Allah Ka Wajood | Fine Tuning Argument

हमारे यूनिवर्स में ऐसी व्यवस्था है जिसकी पूरी कोशिश यही है कि इस यूनिवर्स में जिंदगी मुमकिन हो सके, हमारा यूनिवर्स कुछ नियमों का पालन कर रहा है universe fine tuning, जिसे हम प्रकृति के नियम (laws of Nature) कहते है अगर हमारे यूनिवर्स को मौजूदा प्राकृतिक नियम नही मिले होते या इन प्रकृति के नियम में कुछ तबदीली होती तो हमारे यूनिवर्स में जिंदगी का पनपना मुमकिन नही था...

fine tuning argument


क्या हमारा यूनिवर्स अल्लाह के होने की गवाही दे रहा है? (Fine Tuning Of The Universe)

Table Of Content

  1. प्रकृति के नियमों की फ़ाईन टयूनिंग
  2. फिज़िकल कांस्टेंट की फ़ाईन टयूनिंग
  3. द्रव्यमान और ऊर्जा का प्रारंभिक वितरण


जब भी हम अपनी यूनिवर्स की तरफ देखते हैं तो हमें बहुत ही अच्छा लगता है और इत्मिनान महसूस होता है हमे यूनिवर्स में एक व्यवस्था नज़र आती है। हम देखते हैं हमारे इस यूनिवर्स में हर चीज़ कुछ नियमों का पालन कर रही है, और जैसे जैसे हम साइंस में तरक्की करते जा रहे हैं, हम अपने यूनिवर्स के बारे में उतना ही जानते जा रहे हैं जैसे-जैसे हमने अपने यूनिवर्स को एक्सप्लोर किया तो हमने पाया कि हमारा यूनिवर्स बहुत ही स्पेशल और डिज़ाइन है। हमारे यूनिवर्स में ऐसी व्यवस्था है जिसकी पूरी कोशिश यही है कि इस यूनिवर्स में जिंदगी मुमकिन हो सके, हमारा यूनिवर्स कुछ नियमों का पालन कर रहा है, जिसे हम प्रकृति के नियम (laws of Nature) कहते है अगर हमारे यूनिवर्स को मौजूदा प्राकृतिक नियम नही मिले होते या इन प्रकृति के नियम में कुछ तबदीली होती तो हमारे यूनिवर्स में जिंदगी का पनपना मुमकिन नही था, जिंदगी यहाँ मौजूद नही होती, ऐसे ही हमारे यूनिवर्स में कुछ फिज़िकल कांस्टेंट काम कर रहे है, जब हम अपने स्कूल समय मे थे तो फ़िज़िक्स के फार्मूले में कुछ कांस्टेंट आते जिन्हें हम फिज़िकल कांस्टेंट कहते थे, अगर हमारे यूनिवर्स को इन फिज़िकल कांस्टेंट की एक खास वैल्यू नही मिली होती तो यहाँ ज़िंदगी का आगाज़ ही नही हो पाता अगर हम इन फिज़िकल कांस्टेंट की वैल्यू में थोड़ा सा भी चेंज कर दे, जरा सी इसकी वेल्यू ज्यादा कर दें या जरा सी भी इसकी वैल्यू कम कर दे तो यहाँ ज़िंदगी की शुरुआत नही हो पाती, ज़िंदगी हमारे यूनिवर्स में मुमकिन ही नही थी। हमारा यूनिवर्स इन कांस्टेंट की नुमेरिकल वैल्यू से ट्यून है जिस तरह हमें रेड़ियो में किसी खास स्टेशन को सुनने के लिए उस खास स्टेशन की आवृत्ति (Frequency) को ट्यून करना पड़ता है, उसी तरह यहाँ ज़िंदगी को पनपने के लिए हमारा यूनिवर्स इन कांस्टेंट की वैल्यू से बहुत ही नेरोरेंस पर जाकर ट्यून है, जिसे हम फ़ाईन ट्यूनिंग कहते हैं। अगर हमारे यूनिवर्स को फिज़िकल कांस्टेंट की एक खास वैल्यू न मिली होती तो ज़िंदगी यहाँ मौजूद नही होती।

universe

अब सवाल ये उठता है कि हमारे इस यूनिवर्स की फ़ाईन ट्यूनिंग कहाँ से हो रही है जो ज़िंदगी को यहाँ मुमकिन बना रही है ?


हमारे यूनिवर्स को प्रकृति के नियम और फिज़िकल कांस्टेंट की एक खास वैल्यू खुद से मिली है ? या फिर किसी ने ये हमारे यूनिवर्स को दी है ? ताकी यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके।


तो दोस्तो आज के लेख में यूनिवर्स की फ़ाईन टयूनिंग के बारे में जानेगें और ये भी जानेगें हमारा यूनिवर्स ज़िंदगी के मुमकिन होने के लिए फ़ाईन ट्यून क्यों है? 


ज़िंदगी के मुमकिन के होने के लिए हमारे यूनिवर्स की फ़ाईन टयूनिंग बहुत तरह से हुई है, लेकिन हम यहाँ सिर्फ यूनिवर्स की तीन फ़ाईन टयूनिंग के बारे में जानेंगे।


1- प्रकृति के नियमों की फ़ाईन टयूनिंग 

( Fine Tuning of Natural Laws )


2- फिज़िकल कांस्टेंट की फ़ाईन टयूनिंग

(Fine Tuning of Constant of physics)


3- द्रव्यमान और ऊर्जा का प्रारंभिक वितरण 

(Initial distribution of mass and energy )


तो आइये एक एक करके इन तीनों फ़ाईन टयूनिंग को जानते है।


1. प्रकृति के नियमो की फ़ाईन टयूनिंग।


अगर हमारे यूनिवर्स को ये प्राकृति के नियम नही मिले होते तो ज़िंदगी यहाँ मौजूद नही हो सकती थी, हम यहाँ कुछ प्राकृति के नियमों के बारे में जानेगें जिससे हमे इस यूनिवर्स की फ़ाईन टयूनिंग के बारे में पता लगेगा।


गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force)


न्यूटन ने बताया कि दो बस्तुएं जिनके पास कुछ द्रव्यमान (mass) होता है वो एक दूसरे पर बल (force) डालती है जिसे हम गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं दो बस्तुओ के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपति और इनकी बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। 

F = Gm1,m2/r^2


ये गुरुत्वाकर्षण बल स्टार के बनने बहुत अहम रोल अदा करता है, अगर हम गुरुत्वाकर्षण बल थोड़ा सा भी कम कर देंगे तो स्टार कभी भी नही बन सकते और न ही प्लेनेट बन पाएंगे, अगर स्टार ही न बनेंगे तो कोई एनर्जी का सोर्स ही हमें नही मिलेगा और न ही रोशनी होगी। जब कोई एनर्जी का सोर्स ही नही होगा तो जिंदगी मौजूद नही रह सकती क्योंकि बिना एनर्जी के ज़िंदगी मुमकिन ही नही है ।

अगर हम गुरुत्वाकर्षण बल को थोड़ा सा भी बढ़ा दे तो स्टार बहुत ही जल्द जल जाएंगे जिसकी वजह से भी यहाँ ज़िन्दगी मुमकिन नही हो पाएगी।


अब जरा आप सोचिये गुरुत्वाकर्षण बल को इतना ज्यादा फ़ाईन टयून किसने किया? क्या आपको नही लगता क्या इसका कोई डिज़ाइनर है, जिसने इसे इतना फ़ाईन टयून किया है कि अगर इसको थोड़ा सा कम या ज्यादा करने पर ज़िंदगी यहाँ मौजूद नहीं रह सकती है।


वो अल्लाह ही है जिसने आसमानों को ऐसे सहारों के बिना क़ायम किया जो तुम्हें नज़र नहीं आते हों, फिर वो अपने तख़्ते-सल्तनत [राजसिंहासन] पर विराजमान हुआ, और उसने सूरज और चाँद को एक क़ानून का पाबन्द बनाया। इस सारे निज़ाम की हर चीज़ एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिये चल रही है, और अल्लाह ही इस सारे काम की तदबीर कर रहा है। वो निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, शायद कि तुम अपने रब की मुलाक़ात का यक़ीन करो।*

📓(कुरआन 13:2)


बिधुत (electromagnetism)


इलेक्ट्रोमेम्नेटिस्म प्रकृति के नियम का दूसरा उदाहरण है, हम जानते है कि दो चार्ज के बीच या तो आकर्षक बल (attraction force) लगता है, या प्रतिकर्षण बल (repulsion force) लगता है, अगर चार्ज सेम नेचर के होते है, तो इनमें रिपल्सन का फोर्स लगता है। अगर चार्ज अपोसिट नेचर के होते है तो इनमें अट्रैक्सन का कोर्स लगता है, जैसे प्रोटोन(+) प्रोटोन(+) या इलेक्ट्रॉन(-) इलेक्ट्रॉन(-) सेम चार्ज होते है, तो इनमे रिपल्सन का फोर्स लगेगा लेकिन प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन दोनों अपोसिट चार्ज है, तो इसमें अट्रैक्सन का फोर्स लगेगा और यही फोर्स इलेक्ट्रोमेम्नेटिस्म का फोर्स है, जो एटम में इलेक्ट्रॉन और न्यूक्लियस को एक साथ होल्ड करके रखता है, जिसकी वजह से इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के गिर्द चक्कर लगाता रहता है।

अगर हम इलेक्ट्रोमेम्नेटिस्म को जरा सा भी चेंज कर दें या तो इसे थोड़ा सा बढ़ा दे या थोड़ा कम कर दे तो एटम में इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के गिर्द चक्कर लगाना बन्द कर देगा जिससे न्यूक्लियस के पास इलेक्ट्रॉन नही रहेंगे तो न्यूट्रल एटम नही बन पाएंगे और केमिकल बॉन्डिंग नही हो पाएगी जिसकी वजह से मॉलिक्यूल्स ही नही बन पाएंगे, और यहाँ हमारी सारी केमेस्ट्री खत्म हो जाएगी, ऑर्गेनिक और इनॉर्गेनिक कॉम्प्लेक्स मैटेरियल नही बन पाएंगे जिसकी वजह से ज़िंदगी का यहाँ मौजूद होना नामुमकिन हो जाता है।


हम ये भी जानते है कि लाइट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन है, और लाइट भी इलैक्ट्रोमेम्नेटिस्म की प्रॉपर्टी रखती है। लाइट वेव, फोटोन की फॉर्म मे एनर्जी कैरी करती है तो अगर हम इलैक्ट्रोमेम्नेटिस्म में थोड़ा सा भी चेंज कर दे तो लाइट के सारे स्पेक्ट्रम पर इसका असर आएगा, और लाइट धीरे-धीरे हमारे यूनीवर्स से खत्म हो जाएगी और लाइट वेव, एनर्जी कैरी करता है तो हम इलैक्ट्रोमेम्नेटिस्म में जरा सा चेंज कर दे तो यहाँ एक जगह से दूसरी जगह तक एनर्जी का ट्रांसफर नही हो पायेगा तो न ही यूनीवर्स मे लाइट होगी और न ही कोई एनर्जी ट्रांसफर करने वाला सोर्स होगा, तो आप कल्पना कर सकते है कि इलैक्ट्रोमेम्नेटिस्म को थोड़ा सा भी चेंज करने पर यहाँ ज़िंदगी मौजूद नही रह सकती।


क्या इलैक्ट्रोमेम्नेटिस्म इतना फ़ाईन टयून खुद व खुद हो गया ? या किसी डिज़ाइनर ने इसको इतना फ़ाईन टयून किया है?


