निकाह से मुतअल्लिक अहम मालूमात
B. निकाह के दौरान (During Nikah) (पार्ट - 1)
i. अरकान-ए-निकाह (3)
- दोनों ज़ौजैन का वुजूद और उनका हराम रिश्ते से पाक होना।
- इजाब (वली का कहना: "मैं इसका निकाह इससे करता हूँ")।
- क़ुबूल (लड़का का कहना: "मैं क़ुबूल करता हूँ") (सालेह फ़ौज़ान – अल-मुलख़स अल-फ़िक़ही)
ii. शरूत-ए-निकाह (4)
- तअय्युन: लड़का/लड़की का इज़हार।
- दोनों की रज़ामंदी (क़वारी/बाकिरह की ख़ामोशी भी रज़ामंदी है) (मुस्लिम: 1421)।
- वली की इजाज़त ज़रूरी (अबू दाऊद: 2085)।
- दो आदिल गवाह (सहीह अल-जामि: 7557)।
iii. वाजिबात-ए-निकाह (2)
- मेहर (अन-निसा: 4) (एक क़ौल के मुताबिक़ ये शर्त है)।
- वलीमा (बुख़ारी: 5155)।
iv. वली कैसा हो?
मर्द, बालिग़, आक़िल, आज़ाद, मुस्लिम, आदिल, अमीन और समझदार।
v. ऐलान-ए-निकाह:
शरीअत में इसका ताक़ीद़ी हुक्म है।
vi. निकाह के मुबाहात:
- अच्छा लिबास पहनना।
- ग़ैर ज़रूरी बालों की सफ़ाई।
- अपनी इस्तिताअत में वलीमा।
- निकाह और रुख़्सती या विदाई अलग करना जाइज़ है।
- बिना फ़ितने के छोटी बच्चियाँ दफ़ बजा सकती हैं ख़वातीन में और ऐसे अश्आर पढ़ सकती हैं जो फ़हश और शिर्क से पाक हों।
vii. निकाह के दौरान नसीहतें और अहम तालीमात:
दूल्हा और दुल्हन को इन अल्फ़ाज़ में मुबारकबाद दें: (अबू दाऊद: 2130)
بارَكَ اللهُ لَكَ وَبارَكَ عَلَيْكَ وَجَمَعَ بَيْنَكُمَا فِي خَيْرٍ
नुक़्ता अव्वल: जो तुम्हारे हक़ूक़ हैं और जो तुम्हारी ज़िम्मेदारियाँ हैं अल्लाह दोनों में बरकत नाज़िल फ़रमाए और नुक़सान से बचाए।
नुक़्ता द्व्वम: मुफ़ीक़ हालात में ख़ैर हासिल हो, मुख़ालिफ़ हालात में शर से महफ़ूज़ रहो और ख़ैर पर दोनों जमा रहो।
- शादी के मौके पर न्योता/गिफ़्ट देने को ज़रूरी समझना ग़लत है, अलबत्ता खुशी से जाइज़ है।
- लड़के वाले ज़्यादा लोग लेकर लड़की वालों पर बोझ न डालें।
- जहेज़ की डिमांड और दावतों की डिमांड अगर लड़की वालों पर बोझ है जिसकी वजह से वो लड़की की शादी नहीं कर पा रहे हैं तो ये सरासर ज़ुल्म और हराम है।
- बनावट/सिंगार हलाल तरीक़ों से हो, वुज़ू और नमाज़ से रोकने वाले बनाओ सिंगार से भी बचें और बेहयाई से भी बचें।
- बे-पर्दगी से बचें।
- इस्तिताअत में रहकर वलीमा करना और मेहर कम से कम रखना ख़ैर का काम है (सहीह अल-जामि: 3300)।
- आज के दौर में निकाह लाखों में हो रहा है जबकि असल में मेहर की मुख़्तसर सी रक़म और वलीमा की मुख़्तसर सी दावत चंद सौ रुपयों में हो जाती है।
- जहाँ सब लोग जमा हो सकते हों वहाँ निकाह किया जा सकता है, चाहे वह मस्जिद हो या ग़ैर मस्जिद।
