Aulaad Ki Tarbiyat Kaise Karein

वालदेंन अपने औलाद की तरबियत में क्या तरीका अपनाएं?

Aulaad Ki Tarbiyat Kaise Karein


देखा जाय तो आज हमारे मोआसरे में औलाद की नाफरमानी के हालात बढ़ते जा रहे हैं इसकी बुनियादी वजह वालदैन का औलाद की तरबियत का मुकम्मल तौर दीनी तरीके से तालीम और तरबीयत पर अमल ना करना है। जिस्मानी तरबियत को जितनी अहमियत दी जाती है फिर रूहानी तालीम व तरबीयत का पहलू नजरअंदाज हो जाता है। औलाद की नाफरमानी की बुनियादी वजह यहीं से शुरू होती है। हम में से अक्सर लोग यह समझने लगे हैं कि दुनियावी तालीम दे दी बस यही काफी है और यही सोच बच्चों को नाफरमान बना रही है। अल्लाह सुभान वा तआला फरमाते हैं:


"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, बचाओ अपने-आपको और अपने अहलो-अयाल को उस आग से जिसका ईंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जिस पर बहुत ही बहुत ग़ुस्सेवाले और सख़्ती करनेवाले फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे जो कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म भी उन्हें दिया जाता है उसे पूरा करते हैं।" [क़ुरआन 66:6]



हदीस में आता है के अब्दुल्लाह बिन उमर (رَضِيَ ٱللَّٰهُ عَنْهُ) फरमाते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वाले वसल्लम को फरमाते हुए सुना है कि, 

"तुम में से हर शख्स निगरा है और उससे उसके मातहतों के मुतालिक सवाल होगा, इमाम निगरा है उससे उसके रियाया के बारे में सवाल होगा, इंसान अपने घर का निगरा है और उससे उसके रैयत के बारे में सवाल होगा, औरत अपने शौहर के घर की निगरा है और उससे उसके रैयत के बारे में सवाल होगा, खादिम अपने आका के माल का निगरा है उससे उसके रैयत के बारे में सवाल होगा और इंसान अपने बाप के माल का निगरा है उससे उसके रैयत के बारे में सवाल होगा।" [सही बुखारी-893]


अल्लाह अल्लाह सुभान ताला ने दुनिया को बहुत खूबसूरत है बनाया फिर तमाम मखलूक को बनाने के साथ-साथ इस दुनिया को मां-बाप जैसी अजीम हस्ती से नवाजा जो औलाद के सुकुन का जरिया हैं। बाप वो हस्ती है जो अपने बच्चों की आजियतों को बर्दास्त करता है। जब वो उसके कदमों पर कदम रख कर खेलते हैं और फिर बड़े होकर वालदेन के दिल पर कदम रखते हैं बाप वो हस्ती है जो अपनी बेहतरीन सरवत बल्कि जो कुछ उसके पास है अपनी औलाद को बक्स देता है। अगर मां औलाद को नौ महीने पेट में उठाती हैतो दूसरी तरफ बाप पूरी जिन्दगी अपने औलाद के लिय फिक्र मंद रह कर उनका बोझ उठा ता है तो फिर सवाल ये है कि क्या सिर्फ़ बोझ उठा लेना और फिक्र मंद रहना काफ़ी है।


क्या वाकई हम अपने औलाद की तरबियत सही ढंग से कर पाते हैं? 
शादियाँ करना बच्चे पैदा करना, उन्हें पालना कोई बड़ा काम नही यह ज़िम्मेदारी जानवर और परिंदे भी ख़ूब निभा रहे है। मुस्लमान माँ - बाप की हक़ीक़ी ज़िम्मेदारी अपनी नस्लों को दीनी तरबियत का माहौल फ़राहम करना है ताकि अपने बाद ईमान वाली नस्ले छोड़ जाये ना की एक कमज़ोर नस्ल तो फिर बच्चों को ऐसी तरबीयत दी जाय जो कुरान और सुन्नत की रोशनी में हो, जो एक मजबूत ईमान की पैरोकार हो। अब खयाल ये रखना ह कि तरबियत करते वक्त न तो उनसे सख्ती की जा सकती है और ना ही सुस्ती और कोताही।


