इस्लाम मे पाकी कि एहमियत व ज़इफ हदीस का फितना
बात इस गलत फहमी से ना शुरु करके बल्कि इस्लाम में पाकी की अहमियत और हैसियत से करते हैं
इस्लाम में पाकी की हैसियत
अगर इस्लामी तलीमात में से पाकी पे गौर करें तो आपको ख़ुद पता चलेगा कि इस्लाम ने किन किन चीजों से पाकी पे ज़्यादा ज़ोर दिया है।
पाकी आधा ईमान है।
सहीह मुस्लिम: 223
इस्लाम सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़ाहिरी पाकी की बात नहीं करता बल्कि इस्लाम ने रूहानी पाकी पे भी ज़ोर दिया है यानि अगर हम पाक साफ़ और जायज़ चीज़ नहीं खाएंगे और पियेंगे तो हमारी रूह कैसे पाक रह सकती है? इस्लाम का मयार (standard) बहुत ही वसी (vast) है। यानि सिर्फ़ जिस्म, लिबास और गिजा, शराब (ड्रिंक) ही बल्कि हमारी तनहाई और हमारे ख्यालात भी पाकीज़ा होने चाहिए और इसके नतीजे में पाकी को कामयाबी और कामरानी का जरिया बना दिया।
बेशक इसने फलाह (success) पाई जो पाक गया।
कुरआन 87:14
नापाकी का अजाब
एक मरतबा नबी करीम ﷺ दो कब्रों के पास से गुजरे तो आप ने (इन्हें देख कर) फ़रमाया कि इन दोनों कब्र वालों पर अजाब नाजिल हो रहा है और अजाब भी किसी बड़ी चीज़ पर नहीं नाजिल हो रहा है (कि जिससे बचना मुश्किल हो) इनमें एक तो पेशाब से नहीं बचना था।
इब्न ए माज़ाह 349
अब आते हैं गलत फहमी पे, ऊपर बयान की गई बातों पे गौर करके खुद ही ये तय करें कि क्या वाकई इस्लाम इस बात की तरगीब (motivation) देता है ?
उम्मे ऐमन (रज़ी०) कहती हैं कि रसूल ﷺ के पास एक प्याला था जिसमें आप ﷺ पेशाब करते थे और सुबह होते ही आप ﷺ फरमाते थे कि आए उम्मे ऐमन प्याले में जो कुछ है इसे फेक दो
एक दिन रात को मैं बेदार हुई और बहुत प्यासी थी मैंने प्याले में जो कुछ था पी लिया रसूल ﷺ ने फ़रमाया आए उम्मे ऐमन प्याले में जो कुछ है फेक दो मैंने कहा मुझे प्यास लगी थी तो मैं पी लिया या रसूलल्लाह! जिस पर नबी करीम ﷺ ने जवाब दिया कि तुम्हारे पेट में कभी दर्द नहीं होगा।
[मुसतदरक लिल हाकिम जिल्द 4 सफा 63]
ये एक जईफ (weak) हदीस है। इस तरह की और भी कई हदीस हैं। एक का ही ज़िक्र करके सच की बिना पे गलत फहमी दूर की जा सकती है तो फिर एक नज़र देखते हैं हदीस और जईफ हदीस को-
हदीस
हर वो बात, काम और तकरीर जो नबी करीम ﷺ की तरफ़ मंसूब किया जाता है उसे हदीस कहते हैं अब वो निसबत सच हो या मन गढ़त अगर वो नबी करीम ﷺ की तरफ़ मंसूब किया गया तो वो हदीस कहलाएगा है।
इसे एक मिसाल से समझे हैं जैसे Indian currency, अगर कोई नोट RBI की तरफ़ से ना तो भी वो जाली ही सही नोट ही कहलाता है।
इसे तरह ज़ईफ हदीस है।
अब विश्वनीय हदीस से देखते हैं-
सही हदीस
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उसे तारो ताजा रखे जिसने हमसे कोई हदीस सुनी और उसे याद किया फिर दूसरों तक पहुंचाया।
सुन्न अबु दाऊद:3660
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
जिसने हमारी निस्बत से कोई बात कही तो गड़ने वाला और बयान करने वाला भी झूठा है।
सहीह मुस्लिम:01/08
यानि दोनों ही झूठे हैं अब आप सोचे कहीं आप का भी शुमार झूठो में तो नहीं ना हो रहा है?
अब हदीस की परिभाषा को विश्वसनीय हदीस के उदाहरण से समझ लेते हैं..
