमत से अनजान है इनकार करते हैं और उन्हें सिर्फ दुनिया की लज़्ज़तों की फिक्र है। ऐसे लोगों की जिंदगी जानवरों की तरह होती है हकीकत में ये उससे भी ज्यादा गुमराह हैं। अल्लाह ताला फरमाता है:
अक्लमंद लोगों को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि जो इंसान कोई काम करता है वह उसके पीछे की हिकमत को दूसरों से ज्यादा जानता है और और वह इंसानों की तकलीफ के पीछे की हिकमत को खूब जानता है। दुनियावी मालूमात में इससे कोई इख्तिलाफ नहीं करेगा। तमाम लोग इस बात पर यकीन रखते हैं कि उनकी जिस्मानी सलाहियतें एक वजह से तकलीफ की गई है। आंख देखने के लिए है, कान सुनने के लिए है, वगैरह।
हक वाज़ेह हो जाने के बाद भी अल्लाह ताला की मंशा को समझने से गाफिल रहना यकीनन अल्लाह ताला की नाशुकरी और खिलाफ अक्ल बात है। अल्लाह ताला ने इंसान को एक बहुत बड़ी वजह की बिना पर पैदा किया है, उनमें से एक सबसे बड़ी वजह आज़माइश है, अकेले अल्लाह के होने की गवाही देना और उसकी इबादत करने का हुक्म है जिसका कोई शरीक नहीं। अल्लाह ताला ने इंसान की तख्लीक की यही वजह बयान बताई है जैसा के फरमाया:
इब्न कसीर (رَحِمَهُ ٱللَّٰهُ) फरमाते हैं:
"यानी मैंने (अल्लाह) उन्हें इसलिए पैदा किया है कि मैं उनको अपनी इबादत का हुक्म दूं, इसलिए नहीं कि मुझे उनकी कोई जरूरत है। अली (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) इब्न अब्बास (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत करते हैं: "सिवाय इसके के वो मेरी इबादत करें, खुशी से या नाखुशी से।" यही क़ौल इब्न जुरैज़ का है। इब्न जुरैज़ ने कहा: यानी "सिवाय इसके के वो मुझे पहचाने।" रबी बिन अनस (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) ने कहा: "सिवाय इसके के वो मेरी इबादत करें" यानी इबादत के लिए।
[तफसीर इब्न कसीर-4/239]
अल्लाह ताला ने हमें बताया है कि आसमान और जमीन की तख्लीक और जिंदगी और मौत आज़माइश के लिए है ताकि इंसान को आज़माया जाए। जो उसकी इताअत करेगा वह उसको जज़ा देगा और जो उसकी नाफरमानी करेगा वह उसे सजा देगा। अल्लाह ताला फरमाता है:
इस इम्तिहान से अल्लाह की अस्मा और शिफत जाहिर होती है, जैसे कि अल्लाह की अस्मा रहमान (बेहद रहम करने वाला), गफूर (बहुत बख्शने वाला), अल हकीम (हिकमत वाला), अत्तव्वाब (तौबा कुबूल करने वाला), अर रहीम (बहुत मेहरबानी करने वाला) और अल्लाह के दूसरे नाम।
आप अपनी जिंदगी को गफलत में गुजारे और ख्वाहिशात की तकमील में लगे रहे या अल्लाह की फरमाबरदारी में, जो दिन आप पर तुलू हुआ उस ने रात में तब्दील हो जाना है और इन दिनों के मजमू'ए का नाम जिंदगी है। हर इंसान ने अपने हिस्से का वक्त पूरा करना है। ये वक्त बड़ी तेजी से गुजरता जा रहा है।