बच्चे का जन्म एक परिवार में होता है और परिवार ही उसके प्रथम पाठशाला होती है और मां प्रथम टीचर, बच्चा अपनी मां की निगरानी में ही पलता-बढ़ता है और परिवार के माहौल में ही वह परवरिश पाता है। मां की आगोश उसका एक मुकम्मल परवरिश का इदारा है। आज के हालात पर नजर डाला जाए तो हम पाएंगे की औरतें आज दीन से काफी दूर है और फिर घर का माहौल भी मॉर्डन होता जा रहा है। हर कोई मॉडर्न लाइफस्टाइल अपनाना चाहता है, दौलत, शोहरत और हसद ने हमें कहां ला खड़ा किया है, मॉडर्न एजुकेशन हासिल करने की होड़ सी मची है, हम पागल हुए जा रहे हैं हम जितना खर्च दुनियावी तालीम पर कर रहे हैं उसका एक परसेंट खर्च भी दीनी तालीम पर नहीं हो रहा है। यही वजह है कि हमारे बच्चे दीन से खाली होते जा रहे हैं। दुनिया की तालीम ईमान की जड़ों को खोखला करती जा रही है और रही सही कसर मीडिया और सोशल मीडिया पूरा कर रहा है। आज बेहयाई आम हो गई है लोग गुनाह करते हैं और उन्हें एहसास तक नहीं। घर की औरतें दिनभर टीवी सीरियल और फहश किस्म की बेहूदा फिल्में देख रही हैं साथ में बच्चे भी, चकाचौंध की दुनिया ने हमें अंधा बना दिया है।


अक्सर देखती हूं 5 साल से 10 साल की बिटिया जब टीवी पर सिलेब्रिटीज़ को देखकर अश्लील गाने पर थिरक थिरक कर डांस कर रही है तो पापा जी हंस-हंसकर उसकी वीडियो बनाकर एफबी और व्हाट्सएप पर स्टेटस लगा रहे हैं।

सोचिए जरा हम कहां जा रहे हैं?
क्या हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं?

अपने दीन से गफलत और बेजारी
हाय अफ़सोस..😥😥
क्या हमारा दिल मुर्दा हो गया हैं?😥😥

सोचें ज़रा! और फिर जब यही बच्चे बड़े होकर यह कहते हैं कि मेरा जिस्म मेरी मर्जी, मैं चाहे जो करूं। फिर करने दे जो करते हैं, अच्छा ही तो है कामयाबी आपके भी कदम चूमेगी आपका भी नाम रोशन होगा दुनिया में। मगर याद रखें, अपने घरों की छोटी छोटी बच्चियों के डांस करते हुवे वीडियो स्टेटस या FB पर रखने से उनका टेलेंट नही दिखता है बल्कि उस घर की औरतों और मर्दों की बे हयाई दिखती है.. 😢😢


कुछ वालदेन तो कहते हैं न्यू जनरेशन है मस्ती करनी चाहिए, क्या हुआ अभी छोटी ही तो है बडी होकर संभल जाएगी। इसी तरह घर की औरतें अपनी बच्चियों को आधे अधूरे कपड़े पहनाती हैं और कहती हैं क्या हुआ अभी बच्चे ही तो है अपने शौक पूरे करने चाहिए अभी नहीं करेगी तो कब करेगी याद रहे बच्चे इसी दहलीज से बड़े होते हैं और जब बड़े हो जाते हैं तो बचपन में जो आदत डाल दी जाए फिर बदलना मुमकिन नहीं होता बचपन में ही उसे शउर नहीं सिखाएंगे फिर आगे अल्लाह ही मालिक है, औरतों का हाल यह है कि शादी और दिगर मौकों पर नई नई रस्में और बिददत का आगाज कर रही हैं जहां एक तरफ पश्चिमी मुल्कों में औरतें इस्लाम कबूल कर रही हैं वही बर्रे सगीर (इंडिया पाकिस्तान और बांग्लादेश )में औरतें पश्चिमी कल्चर को फॉलो कर रही हैं उन्हें पर्दा बोझ लगने लगा है पर्दे में वह घुटन महसूस कर रही हैं बेहयायी का आलम इस कदर हावी है कि उसने अपने नौजवान बच्चों और बच्चियों के साथ डीजे पर डांस करती नज़र आ रही हैं कोई शर्म वा हया नहीं।


मजे की बात यह है कि आजकल मासरे की औरतों ने बरात करना भी शुरू कर दिया है। मुझे ताज्जुब इस बात का है कि जिन घरों के मर्द दीन दार हैं वह भी बेहूदा रस्मों को नहीं रोक पा रहे हैं फिर क्या हो सकता है। उम्मते मुस्लिमा का क्या हम सिर्फ नाम के मुस्लिम बनते जा रहे हैं हमने कभी अपने बच्चों को बताया ही नहीं यह रास्ता गलत है। लिबरल और सेकुलर सोच हमारी जड़ों में सेंध लगा रही है और हमें खबर तक नहीं। ये बात हमें याद रखना चाहिए और अपने बच्चों को भी बताना चाहिए कि हर तरीका बातील निजाम के तहत है, सिवाय अल्लाह के निजाम के क्योंकि तमाम कायनात का वही एक रब है, उसके कानून और मर्जी के खिलाफ जाने से ही मुसीबतों का दौर शुरू है। हमारे कौम पर आए हुए जवाल की सबसे बड़ी वजह यही है कि हम दीनसे दूर है कुरान से दूर हैं। नबी करीम (ﷺ) की सुन्नतों से दूर है अपने बच्चों में यह एहसास और सऊर पैदा करें कि दुनिया में आने का मकसद क्या है?

