वहन: वो बीमारी जो उम्मत को खोखला कर रही है
आज हम देख सकते हैं कि मुसलमानों की तादाद दुनियाभर में अरबों में है, लेकिन कहीं भी उनका दबदबा नहीं है।मुल्कों में जुल्म हो रहा है लेकिन दुनिया खामोश है। हमारे पास टेक्नोलॉजी, रिसोर्सेज़, नौजवान, तालीम सब कुछ है लेकिन इत्तेहाद, तक़वा और अमल की कमी है। हम अपने फ़ायदे के लिए दीन को पीछे छोड़ चुके हैं, और जब बात इस्लाम के लिए कड़े फैसले लेने की आती है तो डर, संकोच और दुनियावी नुकसान का डर आ जाता है।
रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, "करीब है कि दूसरी कौमें तुम पर ऐसे टूट पड़ेंगी जैसे भूखा खाने पर टूट पड़ता है।"
किसी ने अर्ज़ किया: क्या हम उस वक़्त बहुत कम होंगे?
रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया, "नहीं, बल्कि तुम उस दिन संख्या में बहुत ज़्यादा होगे, लेकिन तुम सैलाब के झाग की तरह हो जाओगे। अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों के दिलों से तुम्हारा ख़ौफ़ निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में 'वहन' डाल देगा।"
किसी ने पूछा: या रसूल अल्लाह ﷺ, 'वहन' क्या है?
तो आपने फ़रमाया, "दुनिया से मोहब्बत और मौत का डर।"
[अबू दाऊद: 4297]
इस हदीस में नबी ﷺ ने मुस्तकबिल में आने वाली उस हालत की तरफ इशारा किया है जब मुसलमानतादाद में बहुत ज़्यादा होंगे, लेकिन फिर भी कमज़ोर, बेअसर और ज़िल्लत में डूबे हुए होंगे। बिलकुल वैसे जैसे किसी तेज़ बहते हुए सैलाब के ऊपर झाग होती है, दिखती बहुत है लेकिन उसका कोई वज़न नहीं होता।
"तुम सैलाब के झाग की तरह होगे" इसका मतलब है कि भले ही मुसलमानों की तादाद बहुत ज़्यादा होगी, लेकिन उनका कोई असर, इज़्ज़त या ताक़त नहीं होगी। वो अपनी हालत पर काबू नहीं रख पाएँगे, और दुनिया की दूसरी ताक़तें उन पर हावी हो जाएँगी।
'वहन' का मतलब क्या है?
"दुनिया से मोहब्बत और मौत का डर" - यही वह बीमारी है जो इस ज़िल्लत और कमजोरी का सबसे बड़ी वजह है।
इस हदीस में जब रसूल अल्लाह ﷺ ने "वहन" की तफ़सील बयान की, तो उसमें दो चीज़ें बताईं:
1. दुनिया से मोहब्बत:
"दुनिया से मोहब्बत" यानी इंसान का दिल इस फानी (temporary) दुनिया की लज़्ज़तों, आरामों, और ज़ाहिरी चमक-दमक में ऐसा डूब जाना कि वो आख़िरत को भूल जाए।
लोग दीन के बजाय दुनिया के पीछे भागने लगेंगे। पैसे, शौहरत, रुतबा, आराम की ज़िंदगी ये सब इंसान की प्राथमिकता बन जाएँगे। हलाल-हराम की परवाह नहीं रहेगी, और दीन की कुर्बानी देकर दुनिया को अपनाया जाएगा।
इसका मतलब ये नहीं कि इस दुनिया में रहना या इसका इस्तेमाल करना ग़लत है, बल्कि जब कोई शख़्स:
- दुनिया के माल-ओ-दौलत को मक़सद बना ले
- हलाल-हराम की परवाह किए बिना दौलत कमाए
- दुनिया के लिए झूठ बोले, धोखा दे
- दुनिया के लिए नमाज़, ज़िक्र, और इबादत छोड़ दे
- और जब उसे आख़िरत के मुक़ाबले में दुनिया प्यारी लगे
तो ये "दुनिया से मोहब्बत" कहलाता है — और यही चीज़ इंसान को कमज़ोर, डरा हुआ, और अख़लाक़ी तौर पर गिरा हुआ बना देती है।
2. मौत का डर:
जब मौत का डर दिलों में घर कर जाता है, तो इंसान हक़ की राह पर डटकर खड़ा नहीं हो पाता। वो ज़ुल्म के सामने झुक जाता है, दावत और इस्लाह के कामों से दूर भागता है। क़ुरआन और सुन्नत पर अमल छोड़ देता है ताकि किसी को नाराज़ न कर दे। उसे इस बात का डर सताने लगता है कि अगर मौत आ गई, तो वो सब कुछ छूट जाएगा:
- माल
- औलाद
- शोहरत
- आराम
- ताक़त
- ज़िंदगी की लज़्ज़तें
- आख़िरत की तरफ़ सफ़र है।
- अल्लाह से मुलाक़ात का ज़रिया है।
- सिर्फ़ जिस्म की मौत है, रूह की नहीं।
- दुनिया के इम्तिहान से निकल कर कामयाबी का एलान है।
- हक़ बोलने से रोक दे
- जिहाद से पीछे हटा दे
- ज़ालिम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से डरा दे
- दीन के लिए कुर्बानी से रोक दे
- दिल दुनिया से चिपक जाता है
- मौत दुश्मन बन जाती है
- और फिर इंसान ज़िल्लत (humiliation) और कमज़ोरी का शिकार हो जाता है
आज के दौर से ताल्लुक़:
आज हम देखते हैं कि मुसलमान तादाद में बहुत हैं, लेकिन असर में कम हैं। उसकी एक बड़ी वजह यही है कि हम में से बहुत से लोग:
- दुनिया के पीछे भागते हैं
- दीन के हुक्मों में कोताही करते हैं
- और मौत से डरते हैं क्योंकि हमें लगता है कि सब कुछ तो इसी दुनिया में है
कुरआन में भी अल्लाह तआला फ़रमाता है:
"जो लोग दुनिया की ज़िंदगी को आख़िरत पर तरजीह देते हैं..." [सूरह इब्राहीम 14:3]
यानी जो दुनिया को सब कुछ समझ लेते हैं, वही आख़िरत में घाटे में रहते हैं।
इससे निकलने का रास्ता क्या है?
- दुनिया की मोहब्बत को दिल से निकालें।
- इस्लाम सिखाता है कि दुनिया हाथ में रखो, दिल में नहीं।
- मौत को याद रखो, लेकिन उससे डरकर नहीं, उसे तैयारी का वक़्त समझो।
- क़ुरआन और सहीह हदीस पर मज़बूती से चलो।
- इत्तेहाद और भाईचारे को अपनाओ।
- उम्मत की भलाई को सोचो।
- अपने बच्चों और नौजवानों की इस्लामी तरबियत करो, ताकि अगली नस्लें 'वहन' वाली नहीं, 'इज्ज़त और इमान' वाली बनें।
नतीजा:
जब तक हम दुनिया की मोहब्बत और मौत के डर को दिलों से नहीं निकालते, हमारी तादाद चाहे कितनी भी हो, हम 'झाग' ही बने रहेंगे। लेकिन अगर हम फिर से दीन की तरफ लौटें तो अल्लाह दुश्मनों के दिलों में फिर से हमारा रोब और इज्ज़त डाल देगा, जैसा पहले हुआ करता था।
By Islamic Theology
1 टिप्पणियाँ
बेशक अल्लाह है ❤️
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।