क्या इन लोगों ने आसमानों और ज़मीन के इन्तिज़ाम पर कभी ध्यान नहीं दिया और किसी चीज़ को भी, जो अल्लाह ने पैदा की है, आँखें खोलकर नहीं देखा?

📓क़ुरआन ( 7: 185 )


स्ट्रांग न्यूक्लियर फ़ोर्स - (Strong nuclear force)


ये फोर्स एटम के न्यूक्लियस मे इनके न्यूक्लियोन को एक साथ होल्ड करके रखता है। हम जानते है एटम के न्यूक्लियस में प्रोटोन और न्यूट्रोन होते है, जिसे हम न्यूक्लियोन भी कहते है, और प्रोटोन के पास पॉजिटिव चार्ज (+) होता है, जिसकी वजह इनके बीच रिपल्सन का फोर्स लगता है, लेकिन स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स दो प्रोटोन और न्यूट्रोन के बीच अट्रैक्टिव कोर्स का काम करता है, जो रिपल्सन फोर्स पर काबू पाता है, और प्रोटोन और न्यूट्रोन को एक साथ न्यूक्लियस में इकट्ठा रखता है, अगर हम स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स को जरा सा भी चेंज कर दे तो यहाँ ज़िंदगी मौजूद नही हो सकती है।

अगर हम स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स को थोड़ा सा ज्यादा कर दें तो हाइड्रोजन एटम नही बन पाएंगे और न ही हाइड्रोजन एटम के आइसोटोप बन पाएंगे तो दुनिया में ज़िंदगी का होना मुमकिन ही नही है क्योंकि हाइड्रोजन के बिना ज़िंदगी मुमकिन ही नही है।

और दूसरी तरफ अगर हम स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स को थोड़ा सा भी कम कर दे तो हमे सिर्फ हाइड्रोजन ही हाइड्रोजन मिलेगी और हैवी एलिमेंट नही बन पाएंगे।

हम ने देखा स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स में थोड़ा सा भी चेंज करने पर यहाँ ज़िंदगी मुमकिन नही हो सकती है, तो क्या इतना एक्यूरेट स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फ़ोर्स एटम को किसी ने दिया है ? या ये खुद व खुद इतना फ़ाईन टयून है कि यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो?


उसने ज़मीन और आसमानों की सारी ही चीज़ों को तुम्हारी ख़िदमत में लगा दिया, सब कुछ अपने पास से इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो सोच-विचार करनेवाले हैं।

📓क़ुरआन (45 :13)


वीक न्यूक्लियर फ़ोर्स (Weak nucluer force)


इसे हम वीक इंटरेक्सन भी कहते है जो रेडियो एक्टिव डीके को नियंत्रित करता है , और ये स्टार मे न्यूक्लियर फिशन के प्रोसेज की शुरुआत भी करता है। अगर हम वीक न्यूक्लियर फ़ोर्स की वैल्यु को ज़रा सा बड़ा दे तो स्टार में उतना पर्याप्त हिलीयम (He) नही बन पाएगा जो जलकर हैवी एलिमेंट को बना सके तो स्टार के सुपरनोवा विस्फोट से जो हैवी एलिमेंट हमे मिलते है जैसेकि लोहा, वो नही मिल पाएंगे जब स्टार पर सुपर नोवा विस्फोट होता है तो इन स्टार के हैवी एलिमेंट इस यूनीवर्स के चारो तरफ फैल जाते है जिससे हमारी पृथ्वी पर भी हैवी एलिमेंट आते है। और हैवी एलिमेंट हमारी ज़िंदगी के लिए बहुत जरूरी है और हमें टेक्नोलॉजी में भी बहुत मदद करते है। क्योंकि हम जानते है ये हैवी एलिमेंट जैसेकि लोहा हमारी पृथ्वी के खुद के नही है, ये स्टार के सुपरनोवा विस्फोट से हमे मिलते है लेकिन जब स्टार में हैवी एलिमेंट ही नही बन पायेंगे तो हमे सुपरनोवा विस्फोट से हैवी एलिमेंट नही मिलेंगे, जिसकी वजह से हमारी ज़िंदगी और टेक्नोलॉजी पर इसका बहुत ही बड़ा असर पड़ेगा।


इसी तरह हम वीक न्यूक्लियर फ़ोर्स को थोड़ा सा कम कर दें तो स्टार बहुत ही जल्द जल जाएंगे, जिसकी वजह से स्टार के सुपरनोवा विस्फोट से हमारे यूनीवर्स में हैवी एलिमेंट नही फैल पाएंगे, तो इस परिस्थिति में भी हमे हैवी एलिमेंट नही मिल पाएंगे। अगर हमें लोहा नही मिलेगा तो हमारी सारी टेक्नलॉजी यही ख़त्म हो जाएगी , जिसकी वजह से हम साइंस में भी तरक्की नही कर पाएंगे।


यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि हमारा यूनीवर्स ऐसा बना है, जिसमे ज़िंदगी तो मुमकिन हो ही रही है उसके साथ साथ हमे टेक्नोलॉजी में भी तरक़्क़ी मिल रही है, क्या ये सब कुछ एक इत्तेफाक से हो गया है या किसी डिज़ाइनर ने इसको ऐसा फाइन टयून किया है, कि जिंदगी यहाँ मुमकिन हो सके?