  • उन्हें शिर्क और विद्दत के बारे में बताएं।
  • हक और बातिल में फर्क समझाएं।
  • उन्हें अकीदत ए तौहीद का इल्म सिखाएं।
  • बातों को हक के साथ रखने की तरीका सिखाएं जैसा इस्लाम ने बताया है।
  • हलाल और हराम का फर्क समझाएं।
  • उन्हें बचपन में ही बताएं कि बुत परस्ती सिर्क है बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करने की तालीम दें।
  • साथ ही उन्हें बताएं कि पीरों /फकीरों /बुजुर्गों को इस हद तक ना चाहे कि रसूल अल्लाह (ﷺ) की बात का ही इंकार कर दें अपने बच्चों को बचपन से ही ढंग का कपड़ा पहनाये जो इस्लामी तरीके से हैं।
  • बच्चियों दुपट्टा ढंग से लेने को कहें और सर कवर करने की नसीहत दें उन्हें बताएं कि पर्दा फर्ज है।


देखा जाय तो आज हमारे मोआसरे में औलाद की नाफरमानी के हालात बढ़ते जा रहे हैं इसकी बुनियादी वजह वालदैन का औलाद की तरबियत का मुकम्मल तौर दीनी तरीके से तालीम और तरबीयत पर अमल ना करना है। जिस्मानी तरबियत को जितनी अहमियत दी जाती है फिर रूहानी तालीम व तरबीयत का पहलू नजरअंदाज हो जाता है। औलाद की नाफरमानी की बुनियादी वजह यहीं से शुरू होती है। हम में से अक्सर लोग यह समझने लगे हैं कि दुनियावी तालीम दे दी बस यही काफी है और यही सोच बच्चों को नाफरमान बना रही है।


मेरा मानना है कि दुनियावी तालीम भी ज़रूरी है मगर उसे दीन से जोड़ा जाए। अगर हम कुरान का मुताला करें तो शुरु में लुकमान अलैहिस्सलाम ने इसी अंदाज और तरबीयत का ख्याल रखते हुए अपने बेटे की तरबीयत की। 

1. सबसे पहला सबक जो लुकमान (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ने अपने बेटे को सिखाया वह अल्लाह ताला के साथ किसी को शरीक ना बनाने की है जैसा कि अल्लाह ताला फरमाते हैं:

وَ اِذۡ قَالَ لُقۡمٰنُ لِابۡنِہٖ وَ ہُوَ یَعِظُہٗ یٰبُنَیَّ لَا تُشۡرِکۡ بِاللّٰہِ ؕ ؔاِنَّ الشِّرۡکَ لَظُلۡمٌ عَظِیۡمٌ 
याद करो जब लुक़मान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, “बेटा, ख़ुदा के साथ किसी को साझी न ठहराना,(20) सच तो ये है कि शिर्क बहुत बड़ा ज़ुल्म है।” [क़ुरआन 31:13]


लुकमान (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ने इस सबक का जिक्र फरमा कर अल्लाह ताला के बारे में मजीद खबरदार फरमाते हुए बताया कि इंसान पर अल्लाह की तरफ से सबसे ज्यादा नेक सलूक करने का हुक्म उसके मां बाप के बारे में है लेकिन वह भी अगर शि र्क करने का हुक्म आपने औलाद को दे तो उसके हुक्म की फरमा बरदारी ना करना

लिहाजा ईरशाद फरमाया:

وَ وَصَّیۡنَا الۡاِنۡسَانَ بِوَالِدَیۡہِ ۚ حَمَلَتۡہُ اُمُّہٗ وَہۡنًا عَلٰی وَہۡنٍ وَّ فِصٰلُہٗ فِیۡ عَامَیۡنِ اَنِ اشۡکُرۡ لِیۡ وَ لِوَالِدَیۡکَ ؕ اِلَیَّ الۡمَصِیۡرُ
"और ये हक़ीक़त है कि हमने इन्सान को अपने माँ-बाप का हक़ पहचानने की ख़ुद ताकीद की है। उसकी माँ ने कमज़ोरी-पर-कमज़ोरी उठाकर उसे अपने पेट में रखा और दो साल उसका दूध छूटने में लगे। (इसीलिये हमने उसे नसीहत की कि) मेरा शुक्र कर और अपने माँ-बाप का शुक्र अदा कर, मेरी ही तरफ़ तुझे पलटना है।"  [क़ुरआन 31:14]