गुजरी हुई जिंदगी पर नजर डालें तो बीते हुए कई साल एक ख्वाब से महसूस होते हैं। कल की बात है कि हम बच्चे थे, जवान हुए और बुढ़ापे की तरफ रुखसत सफर बांधे हुए हैं। आइंदा आने वाला वक्त भी यूं ही खत्म हो जाएगा। जिन लोगों की हजार-हजार साल उम्र थी वह भी यहां ना रहे तो क्या हम रह जाएंगे? इसका बामकसद जिंदगी का एक दिन जरूर नतीजा निकलेगा। हम सब एक दिन अल्लाह की बारगाह में हिसाब के लिए पेश किए जाएंगे। हिसाब के तवील दिन के सामने दुनिया की जिंदगी के कई साल एक दिन के बराबर महसूस होंगे जिसका तज़किरह कुरान मजीद में यूं हुआ:
जरूरत इस बात की है कि इन हकीकतों को मानते हुए वक्त से पहले बेदार हो जाए और इस इम्तेहान की जिंदगी में अपनी जिम्मेदारियां पूरी की जाए, वक्त गुजर जाने के बाद रिजल्ट निकलते वक्त बेदार होना यकीनन पछतावे का बाइस है। बरोज़ कयामत जब लोग अपना जुर्म तस्लीम कर लेंगे तो अल्लाह ताला फरमाएगा:
दुनिया में इंसान दुनियावी नुकसान के डर से अल्लाह ताला के रास्ते को नहीं अपनाता। वह यह ख्याल करता है कि मेरी आजादी छिन जाएगी। मुझ पर पाबंदियां लग जाएंगे। पहली बात तो ये है कि जिंदगी गुजारने के लिए जो चीजें अल्लाह ताला ने दी है वह इंसान के फायदे के लिए ही है। दुनिया और आखिरत की बेहतरी अल्लाह ताला की फरमाबरदारी करके जिंदगी गुजारने में है। इन में यकीनी फायदे हैं, नुकसान नहीं, फिर दुनिया के चंद रोज हम जैसे चाहे गुजार लें गुजर ही जानी है तो आखिरत की हमेशा की लंबी जिंदगी को दांव पर लगाना क्या फायदे की बात है? अल्लाह ताला ने ना-फरमाबरदार इंसानो को खबरदार किया है कि:
ये यकीनी बात है कि अल्लाह ताला के अहकामात और उसकी याद से मेहरूम लोगों को हकीकी इत्मिनान नसीब नहीं हो सकता। ज़हिरी और आरज़ी खुशियों के साथ-साथ दिल बेइत्मिनान रहता है और दुनिया की हजारों नेमतें भी हकीकी खुशी व मसर्रत नहीं दिला सकतीं। अल्लाह से दूर रहकर इंसान को इत्मिनान नहीं मिल सकता, अल्लाह को दिल में बसाने से इंसान को हकीकी इत्मिनान नसीब होता है, जाहिरी हालात अच्छे हो या बुरे इंसान को ज्यादा मुतासिर नहीं करते इसलिए अल्लाह के साथ ताल्लुक ना सिर्फ आखिरत बल्कि दुनिया की कामयाबी के लिए भी निहायत जरूरी है। अल्लाह ताला ने इंसान को खबरदार किया है कि:
जिस तरह खाने की तलब इंसान में रखी गई है और बगैर खाए सुकून नहीं मिलता, उसी तरह अल्लाह ताला की तलब भी हमारे अंदर मौजूद है जिसकी प्यास हमारा जिस्म महसूस करता रहता है और उसकी याद दिल में बसाने से हकीकी सुकून नसीब हो जाता है।
- गाय और भैंस किसलिए दूध बनाने में मशरूफ है।
- घोड़ा, गधा और खच्चर उसकी खिदमत के लिए आमादा है।
- शहद की मक्खियाँ उसके लिए शहद बनाने में मशरूफ अमल हैं।
- जमीन इसके लिए तरह तरह के अनाज और फल बनाने में लगी हुई है।
- मुर्गियां उसके लिए अंडे बना रही हैं।
- गोश्त के हुसूल (फायदा) के लिए जानवर उसके काबू में दे दिए गए हैं।
- बैक्टीरिया उसके लिए दूध को दही में तब्दील कर रहे है ताकि उसे मक्खन और घी मिल सके।
- आसमान से इसके लिए बारिश बरसाई जा रही है।
- जमीन में मुनासिब कशिश-ए-सिक़्ल (गुरुत्वाकर्षण बल ) से आदमी को पकड़ा हुआ के कहीं यह कायनात की लामहदूद और फैलाव में गायब ना हो जाए।
- आग इसके लिए खाना पकाने के लिए अमादा है।
- सूरज इसे रोशनी हरारत देने में मशरूफ है।
