Yusuf (AS)- Story of Prophet Joseph and Jakob

story of prophet Yusuf AS (joseph) son of Yaqoob AS


युसुफ अलैहिस्स्लाम - अंधे कुए से बादशाहत तक

हज़रत यूसुफ अलै. हज़रत इब्राहिम अलै. के परपोते थे। हज़रत इब्राहिम अलै. के बेटे इसहाक अलै., उनके बेटे याक़ूब अलै. उनके बेटे यूसुफ अलै.। याक़ूब अलैहिस्स्लाम को अल्लाह तआला ने इस्राईल नाम भी दिया था, जिसका मतलब होता है इस्र=बन्दा, ईल=अल्लाह, हिब्रु भापा मे इस्राईल का मतलब होता है- अल्लाह का बन्दा, जिसे हम अब्दुल्लाह कह सकते है, इन्ही कि नस्ल को बनी इस्राईल के नाम से जाना जाता है।

सुरह युसुफ मक्की सुरह है, इसमे 111 आयतें और 11 रुकू हैं। यूसुफ अलै. के कुल 11 भाई थे, जिसमें एक सगा और बाकी सौतेले थे। इस सुरह के के जरिए अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद ﷺ को तसल्ली दी है के जिस तरह अल्लाह ﷻ ने यूसुफ अलै. के मुखालिफो की सारी तरकीब को नाकामयाब किया था उसी तरह मुश्रिकीन ए मक्का को नाकाम करेगा और हक्क की जीत होगी।

इस किस्से के बारे में अल्लाह ﷻ फरमा रहे है के पूरे कुरआन में यही एक सुरह है जो मुसलसल और मुकम्मल सुरह है और ये सबसे से खूबसूरत किस्सा है।

बतौर ए बाप याक़ूब अलै. को कुरआन ने जिस तरह पेश किया किसी को नहीं किया। उनकी औलाद से बेपनाह मुहब्बत के बाद भी जब यूसुफ अलै. उनसे जुदा हुए तो उनका अल्लाह पर यकीन और उसी ग़म में उनका खूबसूरत सब्र, जिस तरह उन्होंने सारा मामला अल्लाह पर छोड़ दिया। क्या हम भी ऐसा ही करते हैं? हम तब सब्र करते हैं जब हमारे पास कोई option नहीं बचता, जब हम अपनी तकलीफ़ का इज़हार कर देते हैं, शिकायत कर लेते हैं। हम जो सब्र करते हैं वो सब्र कहाँ। सब्रुन जमील, वो सब्र है जो हर तरह के गिले-शिकवे, नोहा व मातम से पाक हो, और उसमे बदले का ज़ज्बा ना हो।

इसमे ए सबक ये भी है कि जब इन्सान की ज़िंदगी में ऐसे हालात आते हैं जब उसके पास कोई रास्ता नहीं रहता और वो अपने आप को फंसा हुआ पाता है। जिस तरह युसुफ अलै. ना कुए से बाहर आ सकते थे और अंदर भी भूक प्यास से मर जाना था। उनके पास बस एक रास्ता था, अपने रब से दुआ करने का। और उन्होंने वही किया और अल्लाह ने उन्हें जवाब दिया के एक दिन ऐसा आएगा तुम इन्हें इनके काम बताओगे। हम भी अपनी ज़िंदगी में कहीं फंस जाए तो हमें समझना चाहिए के आजमाइश अल्लाह ﷻ की तरफ से है और इसकी वजह है के हम अल्लाह ﷻ के और करीब हो जाए। तो जो आजमाइश हमे अल्लाह के करीब ले आये तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

और इसमें ये बात भी एक बेहतरीन सबक है कि किस तरह युसुफ अलै. ने अपने आप को फहशी और गुनाहों से खुद को बचाए रखा।

हुज़ूर मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:-

      “अल्लाह त’आला उस शख़्स को क़यामत के दिन अपने साए में जगह देंगे, जिस को कोई ख़ूबसूरत औरत हरामकारी के लिए बुलाए तो वह सिर्फ़ अल्लाह के डर से दूर रहे”

(बुख़ारी 6806)

और सिला-रहमी की भी बहुत खूबसूरत मिसाल पेश की यूसुफ अलै. ने। उनके सौतेले भाईयों ने उनको इतनी तकलीफ़ पहुंचाई मगर यूसुफ अलै. ने उन्हें ना सिर्फ़ माफ़ किया बल्कि मिस्र बुला कर इनाम और इक्तेदार भी दिया। हम अपना जायजा लें, तो हम अपने सगे रिश्तेदारों से भी सिला-रहमी का मामला नहीं करते। इस सुरह के जरिए हमें बताया के किस तरह के मामलात होना चाहिए, रिश्तेदारों के साथ ना सिर्फ दर गुज़र का मामला करना चाहिए बल्कि माफ़ भी करना चाहिए।

और इसके अलावा अल्लाह ने युसुफ अलै. को इल्म और हिकमत भी खूब खूब दी थी मगर जर्रा बराबर भी तकब्बुर नहीं किया, और हमारा क्या हाल है थोड़ा सा भी इल्म या मर्तबा आ जाए तो हम खुद को ना जाने क्या समझने लगते हैं। तो याद रखें ये सब देने वाला अल्लाह ﷻ है और इसमें हमारा कोई कमाल नहीं।