इस् आयत में अल्लाह ताला ने बयान फरमाया कि इंसानो के लिए हुक्म है कि वह अपने वालदैन के साथ बेहतरीन सलूक करें खासतौर पर अपनी मां की अल्लाह तआला हुक्म फरमाता है कि इंसान को चाहिए कि वह अल्लाह की अजीम कुदरत मुकम्मल इल्म और आखिरत के लिए फ़िक्र मंद हो।

2. दूसरा सबक: तौहीद की सिफत अल्लाह की अजीम कुदरत और मुक्ममल इल्म की तरबियत।

3. तीसरा सबक:

یٰبُنَیَّ اِنَّہَاۤ اِنۡ تَکُ مِثۡقَالَ حَبَّۃٍ مِّنۡ خَرۡدَلٍ فَتَکُنۡ فِیۡ صَخۡرَۃٍ اَوۡ فِی السَّمٰوٰتِ اَوۡ فِی الۡاَرۡضِ یَاۡتِ بِہَا اللّٰہُ ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَطِیۡفٌ خَبِیۡرٌ 
(और लुक़मान ने कहा था कि) “बेटा कोई चीज़ राई के दाने के बराबर भी हो, और किसी चट्टान में या आसमानों या ज़मीन में कहीं छिपी हुई हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। वो बारीक से बारीक चीज़ देख लेनेवाला और ख़बर रखनेवाला है।"  [क़ुरआन 31:16]


इस आयत में भी लुकमान (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) उस मोहब्बत आमेज और पूरहिकमत अंदाज में अपने बेटे को मुखातिब किया और अल्लाह की सिफत पहचान कराई इस सिफत को बयान करते हुए अल्लाह की अजमत को पास नजर रखकर अपने जिंदगी में करने वाले हर काम की तालीम और तरबीयत को याद दिलाया कि कोई छोटे से छोटा काम है भी अल्लाह ताला के इल्म से बाहर नहीं होता ना ही उसके कुदरत से लिहाजा तुम्हारे हर नेकी और बुराई को अल्लाह आखिरत में तुम्हारे सामने पेश करेगा इसलिए हर काम को करते हुए याद रखना कि अल्लाह ताला इसे जानता है और अल्लाह के सामने मुझे इसका जवाब देना है।

4. चौथा सबक: अल्लाह की इबादत करना और पांचवां सबक: सब्र के जरिए दुनिया की हकिकी मार्फत

یٰبُنَیَّ اَقِمِ الصَّلٰوۃَ وَ اۡمُرۡ بِالۡمَعۡرُوۡفِ وَ انۡہَ عَنِ الۡمُنۡکَرِ وَ اصۡبِرۡ عَلٰی مَاۤ اَصَابَکَ ؕ اِنَّ ذٰلِکَ مِنۡ عَزۡمِ الۡاُمُوۡرِ
"बेटा, नमाज़ क़ायम कर, नेकी का हुक्म दे, बुराई से मना कर, और जो मुसीबत भी तुमपर पड़े, उसपर सब्र कर। ये वो बातें हैं जिनकी बड़ी ताकीद की गई है।" [क़ुरआन 31:17]



6. छठा सबक: आदम और खुशअखलाकी से पेश आना।

7. सातवां :सबक तकब्बुर से दूर रहना।

وَ لَا تُصَعِّرۡ خَدَّکَ لِلنَّاسِ وَ لَا تَمۡشِ فِی الۡاَرۡضِ مَرَحًا ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یُحِبُّ کُلَّ مُخۡتَالٍ فَخُوۡرٍ 
"और लोगों से मुँह फेरकर बात न कर, न अकड़कर चल, अल्लाह किसी घमण्डी और डींग मारनेवाले शख़्स को पसन्द नहीं करता।" [क़ुरआन 31:18]


 हजरत लुकमान (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) की जवानी भी दो अहम निकात की तरफ इशारा करती है:
  • सलात कायम करना (नमाज कायम करना)
  • आला तरीन कानून और इसका निफाज़ बुरे कामों से रोकना और नेक कामों की हिदायत।

8. आठवां सबक: संयम से काम लेना।

9. नवा सबक: किसी तरफ चलने से पहले कोई हदफ मुकर्रर करना यानी मनसुबाबंदी करना (प्लानिंग)।

