Nikah ke Baad (Part 3) | Kamiyab Azdawaji Zindagi Ki Kunji

Nikah: Kamiyab Azdawaji Zindagi Ki Kunji


निकाह से मुतअल्लिक अहम मालूमात

C. निकाह के बाद (After Nikah) (पार्ट - 3)

x. लम्हा फ़िक्रिया और सबक:

  • हमने आसान चीज़ को मुश्किल बना दिया।
  • निकाह के रस्म-ओ-रिवाज में बे-जा़ खर्च, तैयारी और कमाई के लिए 5 साल इंतज़ार,
  • और फिर अगले 5 साल कर्ज़ चुकाने में गुज़र गए।
  • शादी, सादी हो न कि बरबादी!

उमर दराज़ मांग के लाए थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में।

नोट: 

  • निकाह का तअल्लुक रिश्तों के क़याम से है, इस लिए हुक़ूक़-उल-वालिदैन और दूसरे रिश्तों का ज़िक्र याद-दिहानी के लिए किया जा रहा है।
  • अल्लाह के फ़ज़्ल के बाद वालिदैन की मोहब्बत और सरपरस्ती से तुम शादी की उम्र को पहुँच गए,
  • अल्लाह का एहसान मानो और वालिदैन का शुक्रिया अदा करो।

xi. वालिदैन के हुक़ूक़:

  1. वालिदैन का एहतराम करो – (बनी इस्राईल: 23-24)
  2. उनका हुक्म मानो – (लुक़मान: 14-15)
  3. उनके साथ हुस्न-ए-सुलूक से पेश आओ – (अबू दाऊद: 5143)
  4. उनकी ज़रूरत का ख़याल रखो – (बक़रह: 215)
  5. उनको गाली न दो – (मुस्लिम: 313)
  6. उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ करो – (बनी इस्राईल: 24)

xii. ऐसे काम जो वालिदैन को तकलीफ़ देते हैं (और जिनसे बचना वाजिब है):

  1. उन्हें रुलाना
  2. उन्हें डराना
  3. उनके दिलों में उदासी भर देना
  4. उन्हें आँखें दिखाना
  5. उनकी नाफ़रमानी
  6. उनकी बात का इंकार
  7. अपने मसाइल से उन्हें परेशान करना
  8. उनके साथ कंजूसी का रवैया
  9. अपने एहसानात जताना
  10. उनकी मौत की तमन्ना करना

(Ref: अल-बिर्र वस-सिलह – शैख़ सालेह अल-फ़ौज़ान)

xiii. रिश्ते-नाते की अहमियत:

1. रिश्ते अल्लाह ने बनाए हैं, ये अल्लाह की बहुत बड़ी नेअमत है। इसी लिए इनको जोड़े रखने की सख़्ती से तालीम दी गई है।

जैसा कि फ़रमान है: "जो कोई ये चाहे कि उसके रिज़्क़ में फ़राख़ी और कुशादी हो, और दुनिया में उसके क़दम ता दीर रहें (यानि उसकी उम्र दराज़ हो) तो वो अपने रिश्तों को जोड़े रखे।" (सहीह बुख़ारी: 5985)

"रहम करने वालों पर रहमान (अल्लाह) रहम करता है। लिहाज़ा तुम ज़मीन वाली मख़लूक़ के साथ रहम का मामला करो, आसमान वाला तुम पर रहम फ़रमाएगा।" (सुनन अबी दाऊद: 4941)

2. अस्ल सिलह-रेहमी ये बयान की गई कि जब रिश्ते टूटने लगें तो उसे और मज़बूती से थाम लो।

जैसा कि बयान है: "वो आदमी सिलह-रेहमी का हक़ अदा नहीं करता जो बदले के तौर पर सिलह-रेहमी करता है, सिलह-रेहमी का अस्ल हक़ अदा करने वाला दरअस्ल वो है जो उस हालत में भी सिलह-रेहमी करे जब उसके क़राबतदार उसके साथ क़ता-रेहमी (और हक़-तल्फ़ी) का मामला करें।" (सहीह बुख़ारी: 5991)

3. जो बंदा रिश्ते जोड़ने में लगा रहे, अल्लाह की मदद उसके शामिल-ए-हाल रहेगी: "ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे कुछ रिश्तेदार हैं, मैं उनसे जुड़ता हूँ लेकिन वो मुझसे कटते हैं, मैं उनके साथ अच्छा सुलूक करता हूँ वो मेरे साथ बुरा सुलूक करते हैं।"