हक़ीक़त ये है कि आसमानों और ज़मीन में अनगिनत निशानियाँ हैं ईमान लानेवालों के लिये।

📓(क़ुरआन 45:3)


प्रिंसिपल ऑफ काँवटाइजेशन (Principle of Quantization)


इसमें एक बहुत ही खास प्रिंसिपल आता है जिसे जिसे हम पोली एक्सक्लूजन प्रिंसिपल कहते हैं। ये प्रिंसिपल कहता है। कि दो फर्मियोंस एक ही क्वांटम स्टेट में नही रह सकते है, अगर किसी इलैक्ट्रोन के प्रिंसिपल क्वांटम नम्बर, ऐजीमुथल क्वांटम नम्बर और मैग्नेटिक क्वांटम नम्बर सेम है, तो इसका स्पिन क्वांटम नम्बर अलग होना चाहिए और इसे आसान शब्दो मे कहे तो इलेक्ट्रॉन एक ही ऑर्बिट में एक दूसरे के अपोसिट स्पिन करेंगे। जिसकी वजह से इलैक्ट्रोन लोअर एनर्जी स्टेट प्रदान करते हैं, अगर पोली एक्सक्लूजन प्रिंसिपल को खत्म कर दिया जाए तो यहाँ नॉर्मल मैटर नही मिलेगा जिसकी वजह से हमारी ज़िंदगी पर इसका बहुत असर पड़ेगा।


ज़मीन और आसमानों में कितनी ही निशानियाँ हैं जिनपर से ये लोग गुज़रते रहते हैं और ज़रा ध्यान नहीं देते।

📓(क़ुरआन 12:105)


हमने यहाँ लाखो प्रकृति के नियमों में से सिर्फ कुछ की फाइन टयूनिंग के बारे में जाना और यह भी जाना कि अगर इन नियमों में थोड़ा सा भी बदलाव दिया जाए तो हमारे यूनीवर्स में ज़िंदगी नही हो सकती है। अब हम बात करते हैं कांसटेंट ऑफ फ़िज़िक्स पर।


2- फिज़िकल कांस्टेंट की फ़ाईन टयूनिंग (Fine Tuning of Constant of Physics)


physical constant of fine tuning of Universe

 इसमें सबसे पहले हम बात करते हैं ग्रेविटेशन कांस्टेंट की-


ग्रेविटेशनल कांस्टेंट (gravitational Constant)


जैसे फ़िज़िक्स के फार्मूले में एक कांस्टेंट आता है, जिसे हम फिज़िकल कांस्टेंट कहते हैं वैसे ही ग्रेविटेशनल फोर्स के फार्मूले में भी एक कांस्टेंट आता है, जिसे हम ग्रेविटेशनल कांस्टेंट कहते है , जिसे हम G से दर्शाते है और इसकी वैल्यू 6.67408×10^-11 m3/kgs2 होती है।

अगर हम ग्रेविटेशनल कांस्टेंट की वैल्यू में जरा भी चेंज कर दे तो पृथ्वी पर ज़िंदगी मौजूद नही रह सकती है। हमे कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चलता है कि अगर हम G वैल्यू को 10^-34 (10 to the power -34) से चेंज कर दे जो कि बहुत बहुत ही छोटी वैल्यू है तो यहाँ ज़िंदगी का होना मुमकिन नही है।

अगर हम G की वैल्यू 10^-34 (10 to the power -34) से बढ़ा दे, तो स्टार बहुत ही जल्द जल जाएंगे। अगर स्टार बहुत ही जल्द जल जाएंगे तो हमे एनर्जी का कोई दूसरा सोर्स नही मिलेगा। जिसकी वजह से पृथ्वी पर ज़िंदगी का होना मुमकिन नही है।


अगर हम G की वैल्यू 10^-34 (10 to the power -34) से घटा दे या कम कर दे तो स्टार नही बन पायेंगे, प्लेनेट नही बन पाएंगे तो यहाँ ज़िंदगी मौजूद नही हो सकती। यहाँ ज़िंदगी के मौजूद होने के लिए ग्रेविटेशनल कांस्टेंट की वैल्यू को बहुत ही नेरोरेंस पर जाकर टयून होना पड़ता है, जिसकी लिमिट 10^-34 (10 to the power -34) है, अगर G की वैल्यु 10^-34 (10 to the power -34) से आगे पीछे कर दे तो पृथ्वी पर ज़िंदगी मुमकिन नही है।

तो सवाल यहाँ ये उठता है कि G की इतनी एक्यूरेट वैल्यु हमारे यूनीवर्स को कहा से मिली? क्या G की वैल्यु हमारे यूनीवर्स ने खुद से ली है ? अगर हमारे यूनीवर्स में G की वैल्यू खुद से ली है तो हमारे यूनीवर्स ने G की यही खास वैल्यू क्यों ली जिसके पृथ्वी पर ज़िंदगी मुमकिन हो सके। और ये वैल्यू जो कि इतनी प्रिसाइज है कि इसमें 10^-34 (10 to the power -34) से भी चेंज कर दे तो ज़िंदगी का मौजूद होना मुमकिन ही नही है।


अल्लाह हमेशा ज़िन्दा रहनेवाली वो हस्ती, जो पूरी कायनात को सँभाले हुए है, उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं है। वो न सोता है और न उसे ऊँघ लगती है। ज़मीन और आसमानों में जो कुछ है, उसी का है।

📓(क़ुरआन 2: 255)


चलिए एक और कांस्टेंट के बारे में जानते है 


कॉस्मोलॉजीकल कांस्टेंट - (Cosmological Constant)


आइंस्टाइन ने अपनी जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में एक टर्म दी जिसे हम कॉस्मोलॉजीकल कांस्टेंट कहते हैं। इसे ^ (lamda) से दर्शाता है। और इसी कॉस्मोलॉजीकल कांस्टेंट की वजह से हमारा यूनीवर्स लगातार फैल रहा है। इसे हम डार्क एनर्जी भी कहते है हम जानते है कि हमारा यूनीवर्स डार्क एनर्जी की वजह से बहुत तेज़ी से फैल रहा है, और ये एन्टी ग्रेविटी का काम करता है। जिस तरह ग्रेविटी चीज़ों को अपनी तरफ खिंचती है, उसी तरह ये कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट स्पेस को फैलाता है, और ये दोनों फ़ोर्स (ग्रेविटी और कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट) पूरी तरह से संतुलन होने चाहिए और इसका संतुलन बनाये रखने के लिए कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट को फाइन टयून होना चाहिए और ये बहुत ही ज्यादा नेरोरेंस पर जाकर फाइन टयून है।

