तौबा का अर्थ (मफ़हूम)
1. तौबा की परिभाषा
तौबा का शाब्दिक अर्थ है "लौटना" या "पलटना"। यानी इंसान अपने गुनाहों से रुककर अल्लाह की तरफ वापस लौटे।
अल-मुफरदात फी ग़रीब अल-क़ुरआन के मुताबिक: "तौबा का मतलब है गुनाह छोड़कर अल्लाह की आज्ञा की तरफ लौट आना।"
शरई (इस्लामी) परिभाषा: शरीयत में तौबा का मतलब है:
"दिल से अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होना, जुबान से इस्तिग़फ़ार करना, गुनाह को फौरन छोड़ देना और भविष्य में फिर उस गुनाह की तरफ न लौटने का पक्का इरादा करना।"
रियाज़ उस-सालिहीन में इमाम नववी लिखते हैं:
हर गुनाह से तौबा करना फर्ज़ है। अगर गुनाह सिर्फ अल्लाह और बंदे के बीच हो तो तौबा की तीन शर्तें हैं:
- गुनाह छोड़ देना
- शर्मिंदगी (नदामत)
- भविष्य में न करने का पक्का इरादा
2. क़ुरआन में तौबा की अहमियत
i. “और तुम सब अल्लाह के सामने तौबा करो, ऐ मोमिनों! ताकि तुम सफल हो जाओ।” [सूरह नूर 24:31]
ii. “ऐ ईमान लाने वालों! अल्लाह के सामने सच्चे दिल से तौबा करो...” [सूरह तहरीम 66:8]
iii. “निःसंदेह अल्लाह उनसे मोहब्बत करता है जो तौबा करते हैं और पाकी पसंद करते हैं।” [सूरह बकरह 2:222]
iv. “कह दो: ऐ मेरे वो बंदों जिन्होंने अपनी जानों पर जुल्म किया है, अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो। अल्लाह सारे गुनाह माफ कर देता है...” [सूरह ज़ुमर 39:53]
v. “जो लोग तौबा करते हैं, ईमान लाते हैं और अच्छे अमल करते हैं, अल्लाह उनके बुरे अमल को नेकियों में बदल देता है।” [सूरह फुरकान 25:70]
vi. “वही अल्लाह है जो अपने बंदों की तौबा कबूल करता है और उनके गुनाहों को माफ कर देता है।” [सूरह अश-शूरा 42:25]
3. हदीसों की रोशनी में तौबा और उसकी व्याख्या
i. “हर इंसान से गलती होती है, और सबसे बेहतरीन वे हैं जो तौबा करते हैं।” [सुन्नन इब्न माजा: 4251 – सहीह]
व्याख्या: इंसान फितरत से कमजोर है, लेकिन अल्लाह ने उसके लिए तौबा का दरवाज़ा हमेशा खुला रखा है। सच्ची शर्मिंदगी से की गई तौबा, अल्लाह को बहुत पसंद है।
ii. “अल्लाह हर रात अपना हाथ फैलाता है ताकि दिन में गुनाह करने वाला तौबा करे, और हर दिन अपना हाथ फैलाता है ताकि रात के गुनाहगार तौबा करें।” [सहीह मुस्लिम: 2759]
व्याख्या: अल्लाह की रहमत हर समय मौजूद है। तौबा का कोई निश्चित वक्त नहीं, हर पल मौका है बस नीयत साफ होनी चाहिए।
iii. “अगर तुम गुनाह न करते, तो अल्लाह तुम्हें हटा कर ऐसी क़ौम लाता जो गुनाह करती और फिर तौबा करती।” [सहीह मुस्लिम: 2749]
व्याख्या: अल्लाह को घमंड पसंद नहीं। वो उन लोगों से प्यार करता है जो अपनी कमजोरी मानते हैं और उसके सामने झुकते हैं।
iv. “अल्लाह तौबा को तब तक कबूल करता है जब तक रूह गले तक न पहुँच जाए।” [सुन्नन तिर्मिज़ी: 3537]
व्याख्या: मौत के आने से पहले तक तौबा का दरवाज़ा खुला है। मगर आखिरी समय की तौबा बेअसर होती है। देर नहीं करनी चाहिए।
v. “अल्लाह अपने एक बंदे की तौबा से उस इंसान से भी ज़्यादा खुश होता है जो रेगिस्तान में ऊँट खो दे और फिर पा ले।” [सहीह बुखारी: 6309]
व्याख्या: अल्लाह की रहमत का इज़हार है। वो गुनाहों से लौटने वालों से बहुत प्यार करता है।
vi. “अगर किसी के पास पहाड़ों जितने भी गुनाह हों, फिर भी तौबा कर ले तो अल्लाह सब माफ कर देता है।” [सहीह मुस्लिम: 2761]
व्याख्या: गुनाह चाहे कितने भी बड़े हों, मायूस मत हो। सच्ची तौबा सब मिटा देती है।
vii. “तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उसने कभी गुनाह ही नहीं किया।” [मुस्नद अहमद: 17395]
व्याख्या: अल्लाह गुनाह को माफ ही नहीं करता, बल्कि उसे पूरी तरह मिटा देता है, बशर्ते तौबा सच्चे दिल से हो।
viii. “जब इंसान एक क़दम अल्लाह की तरफ़ बढ़ाता है, अल्लाह दो क़दम उसकी तरफ बढ़ता है।” [सहीह बुखारी: 7554]
व्याख्या: अल्लाह बहुत करीबी है, सिर्फ पहली पहल इंसान को करनी है, बाकी राहें अल्लाह आसान कर देता है।
ix. “जब कोई इंसान गुनाह करता है तो उसके दिल पर काले निशान पड़ते हैं। अगर वो तौबा करे तो वो निशान मिट जाते हैं।” [तिर्मिज़ी: 2499 – सहीह]
व्याख्या: तौबा न सिर्फ माफ़ी का ज़रिया है, बल्कि दिल की सफाई और रूह की पाकीज़गी भी है।
x. “अल्लाह तुम्हारी तौबा से उतना खुश होता है जितना कोई प्यासा इंसान पानी मिलने पर होता है।” [सहीह मुस्लिम: 2744]
व्याख्या: तौबा अल्लाह और बंदे के बीच मोहब्बत और क़ुर्बत की राह है।
4. तौबा की शर्तें
- गुनाह छोड़ना: फौरन गुनाह को बंद कर देना।
- नदामत: दिल से शर्मिंदगी और पछतावा।
- इरादा: भविष्य में उस गुनाह की तरफ न लौटने का पक्का इरादा।
- हक़ लौटाना: अगर किसी का हक़ मारा हो तो वापस करना या माफ़ी मांगना।
5. तौबा में देरी के नुकसान
- मौत किसी भी समय आ सकती है, फिर तौबा का मौका नहीं मिलेगा।
- ज़मीर मर जाता है, और दिल सख़्त हो जाता है।
- अल्लाह की रहमत से दूरी हो जाती है।
“अल्लाह तौबा को तब तक कबूल करता है जब तक रूह गले तक न पहुँच जाए।” [तिर्मिज़ी: 3537]
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