अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13w)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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17. वफ़ात
1, दीन मुकम्मल हो गया और रब से मुलाक़ात का समय आ गया
जब यह दीन अपने कमाल को पहुंच गया तो अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल की
الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا
"आज मैने तुम्हारे दीन को तुम्हारे लिए मुकम्मल कर दिया है तथा अपनी नेअमत तुमपर पुरी कर दी है और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन की हैसियत से पसंद कर लिया है।" (सूरह 05 अल मायेदा आयत 03)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह का पैग़ाम लोगों तक पहुंचा दिया, अमानत अदा कर दी और अल्लाह के रास्ते में वैसा ही जिहाद किया जैसा जिहाद करने का हक़ था तो अल्लाह तआलाने लोगों के समूह के समूह को इस दीन में दाख़िल करके अपने नबी की आंखों को ठंडक पहुंचाई और फिर अपने नबी को इस दुनिया को छोड़ने का और मुलाक़ात के क़रीब होने का इशारा दिया। अल्लाह तआला ने फ़रमाया
إِذَا جَآءَ نَصۡرُ ٱللَّهِ وَٱلۡفَتۡحُ وَرَأَيۡتَ ٱلنَّاسَ يَدۡخُلُونَ فِي دِينِ ٱللَّهِ أَفۡوَاجٗا فَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ وَٱسۡتَغۡفِرۡهُۚ إِنَّهُۥ كَانَ تَوَّابَۢا
"जब अल्लाह की मदद आएगी और फ़तह हासिल होगी तो तुम लोगों को अल्लाह के दीन में झुंड के झुंड दाख़िल होते हुए देखोगे इसलिए तुम अपने रब की प्रशंसा करते रहो और उसी से मग़फ़िरत तलब करो बेशक वह बहुत तौबा कुबूल करने वाला है।"
(सूरह 110 अन नस्र आयत 1 से 3)
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2, बीमारी
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीमारी की शुरुआत सफ़र महीने के आख़िर में हुई जब आप आधी रात के क़रीब जन्नतुल बक़ीअ गए, वहां के मुर्दों के लिए मग़फ़िरत तलब की फिर घर लौटे जब सुबह हुई तो सिर में दर्द शुरू हुआ।
उम्मूल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब बक़ीअ से लौटे तो देखा कि मेरे सिर में बहुत दर्द था और मैं चिल्ला रही थी हाय मेरा सिर, हाय मेरा सिर, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया नहीं बल्कि अल्लाह की क़सम मेरा सिर, फिर आपके सिर का दर्द बढ़ता गया उस समय आप उम्मुल मोमेनीन मैंमैमुना रज़ि अल्लाहु अन्हा के घर थे। फिर तमाम बीवियों को बुलाया और उनसे बीमारी के दिनों में मेरे यहां ठहरने की इजाज़त मांगी, सभी ने इजाज़त दे दी, तो दो लोगों (फ़ज़ल बिन अब्बास और अली बिन अबु तालिब) के दरमियान आप टेक लगाकर चल रहे थे, सिर पर पट्टी बंधी हुई थी और पैर घिसट रहे थे इसी हालत में आप उम्मूल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के घर में दाख़िल हुए।
उम्मूल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हाI ने बयान किया कि "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमारी के आख़िरी दिनों में फ़रमाते थे आयेशा मुझे ख़ैबर में खिलाया गया था ऐसा महसूस होता है कि वह मेरी शह रग काट रहा है।" (सही बुख़ारी 4428)
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3, अंतिम सैन्य अभियान
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसामा बिन ज़ैद को एक लश्कर का कमांडर बनाकर शाम की तरफ़ भेजा और हुक्म दिया कि बलक़ा फ़लस्तीन की ज़मीन दारोम को घोड़ों तले कुचल डालें।