अगर हम कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट की वैल्यू में 10^-122 (10 to the power -122) से भी चेंज कर दे जो कि बहुत बहुत ही ज्यादा छोटी वैल्यू है, तो हमारा यूनीवर्स ख़त्म जो जाएगा।


अगर हम कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट की वैल्यू में 10^-122 (10 to the power -122) से भी बढ़ा दे तो हमारा यूनीवर्स बहुत तेज़ी से फैलने लगेगा और हमारे यूनीवर्स का स्पेस और टाइम विभाजित हो जाएगा। और अगर हम कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट की वैल्यू में 10^-122 (10 to the power -122) से कम कर दे तो ग्रेविटी हमारे यूनीवर्स की सारी चीज़ों को अपनी तरफ खींच लेगी जिसकी वजह से हमारे यूनीवर्स का ख़ात्मा हो जाएगा।


अब जरा आप विचार कीजिये, अगर हम 10^-122 (10 to the power -122) इतनी छोटी वैल्यु से भी कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट में आगे पीछे करेंगे तो हमारा यूनीवर्स खत्म हो जाएगा तो इस यूनीवर्स में ज़िंदगी के मौजूद होने का सवाल ही नही उठता।

कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट की फाईन ट्यूनिंग के बारे में दो बड़े साइंसटिस्ट स्टीफ़न हॉकिंस और लियोनार्ड ससकिंड ने अपने इंटरव्यू में बताया कि हमारा यूनीवर्स इन कॉस्मोलॉजिकल कांस्टेंट से फ़ाईन टयून है। अगर हम इसमें 10^-122 (10 to the power -122) से भी हम इसे इधर उधर कर दे तो ये यूनीवर्स में इतने बदलाव करेगा कि यहाँ ज़िंदगी का मौजूद होना मुमकिन ही नही है।


तो हमने यहाँ देखा कि कांस्टेंट ऑफ फ़िज़िक्स की वैल्यु में छोटी सी भी वैल्यु से चेंज कर दे, तो जिंदगी का यहाँ मौजूद होना मुमकिन नही है , कांस्टेंट ऑफ फ़िज़िक्स की इतनी ज्यादा एक्यूरेट वैल्यू क्या हमारे यूनीवर्स ने खुद से ली है ? या किसी डिज़ाइनर ने इसको ये वैल्यू दी है ?


हमारी यूनिवर्स को चलाने में काम करने वाले कानूनों में पिछले 13.8 अरब साल गुजर जाने के वाबजूद कोई तब्दीली नही आई है और ये सब कानून इस कदर नपे तुले हिसाब के साथ वुज़ूद में आये थे कि अगर इसके मूल्यों (values) में एक मिली मीटर का भी फ़र्क़ हुआ होता तो ये यूनिवर्स मुकम्मल तरीके से तबाह और बर्बाद हो जाता और कभी भी इस सूरत में नही हो सकता था जिस सूरत में आज ये यूनिवर्स मौजूद है।

हमारी इस यूनिवर्स के अंदर नासा की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक 250 अरब गैलेक्सीस दर्याफत हो चुकी है और हर गैलेक्सी के अंदर 300 अरब से ज्यादा सूरज मौजूद हैं, मिसाल के तौर पर हमारी milky way गैलेक्सी के अंदर जो सूरज हमें नज़र आ रहा है ये सूरज हमारी धरती से 13 लाख गुना बड़ा है, और ये सूरज इस गैलेक्सी का सबसे छोटा सितारा है, इसी तरह के 300 अरब सूरज हमारी milky way गैलेक्सी में मौजूद हैं, और इस तरह की 250 अरब गैलेक्सी इस क़ायनात में मौजूद है। पिछले 13.8 अरब सालो से ये तमाम की तमाम गैलेक्सी पूरी समन्वय (perfect harmony) के साथ गति कर रही है और ये गैलेक्सी अपनी गति (movement) के दौरान एक दूसरे पास से निकल जाती है लेकिन कभी कोई सितारा दूसरे सितारे से नही टकराता। अगर में आपसे यूनिवर्स के फासलों की बात करूं तो वो इतने बड़े हैं, कि इनको किलोमीटर में मापना नामुमकिन है इसलिए यूनिवर्स के फासलों को नूरी साल (Light year) में मापा जाता है 

एक नूरी साल (Light year) ये होता है, रोशनी (light) के द्वारा एक साल में तय की गई कुल दूरी, रोशनी की रफ्तार 1,86,000 मील प्रति सेकेंड या 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड है, रोशनी (light) की रफ्तार का अंदाजा आप इससे करें कि एक सेकेंड में रोशनी (light) पृथ्वी के 7.5 चक्कर लगा लेगी। अगर रोशनी (light) को एक साल तक सफर करने को छोड़ दिया जाये तो वह 9.5 खरब (9.5 Trillion) किलोमीटर दूरी तय कर लेगी।

पृथ्वी के करीब जो गैलेक्सी मिली है वह हमारी पृथ्वी से 20 लाख नूरी साल (light year) के फासले पर है, यानी 20 लाख साल तक रोशनी (light) 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से सफर करती रहे तो तो वो पहली गैलेक्सी तक पहुँचेगी और इसी तरह की 250 अरब गैलेक्सी इस यूनिवर्स में और मौजूद है, हमारा ये यूनिवर्स इतनी बड़ा है कि हम इसके बारे में तसव्वुर भी नही कर सकते हैं। और ये यूनिवर्स ऐसे ही पिछले 13.8 अरब सालो से पूरे संतुलन (perfect balance) के साथ चल रहा है। इस महान आश्चर्यजनक व्यवस्था को देखकर अक्ल को स्वीकार करना पड़ता है कि यह अपने आप स्थापित नहीं है, बल्कि कोई असाधारण शक्ति है, जिसने इस अथाह व्यवस्था को स्थापित किया है।