- चांद भी इसके काम में लगा हुआ है।
- जमीन ने अपने पेट में लोहा, तांबा, पीतल, सोना, चांदी जैसी धातु को महफूज किया हुआ है ताकि यह इससे मकान, दरवाजे, खिड़कियां, गाड़ियां, कंप्यूटर और दूसरी मशीनें बना सकें।
*(गुरुत्वाकर्षण बल - एक कूवत जो किसी चीज़ को पृथ्वी के केंद्र की तरफ, या किसी दूसरी चीज़ की तरफ खींचती है)
कायनात की हर चीज इंसान की खिदमत में लगी हुई है। कायनात में पैदा की जाने वाली चार तरह की मखलुका़त हैंः
फरिश्तों को अक्ल दी लेकिन ख्वाहिशात (आरज़ू) ना दी। उन्हें नाफरमानी या गुनाह करने की इजाज़त नहीं। यह अल्लाह के हुक्म को मानने पर मजबूर हैं।
- फरिश्ते
- जिन
- इंसान
- हैवान
फरिश्तों को अक्ल दी लेकिन ख्वाहिशात (आरज़ू) ना दी। उन्हें नाफरमानी या गुनाह करने की इजाज़त नहीं। यह अल्लाह के हुक्म को मानने पर मजबूर हैं।
इंसान और जिन को अक्ल और ख्वाहिशात दोनों दी जबकि हैवानो को ख्वाहिशात दी ताकि वह खाते पीते रहें और इंसान के काम आए।
इंसान और जिन को बनाने का बुनियादी मकसद एक ऐसी मखलूक पैदा करना था जो अल्लाह के रास्ते को अपनाने में मजबूर ना हो। आजादी से अल्लाह के रास्ते को अपना सके। यूं अल्लाह ताला ने इंसान को तख्लीक करके अच्छे और बुरे रास्ते की पहचान करा दी, जैसा के इरशाद फरमाया:
اِنَّا ہَدَیۡنٰہُ السَّبِیۡلَ اِمَّا شَاکِرًا وَّ اِمَّا کَفُوۡرًا
"हमने उसे रास्ता दिखाया, ख़ाह शुक्र करनेवाला बने या कुफ़्र करनेवाला।"
[कुरान 76:3]
अल्लाह ताला ने इंसान को जमीन पर अपना खलीफा बनाकर इज्जत बख्शी है। उसने हमें आजाद मर्ज़ी दी, जो हमें फरिश्तों से ऊंचा बनाती है। लेकिन बा-हैसियत इंसान हमारा एक हद तक महदूद है। हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए और कभी भी अपने आप को ऐसी चीजों से परेशान करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जो हमारे समझ से बाहर हो। अल्लाह को हमें पैदा करने की जरूरत नहीं थी, हम कभी नहीं समझ सकते कि उसने ऐसा क्यों किया।
अल्लाह कामिल है
हां अल्लाह कामिल है। हां, उसे हमारी कोई जरूरत नहीं है। बल्कि, हमें उसकी जरूरत है। जब उसने हमें पैदा किया तो उसने हमें अपने फायदे के लिए नहीं बल्कि हमारे लिए पैदा किया। उसने हमें अपने फायदे के लिए पैदा किया ना के उसके। अल्लाह को इबादत की जरूरत नहीं। बल्कि, हमें उसकी इबादत करने की जरूरत है। सिर्फ अल्लाह ही है जो हमारी जरूरत पूरी करता है, हमारी मदद करता है और हमें हिफाजत देता है।
जमीन पर हमारे वजूद का मकसद दुनियावी फायदे के गुलाम होने से ज्यादा मायने रखता है। हमारे ख़ालिक, अल्लाह की तरफ से दी हुई से बेहतर कोई बा-मकसद जिंदगी नहीं हो सकती। अल्लाह के तरीके के मुताबिक हर अमल इबादत है। इंसान फायदा उठाने वाला है और अल्लाह बेनियाज़ है। कुरान कहता है जिसका मतलब है:
یٰۤاَیُّہَا النَّاسُ اَنۡتُمُ الۡفُقَرَآءُ اِلَی اللّٰہِ ۚ وَ اللّٰہُ ہُوَ الۡغَنِیُّ الۡحَمِیۡدُ
"लोगो, तुम्हीं अल्लाह के मोहताज हो और अल्लाह तो ‘ग़नी’ और ‘हमीद’ है।"
[कुरान 35:15]
हमें अल्लाह की जरूरत है