उस लश्कर में बड़े बड़े मुहाजिर और अंसार सहाबा शामिल थे उनमें सबसे बड़े तो उमर बिन खत्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उधर उनको भेजा और इधर बीमारी बढ़ती चली गई तो उसामा का लश्कर जर्फ़ के स्थान पर पड़ाव डाले पड़ा रहा फिर अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उसामा के लश्कर को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु की वफ़ात के बाद उनकी ख़्वाहिश और मुराद को पूरा करने के लिए रवाना किया।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीमारी की हालत में मुसलमानों को वसीयत की कि वह बाहर से आने वाले प्रतिनिधिमण्डलों का वैसे ही स्वागत करें जैसा स्वागत पहले होता था और अरब महाद्वीप में दूसरा दीन बाक़ी न छोड़े तथा यहां के मुशरेकीन को निकाल बाहर करें।
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4, मुसलमानों के लिए दुआ और घमंड से बचने की नसीहत
बीमारी के उन्हीं दिनों में मुसलमान उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के घर में ईकट्ठे हुए, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका स्वागत किया और उनकी ज़िंदगी, उनकी हिदायत, मदद और अल्लाह से तौफ़ीक़ तलब करते रहने के लिए दुआ की फिर फ़रमाया "मैं तुमकॊ अल्लाह से डरने की वसीयत करता हूं जिसकी अल्लाह ने भी तुमकॊ वसीयत की है, और तुमकॊ अपने बाद ख़लीफ़ा बनाता हूं, निसन्देह मैं खुला हुआ डराने वाला हूं। और तुम अल्लाह के बन्दों और उसके शहर पर चढ़ाई नहीं करोगे। बेशक अल्लाह ने मुझे और तुम्हें आदेश दिया है
تِلۡكَ ٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ نَجۡعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوّٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فَسَادٗاۚ وَٱلۡعَٰقِبَةُ لِلۡمُتَّقِينَ
"आख़िरत का घर तो हम उन लोगों के लिये ख़ास कर देंगे जो ज़मीन में अपनी बड़ाई नहीं चाहते और न फ़साद करना चाहते हैं। और बेहतर नतीजा तो केवल परहेज़गारों ही के लिये है।" (सूरह 28 अल क़सस आयत 83)
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5, दुनिया से अलग थलग रहना और माल को बचा कर रखने को नापसंद करना
उम्मुल मोमेनीन आयेशा सिद्दिक़ा रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी मौत की बीमारी में एक दिन पूछा कि ऐ आयेशा उस सोने का क्या करूं जो उनके पास कहीं से पांच से सात या आठ या नो दीनार आए थे आप उसे अपने हाथों से उलट पलट रहे थे और कहते थे अगर यह माल मेरे पास रहा और इसी हालत में अल्लाह के यहां मेरा जाना हो गया तो ऐसा होगा जैसे कि मुहम्मद को अल्लाह पर यक़ीन न हो। इसलिए तुम इसे ख़र्च कर डालो।
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6, नमाज़ की पाबंदी और अबु बकर की इमामत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दर्द बढ़ गया तो आपने पूछा क्या लोगों ने नमाज़ पढ़ ली हमने कहा नहीं या रसूलुल्लाह लोग आप का इंतेज़ार कर रहे हैं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा मेरे लिए डोल में पानी लाओ लोगों ने ऐसा किया तो अपने ग़ुस्ल किया फिर उठना चाहा लेकिन आप बेहोश हो गए जब होश आया तो आपने पूछा क्या लोगों ने नमाज़ पढ़ ली हमने कहा नहीं या रसूलुल्लाह लोग आप का इंतेज़ार कर रहे हैं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा मेरे लिए डोल में पानी लाओ लोगों ने ऐसा किया तो अपने ग़ुस्ल किया फिर उठना चाहा लेकिन आप बेहोश हो गए फिर जब होश आया तो आपने पूछा क्या लोगों ने नमाज़ पढ़ ली हमने कहा नहीं या रसूलुल्लाह लोग आप का इंतेज़ार कर रहे हैं तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा मेरे लिए डोल में पानी लाओ लोगों ने ऐसा किया तो अपने ग़ुस्ल किया फिर उठना चाहा लेकिन आप बेहोश हो गए जब होश आया तो आपने पूछा क्या लोगों ने नमाज़ पढ़ ली हमने कहा नहीं या रसूलुल्लाह लोग आप का इंतेज़ार कर रहे हैं। लोग मस्जिद में ठहरे हुए हैं और ईशा की नमाज़ के लिए इंतेज़ार कर रहे हैं तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास पैग़ाम भेजा कि वह लोगों को नमाज़ पढ़ाएं अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु नरम दिल आदमी थे उन्होंने कहा ऐ उमर तुम नमाज़ पढ़ा दो उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया आप इसके ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं फिर अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने इन दिनों में लोगों की इमामत की।
फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक दिन दर्द में कुछ कमी महसूस की तो दो आदमियों (अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब और अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हुमा) के सहारे ज़ुहर की नमाज़ में तशरीफ़ लाए अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उन्हें देखकर पीछे हटना चाह तो आपने इशारे से मना कर दिया और उन दोनों को हुक्म दिया कि उन्हें उनके पहलू में बिठा दें चुनांचे उन्होंने खड़े होकर इमामत की और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैठकर नमाज़ पढ़ाई।
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7, आख़िरी ख़ुत्बा
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिंबर पर बैठकर ख़ुत्बा दिया उस समय उनके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, फ़रमाया "अल्लाह के बंदों में से एक बंदा को दुनिया या जो कुछ अल्लाह के पास है का इख़्तियार दिया गया तो उसने वह चुन लिया जो अल्लाह के पास है। अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु इशारा समझ गए इससे मुराद ख़ुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात है चुनांचे वह रोने लगे और कहने लगे कि हम और हमारी औलादें आप पर क़ुर्बान हों। (देखें सही बुख़ारी 3904/ सही मुस्लिम 6170)
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8, मुसलमानों पर आख़िरी नज़र
अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु मुसलमानों की इमामत कर रहे थे, सोमवार का दिन था फ़ज्र की नमाज़ के लिए लोग सफें बांधे हुऎ थे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हूजरे का पर्दा हटाया ताकि मुसलमानों पर नज़र डालें तो देखा कि सब अपने रब के सामने खड़े हैं और आपका दावत और जिहाद का लगाया हुआ पर पौधा फल देने लगा है तो तबीयत ख़ुशी से भर गई जिसकी कैफ़ियत अल्लाह ही जानता है उनका रौशन चेहरा और भी चमक उठा। सहाबा का बयान है:
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के हूजरे का पर्दा हटाया, वह हमारी तरफ़ खड़े होकर देख रहे थे उस समय उनका चेहरा मुस्हफ़ की तरह पीला हो रहा था फिर आप मुस्कुराए तो हम ख़ुश हो गए और डर लगने लगा कि कहीं हम फ़ितने में न पड़ जाएं। हमें लगा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ के लिए बाहर आना चाहते हैं लेकिन उन्होंने हमें इशारे से समझाया कि तुम अपनी नमाज़ को मुकम्मल करो फिर पर्दा खींच लिया और उसी दिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुई। (देखें, सही बुख़ारी 680, 1205)
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9, क़ब्रों को इबादतगाह और मस्जिद न बनाने की वसीयत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी जुमला यही था कि "अल्लाह यहूदियों और ईसाइयों को बर्बाद करे जिन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया है" और इस्लाम के इलावा अरब की ज़मीन पर कोई दूसरा दीन बाक़ी न रहे।
उम्मुल मोमेनीन आयेशा और इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा का बयान है कि "जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी समय आया तो आप एक धारीदार चादर से अपना चेहरा ढक लेते थे जब बेहोशी होने लगती तो उसे चेहर से हटा देते थे और इसी तरह फ़रमाते: यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो जिन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया है" और उनके इस अमल से बचने की वसीयत करते।