10. दसवां सबक: गधों की तरह चीख चीख कर बात ना करना।

وَ اقۡصِدۡ فِیۡ مَشۡیِکَ وَ اغۡضُضۡ مِنۡ صَوۡتِکَ ؕ اِنَّ اَنۡــکَرَ الۡاَصۡوَاتِ لَصَوۡتُ الۡحَمِیۡرِ
"अपनी चाल में एतिदाल (बीच का रास्ता) इख़्तियार कर, और अपनी आवाज़ ज़रा धीमी रख, सब आवाज़ों से ज़्यादा बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।” "और लोगों से मुँह फेरकर बात न कर, न अकड़कर चल, अल्लाह किसी घमण्डी और डींग मारनेवाले शख़्स को पसन्द नहीं करता।" [क़ुरआन 31:19]


खुलासा कलाम: इस सूरत मुबारका में लुकमान (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) की यह नसीहत वालदैन और खास तौर पर वालदैन के लिए औलाद की तालीम और तरबीयत का असबाब मुकर्रर करने वाली है कि: 

  1. वालदेन अपनी औलाद को मोहब्बत और नरमी के साथ अल्लाह के अहकाम के मुताबिक अल्लाह के मुकर्रर करदा हुदूद में रहते हुए अल्लाह की तौहीद का सबक दें।
  2. शिरक के नुकसानात और गजालात जाहिर करें और इससे बचने की तर्बियत दें।
  3. अल्लाह की सिफत और पाकी बयान करें।
  4. अल्लाह की मुलम्मल ताकततरीन कुदरत की पहचान कराएं।
  5. सब्र करने की तालीम दें।
  6. दुनियां की हकीकत समझाएं।
  7. आखिरत कि फिक्र उजागर करें।
  8. गुरुर और तकब्बुर से बाज रहने की नसीहत देते रहें.।
  9. खुश अखलाकी की तालीम दें।
  10. ज़िंदगी में अपनी चाल व रफ्तार को बामकसद बनाने की तर्बियत दें।
  11. जानवरों जैसी हरक़त और आदत से दूर रखने की कोशिश करते रहें।

इन सब बातों की ताकीद फरमाते हुए अल्लाह तबारक वा तआला इस आयत में फरमाते हैं:

"يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِ شَيْئًا إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ"
"ऐ लोगों! अपने रब की नाफरमानी और अजाब) से बचो और उस दिन से डरो जिस दिन बाप अपने औलाद के बदले काम न आ सकेगा और न ही औलाद अपने बाप से कोई (तकल्लुफ या अजाब वगैरह) दूर कर सकेगी बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है इसलिए तुम लोगों को दुनियां की जिंदगी किसी धोखे में न डाले और न तुम लोगों को अल्लाह के बारे में कोई धोखा होने पाए।" [क़ुरआन 31: 33]


"إِنَّ اللَّهَ عِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًا وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ"
"बेशक सिर्फ अल्लाह ही के पास ( कयामत वाके होने के वक्त और इसमें होने वाले फैसलों और मुकम्मल अहवाल)का इल्म है और बेशक सिर्फ अल्लाह ही बारिश नाजिल फरमाता है और बेशक सिर्फ अल्लाह ही जानता है कि बच्चेदानी में क्या है और कोई जान यह नहीं जानती कि वह कल क्या कमाएंगे और कोई जान यह नहीं जानती कि कौन सी जगह मरेंगे बेशक अल्लाह बहुत ही इल्म रखने वाला और बहुत ही खबर रखने वाला है।" [क़ुरआन 31: 34]


यह वह अहम और बुनियादी अकायिद और अहकाम हैं जिनकी तालीम और तरबियत देना वालदेन और खास तौर पर वालिद पर वाजिब है इसलिए वालदैन को चाहिए कि अपने औलाद की तरबियत कुरान की रोशनी में करें और अपने औलाद की शख्सियत की बुनियाद अल्लाह की जात और सिफात और तौहीद की पहचान उस पर ईमान और अल्लाह के फरमान पर कायम रहे।
हम अल्लाह की रहमतों पर उसे सजदा क्यों न करें कि वह बहुत बड़ा रहमान है।
हम अल्लाह की रहमतो की शुक्रगुजार क्यों ना हो कि अल्लाह ने वाकई यह दुनिया खूबसूरत बनाई।🤲🕋
अल्लाह तबारक वा तआला हर मुसलमान को कुरान और सुन्नत पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। 🤲 आमीन
जज़ाक अल्लाह खैर



मुसन्निफ़ा (लेखिका): फ़िरोज़ा खान




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...