हमें अपने वजूद को महसूस करने और जिंदगी की खुशियां चखने के लिए अल्लाह की जरूरत है। हमारे लिए उसकी जरूरत ऐसे ही है जैसे एक बच्चे की जरूरत एक बाप और मेहरबान मां की। हमें उसके सामने अपनी बेबसी का ऐतराफ करने की जरूरत है और सिर्फ वही हमें ताकत देने के लिए काफी है इस बात पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि वह तमाम ताकत और ताकत का सर-चश्मा है। एक हदीस में आता है:
اللهُمَّ أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَبِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ لَا أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ
"ऐ अल्लाह! मैं तेरी नाराजगी से तेरी रजामंदी की पनाह में आता हूं और तेरी सजा़ से तेरी माफी की पनह में आता हूं और तुझसे तेरी ही पनाह में आता हूं, मैं तेरी सना पूरी तरह बयान नहीं कर सकता, तू वैसा ही है जैसे तूने अपनी तारीफ खुद बयान की।"
[सही मुस्लिम-486]
अल्लाह ताला फरमाता है:
اَوۡ کَالَّذِیۡ مَرَّ عَلٰی قَرۡیَۃٍ وَّ ہِیَ خَاوِیَۃٌ عَلٰی عُرُوۡشِہَا ۚ قَالَ اَنّٰی یُحۡیٖ ہٰذِہِ اللّٰہُ بَعۡدَ مَوۡتِہَا ۚ فَاَمَاتَہُ اللّٰہُ مِائَۃَ عَامٍ ثُمَّ بَعَثَہٗ ؕ قَالَ کَمۡ لَبِثۡتَ ؕ قَالَ لَبِثۡتُ یَوۡمًا اَوۡ بَعۡضَ یَوۡمٍ ؕ قَالَ بَلۡ لَّبِثۡتَ مِائَۃَ عَامٍ فَانۡظُرۡ اِلٰی طَعَامِکَ وَ شَرَابِکَ لَمۡ یَتَسَنَّہۡ ۚ وَ انۡظُرۡ اِلٰی حِمَارِکَ وَ لِنَجۡعَلَکَ اٰیَۃً لِّلنَّاسِ وَ انۡظُرۡ اِلَی الۡعِظَامِ کَیۡفَ نُنۡشِزُہَا ثُمَّ نَکۡسُوۡہَا لَحۡمًا ؕ فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَہٗ ۙ قَالَ اَعۡلَمُ اَنَّ اللّٰہَ عَلٰی کُلِّ شَیۡءٍ قَدِیۡرٌ
"या फिर मिसाल के तौर पर उस आदमी को देखो जिसका गुज़र एक ऐसी बस्ती पर हुआ जो अपनी छतों पर औंधी गिरी पड़ी थी।
उसने कहा, “ये आबादी जो तबाह हो चुकी है, इसे अल्लाह किस तरह दोबारा ज़िन्दगी देगा?”
इस पर अल्लाह ने उसकी जान निकाल ली और वो सौ साल तक मुर्दा पड़ा रहा। फिर अल्लाह ने उसे दोबारा ज़िन्दगी दी और उससे पूछा, “बताओ, कितनी मुद्दत तक पड़े रहे हो ?”
उसने कहा, “एक दिन या कुछ घंटे रहा हूँगा।”
कहा, “तुमपर सौ साल इसी हालत में बीत चुके हैं। अब ज़रा अपने खाने और पानी को देखो कि इसमें ज़रा भी तबदीली नहीं आई है। दूसरी तरफ़ ज़रा अपने गधे को भी देखो [ कि इसका पंजर तक जर्जर हो रहा है]। और ये हमने इसलिये किया है कि तुम्हें लोगों के लिये एक निशानी बना देना चाहते हैं। फिर देखो कि हड्डियों के इस पंजर को हम किस तरह उठाकर गोश्त और खाल उस पर चढ़ाते हैं।”
इस तरह जब हक़ीक़त उसके सामने बिलकुल वाज़ेह हो गई तो उसने कहा, “मैं जानता हूँ कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।”
[कुरान 2:255]
अल्लाह ने कभी किसी चीज़ को बेकार नहीं बनाया
اَفَحَسِبۡتُمۡ اَنَّمَا خَلَقۡنٰکُمۡ عَبَثًا وَّ اَنَّکُمۡ اِلَیۡنَا لَا تُرۡجَعُوۡنَ
"क्या तुमने ये समझ रखा था कि हमने तुम्हें बेकार ही पैदा किया है और तुम्हें हमारी तरफ़ कभी पलटना ही नहीं है?”