हक़ीक़त ये है कि अल्लाह ही है जो आसमानों और ज़मीन को टल जाने से रोके हुए है और अगर वो टल जाएँ तो अल्लाह के बाद कोई दूसरा इन्हें थामनेवाला नहीं है। बेशक अल्लाह बड़ा सहन करनेवाला और माफ़ करनेवाला है।

 📓(कुरआन 35:41)


कांस्टेंट ऑफ फ़िज़िक्स के बाद हम बात करते हैं, कि वो शुरुआती कंडीशन क्या रही थी जब हमारा यूनीवर्स बना था।


3- द्रव्यमान और ऊर्जा का प्रारंभिक वितरण (Initial distribution of mass and energy)


शुरुआत में जब हमारा यूनीवर्स बना था, तो उस समय ऐसी कंडीसन हमारे यूनीवर्स को मिली थी जिससे यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके अगर शुरुआत में हमारे यूनीवर्स को वो कंडीसन न मिली होती तो यहाँ ज़िंदगी का होना नामुमकिन था। और सबसे अहम बात यह है कि ये शुरुआती कंडीशन फिज़िकल कांस्टेंट पर निर्भर नही करती है।

शुरुआत की अवस्था में हमारी यूनीवर्स की एंट्रॉपी (entropy) बहुत ही ज्यादा कम थी यानि शुरुआत में हमारा यूनीवर्स हाइली ऑर्डर अवस्था में था। जो द्रव्यमान (mass) और एनर्जी का प्रारंभिक वितरण दर्शाता है। ब्रिटिश मैथमेटिशियन रोजर पेनरोस जिनको 2022 में ही ब्लैक हॉल पर काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। तो इन्होंने इसकी गणना कि और बताया कि कितने यूनीवर्स होने चाहिए ताकि एक हमारे यूनीवर्स जैसी शुरुआती कंडीसन मिल सके। तो उन्होंने गणना की हमारे यूनीवर्स को कम एंट्रॉपी अवस्था मिलने की संभावना 10^10^123 (10 to the power 10 to the power 123) इतनी ज्यादा संभावनाओं मे से सिर्फ एक ऐसी संभावना थी जिससे ये यूनीवर्स मिल सके जिसमें ज़िंदगी का होना मुमकिन हो सके। 10^10^123 (10 to the power 10 to the power 123) ये इतना बड़ा नम्बर है कि न तो हम से इसे लिख सकते है ना ही गिन सकते है। अगर हम अपने यूनीवर्स के सारे प्रोटोन , न्यूट्रोन और इलैक्ट्रोन को भी गिन ले तो ये भी मिलकर इतने नही बन पाएंगे।

इस यूनीवर्स का खुद व खुद बन जाना औऱ इसमें ज़िंदगी के मुमकिन होने के इतने कम चांस है, कि इसे चांस कहना भी अजीब लगता है। क्या आपको नही लगता कि हमारे यूनीवर्स को शुरुआत में वो कंडीसन किसी डिज़ाइनर ने दी थी, जिससे यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके।


क्या ये किसी ख़ालिक़ के बग़ैर ख़ुद पैदा हो गए हैं? या ये ख़ुद अपने पैदा करने वाले हैं?

 📓(क़ुरआन 52:35)


या ज़मीन और आसमानों को इन्होंने पैदा किया है? असल बात ये है कि ये यक़ीन नहीं रखते।

📓(क़ुरआन 52:36)


हमने यहाँ प्रकृति के नियमों के बारे मे जाना , फिज़िकल कांस्टेंट के बारे में जाना और यूनीवर्स की शुरुआती कंडीसन को भी जाना तो सवाल ये उठता है कि हमारा यूनीवर्स जब बना तो ऐसा ही क्यों बना कि ज़िंदगी यहाँ मुमकिन हो सके ? हमारे यूनीवर्स को ऐसे नियम कहा से मिले जो ज़िंदगी के पनपने के लिए बहुत जरूरी है ? हमारे यूनीवर्स में फिज़िकल कांस्टेंट की ये ही खास वैल्यू क्यों ली जिससे यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके? और सबसे अहम बात यह है कि इन फिज़िकल कांस्टेंट की नुमेरिकल वैल्यू इतना नेरोरेंस पर जाकर टयून है कि अगर इसमें बहुत बहुत छोटे नम्बर से भी आगे पीछे कर दिया जाए तो यहाँ ज़िंदगी का मौजूद होना नामुमकिन हो जाएगा। और अगर हमारे यूनीवर्स को शुरुआत में वो कंडीसन न मिली होती जो मिली है, तो यहां ज़िंदगी का होना मुमकिन ही नही था।


 सवाल:- हमारा यूनीवर्स प्रकृति के नियमो से, फिज़िकल कांस्टेंट से और शुरुआती कंडीसन से इतना ज्यादा फाइन टयून क्यों है? जो ज़िंदगी को यहाँ मुमकिन बना रहा है।


जवाब - इस यूनीवर्स की फाइन टयूनिंग समझने के लिए हमारे पास सिर्फ तीन संभावनाएं हो सकती है।

1- By chance 

2- Physical Necessity 

3- By design


1. By chance

तो आइये सबसे पहले बात करते है चांस वाली संभावना की;


एक लेखक ने लिखा है—

“संयोग’ (probability/chance) मात्र एक बनावटी चीज़ नहीं है, बल्कि एक बहु त ही विकसित गणितीय सिद्धांत है, जिसे उन मामलों पर लागू किया जाता है, जिनकी निश्चित जानकारी सं भव नहीं होती। इस सिद्धांत के द्वारा ऐसे खरे नियम हमारे हाथ आ जाते हैं, जिनकी सहायता से हम सही और ग़लत में सरलता से अतंर कर सकते हैं और किसी विशेष अवस्था की घटना के जारी होने की सं भावनाओ का हिसाब लगाकर सही अनुमान कर सकते हैं कि सं योगवश उसका पेश आ जाना किस हद तक सं भव है।” (The Evidence of God, p.23)