और ये जानते हुए भी के सारे दरवाज़े बंद हैं, युसुफ अलै. दरवाज़े की तरफ़ दौड़े क्योंकि वो जानते थे अल्लाह ﷻ उनके लिए दरवाज़े खोल देगा। अगर कभी लगे के सारे दरवाज़े बंद हैं, आगे बढ़ते रहें। क्योंकि आपका और युसुफ अलै. का अल्लाह एक ही है।


भाईयो की हसद और याक़ूब अलै का सब्र

सुरह युसुफ की शुरुआत में अल्लाह रसूल-अल्लाह ﷺ से मुखातिब हैं-

ये उस किताब की आयतें हैं जो अपना मक़सद साफ़-साफ़ बयान करती हैं। हमने इसे उतारा है क़ुरआन बनाकर अरबी ज़बान में, ताकि तुम इसको अच्छी तरह समझ सको। ऐ नबी ! हम इस क़ुरआन को तुम्हारी तरफ़ “वही” करके बेहतरीन अन्दाज़ में वाक़िआत और हक़ीक़तें तुमसे बयान करते हैं, वरना इससे पहले तो [ इन चीज़ों से] तुम बिलकुल ही बेख़बर थे।

कुर’आन 12:1-3

ये उस ववक़्त की बात है जब यूसुफ अलै. ने अपने अब्बा को अपना ख्वाब सुनाया जिसमें 11 सितारे, चांद और सूरज उन्हें सजदा कर रहे थे। उनके अब्बा ने उन्हें हिकमत से उनके भाइयों से इस ख्वाब का ज़िक्र करने से मना फरमाया, और शैतान की चालाकियों से आगाह किया।

याक़ूब अलै. ने ख्वाब की ताबीर बतायी के, बेशक तुम्हारा रब तुम्हें तुम्हारे परदादा इब्राहिम अलै. और दादा इसहाक अलै. की तरह नवाजेगा और तुम्हें ख्वाबों की ताबीर बताने का इल्म सिखाएगा।

बेशक यूसुफ अलै. के किस्से में पूछने वालों के लिये कई निशानियाँ हैं।

उनके सौतेले भाई हसद से तजकिरा करते के याक़ूब अलै. उनसे ज़्यादा युसुफ अलै. से मुहब्बत करते हैं। क्यूँ ना यूसुफ का कत्ल करदे या कहीं फेंक दें फिर उनके वालिद की तव्वजो उनकी तरफ़ हो जाएगी।

ये मशविरा करके उन्होंने अपने वालिद से कहा, “आप युसुफ के बारे मे हम पे भरोसा नहीं करते, जबकि हम उसके ख़ैर ख्वाह हैं। यूसुफ को हमारे साथ जाने दें, उसकी हिफाज़त की जिम्मेदारी हमारी है।”

याक़ूब अलै. ने कहा “ये बात मुझे ग़मगीन करती है के तुम उसे ले जाओ और डरता हूँ के तुम उससे गाफिल हो जाओ और भेड़िया उसे खा जाए।”

वह बोले “अगर भेड़िया उसको खा गया, जबकि हम एक बड़ी जमात हैं, तब तो हम बड़े ख़सारे में होंगे”

और जब वो यूसुफ अलै. को अपने साथ ले गए तो तय किया कि उनको एक कुए में डाल दिया जाए। जब यूसुफ अलै. उस अंधे कुए में अकेले फंस गए और अपने रब को पुकार उठे, तो अल्लाह ﷻ ने उन्हें बताया-

“एक वक़्त आएगा जब तू उन लोगों को उनकी ये हरकत जताएगा, ये अपने अमल के नतीजों से बेख़बर हैं।”

कुर’आन 12:15

और उनके भाई रोते हुए याक़ूब अलै. के पास पहुंचे और झूठ बयान करते हुए कहा “ हम दौड़ का मुकाबला करते हुए आगे निकल गए थे, यूसुफ सामान के अकेला था के उसे भेड़िया खा गया। आप हमारी बात का यकीन नहीं करेंगे, ख्वाह हम सच्चे हैं”

और वो यूसुफ अलै. की कमीज़ पर झूठमूठ का ख़ून भी लगा लाए। याक़ूब अलै. ने जवाब दिया “ ये तो तुम्हारी गढ़ी हुई कहानी है, अल्लाह मुझे सब्र उन जमील की तौफीक दे”

याक़ूब अलै. यूसुफ अलै. का कुर्ता देख कर समझ गए के भेड़िये ने हमला किया मगर कुर्ता फटा नहीं।

याक़ूब अलै. के जिगर के टुकड़े को इस आजमाइश में देखने के बावजूद किस खूबसूरती से सब्र किया। और सब कुछ अल्लाह पर छोड़ दिया। यहां हमारे सीखने के लिए बहुत बड़ा सबक है, के हम छोटी छोटी बात पे उम्मीद का दामन छोड़ देते हैं।