[कुरान 23:115]
इंसान समझता है कि वह जो कुछ भी पसंद करता है उसे करने के लिए वह पूरी तरह से आजाद है उसे जवाब देने की जरूरत नहीं है या उसे कोई भी काम करने के लिए हिसाब लेने वाला नहीं है। वह सोचता है कि मौत के बाद उसे दोबारा जिंदा नहीं किया जाएगा न हीं उसके अच्छे कामों के लिए उसे जज़ा और बुरे कामों के लिए उसे सज़ा दी जाएगी। अपनी जिंदगी को एक तरह से खेलकूद की तरह गुजार रहा है जो चाहता है वह करता है और जिस तरह से वह जीना चाहता है वह जीता है। अल्लाह ताला फरमाता है,
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا لَٰعِبِينَ
"हमने आसमानो और ज़मीन को और जो कुछ उनके दरमियान है, खेल के लिए नहीं बनाया।"
[क़ुरान 21:16]
यह साबित है कि इंसान की तख्लीक के पीछे शरियत (इस्लामी कानून) के नुक्ता नजर से हिकमतकार फरमाते है, की अक्ल के नुक्ता नजर से भी साबित है, अक्लमंद आदमी इस बात को कबूल नहीं कर सकता के चीजें किसी वजह से पैदा की गई है और अक्लमंद आदमी खुद को अपने जिंदगी में बगैर किसी वजह के काम करने से बलातर समझता है, तो अल्लाह के बारे में क्या ख्याल है, जो सबसे ज्यादा हकीम है?
अल्लाह ताला फरमाता है:
अल्लाह ताला फरमाता है:
وَ مَا خَلَقۡنَا السَّمَآءَ وَ الۡاَرۡضَ وَ مَا بَیۡنَہُمَا بَاطِلًا ؕ ذٰلِکَ ظَنُّ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا ۚ فَوَیۡلٌ لِّلَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا مِنَ النَّارِ
"हमने इस आसमान और ज़मीन को और इस दुनिया को जो उनके बीच है, बेमक़सद पैदा नहीं कर दिया है।(29) ये तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने (अल्लाह का) इनकार किया है और ऐसे इनकार करनेवालों के लिये बरबादी है जहन्नम की आग से।"
[कुरान 38:27]
इसलिए अक्लमंद मोमिन इक़रार करते हैं की अल्लाह की मखलूक में हिकमत है और काफिर इसका इनकार करते हैं। अल्लाह ताला ने इंसान के बनाने के मकसद को कुरान मजीद में कई जगह वाज़ेह किया है जैसे फरमाया:
تَبٰرَکَ الَّذِیۡ بِیَدِہِ الۡمُلۡکُ ۫ وَ ہُوَ عَلٰی کُلِّ شَیۡءٍ قَدِیۡرُ ۙ
"बहुत ही पाक और बरतर है वो जिसके हाथ में कायनात की सल्तनत है, और वो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।"
[कुरान 67: 1]
इंसान को अकेले खाने, पीने और बढ़ने के लिए नहीं बनाया गया
अल्लाह ताला ने इंसान को खाने, पीने और बढ़ने के लिए नहीं बनाया, अगर उसने सिर्फ इन कामों के लिए बनाया होता तो वह जानवरों की तरह होता। अल्लाह ताला ने इंसान को और उसे अपनी मखलूक में से बहुत से लोगों पर फजी़लत लगती है, लेकिन बहुत से लोग को प्रॉपर इसरार करते हैं, इसलिए वह उनके तख्लीक के पीछे की हकीकी हिकमत से अनजान है इनकार करते हैं और उन्हें सिर्फ दुनिया की लज़्ज़तों की फिक्र है। ऐसे लोगों की जिंदगी जानवरों की तरह होती है हकीकत में ये उससे भी ज्यादा गुमराह हैं। अल्लाह ताला फरमाता है:
وَ لَقَدۡ ذَرَاۡنَا لِجَہَنَّمَ کَثِیۡرًا مِّنَ الۡجِنِّ وَ الۡاِنۡسِ ۫ ۖ لَہُمۡ قُلُوۡبٌ لَّا یَفۡقَہُوۡنَ بِہَا ۫ وَ لَہُمۡ اَعۡیُنٌ لَّا یُبۡصِرُوۡنَ بِہَا ۫ وَ لَہُمۡ اٰذَانٌ لَّا یَسۡمَعُوۡنَ بِہَا ؕ اُولٰٓئِکَ کَالۡاَنۡعَامِ بَلۡ ہُمۡ اَضَلُّ ؕ اُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡغٰفِلُوۡنَ
"और ये हक़ीक़त है कि बहुत-से जिन्न और इनसान ऐसे हैं जिनको हमने जहन्नम ही के लिये पैदा किया है।उनके पास दिल हैं, मगर वो उनसे सोचते नहीं। उनके पास आँखें हैं, मगर वो उनसे देखते नहीं। उनके पास कान हैं, मगर वो उनसे सुनते नहीं। वो जानवरों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी ज़्यादा गए गुज़रे। ये वो लोग हैं जो ग़फ़लत में खोए गए हैं।"
[कुरान 7:179]
अक्लमंद लोगों को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि जो इंसान कोई काम करता है वह उसके पीछे की हिकमत को दूसरों से ज्यादा जानता है और और वह इंसानों की तकलीफ के पीछे की हिकमत को खूब जानता है। दुनियावी मालूमात में इससे कोई इख्तिलाफ नहीं करेगा। तमाम लोग इस बात पर यकीन रखते हैं कि उनकी जिस्मानी सलाहियतें एक वजह से तकलीफ की गई है। आंख देखने के लिए है, कान सुनने के लिए है, वगैरह।
- क्या यह माने रखता है कि इसकी जिस्मानी सलाहियतें किसी वजह से तकलीफ की गई है लेकिन खुद के लिए बेकार पैदा की गई है?