- पलकों के बाल उखाड़ना जाइज़ नहीं, सिवाय इसके कि वो नफरत अंगेज़ या माहीब लग रहे हों या ज़रररसां हों, तो इलाज की नीयत से इतना काट सकते हैं कि ऐब और ज़रर दूर हो जाए। (इब्न बाज़)
- 40 (चालीस) दिन से ज़्यादा नाख़ून या बाल न बढ़ाएँ। (मुस्लिम: 258)
- ग़ैर महरम की मौजूदगी में औरत का घुंघरू बाँधना जाइज़ नहीं। (नूर: 31)
- काले रंग के ख़िज़ाब से बचना चाहिए। (मुस्लिम: 2102)
- धोखा और ख़ियानत से हर मरहले में बचना चाहिए। (मुस्लिम: 102)
- मर्द के लिए चाँदी की अंगूठी पहनना जाइज़ है। (अहमद: 6518)
- मर्द के लिए सुरमा लगाना जाइज़ है। (सिलसिला सहीह: 633)
- मेहर मुअज्जल (बाद में) की भी इजाज़त है लेकिन मेहर मुअज्जल (फ़ौरन) अदा करने पर उभार दिया गया है। (बुख़ारी: 5126)
- औरत अपना मेहर माफ़ भी कर सकती है। (निसा: 3)
- हुकूमती रस्मी और क़ानूनी कार्रवाई, लिखाई में सुस्ती और काहिली न करें, और दस्तावेज़ात संभालकर रखें। (बक़रह: 282, माइदा: 1)
- अक़्द-ए-निकाह और रुख़्सती में वक़्त की मोहलत दे सकते हैं।
- दीनी कुफ़्व का ख़याल रखा जाए। इसलिए मुसलमान लड़की ग़ैर मुस्लिम से निकाह न करे और मुसलमान मर्द ग़ैर किताबिया से निकाह न करे। इसकी रौशनी में बे-नमाज़ी, बद-दीन और बद-किरदार से परहेज़ करें।
- वो ऐब जो अज़दवाजी तअल्लुक़ात के लिए रुकावट बनें और इसी तरह वो मुहलिक बीमारियाँ जो मुतअद्दी (infectious) हों – न छुपाएँ, बल्कि “क़ूलू क़ौलं सदीदा” पर अमल किया जाए और अहल-ए-इल्म से मशवरा लिया जाए। (मजमूअ फ़तावा इब्न तैमिय्या: 32/61)
- मेहर की क़लील और कसीर मिक़दार शरीअत ने मुतअय्यन नहीं की, जो भी रज़ामंदी से तय पाए जाइज़ है। अलबत्ता कम मेहर बरकत की ज़मानत है। (सिलसिला सहीहा: 1842)
दावत-ए-वलीमा में शरीक हज़रात की दावत करने वाले के लिए दुआ:
اللّٰهُمَّ بَارِكْ لَهُمْ فِي مَا رَزَقْتَهُمْ وَاغْفِرْ لَهُمْ وَارْحَمْهُمْ
तरजुमा: अल्लाह बरकत दे इनकी रोज़ी में, और बख़्श दे इनको और रहम करे इन पर। (मुस्लिम: 2042)
اللّٰهُمَّ أَطْعِمْ مَنْ أَطْعَمَنِي، وَأَسْقِ مَنْ أَسْقَانِي
तरजुमा: ऐ अल्लाह खिला इसे जिसने मुझे खिलाया और पिला इसे जिसने मुझे पिलाया। (मुस्लिम: 2055)
أَفْطَرَ عِنْدَكُمُ الصَّائِمُونَ، وَأَكَلَ طَعَامَكُمُ الْأَبْرَارُ، وَصَلَّتْ عَلَيْكُمُ الْمَلَائِكَةُ
तरजुमा: तुम्हारे पास रोज़ेदार इफ़्तार किया करें, नेक लोग तुम्हारा खाना खाएं और फ़रिश्ते तुम्हारे लिए दुआएं करें। (अबू दाऊद: 3854)

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