अजीज ए मिस्र की बीवी का झूठा इल्ज़ाम

और उधर से एक काफिला निकला, पानी पीने के इरादे से कुए में डोल डाला, तो युसुफ अलै. को पाया। खुशखबरी, ये तो लड़का है। एक पूंजी समझ कर युसुफ अलै. को छुपा लिया। और अल्लाह ﷻ खूब बाख़बर था उससे जो वो कर रहे थे।

सुबहानल्लाह, जब लगता है कोई राह नहीं, अल्लाह वहाँ भी अपनी कुदरत से मदद अता करने वाला है।

फिर उन लोगों ने युसुफ अलै. को चंद दिरहम के बदले मिस्र के एक शख्स को बेच डाला। उस शख्स ने अपनी बीवी से कहा इसको इज़्ज़त ओ इकराम से रखो। शायद ये हमे फ़ायदा दे। या हम इसे अपना बेटा ही बना लें। अल्लाह ﷻ फरमाता है-

“इस तरह हमने यूसुफ़ के लिये उस सरज़मीन में क़दम जमाने की सूरत निकाली और उसे मामलों के समझने की तालीम देने का इन्तिज़ाम किया। अल्लाह अपना काम करके रहता है, मगर ज़्यादातर लोग जानते नहीं हैं। और जब वो अपनी पूरी जवानी को पहुँचा तो हमने उसे फ़ैसला करने की क़ुव्वत और इल्म दिया, इस तरह हम नेक लोगों को बदला देते हैं।”

कुर’आन 12:21-22

और जब अल्लाह ﷻ किसी को ऊचाईयों पर पहुचाने का इरादा कर लेता है तो मुखालिफो को ही ज़रिया बना देता है। और जो हालात हमे मुश्किल और बुरे नज़र आ रहे होते हैं, वो अल्लाह की तरफ़ से हमारे लिए अजीम नेमत होती है। आज हम अपने बच्चों को तालीम हासिल करने के लिए विदेश भेजते हैं और अपने कलेजे पे पत्थर रख कर उनके भविष्य को बनाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं।

ये जो मुश्किल नज़र आ रहे हालात, दरअसल अल्लाह की तरफ़ यूसुफ अलै. को higher education के लिए उस ज़माने में विदेश भेजा गया, के जबकि इस नजरिए का कोई आगाज़ ही ना हुआ था।

और फिर आजमाइश में तप कर खरा सोना बनाया। अगली आजमाइश अजीज ए मिस्र की बीवी।

उस औरत ने यूसुफ अलै. को अपनी तरफ माइल करना चाहा और उसने सारे दरवाज़े बंद कर लिए और कहा “बस आ जाओ” युसुफ अलै. ने कहा “मआज़ अल्लाह, वो मेरा आका है, और उसने मुझे ख़ातिर से रखा है, हक़ तलफी करने वाले कभी क़ामयाब नहीं होते”

वो उसकी तरफ़ बढ़ी और यूसुफ़ भी उसकी तरफ़ बढ़ता अगर अपने रब की बुरहान [ दलील] न देख लेता। ऐसा हुआ, ताकि हम उससे बुराई और बेशर्मी को दूर कर दें। हक़ीक़त में वो हमारे चुने हुए बन्दों में से था।

कुरान 12:24

इस आयत में अल्लाह ﷻ ने बुरहान लफ्ज़ इस्तेमाल किया है इससे मुराद वो नूर है जो हर इंसान के अंदर होता है। जो ख़ैर और शर में फर्क़ करना बताता है, जो अच्छाई की तरफ़ बुलाता है और बुराई से रोकता है। इसे moral conscience कहते हैं। ये नूर अल्लाह हर एक को बख्शता है, लेकिन जो इसकी कद्र करते हैं उनके अंदर ये कुव्वत पकड़ लेता है और जो उसकी कद्र नहीं करता तो ये धीरे धीरे कमजोर हो जाता है और धीरे धीरे बुझ जाता है। युसुफ अलै. उन लोगों में से थे जिसने इसकी कद्र की। उनकी उम्र जवानी की थी मगर वो नहीं बहके। अल्लाह हम सबको इस नूर से रोशन करदे, आमीन।

युसुफ अलै. दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़ें। यहां तक के उस औरत ने युसुफ अलै. का कुर्ता पीछे खींचा, जो फट गया। और दरवाज़े पर उन दोनों ने उसके शौहर को पाया। वो फौरन झूठ बोली “जो तुम्हारी बीवी के साथ बुराई का इरादा करे उसकी सज़ा कैदखाने के सिवा क्या हो सकती है, या वो कोई दर्दनाक अज़ाब भुगते”

उसने झूठा इल्ज़ाम लगाते हुए कहा “इसने मुझे फुसलाने की कोशिश की”

फिर उस औरत ही के खानदान के एक शख्स ने गवाही दी के अगर युसुफ का कुर्ता आगे से फटा है तो औरत सच्ची है और अगर पीछे से फटा है तो युसुफ अलै. सच्चे हैं।