- या जब वह इसे पैदा करने की वजह बताता है तो क्या वह इस को जवाब देने पर राजी नहीं होता जिसने इसे पैदा किया है?
अल्लाह ने हमें सिर्फ अपनी इबादत/बंदगी के लिए पैदा किया
हक वाज़ेह हो जाने के बाद भी अल्लाह ताला की मंशा को समझने से गाफिल रहना यकीनन अल्लाह ताला की नाशुकरी और खिलाफ अक्ल बात है। अल्लाह ताला ने इंसान को एक बहुत बड़ी वजह की बिना पर पैदा किया है, उनमें से एक सबसे बड़ी वजह आज़माइश है, अकेले अल्लाह के होने की गवाही देना और उसकी इबादत करने का हुक्म है जिसका कोई शरीक नहीं। अल्लाह ताला ने इंसान की तख्लीक की यही वजह बयान बताई है जैसा के फरमाया:
وَ مَا خَلَقۡتُ الۡجِنَّ وَ الۡاِنۡسَ اِلَّا لِیَعۡبُدُوۡنِ
"मैंने जिन्न और इन्सानों को इसके सिवा किसी काम के लिये पैदा नहीं किया है कि वो मेरी बन्दगी करें।"
[कुरान 51:56]
बंदगी से मुराद गुलामी इख्तियार करना और अल्लाह के अहकामात के सामने खुश दिली से झुक जाना। इन आयतों को जब इंसान सुनता है तो उसे यकीन नहीं आता कि क्या वाकई हमें बनाने का मकसद ये है? यह ताज्जुब इसलिए होता है कि जिस मासरे में हम ने आंखें खोली वहां यह काम बतौर मकसद हयात नजर ना आया। इसके बरअक्स जिंदगी का असल मकसद ख्वाहिशात को पूरा करना ही नजर आया। लिहाजा अब जबकि अल्लाह ने आप पर ख़ास फज़ल फरमाते हुए रसमी और पैदाइशी ईमान से हटकर आपको अक्ल और बसीरत पर मबनी यकीन की दौलत से नवाज़ा है और आपको हकीकत से अगाही दे दी है तो अब जरूरत इस बात की है कि आप अल्लाह की बात को अहमियत दें और यह समझने की कोशिश करें कि वह हमसे क्या चाहता है।
"यानी मैंने (अल्लाह) उन्हें इसलिए पैदा किया है कि मैं उनको अपनी इबादत का हुक्म दूं, इसलिए नहीं कि मुझे उनकी कोई जरूरत है। अली (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) इब्न अब्बास (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) से रिवायत करते हैं: "सिवाय इसके के वो मेरी इबादत करें, खुशी से या नाखुशी से।" यही क़ौल इब्न जुरैज़ का है। इब्न जुरैज़ ने कहा: यानी "सिवाय इसके के वो मुझे पहचाने।" रबी बिन अनस (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) ने कहा: "सिवाय इसके के वो मेरी इबादत करें" यानी इबादत के लिए।
[तफसीर इब्न कसीर-4/239]
अल्लाह ने हमें आजमाइश के लिए पैदा किया है
अल्लाह ताला ने हमें बताया है कि आसमान और जमीन की तख्लीक और जिंदगी और मौत आज़माइश के लिए है ताकि इंसान को आज़माया जाए। जो उसकी इताअत करेगा वह उसको जज़ा देगा और जो उसकी नाफरमानी करेगा वह उसे सजा देगा। अल्लाह ताला फरमाता है:
الَّذِیۡ خَلَقَ الۡمَوۡتَ وَ الۡحَیٰوۃَ لِیَبۡلُوَکُمۡ اَیُّکُمۡ اَحۡسَنُ عَمَلًا ؕ وَ ہُوَ الۡعَزِیۡزُ الۡغَفُوۡرُ ۙ
"जिसने मौत और ज़िन्दगी को बनाया ताकि तुम लोगों को आज़मा कर देखे कि तुममें से कौन बेहतर अमल करनेवाला है, और वो ज़बरदस्त भी है और दरगुज़र करनेवाला भी।"
[कुरान 67:2]
इस इम्तिहान से अल्लाह की अस्मा और शिफत जाहिर होती है, जैसे कि अल्लाह की अस्मा रहमान (बेहद रहम करने वाला), गफूर (बहुत बख्शने वाला), अल हकीम (हिकमत वाला), अत्तव्वाब (तौबा कुबूल करने वाला), अर रहीम (बहुत मेहरबानी करने वाला) और अल्लाह के दूसरे नाम।
