Ghair Muslims ke Islam par Etiraazat ke Jawab (Question No. 4)

Ghair-Muslims-ke-Islam-par-Etiraazat-ke-Jawab-3).

ग़ैर-मुसलमानों के इस्लाम पर एतराज़ात के जवाब


सवाल नंबर - 4

मर्द 4 शादी क्यों करता है? 

अगर एक साथ मर्द 4 बीवी रख सकता है तो औरत 4 मर्द क्यों नहीं रख सकती है ?


बहुत से गैर मुस्लिम भाई बहन जब इस्लाम को देखते हैं तो उन्हें यह बात हैरान करती है कि मर्द को एक साथ चार औरतों से शादी की इजाज़त क्यों दी गई है और औरत को चार मर्दों से शादी की इजाज़त क्यों नहीं है।

यह सवाल अहम है और इसका जवाब सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक सामाजिक और तार्किक रूप से भी दिया जा सकता है।


1. कुरआन का हुक्म

इस्लाम का पहला स्रोत कुरआन है जिसमें अल्लाह ने साफ हुक्म दिया है।

فَانكِحُوا مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثْنَىٰ وَثُلَـٰثَ وَرُبَـٰعَ.......

"अगर तुमे डर हो कि तुम यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ नहीं कर सकोगे तो फिर उन औरतों से निकाह करो जो तुमे पसंद हों दो दो तीन तीन और चार चार फिर अगर तुमे डर हो कि तुम इंसाफ नहीं कर सकोगे तो एक ही से निकाह करो या फिर अपनी मिल्कियत में मौजूद लौंडियों से यही तरीका ज्यादा मुनासिब है ताकि तुम जुल्म और झुकाव से बच सको।" [सूरह निसा  आयत 3]

इससे साफ है कि मर्द को ज्यादा से ज्यादा चार बीवियां रखने की इजाज़त है मगर शर्त यह है कि उनके साथ इंसाफ करे।


2. औरत को एक से ज्यादा शौहर रखने की मनाही क्यों

इसका जवाब बहुत सरल है अगर एक औरत चार मर्दों से निकाह कर ले तो:

  • बच्चा पैदा होने पर यह नहीं पता चलेगा कि बाप कौन है।
  • बाप की पहचान गड़बड़ हो जाएगी।
  • नस्ल में मिलावट आ जाएगी।
  • विरासत बांटने में विवाद होगा।
  • सामाजिक ताना बाना बिगड़ जाएगा।
  • बच्चा मानसिक रूप से परेशान रहेगा कि उसका बाप कौन है।
  • मर्दों के बीच जलन और मारपीट की नौबत आएगी।

जबकि अगर एक मर्द चार बीवियों से निकाह करे तो हर औरत को पता होता है कि उसका शौहर वही मर्द है और बच्चा किसका है इसमें कोई शक नहीं होता।


3. वैज्ञानिक कारण

i. साइंस कहती है कि मर्द रोजाना करोड़ों शुक्राणु पैदा करता है जबकि औरत हर महीने सिर्फ एक अंडाणु यानी egg छोड़ती है।

ii. मर्द की शरीर की बनावट उसे ज्यादा पार्टनर संभालने में मदद देती है जबकि औरत की बनावट ज्यादा रिश्तों के लिए नहीं बनी।

iii. औरत के शरीर को हर बार एक प्रेगनेंसी के बाद आराम की ज़रूरत होती है ताकि अगला बच्चा स्वस्थ पैदा हो।

iv. अगर एक औरत कई मर्दों से रिश्ता रखे तो उसके गर्भाशय में बीमारियों का खतरा बहुत बढ़ जाता है जैसे संक्रमण वगैरह।


4. सामाजिक दृष्टिकोण

इतिहास में युद्धों में मर्द बड़ी तादाद में मारे जाते थे जैसे द्वितीय विश्व युद्ध में करोड़ों मर्द मारे गए जिससे लाखों औरतें विधवा हो गईं, अगर हर मर्द सिर्फ एक औरत से निकाह करे तो लाखों औरतें बिना शौहर के रह जाएंगी।

इस्लाम इस समस्या का हल देता है कि अगर मर्द सक्षम है तो एक से ज्यादा औरतों से निकाह करे ताकि समाज में हर औरत को शौहर मिल सके। इस से अनैतिक संबंध रुकते हैं और समाज में बेहयाई कम होती है।


5. नारी की इज़्ज़त का ख्याल

इस्लाम में औरत को बहुत इज़्ज़त दी गई है वह मां है, बहन है, बीवी है, बेटी है। अगर औरत को चार मर्दों से शादी की इजाज़त दी जाती तो उसका शरीर खिलौना बन जाता।

चार मर्द एक औरत को अपनी बीवी कहें यह औरत की इज़्ज़त को गिराता है। इस्लाम औरत की हिफाजत चाहता है और इसलिए एक मर्द से ही निकाह की इजाजत देता है।


6. इंसाफ की शर्त

इस्लाम में मर्द को चार निकाह की जो इजाज़त है वह बगैर शर्त के नहीं है। कुरआन कहता है कि अगर इंसाफ नहीं कर सकते तो एक ही बीवी रखो।

فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا فَوَاحِدَةً

"अगर तुम्हे डर हो कि तुम इंसान न कर सकोगे तो एक ही पर रुक जाओ।"

इससे पता चलता है कि मर्द को इजाज़त तो मिली है मगर साथ में जिम्मेदारी और इंसाफ की पाबंदी भी रखी गई है।


7. पश्चिमी समाज का हाल

जिन समाजों में एक शौहर और एक बीवी का सिस्टम है वहां भी मर्द छुपकर कई औरतों से रिश्ते रखता है, बच्चों का पता नहीं होता कि असल बाप कौन है?

मगर इस्लाम छुपे हुए हराम रिश्तों की जगह खुला और जिम्मेदार रिश्ता देता है। इसलिए बहु पत्नी प्रथा अनैतिक नहीं बल्कि समाज की ज़रूरत है।

मर्द को चार औरतों से निकाह की इजाज़त इस्लाम ने इसलिए दी है कि

  • समाज में हर औरत की हिफाजत हो।
  • यतीम और विधवाओं को सहारा मिले।
  • नस्ल की पवित्रता बनी रहे।
  • इंसाफ और जिम्मेदारी के साथ रिश्ते चलें।
  • औरत की इज़्ज़त बनी रहे।
  • अनैतिकता का रास्ता बंद हो।

जबकि औरत को चार मर्दों से निकाह की इजाजत इसलिए नहीं दी गई क्योंकि

  • इससे नस्ल में मिलावट होगी।
  • बच्चे की पहचान खो जाएगी।
  • समाज बिगड़ जाएगा।
  • औरत की इज़्ज़त गिरेगी।
  • शरीअत की हिकमत खो जाएगी।

इसलिए इस्लाम का ये हुक्म इंसाफ पर इल्म, पर और समाज की भलाई पर आधारित है ना कि भेदभाव पर।


मुहम्मद रज़ा

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