अजीज ए मिस्र ने जब देखा के कुर्ता पीछे से फटा है तो बोले “बेशक यह तुम औरतों का फरेब है। और तुम्हारा फरेब बहुत बड़ा है, यूसुफ़! इस मामले को जाने दे और ऐ औरत! तू अपने क़ुसूर की माफ़ी माँग, तू ही असल में ख़ताकार थी”

शहर की औरतें आपस में चर्चा करने लगीं कि ‘अज़ीज़ की बीवी अपने ग़ुलाम पर डोरे डाल रही है। हमारे नज़दीक तो वो खुली ग़लती कर रही है।’’

उसने ये बातें सुनीं तो उनको बुलावा भेज दिया और उनके लिये तकियेदार मजलिस सजाई और मेहमानी में हर एक के आगे एक-एक छुरी रख दी। [ फिर ठीक उस वक़्त जबकि वो फल काट-काटकर खा रही थीं] उसने यूसुफ़ को इशारा किया कि उनके सामने निकल आ। जब उन औरतों की नज़र उसपर पड़ी तो वो दंग रह गईं और अपने हाथ काट बैठीं और बेसाख़्ता पुकार उठीं, “अल्लाह की पनाह! ये आदमी इनसान नहीं है, ये तो कोई बुज़ुर्ग फ़रिश्ता है।”

अज़ीज़ की बीवी ने कहा, “देख लिया! ये है वो आदमी जिसके मामले में तुम मुझपर बातें बनाती थीं। बेशक मैंने इसे रिझाने की कोशिश की थी, मगर ये बच निकला। अगर ये मेरा कहना न मानेगा तो क़ैद किया जाएगा और बहुत बेइज़्ज़त व रुसवा होगा।”

यूसुफ़ अलै. ने कहा, “ऐ मेरे रब ! क़ैद मुझे मंज़ूर है इसके मुक़ाबले में कि मैं वो काम करूँ जो ये लोग मुझसे चाहते हैं और अगर तूने इनकी चालों को मुझसे दफ़ा न किया तो मैं इनके जाल में फँस जाऊँगा और जाहिलों में शामिल हो रहूँगा।”

उसके रब ने उसकी दुआ क़बूल की और उन औरतों की चालें उससे दूर कर दीं। फिर उन लोगों को ये सूझी कि एक मुद्दत के लिये उसे क़ैद कर दें, हालांकि वो खुली निशानियाँ देख चुके थे।


कैद्खाने से अजीज ए मिस्र बनने का सफ़र

जेल में दो ग़ुलाम और भी उसके साथ दाख़िल हुए। एक दिन उनमें से एक ने उससे कहा, “मैंने ख़्वाब देखा है कि मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।” दूसरे ने कहा, “मैंने देखा कि मेरे सिर पर रोटियाँ रखी हैं और परिन्दे उनको खा रहे हैं।” दोनों ने कहा, “हमें इसकी ताबीर बताइए। हम देखते हैं कि आप एक नेक आदमी हैं”।

यूसुफ़ अलै. ने कहा, “यहाँ जो खाना तुम्हें मिला करता है उसके आने से पहले मैं तुम्हें इन ख़ाबों की ताबीर बता दूँगा। ये उन इल्मों में से है जो मेरे रब ने मुझे दिये हैं। सच तो ये है कि मैंने उन लोगों का तरीक़ा छोड़कर जो अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और आख़िरत का इनकार करते हैं। मैंने अपने बुज़ुर्गों, इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। हमारा ये काम नहीं है कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराएँ। हक़ीक़त में ये अल्लाह की मेहरबानी है हमपर और तमाम इनसानों पर [ कि उसने अपने सिवा किसी का बन्दा हमें नहीं बनाया], मगर ज़्यादातर लोग शुक्र नहीं करते। तुम ख़ुद ही सोचो कि बहुत-से अलग-अलग रब बेहतर हैं या वो एक अल्लाह, जो सबपर ग़ालिब है?”

“उसको छोड़कर तुम जिनकी बन्दगी कर रहे हो, वो इसके सिवा कुछ नहीं हैं कि बस कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिये हैं, अल्लाह ने उनके लिये कोई सनद नहीं उतारी। हुकूमत और इक़्तिदार अल्लाह के सिवा किसी के लिये नहीं है। उसका हुक्म है कि ख़ुद उसके सिवा तुम किसी की बन्दगी न करो। ज़िन्दगी का यही ठेठ सीधा तरीक़ा है, मगर ज़्यादातर लोग जानते नहीं हैं”

"ऐ जेल के साथियो! तुम्हारे ख़्वाब की ताबीर ये है कि तुममें से एक तो अपने रब [ मिस्र के हाकिम] को शराब पिलाएगा, रहा दूसरा तो उसे सूली पर चढ़ाया जाएगा और परिन्दे उसका सिर नोच-नोचकर खाएँगे। फ़ैसला हो गया उस बात का जो तुम पूछ रहे थे।”

फिर जिसका उन्होंने फैसला किया था कि छूट जाएगा, उससे कहा आका से मेरा जिक्र करना, लेकिन शैतान ने उसके जेहन से ये बात भुला दी, और कई बरस युसुफ अलै. कैद ही में रहे।