फ़रमाया: "अगर यही बात है जो तुमने बयान की, तो तुम उनका मुँह ख़ाक से भरते हो, जब तक तुम इसी तरीक़े पर क़ारबंद रहोगे, अल्लाह की तरफ़ से बराबर तुम्हारे लिए मददगार (फ़रिश्ता) रहेगा।" (सहीह मुस्लिम: 2558)

4. और जो क़ता-रेहमी करे उसके लिए वईद बयान की गई है:

"रिश्ता अर्श से लटका हुआ है, तो अल्लाह ने फ़रमाया: जो तुझे जोड़ेगा मैं उसे जोड़ूँगा, और जो तुझे काटेगा मैं उसे काटूँगा।" (सहीह बुख़ारी: 5988)

"क़ता-रेहमी करने वाला जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।" (सहीह बुख़ारी: 5984)

"अल्लाह उस पर रहम नहीं करता, जो लोगों पर रहम नहीं करता।" (सहीह बुख़ारी: 7376)

"रहम का जज़्बा बदबख़्त के सिवा और किसी के दिल से नहीं निकाला जाता।" (सुनन तिर्मिज़ी: 1923)

xiv. तलब-ए-औलाद की दुआएँ:

औलाद के लिए दुआ और नज़र-ए-बद से बचाव:

1. (अल-फ़ुरक़ान: 74)
رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا
ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें हमारी बीवियों और औलाद से आँखों की ठंडक अता फ़रमा, और हमें मुत्तक़ियों का पेशवा बना।

2. (इब्राहीम: 40)
رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِن ذُرِّيَّتِي : رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ
ऐ मेरे पालने वाले! मुझे नमाज़ का पाबंद बना और मेरी औलाद में से भी, ऐ हमारे रब! मेरी दुआ क़बूल फ़रमा।

3. (इब्राहीम: 35)
وَاجْنُبْنِي وَبَنِيَّ أَن نَّعْبُدَ الْأَصْنَامَ
मुझे और मेरी औलाद को बुत-परस्ती से पनाह दे।

(साफ़्फ़ात: 100)
رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ
ऐ मेरे रब! मुझे नेक बख़्त औलाद अता फ़रमा।

4. (आल-ए-इमरान: 38)
رَبِّ هَبْ لِي مِن لَّدُنكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً إِنَّكَ سَمِيعُ الدُّعَاءِ
ऐ मेरे परवरदिगार! मुझे अपने पास से पाकीज़ा औलाद अता फ़रमा, बेशक तू दुआ सुनने वाला है।

5. (अहक़ाफ़: 15)
رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَى وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَصْلِحُ لي فِي ذُرِّيَّتِي إِنِّي تُبْتُ إِلَيْكَ وَإِنِّي مِنَ الْمُسْلِمِينَ
ऐ मेरे परवरदिगार! मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं तेरी उस नेअमत का शुक्र अदा करूँ जो तूने मुझ पर और मेरे माँ-बाप पर की है, और ये कि मैं ऐसे नेक आमाल करूँ जिनसे तू राज़ी हो जाए, और मेरी औलाद भी सालेह बना, मैं तेरी तरफ़ रुजू करता हूँ और मैं मुसलमानों में से हूँ।

Note: ज़िद्दी बच्चों को सालेह, संजीदा और अच्छे बनाने के लिए ये दुआ बहुत मुफ़ीद है बि-इज़्निल्लाह।

6. बच्चों पर रुक़्या करते रहिए: (सहीह बुख़ारी: 3371)
أعُوْذُ بِكَلِمَاتِ اللّٰهِ التَّامَّةِ، مِن كُلِّ شيْطَانٍ وَهَامَّةٍ، وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لَامَّةٍ
मैं पनाह मांगता हूँ अल्लाह के पूरे पूरे कलिमात के ज़रिए हर एक शैतान से, हर ज़हरीले जानवर से, और हर नुक़सान पहुँचाने वाली नज़र-ए-बद से।

7. और अपने रिश्ते की हिफ़ाज़त के लिए: "आऊज़ु बिल्लाहि मिनल-'अैन" पढ़ते रहिए।


जमा व तरतीब: शेख अरशद बशीर उमरी मदनी हाफिजहुल्लाह
हिंदी तर्जुमा : टीम इस्लामिक थिओलॉजी 


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