1. गुनाह किसे कहते हैं?
इस्लाम में इंसान को ऐसी ज़िंदगी गुज़ारने का हुक्म दिया गया है जो अल्लाह तआला की रज़ा के मुताबिक हो। इंसानी ज़िंदगी के रास्ते में गुनाह एक बड़ी रुकावट है, जो इंसान के रूहानी इर्तिका (आध्यात्मिक विकास) और अल्लाह के क़ुर्ब (निकटता) के सफ़र में रुकावट बनती है।
गुनाह दरअसल वे आमाल (कर्म) हैं जो इंसान के दिल और ज़ेहन पर मंफ़ी असर डालते हैं, और उनका इर्तिकाब (अंजाम देना) इंसान की दीनी व अख़लाक़ी तरक़्क़ी को मुतास्सिर करता है। गुनाह इंसान की तरफ से की जाने वाली वह नाफ़रमानी है जो अल्लाह की हिदायत के ख़िलाफ़ होती है।
2. गुनाहों की क़िस्में
इब्ने क़य्यिम रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं: "किताब व सुन्नत के नुसूस (मज़बूत सबूत), इज्मा-ए-सलफ़ (पूर्वजों की सर्वसम्मति) और अक़्ल के एतिबार से गुनाहों की तक़सीम 'सग़ाइर' (छोटे) और 'कबाइर' (बड़े) की तरफ़ होती है।" (मदारिज़ उस-सालिकीन: 1/324)
गुनाह दो क़िस्म के होते हैं:
- कबीरह गुनाह – बड़े गुनाह
- सग़ीरा गुनाह – छोटे गुनाह
i. कबीरह गुनाह – बड़े गुनाह:
वह गुनाह जिनके बारे में क़ुरआन और हदीस में सख़्त तंबीह (चेतावनी) आई हो, और जिन पर दुनिया और आख़िरत में सज़ा दी गई हो।
मिसालें:
- शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना)
- क़त्ल (ना हक किसी को मारना)
- ज़िना (हराम जिंसी ताल्लुक़)
- झूठ बोलना
- जादू करना
- सूद लेना देना
- वालिदैन की नाफ़रमानी
ii. सग़ीरा गुनाह – छोटे गुनाह:
वे गुनाह जिन पर अल्लाह तआला ने माफ़ी का वादा फ़रमाया है, बशर्ते कि इंसान कबीरह गुनाहों से बचे और तौबा करे।
मिसालें:
- मामूली झूठ
- ग़ुस्से में गलत अल्फ़ाज़ कहना
- नज़र का भटक जाना
- वक्ती ग़फ़लत
क़ुरआन में फ़रमाया गया: "अगर तुम बड़े-बड़े गुनाहों से बचते रहोगे जिनसे तुम्हें रोका गया है तो हम तुम्हारे छोटे गुनाह मिटा देंगे और तुम्हें इज़्ज़त वाली जगह दाख़िल करेंगे।" [सूरह अन-निसा: 31]
3. कबीरह गुनाहों के दर्जे
कबीरह गुनाहों के दो दर्जे हैं:
- वो जो इस्लाम से बाहर कर देते हैं, जैसे शिर्क अकबर।
- वो जो इस्लाम से बाहर नहीं करते, जैसे ज़िना, चोरी, शराब नोशी।
अबू बक्रा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े कबीरह गुनाहों के बारे में न बता दूं?" (आप ﷺ ने ये बात तीन मर्तबा फ़रमाई)
सहाबा ने अर्ज़ किया: "क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल!"
