कुरान पर अमल-औरतों का घर मे चीखना चिल्लाना
''अल्लाह की मेहरबानी है कि मैंने अपनी सारी खामियाँ और कमजोरियां दूर कर दी हैं.''
अल्लाह का शुक्र है कि मेरे शौहर और मेरे बच्चों ने घर का माहौल खुशनुमा बना दिया है, लेकिन मुझमें एक कमजोरी है जिससे मैं जान नहीं छुड़ा सकीं हूं। यह मेरी तेज आवाज है। मेरी कई बहनों को भी जोर-जोर से चिल्लाने की बीमारी है। वे भी इससे छुटकारा पाना चाहती हैं।
इस पर मैंने कहा: "आज की बैठक में इस आयात पर गौर करना चाहिए।"
इस पर मैंने कहा: "आज की बैठक में इस आयात पर गौर करना चाहिए।"
[सूरह लुकमान 31:19]
"और अपनी आवाज़ धीमी रख। कोई शक़ नहीं के आवाज़ों में सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।'
हम इस आयात के मुताबिक जिंदगी गुजारेंगेl इसी आयात की रौशनी मे सोचेंगे और इसी पर अमल करने की कोशिश करेंगेl हम इसे बार बार दोहराते रहेंगे ताकि अल्लाह हमें अपनी आवाज कम करने की तौफीक दे। हम औरतों ने ये अहद किया है के हम इसे इतना दोहराएंगे के ये हमारे दिलों मे समा गई है और हमारे दिलों को इसने रोशन कर दिया हैl आयें देखें ये आयात करीमा क्या नतीज़ा दिखती है?
जिस औरत को बहुत तेज़ बोलने और चीखने चिल्लाने का दौरा पड़ता था और जिसने दरस-ए-कुरान मे मुझसे मशवरा किया था उसे दरस सुने और हमसे इस मसले पर नुस्खा लिए अभी कुछ ही रोज हुए थें के उसकी पड़ोसन ने उसे टेलीफोन किया और पूछा: "मैंने बहुत दिनों से तुम्हारी आवाज़ नहीं सुनी, तुम कैसी हो?"
उस तकलीफदह औरत ने जवाब दिया: "मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आप आ जायें दरस मे तो अभी बहुत दिन हैं। मैं इतना इंतजार नहीं कर सकती। अगर आपके पास वक्त हो तो मेरी बात सुनने के लिए घर आ जायेंl"
पड़ोसन जल्दी ही उनके घर पहुंच गई तो खातून ने उससे कहा, "जैसा के दरस मे मोहतरमा समीना ने रहनुमाई की थी, मैं ये आयात बार बार दोहराती रही और ये मुझे हिफ्ज़ हो गई।"
यूँ एक दिन गुजर गया l अगले दिन सुबह बच्चे रोज की तरह स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। इस समय, जैसा कि आप जानते हैं, मेरी हालत काबिल ए रहम होती है। वहीं एक ही वक़्त मे हर कोई अपनी अपनी चीज मांग रहा होता है। मुझे इस मौके पर चिल्लाने की आदत थी, मैं बच्चों के साथ चीख-चीख कर बातें करती थी, मगर इस सुबह मैंने आयात ए करीमा ("وَٱغْضُضْ مِن صَوْتِكَ ۚ إِنَّ أَنكَرَ ٱلْأَصْوَٰتِ لَصَوْتُ ٱلْحَمِيرِ" "और अपनी आवाज़ धीमी रख। कोई शक़ नहीं के आवाज़ों में सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।") पर अमल करने का फैसला कर लिया। इस आयात को ईस्तेमाल करने के असल इम्तेहान के दौरान बच्चों के बर्ताव ने मेरे बर्ताव मे शिद्दत पैदा कर दी।
