निकाह से मुतअल्लिक अहम मालूमात
C. निकाह के बाद (After Nikah) (पार्ट - 1)
i. निकाह की रात के आदाब:
1. बीवी को कोई तोहफ़ा देना। (इरवा अल-ग़लील: 1601)
2. बीवी की दिलजोई के लिए कुछ खाने को पेश करना – ख़ासकर दूध। (अहमद: 27591)
3. बीवी के सर पर हाथ रख कर दुआ-ए-बरकत करना:
2. बीवी की दिलजोई के लिए कुछ खाने को पेश करना – ख़ासकर दूध। (अहमद: 27591)
3. बीवी के सर पर हाथ रख कर दुआ-ए-बरकत करना:
اَللّٰهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ خَيْرَهَا وَخَيْرَ مَا جَبَلْتَهَا عَلَيْهِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِهَا وَمِنْ شَرِّ مَا جَبَلْتَهَا عَلَيْهِ
"ऐ अल्लाह! मैं तुझ से इस (बीवी) की भलाई और उसकी फ़ितरत की भलाई का तलबगार हूँ। और इसके शर्र और उसकी फ़ितरत के शर्र से तेरी पनाह मांगता हूँ।" (अबू दाऊद: 2160)
4. दोनों का इकट्ठा दो रकअत नमाज़ अदा करना। (औरत पीछे और शौहर आगे हो) (मुसन्नफ़ इब्न अबी शैबह: 17156)
5. जिमा (हम-बिस्तरी) के वक्त ये दुआ पढ़े:
5. जिमा (हम-बिस्तरी) के वक्त ये दुआ पढ़े:
بِسْمِ اللّٰهِ ، اللّٰهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ ، وَجَنِّبِ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا.
"अल्लाह के नाम से (शुरू करता हूँ), ऐ अल्लाह! हमें शैतान से बचा और जो औलाद तू हमें नसीब फ़रमाए उसे भी शैतान से महफ़ूज़ रख।" (बुख़ारी: 141)
- ये दुआ पढ़ने के बाद अगर औलाद नसीब होती है तो शैतान उसे नुक़सान नहीं पहुंचा सकता।
6. दोबारा जिमा से पहले वुज़ू करना।
7. जिमा के बाद ग़ुस्ल या वुज़ू करके सोना। (आदाब-अज़्-ज़फ़ाफ़ लिल-अलबानी)
7. जिमा के बाद ग़ुस्ल या वुज़ू करके सोना। (आदाब-अज़्-ज़फ़ाफ़ लिल-अलबानी)
ii. ग़ुस्ल-ए-जनाबत का तरीका (मुस्लिम: 332)
- हाथों को धोकर अपनी शर्मगाह और जहाँ जहाँ नपाकी लगी हो उसे धो लें।
- फिर मुकम्मल वुज़ू करें।
- पैर वुज़ू के आख़िर में धो लेना या ग़ुस्ल के आख़िर में – दोनों तरीके जाइज़ हैं।
- फिर तीन मर्तबा चुल्लू भरकर सर पर पानी डालें और सर का मसह करें ताकि बालों की जड़ तक तर हो जाए।
- औरतों के लिए ग़ुस्ल-ए-जनाबत के लिए बाल खोलना ज़रूरी नहीं, लेकिन हैज़ और निफ़ास के ग़ुस्ल में बालों को खोलना ज़रूरी है।
- फिर अपने जिस्म की दायीं (right) जानिब और फिर बायीं (left) जानिब पानी बहाए।
iii. वलीमा की दावत
- वलीमा करना वाजिब है। (बुख़ारी: 5167, शैख़ इब्न बाज़)
- वलीमा की दावत क़ुबूल करना वाजिब है, इल्ला ये कि कोई उज़्र-ए-शरई या मजबूरी हो। (बुख़ारी: 5173)
- बिना वजह वलीमा की दावत क़ुबूल न करना मआसियत है। (बुख़ारी: 5177)
- वलीमा में ग़रीबों और मोहताजों को भी दावत देनी चाहिए। (मुस्लिम: 1432)
- वलीमा फ़ौरन अक़्द-ए-निकाह के बाद, जिमा से पहले या जिमा के बाद किया जा सकता है। (शैख़ सालेह फ़ौज़ान) लेकिन अगर ख़लवत-ए-सहीहा के बाद वलीमा किया जाए तो इख़्तिलाफ़ से बाहर निकल जाते हैं, और ये मुस्तहब है। (सफ़ीयुर्रहमान मुबारकपुरी – शरह बुलूग़ अल-मराम)