इंसान को अल्लाह की फरमाबरदारी करने के लिए बनाया गया
आप अपनी जिंदगी को गफलत में गुजारे और ख्वाहिशात की तकमील में लगे रहे या अल्लाह की फरमाबरदारी में, जो दिन आप पर तुलू हुआ उस ने रात में तब्दील हो जाना है और इन दिनों के मजमू'ए का नाम जिंदगी है। हर इंसान ने अपने हिस्से का वक्त पूरा करना है। ये वक्त बड़ी तेजी से गुजरता जा रहा है।
गुजरी हुई जिंदगी पर नजर डालें तो बीते हुए कई साल एक ख्वाब से महसूस होते हैं। कल की बात है कि हम बच्चे थे, जवान हुए और बुढ़ापे की तरफ रुखसत सफर बांधे हुए हैं। आइंदा आने वाला वक्त भी यूं ही खत्म हो जाएगा। जिन लोगों की हजार-हजार साल उम्र थी वह भी यहां ना रहे तो क्या हम रह जाएंगे? इसका बामकसद जिंदगी का एक दिन जरूर नतीजा निकलेगा। हम सब एक दिन अल्लाह की बारगाह में हिसाब के लिए पेश किए जाएंगे। हिसाब के तवील दिन के सामने दुनिया की जिंदगी के कई साल एक दिन के बराबर महसूस होंगे जिसका तज़किरह कुरान मजीद में यूं हुआ:
قٰلَ کَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِی الۡاَرۡضِ عَدَدَ سِنِیۡنَ - قَالُوۡا لَبِثۡنَا یَوۡمًا اَوۡ بَعۡضَ یَوۡمٍ فَسۡئَلِ الۡعَآدِّیۡنَ
फिर अल्लाह उनसे पूछेगा, “बताओ, ज़मीन में तुम कितने साल रहे?"
वो कहेंगे, “एक दिन या दिन का भी कुछ हिस्सा हम वहाँ ठहरे हैं, गिनती करनेवालों से पूछ लीजिये।”
[कुरान 23:112-113]
इम्तेहान की जिंदगी में अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए
जरूरत इस बात की है कि इन हकीकतों को मानते हुए वक्त से पहले बेदार हो जाए और इस इम्तेहान की जिंदगी में अपनी जिम्मेदारियां पूरी की जाए, वक्त गुजर जाने के बाद रिजल्ट निकलते वक्त बेदार होना यकीनन पछतावे का बाइस है। बरोज़ कयामत जब लोग अपना जुर्म तस्लीम कर लेंगे तो अल्लाह ताला फरमाएगा:
قٰلَ اِنۡ لَّبِثۡتُمۡ اِلَّا قَلِیۡلًا لَّوۡ اَنَّکُمۡ کُنۡتُمۡ تَعۡلَمُوۡنَ
कहा जाएगा, “थोड़ी ही देर ठहरे हो ना! काश, तुमने ये उस वक़्त जाना होता।"
[कुरान 23:114]
दुनिया और आखिरत की बेहतरी के लिए
दुनिया में इंसान दुनियावी नुकसान के डर से अल्लाह ताला के रास्ते को नहीं अपनाता। वह यह ख्याल करता है कि मेरी आजादी छिन जाएगी। मुझ पर पाबंदियां लग जाएंगे। पहली बात तो ये है कि जिंदगी गुजारने के लिए जो चीजें अल्लाह ताला ने दी है वह इंसान के फायदे के लिए ही है। दुनिया और आखिरत की बेहतरी अल्लाह ताला की फरमाबरदारी करके जिंदगी गुजारने में है। इन में यकीनी फायदे हैं, नुकसान नहीं, फिर दुनिया के चंद रोज हम जैसे चाहे गुजार लें गुजर ही जानी है तो आखिरत की हमेशा की लंबी जिंदगी को दांव पर लगाना क्या फायदे की बात है? अल्लाह ताला ने ना-फरमाबरदार इंसानो को खबरदार किया है कि:
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ ۖ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ
"ये वही लोग हैं जिन्होंने आख़िरत के बदले इस दुनिया की जान मोल ली है, तो उनके लिए न तो अज़ाब कम किया जाएगा और न उनकी मदद की जाएगी।"
