निकाह से मुतअल्लिक अहम मालूमात
C. निकाह के बाद (After Nikah) (पार्ट - 4)
xv. औलाद की अच्छी तर्बियत करना:
औलाद की तर्बियत शादी से पहले दूल्हा दुल्हन के इंतिख़ाब से ही शुरू हो जाती है। इब्न क़य्यिम रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:
जिस ने अपनी औलाद की अच्छी तर्बियत करने में कोताही की और उसको नज़रअंदाज़ कर दिया, तो उस ने बहुत बड़ी ग़लती की, क्यों के औलाद में अक्सर फ़साद वालिदैन ही की तरफ़ से आता है, और अगर उन्हों ने बेपरवाही से काम लिया और दीन के फ़राइज़ ओ सुन्नन की तालीम न दी तो ऐसी औलाद न तो अपने आप को फ़ायदा दे सकेगी, और न अपने वालिदैन के लिए ख़ैर का ज़रिया साबित होगी।
एक बाप ने अपने बेटे को उसकी बद-सुलूकी पर डांटा तो उस ने कहा: अब्बू जान! आप ने बचपन में मेरा हक़-ए-ख़िदमत अदा नहीं किया तो मैंने बड़े हो कर नाफ़रमानी की है, आप ने मुझे बचपन में ज़ाया किया तो मैं आपको बुढ़ापे में ज़ाया कर रहा हूँ।
एक अहम बात यह भी है के तर्बियती क़त्ल (अदम तर्बियत) जिस्मानी क़त्ल से बड़ा है। (अल-फ़ित्नह अशद्दु मिनल क़त्ल – बक़रह: 191)
xvi. औलाद की अच्छी तर्बियत न करने के नुक़्सानात:
- वालिदैन इंतिक़ाल के बाद औलाद की दुआओं से महरूम रहेंगे।
- वो वालिदैन मुआशरे में इज़्ज़त की निगाह से नहीं देखे जाते।
- मुख़्तलिफ़ हालात में वालिदैन को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा।
- बुढ़ापे में बच्चों के सुकून से महरूम और उनके धोखे से दो-चार।
- बच्चों का विरासत के मसले को ले कर लड़ना और झगड़ना।
- अदम तर्बियत-याफ़्ता बच्चे अपने निकाह के बाद अज़दवाजी ज़िंदगी को बरक़रार नहीं रख सकते हैं।
- ख़ानदान में जो इख़्तिलाफ़ात चले आ रहे हैं उन का बाक़ी रहना और मजीद बढ़ना।
- क़ौम ओ मिल्लत के सरमाये का नुक़्सान।
- क़यामत के दिन अल्लाह की बाज़-पुर्स।
- वो वालिदैन धोखा देने वाले हैं जो अपने बच्चों की सही तर्बियत नहीं करते।
- बाप के जनाज़े पर बच्चा दुआ याद न हो तो पढ़ेगा कैसे?
xvii. रिश्तों में मोहब्बत कैसे पैदा करें?
(अरबा’ईन उसरिय्यह – 40 Family Guidelines)
- एक दूसरे को सलाम करें। (मुस्लिम: 54)
- उन से मुलाक़ात करने जाएं। (मुस्लिम: 2567)
- उन के पास बैठने उठने का मामूल बनाएँ। (लुक़मान: 15)
- उन से बात-चीत करें। (मुस्लिम: 2560)
- उन के साथ लुत्फ़ ओ मेहरबानी से पेश आएं। (सुन्नन तिर्मिज़ी: 1924, सहीह)
- एक दूसरे को हदिया ओ तोहफ़ा दिया करें। (सहीह अल-जामिः 3004)
- अगर वो दावत दें तो क़ुबूल करें। (सहीह मुस्लिम: 2162)
- अगर वो मेहमान बन कर आएं तो उनकी ज़ियाफ़त करें। (तिर्मिज़ी: 2485, सहीह)
- उन्हें अपनी दुआओं में याद रखें। (मुस्लिम: 2733)
- बड़ों की इज़्ज़त करें। (सुन्नन अबू दाऊद: 4943, तिर्मिज़ी: 1920, सहीह)