- जिन सूरतों में दावत-ए-वलीमा क़ुबूल नहीं की जा सकती: अगर वलीमा की दावत में मुनकरात (जैसे गाना बजाना, रक़्स वग़ैरह) का इंतज़ाम हो।
iv. शौहर के हक़ूक़:
- हक़-ए-जौजिय्यत की अदाईगी। (तिर्मिज़ी: 1160)
- शौहर की क़वामियत को तस्लीम करे। (सूरह निसा: 34, तिर्मिज़ी: 1159)
- शौहर की इताअत करे (इस्लामी दायरे में)। (इब्न हिब्बान: 4163)
- शौहर के लिए मददगार बने (इस्लामी हदूद में)। (तिर्मिज़ी: 1163)
- ग़म, तकलीफ़ और बुरे हालात में एक-दूसरे के लिए तसल्ली का ज़रिया बने। (बुख़ारी: 2297)
- शौहर की ग़ैर मौजूदगी में अपनी इज़्ज़त और उसके माल की हिफ़ाज़त करे। (हाकिम: 2682)
- बिना उज़्र-ए-शरई शौहर की इजाज़त के बग़ैर उसका माल खर्च न करे। (तिर्मिज़ी: 670)
- अपना माल खर्च करते वक्त शौहर से मशवरा लेना बेहतर है ताकि माहौल खुशगवार बना रहे। (अबू दाऊद: 3547)
- शौहर अगर नापसंद करे तो उस शख्स को घर में दाख़िल न होने दे। (बुख़ारी: 5195)
- शौहर की नाशुक्री से परहेज़ करे। (बुख़ारी: 304)
- शौहर की इजाज़त के बग़ैर नफ़्ल रोज़ा न रखे। (बुख़ारी: 5195)
- घर से बाहर निकलना हो तो शौहर की इजाज़त का ख़याल रखे। (सूरह अहज़ाब: 33)
- अगर शौहर को घर तब्दील करना हो तो उसका साथ दे। (सूरह तलाक़: 6)
- शौहर को ये हक़ हासिल है कि वो एक वक्त में चार तक बीवियां रख सकता है। (सूरह निसा: 3)
- हक़-ए-तलाक़ (ज़ुल्म व सितम का इस्लामी हल) – बिना वजह तलाक़ देना क़यामत के दिन पूछ का सबब बनेगा। (सूरह तलाक़: 1)
- हक़-ए-विरासत (शौहर का बीवी के माल में हिस्सा) (सूरह निसा: 12)
v. बीवी के हक़ूक़:
- हक़-ए-जौजिय्यत की अदाईगी। (बुख़ारी: 1975)
- अय्याम-ए-महवारी (हैज़) में इज्तिनाब। (बक़रह: 222)
- रमज़ान के दिनों में रोज़े की हालत में इज्तिनाब। (बुख़ारी: 1937)
- दबर (पीछले रास्ते) में जिमा से इज्तिनाब। (अबू दाऊद: 1894)
- महर की अदाईगी (क़वामियत का तक़ाज़ा)। (निसा: 4)
- रिहाइश का बंदोबस्त (क़वामियत का तक़ाज़ा)। (तलाक़: 6)
- नान-ओ-नफ़क़ा का बंदोबस्त (क़वामियत का तक़ाज़ा)। (तलाक़: 7)
- कपड़ों का बंदोबस्त। (अबू दाऊद: 2142)
- हुस्न-ए-सुलूक। (निसा: 19)
- बीवी के लिए मददगार बने। (बुख़ारी: 676)
- ग़म, तकलीफ़ और बुरे हालात में तसल्ली का ज़रिया बने। (बुख़ारी: 2297)
- बीवी की इज़्ज़त व आब्रू की हिफ़ाज़त। (सहीह अल-जामी’: 3314)
- बीवी को ज़रूरी हद तक तालीम हासिल करने की इजाज़त दे। (तहरीम: 6)
- अगर एक से ज़्यादा बीवियां हों तो उनमें अदल व इंसाफ़ करे। (निसा: 3)
- नाराज़गी की सूरत में बीवी को घर से न निकाले। (इब्न माजा: 1850)
- हक़-ए-ख़ुलअ (ज़ुल्म व सितम का इस्लामी हल)। (बुख़ारी: 5273)
- ज़रूरत के वक्त बीवी को ख़ुलअ का हक़ हासिल है।
- बिना वजह ख़ुलअ तलब करना निफ़ाक़ की अलामत है।
- हक़-ए-विरासत। (निसा: 12)
- तलाक़ की सूरत में इज़्ज़त के साथ रुख़्सत करे, ज़लील न करे। (बक़रह: 231)
जमा व तरतीब: शेख अरशद बशीर उमरी मदनी हाफिजहुल्लाह
हिंदी तर्जुमा : टीम इस्लामिक थिओलॉजी
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