अगर हम यह मान भी लें कि पदार्थ किसी कच्ची स्थिति में स्वयं से यूनिवर्स में मौजूद हो गया और फिर यह भी मान लें कि इसमें क्रिया (cause) और प्रतिक्रिया (effect) का क्रम भी अपने आप आरं भ हो गया, हालाँकि इन परिकल्पनाओ के लिए कोई आधार नहीं है— तब भी यूनिवर्स की कारणता प्राप्त नहीं होती— क्योंकि यहाँ एक और सं योग धर्म-विरोधियों के मार्ग में बाधक हो गया है। दुर्भाग्य से हमारा गणित विधान जो सं योग के नियम का क़ीमती नु क्ता हमें देता है, वही इस बात का खं डन भी कर रहा है कि सं योग का नियम वर्तमान यूनिवर्स का रचयिता नहीं हो सकता है, क्योंकि विज्ञान ने मालू म कर लिया है कि हमारी दुनिया की आयु और आकार क्या है और जो आयु और आकार इसने मालूम किया है, वह सं योगी नियम के तहत वर्तमान दुनिया के घटित होने के लिए अपर्याप्त है।


उदाहरण:

“अब अगर आप 10 सिक्के लें और उन पर 1 से 10 तक निशान लगा दो, इसके बाद इन्हें अपनी जेब में डाल लो और अच्छी तरह से मिला दो। अब इन्हें 1 से 10 तक क्रमवार इस प्रकार निकालने की कोशिश करो कि एक सिक्के को निकालने के बाद हर बार इसे दोबारा जेब में डाल दो— यह सं भावना कि वह नं बर 1 का सिक्का पहली बार तुम्हारे हाथ में आ जाए, 10 में एक है; यह सं भावना कि 1 और 2 क्रमवार तुम्हारे हाथ में आ जाएँ, 100 में एक है; यह सं भावना कि 1, 2 और 3 नं बर क्रमवार तुम्हारे हाथ में आ जाएँ, 1,000 में एक है और यह सं भावना कि 1, 2, 3 और 4 नं बर के सिक्के क्रमवार निकल आएँ, 10,000 में एक है, यहाँ तक कि यह सं भावना कि 1 से 10 तक तमाम सिक्के क्रमवार तुम्हारे हाथ में आ जाएँ, 10 बिलियन (10 अरब) में सिर्फ़ एक बार है।”

यह उदाहरण देने के बाद क्रेसी मॉरिसन ने लिखा है—

“The object in dealing with so simple a problem is to show how enormously figures multiply against chance...” 

(Man Does Not Stand Alone, p.17)


यानी यह साधारण उदाहरण इसलिए दिया गया है, ताकि यह विषय भली-भाँति स्पष्ट हो जाए कि घटनाओं की संख्या के संबंध से संभावनाओं की संख्या कितनी अधिक होती है।


ब्रिटिश मेथमेटिशियन रोजर पेनरोस ने यूनीवर्स के इत्तेफाक से बन जाने की गणना कि तो पाया 10^10^123 (10 to the power 10 to the power 123) में से सिर्फ एक चांस ऐसा था जिसमे ये यूनीवर्स बन सके जिसमे ज़िंदगी मौजूद हो। ये इतना बड़ा नम्बर है इसको चांस कहना भी अजीब बात है और हमारी अक़्ल के भी खिलाफ है। इस चांस को एक उदाहरण से समझते है। हम एक तीर लेते है और एक सिक्का लेते है। और इन दोनों को यूनीवर्स के अपोसित कोनो पर रख देते है। और हम जानते है कि इस यूनीवर्स की परिधी जो अब तक हम देख चुके है वो 46.5 बिलियन नूरी साल (light year) है। और एक नूरी साल में 9.5 खरब किलोमीटर होते है और इसमें 250 अरब गैलक्सी मौजूद है। हमे अपनी गैलक्सी से अपने पास की गैलक्सी तक जाने के लिए लाइट की रफ्तार से 20 लाख साल लगते है। अब यूनीवर्स के एक कोने से हम तीर को छोड़ते है तो जितना चांस है कि ये तीर जाकर सिक्के पर लग जायेगा तो उतना ही चांस था आज से 13.8 साल पहले की हमारा यूनीवर्स ऐसे बने ज़िसमें ज़िंदगी मुमकिन हो सके। ये भी कोई चांस है इतना कम चांस।


मैं इस चर्चाको एक अमेरिकी भौतिकशास्त्री जॉर्ज अर्लडेविस के शब्दों पर समाप्त करूंगा—

“अगर यूनिवर्स स्वयं अपने आपको पैदा कर सकता तो इसका मतलब यह होगा कि वह अपने अदंर पैदा करने के गुण रखता है। ऐसी स्थिति में हम यह मानने को विवश होंगे कि यूनिवर्स स्वयं खुदा है। इस तरह हालाँकि हम खुदा के अस्तित्व को तो स्वीकार कर लेंगे कि वह निराला खुदा होगा, जो एक ही समय अलौकिक भी होगा और भौतिक

भी। इस प्रकार किसी भी अस्पष्ट कल्पना को अपनाने के स्थान पर एक ऐसे खुदा पर आस्था को प्रधानता देता हूँ, जिसने भौतिक सं सार की उत्पत्ति की है और उस सं सार का वह स्वयं कोई अशं नहीं, बल्कि उसका शासक, व्यवस्थापक और युक्तिकर्ता है।”

(The Evidence of God, p.71)