आप ﷺ ने फ़रमाया: "अल्लाह के साथ शिर्क करना, वालिदैन की नाफ़रमानी, और झूठी बात कहना या झूठी गवाही देना।" [सहीह बुखारी: 2654]
4. कबीरह और सग़ीरा गुनाहों में फ़र्क़
1. तअरीफ़ के एतिबार से: कबीरह वह गुनाह है जिस पर दुनिया या आख़िरत में हद मुक़र्रर है, और सग़ीरा वह है जिस पर हद नहीं।
2. तादाद के एतिबार से: कबीर गुनाहों की तादाद में इख़्तिलाफ़ है।
- इब्न मसऊद फ़रमाते हैं कि वो 4 हैं।
- इब्न उमर का कहना है कि वो 7 हैं।
- अब्दुल्लाह बिन अम्र से मर्वी है कि वो 9 हैं।
- सईद बिन जुबैर कहते हैं कि एक शख्स ने इब्न अब्बास से कबाएर के बारे में सवाल किया तो उन्होंने फ़रमाया कि कबीर गुनाहों की तादाद 700 के क़रीब है।
इमाम इब्न अबी अल-इज़ ने फ़रमाया: “जो शख्स कहे कि कबाएर सात हैं, या सत्तर हैं, या सत्तर के क़रीब हैं, तो ये सिर्फ़ एक दावा है।” [शरह अत-तहावीया: 527]
सही बात ये है कि कबीर और सग़ीर की कोई तादाद मुय्यन नहीं है।
4. असर के ऐतबार से: जो कबीर गुनाह का इर्तिकाब करता है, वो अदालत के दायरे से बाहर होकर "फिस्क" के दायरे में चला जाता है। यानी जो व्यक्ति बड़ा गुनाह करता है और तौबा नहीं करता, वह "फासिक" हो जाता है।
इसके बरअक्स, जो व्यक्ति सगीरा गुनाह करता है, वह अदालत के दायरे से फिस्क के दायरे में नहीं जाता, लेकिन अगर वह उस पर इसरार करे (ज़िद या लगातार करता रहे), तो वह भी उस दायरे में चला जाता है।
[शरह अल-अक़ीदा अस-सफ़ारीनिय्या: 506-507]
यह बात ज़ेहन नशीन करनी चाहिए कि ना कोई बड़ा गुनाह इस्तिग़फार (माफी माँगने) से बड़ा रहता है, और ना कोई छोटा गुनाह इसरार (जिद) से छोटा रहता है, जैसे कि
इमाम इब्न अबी अल-इज़ ने फ़रमाया: "ताहम एक अहम बात है जिस पर तवज्जुह देनी चाहिए: वो यह कि बड़े गुनाह के साथ अगर शर्म, ख़ौफ और उसकी अज़मत का एहसास हो, तो वो इसे छोटे गुनाह के बराबर बना सकता है।
और इसी तरह छोटे गुनाह के साथ अगर बेहयाई, बेपरवाही, डर का न होना और उसे हल्का समझना हो, तो वो उस गुनाह को बड़े गुनाहों में शामिल कर सकता है।"
यह मामला दिल की हालत पर मुनहसिर होता है, जो सिर्फ़ अमल तक महदूद नहीं होता बल्कि इसमें इज़ाफी एहसासात भी शामिल होते हैं, और इंसान खुद अपनी हालत और दिल की कैफ़ियत से यह जान सकता है। [शरह अत-तहावीया: 451]
5. छोटे-बड़े गुनाह (क़ुरआनी व हदीसी हवाले से)
i. शिर्क, क़त्ल, ज़िना वग़ैरह वो गुनाह हैं जिन पर सख़्त अज़ाब की वईद (चेतावनी) है:
"और वो जो अल्लाह के साथ किसी और को नहीं पुकारते, और किसी को ना हक़ क़त्ल नहीं करते, और ज़िना नहीं करते, और जो ऐसा करे वो सज़ा पाएगा।" [सूरह अल-फ़ुरक़ान: 68]
ii. शिर्क, वालिदैन की नाफ़रमानी, झूठ और झूठी गवाही को नबी ﷺ ने बड़े गुनाहों में शुमार किया है। [सहीह बुखारी: 2654; सहीह मुस्लिम: 87]
iii. ख़ून नाहक़ बहाना बड़ा गुनाह है: "किसी मुसलमान का ख़ून ना हक तौर पर बहाना सबसे बड़ा गुनाह है।" [सहीह बुखारी: 6871]
iv. नबी ﷺ ने फ़रमाया: "सात हलाक कर देने वाले गुनाहों से बचो।"
सहाबा ने पूछा: "वो कौन से हैं, या रसूलुल्लाह?"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
- अल्लाह के साथ शिर्क करना
- जादू करना
- ना हक क़त्ल
- सूद खाना
- यतीम का माल खाना
- जिहाद के दिन मैदान छोड़ देना
- पाक दामन मोमिन औरतों पर झूठा इल्ज़ाम लगाना
[सहीह बुखारी: 2766]
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