नबी करीम ﷺ की बात
तुम उस वक्त तक मोमिन नही हो सकते हो जब तक अपने भाई (दूसरों) के लिए वही ना पसंद करो जो ख़ुद के लिए पसंद करते हो।
सहीह बुखारी: 13
नबी करीम ﷺ का अमल
मैंने देखा कि नबी करीम जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो अपने दोनों हाथ कंधे तक उठाते, और रुकु के लिए तकबीर कहने पर और इससे सर उठाने पर भी ऐसा ही करते और कहते (...........) लेकिन सजदे में ऐसा नहीं किया।
सहीह बुखारी: 736
तकरीरी(बरक़रार)
यानि नबी करीम ﷺ ने ना कहा और ना अमलन किया लेकिन आपकी मौजूदगी में किया गया लेकिन अपने मना नहीं किया ये तकरीरी कहलाएगा।
जैसे:
नबी करीम ﷺ ने एक सहाबी को एक मुहिम पर रवाना किया। वो सहाबी नमाज़ सूरह इख्लास (कुल्हुआल्लाह हु अहद) पे खत्म करते। जब लोग वापस आए तो इसका ज़िक्र नबी करीम से किया। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया कि इनसे पूछो वो ये तर्ज़े अमल क्यों इख्तियार किए हुए थे चुनांचा लोगों ने पूछा तो इन्होंने कहा कि वो ऐसा इस लिए करते थे कि ये अल्लाह की सिफत और मैं इसे पढ़ना अज़ीज़ रखता हूं। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया कि इन्हें बता दो कि अल्लाह भी इन्हें अज़ीज़ रखता है।
सहीह बुखारी 7375
अब देख लेते हैं हदीस ज़ईफ कैसे होती है और दर्ज क्यों किया गया ?
हदीस ज़ईफ
हदीस ज़ईफ कैसे???
हदीस को नबी करीम ﷺ ने ख़ुद तो दर्ज किया नहीं है उनके सहबियों ने नबी करीम ﷺ से सुन कर याद किया और फिर आने वाली नस्ल तबाईन को बताया और बताईन ने अपने बाद वाली नस्ल (बता तबाईन) को बताया फिर इस तरह 1/2 और नस्लो तक बात (हदीस) पहुंची फिर मुहद्दिसिन (हदीस को लिखने वाले) ने लिखा। और अगर इस chain of naration में कोई भी झूठा होता या बीच में रावी का सही से पता नहीं होता या फिर लिखने वाले की उम्र ज़्यादा हो जाने की वजह से उन्हें बाते याद नहीं रहती तो उन बातों को दर्ज तो कर लिया गया लेकिन उसके आगे ज़ईफ लिख दिया गया। लेकिन वही बाते किसी और विश्वनीय स्त्रोत (reliable sources) से पता चलता तो सही भी मान लेते।
लेकिन ऊपर (जिस बिना पे गलत फहमी वाजूद में आई) बयान की गई हदीस में रावी missing हैं और इस तरह की जितनी भी हदीस है वो सारी की सारी ज़ईफ है। क्योंकि कोई भी हदीस विश्वनीय स्त्रोत से नहीं मिलती है।
इसे मिसाल से समझते हैं, जैसे: अगर आपने किसी दूर बैठे शख़्स से बात करनी है तो आप उसका नंबर डायल करोगे अगर नंबर गलत या missing रहा तो क्या आपकी बात हो पाएगी?
नबी करीम ﷺ की का हर एक अमल विश्वसनीय स्रोत के द्वारा दर्ज है यहां तक कि उनका अपनी जरूरियात का किस तरह जाना..
नबी करीम ﷺ जब अपनी जरूरियात के लिए जाते तो अपने साथ पानी से भरा हुआ डम्बल ले कर जाते(ताकि वो उससे अपनी शर्म गाह धोएं)।
सहीह बुखारी:150
जो बात सही ज़रिए और दलील से मौजुद हैं उन्हें छोड़ के उन बातों की तरफ़ क्यों जाते हैं जहां से आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ नुकसान उठाना पड़े। हमारी फिक्रमंदी ऐतराज़ करने वाले के लिए नहीं है बल्कि आप लोग के लिए, जो लोगों के लिए views या TRP पाने का एक जरिया बन गए हैं।
नबी करीम ﷺ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के एक बंदे थे यानि एक इंसान और उन पे जादू, ज़हर, बुखार और भी तमाम तकलीफों का असर हुआ। बेशक वो इंसान थे और उनकी body activity भी normal human being की ही तरह थी लेकिन वो अपनी शख्सियत के ऐतबार से तमाम इंसानों से आला हैं और जब बात नबी करीम ﷺ की शख्सियत की आए तो वो हैं (यानि वो अपनी नसीहतों, तबलीग, किरदार, और अमल की वजह से)।
-अहमद बज़्मी
2 टिप्पणियाँ
Bahut hi shaandaar blog... zajallhukhaira
जवाब देंहटाएंwa iyaak
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।