2- By Physical Necessity

कुछ साइंटिस्ट मानते है कि हमारा यूनीवर्स फिज़िकल नेसेसिटी की वजह से फाइन टयून है। हमारे यूनीवर्स का इवोल्यूशन हुआ है। उनका मानना है कि हमारा यूनीवर्स धीरे धीरे इस तरह बना कि यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके। लेकिन यहाँ हमारे सामने समस्या ये है कि किसी ने भी सिद्घ नही किया है कि हमारा यूनीवर्स फिज़िकल नेसेसिटी  की वजह से फाइन टयून है। इसके साथ समस्या ये भी है कि कुछ मापदंड (parameter) ऐसे है जो प्राकृति के नियमों पर निर्भर नही करते है। इसलिए यूनीवर्स के फाइन टयून होने के लिए  ये वजह भी नही हो सकती है।


3- By Design

लगभग सभी साइंटिस्टो का यही मानना है कि हमारे यूनीवर्स की फाइन टयूनिंग इंटेलिजेंट डिज़ाइन (intelligent design) की वजह से है। ये डिज़ाइन किसी ने किया है, प्रकृति के नियम इस यूनीवर्स को किसी ने दिए है और फिज़िकल कांस्टेंट की खास वैल्यु इस यूनीवर्स में किसी ने रखी है। ताकि यहाँ ज़िंदगी मुमकिन हो सके। हमारे यूनीवर्स की शुरुआती कंडीसन किसी ने रखी है, ताकी यहाँ ज़िंदगी परवान चढ़ सके। यह यूनीवर्स किसी ने फाइन टयून किया है, ताकी यहाँ ज़िंदगी बस सके। और ये सब किसी इंटेलीजेंट डिज़ाइन के प्लेन के तहत हुआ है। ये सब काम एक बनाने वाले का है जिसने यूनीवर्स को बनाया है। जिसे हम खुदा कहते है। इस यूनीवर्स की फाइन टयूनिंग के लिए यही सबसे तार्किक और अक्ल के मुताबिक है। कि इस यूनीवर्स का कोई बनाने वाला है और वो ही खुदा है।

1988 में एक अमेरिकन फिलोसफर जॉर्ज ग्रीन्सटीन ने अपनी किताब (Symbolic universe) में कहा कि न चाहते हुए भी साइंटीफिक डिस्कवरी ने आज हमे इस बात को मानने पर मजबूर कर दिया है कि इस यूनीवर्स को बनाने वाला और चलाने वाला एक Supreme being है, एक super natural authority है। जो टाइम और स्पेस से आज़ाद है, जिसके ऊपर कोई हादसा नही आता और उसने ही पूरे यूनीवर्स को कन्ट्रोल कर रखा है।

1977 में पैट्रिक वितिन ने एक किताब लिखी God the evidence जिसमे उसने कहा पिछले कुछ दहाईयो की साइंसटिफिक डिस्कवरी ने आज इंसानों को ये चीज़ मानने पर मजबूर कर दिया है कि खुदा का नज़रिया ही दुरुस्त है। उसने कहा खुदा के नज़रिया की गवाही आज साइंस में भी हमे मिल गई है।

इसके बाद अमेरिका मे एक आंदोलन भी सामने आया, जिसका नाम था intelligent design movement ये तहरीक कह रही थी कि हर चीज़ इंटेलिजेंटली जहानत के साथ डिज़ाइन की हुई है न कि by chance.

और आज साइंटिफिक डिस्कवरी के जरिये क़ुरआन की वो पेशनगोई भी पूरी हो गई जिसे अल्लाह ने क़ुरआन मे आज से 1450 पहले बतला दिया था।


जल्द ही हम इनको अपनी निशानियाँ बाहरी दुनिया में भी दिखाएँगे और इनके अपने अन्दर भी यहाँ तक कि इनपर ये बात खुल जाएगी कि ये क़ुरआन सचमुच हक़ है। (यानी खुदा की तरफ से आया है) क्या ये बात काफ़ी नहीं है कि तेरा रब हर चीज़ का गवाह है?

📓(क़ुरआन 41:53)

आज हमारा यूनिवर्स खुद इस बात की गवाही दे रहा है कि खुदा मौजूद है। खुदा के मौजूद होने की इतनी ज्यादा निशानियां देखने के बाद भी कुछ लोग ऐसे है जो कहते है कि जब तक हम खुदा को खुद नही देख लेते हम यकीन नही करेंगे। ऐसे ही लोगों के लिए अल्लाह ने कुरआन में कहा है कि:


नादान कहते हैं कि अल्लाह ख़ुद हमसे बात क्यों नहीं करता या कोई निशानी हमारे पास क्यों नहीं आती? ऐसी ही बातें इनसे पहले के लोग भी किया करते थे। इन सब  [अगले-पिछले गुमराहों] की ज़ेहनियतें एक जैसी हैं। यक़ीन लानेवालों के लिये तो हम निशानियाँ साफ़-साफ़ ज़ाहिर कर चुके हैं।

📓(कुरआन 2:118)


क्या अब लोग इसके इन्तिज़ार में हैं कि उनके सामने फ़रिश्ते आ खड़े हों, या तुम्हारा रब ख़ुद आ जाए, या तुम्हारे रब की कुछ वाज़ेह निशानियाँ  सामने आ जाएँ? जिस दिन तुम्हारे रब की कुछ ख़ास निशानियाँ सामने आ जाएँगी फिर किसी ऐसे आदमी को उसका ईमान (यकीन) कुछ फ़ायदा न देगा जो पहले ईमान न लाया हो या जिसने अपने ईमान में कोई भलाई न कमाई हो। ऐ नबी! इनसे कह दो कि अच्छा, तुम इन्तिज़ार करो, हम भी इन्तिज़ार करते हैं।

📓(कुरआन 6:158)


साभार: अकरम हुसैन

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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही शानदार मालूमात दी है, अल्लाह ने कितनी बारिकबीनी से हमे ये दुनिया बनाकर दी है , हम गौर नही करते। अल्लाह ही है जो ये कर सकता है।।

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