फिर बादशाह को एक ख्वाब दिखा कि सात मोटी गायें हैं जिनको सात दुबली गायें खा रही हैं और अनाज की सात बालें हरी हैं और दूसरी सात सूखी। जिसकी ताबीर कोई नहीं बता पाया। उन दो क़ैदियों में से जो शख़्स बच गया था, और उसे एक लम्बी मुद्दत के बाद अब बात याद आई, उसने कहा, “मैं आप लोगों को इसका मतलब बताता हूँ, मुझे ज़रा क़ैदख़ाने में यूसुफ़ के पास भेज दीजिए।”

जब उसने कैदखाने में जाकर युसुफ अलै. से बादशाह के ख्वाब की ताबीर पूछी तो युसुफ अलै. ने बताया “सात साल तक लगातार तुम लोग खेती-बाड़ी करते रहोगे। इस दौरान में जो फ़सलें तुम काटो उनमें से बस थोड़ा-सा हिस्सा, जो तुम्हारे खाने के काम आए, निकालो और बाक़ी को उसकी बालों ही में रहने दो। फिर सात साल बड़े सख़्त आएँगे। उस ज़माने में वो सब अनाज खा लिया जाएगा जो तुम उस वक़्त के लिये जमा करोगे। अगर कुछ बचेगा तो बस वही जो तुमने बचाकर रखा हो, इसके बाद फिर एक साल ऐसा आएगा जिसमें रहमत की बारिश से लोगों की फ़रियाद को सुन लिया जाएगा और वो रस निचोड़ेंगे।”

ये ताबीर सुनकर बादशाह ने युसुफ अलै. को तलब किया, तो यूसुफ अलै. ने उन औरतों के बारे मे दरख्वास्त की जिन्होंने उन्हें देख कर हाथ ज़ख्मी कर लिए थे।

फिर बादशाह ने उन औरतो से सच्चाइ पूछी तो उन्होंने गवाही दी के बेशक युसुफ अलै. ही सच्चे हैं। अजीज ए मिस्र की बीवी ने भी गवाही दी के उसने ही फुसलाने की कोशिश की थी और युसुफ अलै. सच्चे हैं।

यूसुफ़ ने कहा “इससे मेरा मक़सद ये था कि अज़ीज़ ये जान ले कि मैंने पीठ पीछे उसकी ख़ियानत नहीं की थी और ये कि जो ख़ियानत करते हैं उनकी चालों को अल्लाह कामयाबी की राह पर नहीं लगाता। मैं कुछ अपने नफ़्स को बरी नहीं कर रहा हूँ, मन तो बुराई पर उकसाता ही है, सिवाए इसके कि किसी पर मेरे रब की रहमत हो। बेशक मेरा रब बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है”

जब बादशाह को ये अमानतदारी पता चली तो उन्होंने युसुफ अलै. को अपने खज़ानों पर मुक़र्रर कर दिया। इस तरह अल्लाह ﷻ ने युसुफ अलै. को उस मुल्क में इज्जत और इकतेदार बख्श दिया जहाँ उन्हें कई साल कैद और झूठ इल्ज़ाम में रहना पड़ा था। अल्लाह ﷻ फरमाता है-

इस तरह हमने उस धरती पर यूसुफ़ के लिये इक़्तिदार [ सत्ता] की राह हमवार की।

कुर’आन 12:56

क़ुरआन का एक कलमा भी हिकमत से खाली नहीं - इस छोटे से जुमले में समझने वाली बात ये है के तमाम अख्तियार अल्लाह ही के हाथ मे है। अगर वो अपने फजल ओ करम से किसी को नवाजना चाहे तो कोई उसे रोक नहीं सकता। एक कैदी को कैदखाने से निकाल कर और मुल्क के तख्त पर बिठा दे, ये उसकी कुदरत का अदना सा हिस्सा है। तो यहाँ ये भी पता चला कि इंसान पर किसी का जोर नहीं चलता, ना डिग्री ना कोई हुनर। मकसद ये है के अल्लाह को जब किसी को इक़्तिदार देना होता है तो उसे इन सब चीज़ों की ज़रूरत नहीं पड़ती। और यहाँ एक और गहरा सबक है के अल्लाह नेक और मोहसिन लोगों का अमल जाया नहीं करते। उन पर आजमाइश आती है और उस आजमाइश में वो साबित कदम रहते हैं तो अल्लाह दुनिया और आखिरत दोनों में उसका सिला पाएंगे। और आख़िरत का सिला दुनिया के अजर से कहीं बढ़ कर है। जो अल्लाह ने उन लोगों के लिए मखसूस कर रखा है, जो ईमान पर साबित कदम रहेगा।

इससे सबक है के अल्लाह पे तवक्कल रखना है अल्लाह के सिवा किसी से कुछ नहीं होगा, अल्लाह ही से उम्मीद रखनी है और अल्लाह ही से माँगना है।