- छोटों पर शफ़क़त करें। (सुन्नन अबू दाऊद: 4943, तिर्मिज़ी: 1920, सहीह)
- उनकी खुशी ओ ग़म में शरीक हों। (सहीह बुख़ारी: 6951)
- अगर किसी बात में मदद चाहिए हो तो उनकी मदद करें। (सहीह बुख़ारी: 6951)
- एक दूसरे के ख़ैर-ख़्वाह बनें। (सहीह मुस्लिम: 55)
- अगर वो नसीहत तलब करें तो उन्हें नसीहत करें। (सहीह मुस्लिम: 2162)
- एक दूसरे से मशवरा करें। (आल-ए-इमरान: 159)
- एक दूसरे की ग़ीबत न करें। (हुजुरात: 12)
- एक दूसरे पर तअ’न न करें। (हुमज़ह: 1)
- पीठ पीछे बुराइयाँ न करें। (हुमज़ह: 1)
- चुगली न करें। (सहीह मुस्लिम: 105)
- बुरे नाम न निकालें। (हुजुरात: 11)
- ऐब न लगाएँ। (सुन्नन अबू दाऊद: 4875, सहीह)
- एक दूसरे की तकलीफ़ों को दूर करें। (सुन्नन अबू दाऊद: 4946)
- एक दूसरे पर रहम खाएँ। (तिर्मिज़ी: 1924, सहीह)
- दूसरों को तकलीफ़ दे कर मज़े न उठाएँ। (सूरह मुतफ़्फ़िफ़ीन से सबक़)
- नाजायज़ मुसाबक़त न करें। किसी को गिरा कर आगे बढ़ना बुरी आदत है। (सहीह मुस्लिम: 2963)
- नेकियों में सबक़त और तनाफ़ुस जायज़ है जब तक तकब्बुर, रिया ओ तहीक़ीर का अमल न हो। (मुतफ़्फ़िफ़ीन: 26)
- तमअ’, लालच और हिर्स से बचें। (तकासुर: 1)
- ईसार ओ क़ुर्बानी का जज़्बा रखें। (हश्र: 9)
- अपने से ज़्यादा आगे वालों का ख़याल रखें। (हश्र: 9)
- मज़ाक़ में भी किसी को तकलीफ़ न दें। (हुजुरात: 11)
- नफ़ा-बख़्श बनने की कोशिश करें। (सहीह अल-जामिः 3289, हसन)
- एहतेराम से बात करें। सख़्त लहजा इख़्तियार न करें। (आल-ए-इमरान: 159)
- ग़ायबाना अच्छा ज़िक्र करें। (तिर्मिज़ी: 2737)
- ग़ुस्सा को कंट्रोल में रखें। (सहीह बुख़ारी: 6116)
- इंतिक़ाम लेने की आदत से बचें। (सहीह बुख़ारी: 6853)
- किसी को हक़ीर न समझें। (सहीह मुस्लिम: 91)
- अल्लाह के बाद एक दूसरे का भी शुक्र अदा करें। (सुन्नन अबू दाऊद: 4811, सहीह)
- अगर बीमार हों तो अय्यादत को जाएँ। (तिर्मिज़ी: 969, सहीह)
- अगर किसी का इंतिक़ाल हो जाए तो जनाज़े में शिरकत करें। (मुस्लिम: 2162)
फूल उठाने पर महक और ग़लाज़त उठाने पर बदबू आती है, अच्छी और बुरी मजलिसों की मिसाल ऐसी ही है, अल्लाह हमें रिश्ते ख़ैर से निभाने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
Note: शादी से पहले या दौरान या बाद महफ़िलों का सिलसिला जारी रहता है, लिहाज़ा महफ़िलों में अल्लाह का ज़िक्र और दुरूद पढ़ने का माहौल बनाएँ (इंफ़िरादी तौर पर), और तोहमत, ग़ीबत, मज़ाक़ उड़ाने और लघ्व बातों से परहेज़ करें, और इख़्तिताम-ए-मजलिस पर ये दुआ पढ़ें ताकि मजलिस का कफ़्फ़ारा हो जाए:
“ऐ अल्लाह! तू पाक है, और तू अपनी सारी तारीफ़ों के साथ है, नहीं है माबूद बर्हक मगर तू ही, और मैं तुझ से ही मग़फ़िरत चाहता हूँ और तेरी ही तरफ़ रुजू करता हूँ।” (तिर्मिज़ी: 3433)

0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।