मेरे मिजाज़ मे आज फिर तेजी आने लगी क्यूंकि एक बच्चे को जूता नहीं मिल रहा था, दूसरे को बेल्ट, तीसरे को पेन्सिल और चौथे का बस्ता (Bag)l ये सुन कर मेरी कैफ़ियत वही हो गई जैसे पहले होती थी l मैंने बच्चों को ज़ोर-ज़ोर से डांटना शुरू कर दिया l मगर इसी लम्हे मैंने मेहसूस किया के मेरा चेहरा सुर्ख हो गया है और मेरी शक़्ल गधे सी हो रही है, कान गधे की तरह लंबे हो रहे हैं। मैंने फौरन सोचा हमे गधे की तरह आवाज़ निकलने के लिए रोका गया है। हमे अपनी आवाज़ गधे की आवाज़ की तरह नहीं बनानी चाहिए। अल्लाह ने जब रोक दिया है, अपना हुक्म दे दिया है तो फिर हमे उसके हुक्म को मानना चाहिए। कहीं हमारी शक़्ल बिगाड़ ना जाए, हम यहूदियों की तरह सूअरों और बंदरों की सूरत मे ना बदल दिए जायें।
चीखने की इस हरकत को सोचते ही मैं शर्मा गई, क्यूंकि इस तरह मैं इंसानो से निकल कर जानवरो मे शामिल हो गई थी। ये बात दिमाग मे आते ही मैं बच्चों के लिए नर्म पढ़ गई और आहिस्ता आहिस्ता बोलने लगी।
"हाँ ये लेलो, ये तुम्हारा जूता है, पेन भी यही कहीं होगी। तुमने अपनी ज़रुरत की चीज़े काल ही बस्ते मे क्यूँ ना रख ली।"
इस तरह ये मुश्किल वक्त आसानी से गुज़र गया। इन चंद मिंटो में मेरा गुस्सा अपनी इन्तेहा को पहुंच जाया करता था और मुझे अपनी जान निकलती हुई मेहसूस होती थी। उस दिन ये पल सुकून से बीत गया।
मैं इम्तहान मे कामयाब हो गई, जी हां मैं पास हो गई l कुछ दिनों से मेरा यही हाल है। मेरा ये सुकून व करार और ये धीमी आवाज़ और लहज़े को देख कर पहले तो मेरा शौहर परेशान हुआ, पूछने लगा: "तुम बिमार तो नहीं हो?"
मैंने जवाब दिया : "जी हां, मैं बीमार थी मरीज़ा थी। अल्लाह ने मुझे शिफा दे दी। अल्लाह ने कुरान पर अमल के ज़रिये मुझे सेहत अता कर दी।"
मेरे शौहर ने ये बात सुनी तो उन्हें यकीन नहीं आ रहा था। फिर कहने लगा : "ये तो अच्छी बात है। बड़ा अच्छा है के बदलवा खुद तुम्हारी तरफ से आया है। काश के ये बदलवा जारी रहे।"
मैंने जल्दी से जवाब दिया : "अब इंशा अल्लाह यही हालत रहेगी। अल्लाह का फरमान हमेशा मेरे दिल मे रहेगा। मुझे तो अल्लाह की कुरान ने जिंदगी के इन्तेहाई खुशगवार रुख से मिला दिया है।"
कुरान करीम की इस आयात पर अमल करने का तजुर्बा तक़रीबन सारी औरतों ने अपने अपने घरों मे किया। तजुर्बा कामयाब रहा। हकीकत मे कुरान करीम को पाकीज़ा इंसानी रूहों पर कंट्रोल हासिल है, सिर्फ अमल करने का इरादा करने की ज़रुरत है। कुरान इंसानो को तबदील करने पर कादिर है। जो इंसान भी एक बार कुरान पर अमल की हिदायत का मज़ा चख लेता है, वो कुरान को फिर कभी नहीं छोड़ता। ये इंसान अपने आप को कुरानी सांचे मे ढालने, अपने आपको बेहतर मे तबदील करने, और आखीरी अपने आप को कुरान के रंग मे खुद को रंगने का अमल ज़ारी रखता है। ये मुसलसल (निरंतर) तरक्की का अमल है।
3 टिप्पणियाँ
👍
जवाब देंहटाएंSubhan allah
जवाब देंहटाएंALLAHu akbar
हटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।