जब अल्लाह किसी को नवाजना चाहे तो जंगल से उठा कर महल में पहुचा देता है।


अल्लाह का वादा और दोबारा भाईयो से मिलना 

यूसुफ़ अलै. के भाई मिस्र आए और उनके यहाँ हाज़िर हुए। यूसुफ अलै. उन्हें पहचान लिया, मगर वो उससे अनजान थे। फिर जब उसने उनका सामान तैयार करवा दिया तो चलते वक़्त उनसे कहा, “अपने सौतेले भाई को मेरे पास लाना। देखते नहीं हो कि मैं किस तरह पैमाना भरकर देता हूँ और कैसी अच्छी मेहमाननवाज़ी करनेवाला हूँ। अगर तुम उसे न लाओगे तो मेरे पास तुम्हारे लिये कोई अनाज नहीं है, बल्कि तुम मेरे क़रीब भी न फटकना।”

यूसुफ अलै. के भाइयों ने कहा, “हम कोशिश करेंगे कि अब्बाजान उसे भेजने पर तैयार हो जाएँ, और हम ऐसा ज़रूर करेंगे।”

यूसुफ़ ने अपने ग़ुलामों को इशारा किया कि “उन लोगों ने अनाज के बदले में जो माल दिया है, वो चुपके से उनके सामान ही में रख दो।” ये यूसुफ़ ने इस उम्मीद पर किया कि घर पहुँचकर वो अपना वापस पाया हुआ माल पहचान जाएँगे या इस कुशादादिली पर एहसानमन्द होंगे और ताज्जुब नहीं कि फिर आयें।

जब वो याक़ूब अलै. के पास गए तो कहा, “अब्बाजान! आगे हमको अनाज देने से मना कर दिया गया है, इसलिये आप हमारे भाई को हमारे साथ भेज दीजिए, ताकि हम अनाज लेकर आएँ, और उसकी हिफ़ाज़त के हम ज़िम्मेदार हैं।”

याक़ूब अलै. ने जवाब दिया, “क्या मैं उसके मामले में तुमपर वैसा ही भरोसा करूँ जैसा इससे पहले उसके भाई के मामले में कर चुका हूँ? अल्लाह ही बेहतर हिफ़ाज़त करनेवाला है और वो सबसे बढ़कर रहम करनेवाला है।”

फिर जब उन्होंने अपना सामान खोला तो देखा कि उनका माल भी उन्हें वापस कर दिया गया है। ये देखकर वो पुकार उठे, “अब्बाजान! और हमें क्या चाहिए, देखिये! ये हमारा माल भी हमें वापस दे दिया गया है। बस अब हम जाएँगे और अपने घरवालों के लिये रसद ले आएँगे। अपने भाई की हिफ़ाज़त भी करेंगे और एक ऊँट भर और ज़्यादा भी ले आएँगे। इतने अनाज की बढ़ोतरी आसानी के साथ हो जाएगी।”

याक़ूब अलै. ने कहा, “मैं इसको हरगिज़ तुम्हारे साथ न भेजूँगा, जब तक कि तुम अल्लाह के नाम से मुझको वचन न दे दो कि इसे मेरे पास ज़रूर वापस लेकर आओगे, सिवाए इसके कि कहीं तुम घेर ही लिये जाओ।” जब उन्होंने उसको अपने-अपने वचन दे दिए तो उसने कहा, “देखो, हमारी इस बात पर अल्लाह गवाह है।”

फिर याक़ूब अलै. ने कहा, “मेरे बच्चो, मिस्र की राजधानी में एक दरवाज़े से दाख़िल न होना, बल्कि अलग-अलग दरवाज़ों से जाना, मगर मैं अल्लाह की मर्ज़ी से तुमको नहीं बचा सकता। हुक्म उसके सिवा किसी का भी नहीं चलता। उसी पर मैंने भरोसा किया और जिसको भी भरोसा करना हो, उसी पर करे।”

और हुआ भी यही कि जब वो अपने वालिद के हुक्म के मुताबिक़ शहर में अलग-अलग दरवाज़ों से दाख़िल हुए तो उनकी ये एहतियाती तदबीर अल्लाह की मर्ज़ी के मुक़ाबले में कुछ भी काम न आ सकी। हाँ, बस याक़ूब अलै. के दिल में जो एक खटक थी उसे दूर करने के लिये उसने अपनी-सी कोशिश कर ली। बेशक वो अल्लाह ﷻ की दी हुई तालीम का इल्मवाले थे, मगर ज़्यादातर लोग मामले की हक़ीक़त को जानते नहीं हैं।

ये लोग यूसुफ़ अलै. के सामने पहुँचे तो उन्होंने अपने छोटे भाई को अपने पास अलग बुला लिया और उसे बता दिया कि “मैं तेरा वही भाई हूँ जो खोया गया था। अब तू उन बातों का ग़म न कर जो ये लोग करते रहे हैं।”

जब यूसुफ़ अलै. इन भाइयों का सामान लदवाने लगा तो उसने अपने भाई के सामान में अपना प्याला रख दिया। फिर एक पुकारनेवाले ने पुकारकर कहा, “ऐ क़ाफ़िलेवालो! तुम लोग चोर हो।”

उन्होंने पलटकर पूछा, “तुम्हारी क्या चीज़ खो गई?”