(सही बुख़ारी 435, 436, 1330, 1390, मुअत्ता इमाम मालिक 1609)
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10, आख़िरी वसीयत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफ़ात के समय यह वसीयत की थी "नमाज़ की पाबंदी करो और अपने मातहतों (अधीन) से अच्छा व्यवहार करो" फिर आप की आवाज़ सीने में बंद हो गई और ज़बान से कुछ बोल न सके। (इब्ने माजा 1625)
अली रज़ि अल्लाहु अन्हु का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ और ज़कात की पाबंदी तथा मातहतों के साथ अच्छा व्यवहार करने की वसीयत की"
उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान है कि मैं मुअव्वेज़तैन (सूरह अल फ़लक़ सूरह अन नास) पढ़कर फूकने के लिए गई तो आप आसमान की तरफ़ नज़र उठा कर देख रहे थे और कर रहे थे बिर रफ़ीक़िल आला, बिर रफ़ीक़िल आला (सही बुख़ारी 4462, अबु दाऊद 5156)
उसी समय अब्दुर-रहमान-बिन-अबी-बक्र रज़ि अल्लाहु अन्हु आए तो उनके हाथ में एक ताज़ा टहनी थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी तरफ़ देखा तो मैं समझ गई कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिस्वाक करना चाहते हैं। चुनांचे वह टहनी मैंने उन से ले ली। पहले मैंने उसे चबाया फिर साफ़ करके आप को दे दी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से मिस्वाक की जैसे पहले आप मिस्वाक किया करते थे बल्कि उससे भी अच्छी तरह से। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वह मिस्वाक मुझे देना चाहा लेकिन आपका हाथ झुक गया और मिस्वाक आप के हाथ से गिर गई।" (सही बुख़ारी 4451)
उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहती हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने चमड़े का या लकड़ी का एक बड़ा प्याला था जिसमें पानी रखा हुआ था नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बार-बार अपना हाथ उसमें डालते और अपने चेहरे पर फेरते और फ़रमाते "ला इला-ह इल्लल्लाह" मौत के वक़्त शिद्दत होती है फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना हाथ उठा कर कहने लगे फ़िर रफ़ीक़िल आला यहाँतक कि आप की वफ़ात हो गई और आपका हाथ झुका रह गया। (सही बुख़ारी 4449)
उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान है
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुए और आपका सिर मुबारक मेरी रान पर था उस समय आप बेहोश हो गए । जब होश में आए तो आप ने अपनी नज़र घर की छत की तरफ़ उठा ली और फ़रमाया ''अल्लाहुम्मा बिर रफ़ीक़िल आला" (ऐ अल्लाह! मुझे अपनी बारगाह में) आख़िरी जुमला जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान मुबारक से निकला वह यही था ''अल्लाहुम्मा बिर रफ़ीक़िल आला"। (सही बुख़ारी 4463)
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11, रसूलुल्लाह इस दुनिया से कैसे रुख़्सत हुए।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब इस दुनिया को छोड़ा तो पूरे अरब महाद्वीप में उनके आदेश का पालन होता था और उनसे दुनिया के बादशाह डरते थे हालांकि आपने अपनी मौत के वक़्त न कोई दीनार छोड़ा, न दिरहम, न ग़ुलाम, न बांदी और न कोई और चीज़। केवल सफ़ेद ख़च्चर और हथियार और एक ज़मीन जिसे आपने सदक़ा कर दिया था।
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुई तो उनकी ज़िरह एक यहूदी के पास तीस साअ (लगभग 75 किलो) जौ के बदले गिरवी रखी हुई थी आपके पास इतना नहीं हो सका कि आप उसको छुड़ा पाते यहांतक कि मौत का समय आ गया।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी इसी बीमारी के ज़माने में 40 ग़ुलाम आज़ाद किया, उनके पास कुल छह या सात दीनार थे आपने उन्हें भी सदक़ा करने का हुक्म दिया।
उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जब इंतेक़ाल हुआ तो मेरे घर में थोड़े से जौ के इलावा कुछ भी नहीं था जो एक ताक़चा में रखा हुआ था मैं उसे खाती रही यहांतक कि लंबा समय बीत गया, एक दिन मैंने उसे वज़न किया और फिर वह ख़त्म हो गया।
जिस दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतेक़ाल हुआ 11 हिजरी 12 रबीउल अव्वल और ज़ुहर का समय था, उस समय आपकी उम्र तिरसठ वर्ष थी। वह मुसलमानों पर मुसीबत और परेशानी के लिहाज़ से इन्तेहाई सख़्त आज़माइश का दिन था जबकि आपके जन्म का दिन जब से सूरज निकलना शुरू हुआ था तमाम दिनों से ज़्यादा रौशन था।
अनस और अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया कि जिस दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना में पधारे उसे दिन यहां की हर चीज़ जगमगा उठी थी लेकिन जिस दिन आपकी वफ़ात हुई हर चीज़ पर अंधेरा छा गया।
उम्मे ऐमन रज़ि अल्लाहु अन्हा रो पड़ीं उनसे पूछा गया की क्या आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात पर रोती हैं तो उन्होंने जवाब दिया नहीं! मुझे मालूम था कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जल्द ही वफ़ात पा जाएंगे लेकिन मैं तो उस वही पर रोती हूं जिसका सिलसिला उनकी वफ़ात के कारण बंद हो गया।
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12, सहाबा ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मौत का सामना कैसे किया
सहाबा पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात की ख़बर बिजली बनकर गिरी क्योंकि उन्हें बहुत ज़्यादा मुहब्बत थी, उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गोद में उससे भी ज़्यादा ज़िंदगी गुज़ारने की आदत हो गई थी जितना कि बच्चे को बाप की गोद और कंधे की आदत होती है। अल्लाह का फ़रमान है
لَقَدۡ جَآءَكُمۡ رَسُولٞ مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ عَزِيزٌ عَلَيۡهِ مَا عَنِتُّمۡ حَرِيصٌ عَلَيۡكُم بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ رَءُوفٞ رَّحِيمٞ
"देखो, तुम लोगों के पास एक रसूल आया है जो ख़ुद तुम ही में से है, तुम्हारा नुक़सान में पड़ना उसके लिये कष्टदायक है, तुम्हारी कामयाबी की लालसा रखनेवाला है, ईमान लानेवालों के लिये वह मेहरबान और दयालु है।" (सूरह 09 अत तौबा आयत 128)
प्रत्येक सहाबा यही समझते थे कि रसूलुल्लाह के नज़दीक ज़्यादा महबूब और सम्मानित वही हैं इसलिए इस वफ़ात की ख़बर पर कोई यक़ीन करने को तैयार नहीं था उनमें उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु सबसे आगे आगे थे उन्होंने उन तमाम लोगों की ख़बर को मानने से इनकार कर दिया जिन्होंने भी कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हो गई है। वह मस्जिद में गए और लोगों में तक़रीर करने लगे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस समय तक मौत नहीं आ सकती जब तक कि अल्लाह मुनाफ़िक़ों को इस दुनिया से ख़त्म न कर दे।
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13, अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु का स्टैंड
अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु समय की पुकार और पहाड़ की तरह साबित क़दम रहने वाले इंसान थे वह न घबराते थे और न किसी से प्रभावित होते थे। जैसे ही उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वफ़ात की ख़बर मिली अपने घर से दौड़े हुए आए जब मस्जिद के दरवाज़े पर पहुंचे तो देखा की उमर लोगों से बात कर रहे हैं उनकी तरफ़ तवज्जुह नहीं की सीधे उम्मुल मोमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के हुजरे में रसूलुल्लाह के पास गए, चेहरा ढका हुआ था उन्होंने चेहरे से चादर हटाई फिर उसपर झुके और बोसा दिया फिर कहा मेरे मां-बाप आप पर क़ुर्बान हों। मौत तो अल्लाह तआला ने आप पर फ़र्ज़ कर दी थी आपने उसका मज़ा चख लिया, अब इसके बाद आप पर दोबारा मौत कभी नहीं आएगी और फिर चेहरे को चादर से ढक दिया।
अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु हुजरे से निकले उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु अभी तक लोगों से बात कर ही रहे थे तो उन्होंने कहा, उमर जल्दी न करो, ज़रा ख़ामोश हो जाओ लेकिन उमर इनकार कर दिया। जब अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने देखा कि उमर किसी तरह ख़ामोश नहीं हो रहे हैं तो लोगों की तरफ़ तवज्जुह की। जब लोगों ने उनकी आवाज़ सुनी तो उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु को छोड़कर उनकी बात सुनने को तैयार हो गए। अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने अल्लाह की हम्द व सना (प्रशंसा) बयान की फिर फ़रमाया,
"ऐ लोगो! बेशक जो मुहम्मद की इबादत करता था तो सुन लो की मुहम्मद को मौत आ चुकी है और जो अल्लाह की इबादत करता था तो जान लो कि अल्लाह ज़िन्दा है उसे कभी मौत नहीं आएगी।"
फिर इस आयत की तिलावत की
وَمَا مُحَمَّدٌ إِلَّا رَسُولٞ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِ ٱلرُّسُلُۚ أَفَإِيْن مَّاتَ أَوۡ قُتِلَ ٱنقَلَبۡتُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡۚ وَمَن يَنقَلِبۡ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِ فَلَن يَضُرَّ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ وَسَيَجۡزِي ٱللَّهُ ٱلشَّٰكِرِينَ
मुहम्मद इसके सिवा कुछ नहीं कि बस एक रसूल हैं, उनसे पहले और रसूल भी गुज़र चुके हैं। फिर क्या अगर उनका इंतिक़ाल हो जाए या उनको क़त्ल कर दिया जाए तो तुम लोग उलटे पाँव फिर जाओगे? याद रखो! जो उलटा फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नुक़सान नहीं करेगा। हाँ, जो अल्लाह के शुक्रगुज़ार बन्दे बनकर रहेंगे, उन्हें वह उसका बदला देगा। (सूरह 03 आले इमरान आयत 144)
जो सहाबा उस मौक़ा पर मौजूद थे उनका बयान है कि ऐसा मालूम होता था कि यह आयत अभी-अभी नाज़िल हुई हो। जब अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने उस दिन इस आयत की तिलावत की तो लोगों ने उसे अबु बकर से पकड़ लिया और फिर यह आयत तमाम लोगों की ज़बानों पर फैल गई। उमर रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते थे कि अल्लाह की क़सम जब मैंने अबु बकर को यह आयत तिलावत करते हुए सुना तो मैं दहशत में आ गया यहां तक कि ज़मीन पर गिर पड़ा, मेरे पैरों में ताक़त न रही कि वह मुझे उठा सकें और मैं समझ गया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इंतेक़ाल हो चुका है।" (सही बुख़ारी 1241, 1242, 3667, 3668, 4452, 4453, 4454)
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14, अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के हाथ पर ख़िलाफ़त की बैअत
मुसलमानों ने सक़ीफ़ा बनी साअदा में अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु के हाथ पर ख़िलाफ़त की बैअत कर ली ताकि शैतान उनके दरमियान इख़्तेलाफ़ का कोई ऐसा रास्ता न तलाश कर ले जो उनके इत्तेहाद और एकता को ख़त्म कर दे और ख़ुद उनकी ख़्वाहिशात उनके दिल से न खेलने लगें। ख़लीफ़ा बनना इसलिए भी ज़रूरी था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस दुनिया से रुख़्सत होते समय मुसलमान एक उम्मत बनकर रहें, प्रबंध व्यवस्था मज़बूत हो, उनपर एक अमीर हो जो उनके तमाम मामलात की निगरानी करे जिसमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कफ़न दफ़न वग़ैरह भी शामिल हो।