[कुरान 2:86]
वही दूसरी तरफ अल्लाह उन लोगों का भी ज़िक्र करता है जो उसके फर्माबरदार हैं, जो उसकी दी हुई नेमतों का शुक्र अदा करते हैं, जो दुनिया में नेक अमल करते है और आख़िरत पर यक़ीन। वो आख़िरत की हमेशा बाकि रहने वाली ज़िन्दगी की तैयारी में लगे रहते हैं। अल्लाह ताला फरमाता है:
وَمِنْهُمْ مَنْ يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
लेकिन उनमें से वह भी है जो कहता है, "ऐ हमारे रब, हमें इस दुनिया में [जो है] अच्छा और आख़िरत में [जो है] अच्छा दे और आग के अज़ाब से हमारी हिफाज़त कर।"
[कुरान 2:201]
हमें अपनी ज़िन्दगी उस तरह गुज़ारनी चाहिए जिस तरह हमारे नबी (ﷺ) और सहाबा इकराम (رضي الله عنهم) ने गुज़ारा। दुनिया को बेहतर बनाने के साथ आख़िरत को भी ध्यान में रखना चाहिए। दीन और दुनिया दोनों की कामयाबी की दुआ करते रहना चाहिए।
مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ
"अगर कोई इस दुनिया का बदला चाहता है, तो इस दुनिया और उसके बाद दोनों का इनाम अल्लाह के पास है।"
[कुरान 4:134]
हकीकी इत्मिनान के लिए
ये यकीनी बात है कि अल्लाह ताला के अहकामात और उसकी याद से मेहरूम लोगों को हकीकी इत्मिनान नसीब नहीं हो सकता। ज़हिरी और आरज़ी खुशियों के साथ-साथ दिल बेइत्मिनान रहता है और दुनिया की हजारों नेमतें भी हकीकी खुशी व मसर्रत नहीं दिला सकतीं। अल्लाह से दूर रहकर इंसान को इत्मिनान नहीं मिल सकता, अल्लाह को दिल में बसाने से इंसान को हकीकी इत्मिनान नसीब होता है, जाहिरी हालात अच्छे हो या बुरे इंसान को ज्यादा मुतासिर नहीं करते इसलिए अल्लाह के साथ ताल्लुक ना सिर्फ आखिरत बल्कि दुनिया की कामयाबी के लिए भी निहायत जरूरी है। अल्लाह ताला ने इंसान को खबरदार किया है कि:
اَلَا بِذِکۡرِ اللّٰہِ تَطۡمَئِنُّ الۡقُلُوۡبُ
"ख़बरदार रहो, अल्लाह की याद ही वो चीज़ है जिससे दिलों को इत्मीनान मिला करता है।"
[कुरान 13:28]
जिस तरह खाने की तलब इंसान में रखी गई है और बगैर खाए सुकून नहीं मिलता, उसी तरह अल्लाह ताला की तलब भी हमारे अंदर मौजूद है जिसकी प्यास हमारा जिस्म महसूस करता रहता है और उसकी याद दिल में बसाने से हकीकी सुकून नसीब हो जाता है।
इंसान के ज़हन में हक की पहचान की रोशनी डालकर, हक और बातिल का फर्क वाज़ेह करने के लिए आसमानी किताबें नाजिल करके इंसान को उसकी आजादी दे दी के जिस रास्ते का चाहे अपने लिए इंतखाब करें। इंसान की ये अज़मत और फजी़लत है कि पूरी कायनात में सिर्फ इंसान को अपने अज़ीम काम के लिए मुंतखिब (चुना) फरमाया के वो अहकामात इलाही पर खुद अमल करें और उसे दूसरों तक पहुंचाएं। इंसान ने चुंकि कभी सोचा ही नहीं कि मुझे बनाने वाला और नेमतें देने वाला कोई और है इसलिए वह अपने फर्ज को भूल बैठा है और अपने खालिक की फायदे की बात मानने के बजाय शैतान की बात मानता है जो हमेशा उसे घाटे की तरफ बुलाता है। इंसान यह ख्याल करता है कि वह सिर्फ दुनिया के लिए पैदा हुआ है
By Islamic Theology
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