सरकारी कारिन्दों ने कहा, “बादशाह का पैमाना हमको नहीं मिलता।” और उनके जमादार ने कहा “जो आदमी लाकर देगा उसके लिये एक ऊँट के बोझ के बराबर इनाम है, इसका मैं ज़िम्मा लेता हूँ।”

उन भाइयों ने कहा, “ख़ुदा की क़सम! तुम लोग ख़ूब जानते हो कि हम इस देश में बिगाड़ पैदा करने नहीं आए हैं और हम चोरियाँ करनेवाले लोग नहीं हैं।”

उन्होंने कहा, “अच्छा, अगर तुम्हारी बात झूठी निकली तो चोर की क्या सज़ा है?”

उन के भाइयों ने कहा, “उसकी सज़ा? जिसके सामान में से चीज़ निकले, वो आप ही अपनी सज़ा में रख लिया जाए। हमारे यहाँ तो ऐसे ज़ालिमों को सज़ा देने का यही तरीक़ा है।”

तब यूसुफ़ अलै. ने अपने भाई से पहले उनकी ख़ुरजियों की तलाशी लेनी शुरू की, फिर अपने भाई की ख़ुर्जी से गुमशुदा चीज़ बरामद कर ली – इस तरह अल्लाह ने यूसुफ़ अलै. की मदद अपनी तदबीर से की। उनका ये काम न था कि बादशाह के दीन [यानी मिस्र के शाही क़ानून] में अपने भाई को पकड़ता सिवाए इसके कि अल्लाह ही ऐसा चाहे। हम जिसके दर्जे चाहते हैं बुलन्द कर देते हैं, और एक इल्म रखनेवाला ऐसा है जो हर इल्मवाले से बढ़कर है।

उन भाइयों ने कहा, “ये चोरी करे तो कुछ हैरत की बात भी नहीं, इससे पहले इसका भाई यूसुफ़ भी चोरी कर चुका है।”

यूसुफ़ अलै. उनकी ये बात सुनकर कड़वा घूंट पी गये, हक़ीक़त उनपर न खोली, बस मन ही में इतना कहकर रह गया कि “बड़े ही बुरे हो तुम लोग, मेरे सामने ही मुझपर जो इल्ज़ाम तुम लगा रहे हो उसकी हक़ीक़त ख़ुदा ख़ूब जानता है।”

उन भाइयों ने कहा, “ऐ इक़्तिदारवाले सरदार! इसका बाप बहुत बूढ़ा आदमी है, इसकी जगह आप हममें से किसी को रख लीजिए। हम आपको बड़ा ही नेकदिल इन्सान पाते हैं।”

यूसुफ़ अलै. ने कहा, “अल्लाह की पनाह! दूसरे किसी शख़्स को हम कैसे रख सकते हैं? जिसके पास हमने अपना माल पाया है उसको छोड़कर दूसरे को रखेंगे तो हम ज़ालिम होंगे।”

जब वो यूसुफ़ अलै. से मायूस हो गए तो एक कोने में जाकर आपस में मशवरा करने लगे। उनमें जो सबसे बड़ा था वो बोला, “तुम जानते नहीं हो कि तुम्हारे बाप तुमसे ख़ुदा के नाम पर क्या वादा ले चुके हैं। और इससे पहले यूसुफ़ के मामले में जो ज़्यादती तुम कर चुके हो वो भी तुमको मालूम है। अब मैं तो यहाँ से हरगिज़ न जाऊँगा, जब तक कि कि मेरे बाप मुझे इजाज़त न दें, या फिर अल्लाह ही मेरे लिये कोई फ़ैसला कर दे कि वो सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है। तुम जाकर अपने बाप से कहो कि ‘अब्बाजान! आपके बेटे ने चोरी की है। हमने उसे चोरी करते हुए नहीं देखा, जो कुछ हमें मालूम हुआ है बस वही हम बयान कर रहे हैं, और ग़ैब तो हमारी नज़र में था नहीं। आप उस बस्ती के लोगों से पूछ लीजिए जहाँ हम थे। उस क़ाफ़िले से मालूम कर लीजिए जिसके साथ हम आए हैं। हम अपने बयान में बिलकुल सच्चे हैं।”

याक़ूब अलै. ने ये दास्तान सुनकर कहा, “हक़ीक़त में तुम्हारे नफ़्स [ मन] ने तुम्हारे लिये एक और बड़ी बात को आसान बना दिया। अच्छा, इसपर भी सब्र करूँगा और बड़ी अच्छी तरह करूँगा। ना मुमकिन नहीं है कि अल्लाह उन सबको मुझसे ला मिलाए। वो सबकुछ जानता है और उसके सब काम हिकमत से भरे हैं।”

फिर वो उनकी तरफ़ से मुँह फेरकर बैठ गये और कहने लगे कि “हाय यूसुफ़!” वो दिल-ही-दिल में ग़म से घुटा जा रहे थे और उनकी आँखें सफ़ेद पड़ गई थीं।

बेटों ने कहा, “अल्लाह की क़सम! आप तो बस यूसुफ़ ही को याद किए जाते हैं। नौबत ये आ गई है कि उसके ग़म में अपने आपको घुला देंगे या अपनी जान हलाक कर डालेंगे।”

