महशर का मैदान और गुनाहों का बोझ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
फ़रमान ए बारी ताला है ,
وَ لَیَحۡمِلُنَّ اَثۡقَالَہُمۡ وَ اَثۡقَالًا مَّعَ اَثۡقَالِہِمۡ ۫ وَ لَیُسۡئَلُنَّ یَوۡمَ الۡقِیٰمَۃِ عَمَّا کَانُوۡا یَفۡتَرُوۡنَ
"हाँ ज़रूर वो अपने बोझ भी उठाएँगे और अपने बोझों के साथ दूसरे बहुत-से बोझ भी। और क़ियामत के दिन यक़ीनन उनसे इन झूठे इलज़ामों की पूछ-गच्छ होगी जो वो लगाते रहे हैं।" [क़ुरआन 29:13]
हम इस दुनिया में जो कुछ कर रहे हैं उसका सवाल हम से महशर के मैदान में होगा और हर शख़्स को अपने गुनाहो का बोझ उठाना ही इंतिहाई मुश्किल होगा। फ़िर ऐसी हालत मे हमें दूसरो के गुनाहों का बोझ भी अपने कंधो पर उठाना पड़ेगा।
अब सवाल ये उठता है कि भला हम किसी दुसरे के गुनाहों के बोझ क्यों उठाएंगे?
सोशल मीडिया के इस दौड़ में कोई भी इंसान इस से अछूता नहीं है।
आज कल अक्सर लोग सोशल मीडिया पर स्टैटस लगाते हैं, जिसमें मूवी, सॉन्ग, ड्रामा, लड़कियों की अर्द्ध नग्न तस्वीरें, अश्लील और फहश हसी मज़ाक वाली पोस्ट वगैरह वग़ैरह।
तो याद रखिए कि गुनाह का इज़हार करना ज़्यादा बड़ा गुनाह है। अपने व्हाट्स एप और दीगर सोशल मीडिया अकाउंट, स्टैटस और स्टोरी पर सॉन्ग अपनी पिक्चर, अपने फैमिली मेंबर्स की पिक्चर शादी या किसी भी इवेंट्स की तस्वीर और म्यूजिक लगाने वालो को अपने गुनाह के साथ साथ उस स्टोरी और स्टैटस देखने वालो को भी पूरा पूरा गुनाह मिलता है और इस तरह दुसरे के गुनाहों को अपने कंधे पर उठाने का हम ख़ुद को हकदार बना लेते हैं।
अल्लाह हु अकबर
हमें इस दुनिया में अपने आने का मक़सद पता होना चाहिए।
अल्लाह रब्बुल आलमीन का फ़रमान है,
وَمَا خَلَقْتُ ٱلْجِنَّ وَٱلْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُون
"और मैने जिन्नो और इंसानो को इसलिए पैदा किया कि वह मेरी इबादत (बंदगी) करे!" [क़ुरआन 51:56]
हक़ीकी मक़सद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बंदगी कर के अपनी आख़िरत को संवारना हैं उसे कभी नहीं भूलना चाहिए और गुनाहों से बचते रहना चाहिए, हमें ऐसी चीजों से बचना चाहिए जो दूसरों को भी गुनाहों में मुब्तला कर दे और उसका बोझ हमें और आप को महशर में उठाना पड़े।
अल्लाह हम सब को सीधे रास्ते पर चलाए और ईमान पर क़ायम रखे।
आमीन
फ़िरोज़ा
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।