याक़ूब अलै. ने कहा, “मैं अपनी परेशानी और अपने ग़म की फ़रियाद अल्लाह के सिवा किसी से नहीं करता, और अल्लाह को जैसा मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते। मेरे बच्चो! जाकर यूसुफ़ और उसके भाई की कुछ टोह लगाओ, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो। उसकी रहमत से तो बस काफ़िर ही मायूस हुआ करते हैं।”


याक़ूब अलै के सब्र का बेहतरीन सिला

जब ये लोग मिस्र जाकर यूसुफ़ अलै. के सामने हाज़िर हुए तो उन्होंने अर्ज़ किया कि “ऐ इक़्तिदारवाले सरदार! हम और हमारे घरवाले बड़ी मुसीबत में मुब्तिला हैं और हम कुछ मामूली-सी पूँजी लेकर आए हैं। आप हमें भरपूर अनाज दें और हमें ख़ैरात दें। अल्लाह ख़ैरात देनेवालों को बदला देता है।”

ये सुनकर यूसुफ़ अलै. से न रहा गया उन्होंने कहा, “तुम्हें कुछ ये भी मालूम है कि तुमने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया था, जबकि तुम नादान थे?”

वो चौंककर बोले, “अरे! क्या तुम यूसुफ़ हो?”

युसुफ अलै. ने कहा, “हाँ, मैं यूसुफ़ हूँ और ये मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर एहसान किया। हक़ीक़त ये है कि अगर कोई परहेज़गारी और सब्र से काम ले तो अल्लाह के यहाँ ऐसे नेक लोगों का बदला मारा नहीं जाता।”

उन्होंने कहा, “अल्लाह की क़सम! तुमको अल्लाह ने हमपर बड़ाई दी और हक़ीक़त में हम ख़ताकार थे।”

युसुफ अलै. ने जवाब दिया, “आज तुमपर कोई पकड़ नहीं। अल्लाह तुम्हें माफ़ करे, वो सबसे बढ़कर रहम करनेवाला है। जाओ, मेरी ये कमीज़ ले जाओ और मेरे अब्बा के मुँह पर डाल दो। उनकी [ आँखों की] रौशनी पलट आएगी और अपने सब घरवालों को मेरे पास ले आओ।”

जब ये क़ाफ़िला मिस्र से रवाना हुआ तो उनके बाप ने कनआन में कहा, “मैं यूसुफ़ की ख़ुशबू महसूस कर रहा हूँ। तुम लोग कहीं ये न कहने लगो कि मैं बुढ़ापे में सठिया गया हूँ।”

घर के लोग बोले, “ख़ुदा की क़सम! आप अभी तक अपने उसी पुराने ‘ख़ब्त’ में पड़े हुए हैं।”

फिर जब ख़ुशख़बरी लानेवाला आया तो उसने यूसुफ़ की क़मीस याक़ूब के मुँह पर डाल दी और यकायक उसकी आँखों की रौशनी लौट आई। तब उसने कहा, “मैं तुमसे कहता न था? मैं अल्लाह की तरफ़ से वो कुछ जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”

सब बोल उठे, “अब्बाजान! आप हमारे गुनाहों की बख़्शिश के लिये दुआ करें, सच में हम ख़ताकार थे।”

याक़ूब अलै. ने कहा, “मैं अपने रब से तुम्हारे लिये माफ़ी की दरख़ास्त करूँगा। वो बड़ा माफ़ करनेवाला और रहम करनेवाला है।”


सिलारहमी की बेहतरीन मिसाल

फिर जब ये लोग यूसुफ़ अलै. के पास पहुँचे तो उसने अपने माँ-बाप को अपने साथ बिठा लिया और अपने सब कुंबेवालों से कहा, “चलो, अब शहर में चलो, अल्लाह ने चाहा तो अम्न-चैन से रहोगे।”

शहर में दाख़िला होने के बाद उसने अपने माँ-बाप को उठाकर अपने पास तख़्त पर बिठाया और सब उसके आगे बेइख़्तियार सजदे में झुक गए। यूसुफ़ अलै. ने कहा, “अब्बाजान! ये ताबीर है मेरे उस ख़्वाब की जो मैंने पहले देखा था। मेरे रब ने उसे हक़ीक़त बना दिया। उसका एहसान है कि उसने मुझे जेल से निकाला और आप लोगों को रेगिस्तान से लाकर मुझसे मिलाया, हालाँकि शैतान मेरे और मेरे भाइयों के बीच बिगाड़ पैदा कर चुका था। सच तो ये है कि मेरा रब ग़ैर-महसूस तदबीरों से अपनी मर्ज़ी पूरी करता है। बेशक वो जाननेवाला और हिकमतवाला है। ऐ मेरे रब! तूने मुझे हुकूमत दी और मुझको बातों की तह तक पहुँचना सिखाया। ज़मीन और आसमान के बनानेवाले, तू ही दुनिया और आख़िरत में मेरा सरपरस्त है। मेरा ख़ातिमा इस्लाम पर कर और आख़िरी अंजाम के तौर पर मुझे नेक लोगों के साथ मिला।”

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