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15, मुसलमानों ने कैसे अल विदाअ कहा
लोग मुतमईन हो गए और उनका ग़म और सदमा धीरे-धीरे जाता रहा और फिर वह उन कामों में लग गए जिसकी शिक्षा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुनिया छोड़ते समय उन्हें दी थी।
जब लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ग़ुस्ल और कफ़न दे चुके और यह काम अहले बैत ने किया तो उनके शरीर को उनके हुजरे में रखा गया, अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु ने सूचना दी कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना है कि "किसी नबी की जहां वफ़ात होती है वहीं पर उसे दफ़न किया जाता है" चुनांचे आपका बिस्तर उठाया गया जिस पर आपका इंतेक़ाल हुआ था और उसी के नीचे क़ब्र खोदी गई और यह काम अबु तल्हा अंसारी रज़ि अल्लाहु अन्हु ने किया। (देखें, जामे तिर्मिज़ी 1018)
फिर लोग हुजरे में दाख़िल होते और नमाज़ जनाज़ा पढ़ते। जब तमाम मर्द पढ़ चुके तो फिर औरतों ने जाकर नमाज़ पढ़ी फिर उनके बाद बच्चे दाख़िल हुए और उन्होंने जनाज़ा पढ़ा, सबने अकेले अकेले नमाज़ पढ़ी कोई इमाम न था।
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16, मंगल का दिन
मंगल का दिन मदीने में सख़्त ग़म का दिन था, बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्हु ने फ़ज्र की अज़ान दी जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र आया तो आप ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे इससे मुसलमानों के ग़म में और भी इज़ाफ़ा हो गया उन्हें तो इस अज़ान को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में सुनने की आदत थी। उम्मूल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़ि अल्लाहु अन्हा कहने लगीं हाय मुसीबत! हमें उसके बाद जो भी सदमा पहुंचा वह इस सदमा के मुक़ाबले में बहुत हल्का मालूम होता है जो रसूलुल्लाह के इंतेक़ाल से पहुंचा था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ुद फ़रमाते थे: "ऐ लोगो! जिस व्यक्ति (मोमिन) को कोई मुसीबत पहुँचे तो उसे चाहिये कि किसी दूसरे की (वफ़ात की) वजह से पहुँचने वाली मुसीबत का ग़म हलका करने के लिये मेरी (वफ़ात की) वजह से पहुँचने वाली मुसीबत को याद कर ले, क्योंकि मेरी उम्मत के किसी शख़्स को मेरी (वफ़ात की) मुसीबत से बढ़ कर कोई मुसीबत नहीं पहुँच सकती।" (सहीहुल जामेअ अस सग़ीर 7879 )
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17, उम्महातुल मोमेनीन
(1) उम्मुल मोमेनीन ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद अल क़र्शिया अल असदीया रज़ि अल्लाहु अन्हा: यह पहली बीवी थीं जिनसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नबूवत से पहले निकाह किया था उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष थी उनकी मृत्यु हिजरत से तीन वर्ष पहले हुई। सैयदना इब्राहीम रज़ि अल्लाहु अन्हु के इलावा तमाम औलादें उन्हीं से हुईं।
(2) उम्मुल मोमेनीन सौदा बिन्ते ज़मआ अल क़र्शिया रज़ि अल्लाहु अन्हा, ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा की मृत्यु के बाद उनसे निकाह हुआ।
(3) उम्मुल मोमेनीन आयेशा सिद्दीक़ा बिन्ते अबु बकर सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हा यह उम्मत की औरतों में सबसे बड़ी फ़क़ीह और इल्म वाली थीं।
(4) उम्मुल मोमेनीन हफ़सा बिन्ते उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हा।
(5) उम्मुल मोमेनीन ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा रज़ि अल्लाहु अन्हा, उनकी मृत्यु निकाह के दो महीने बाद ही हो गई थी।
(6) उम्मुल मोमेनीन उम्मे सलमा हिंद बिन्ते अबु उमैया अल क़र्शिया अल मख़ज़ूमिया रज़ि अल्लाहु अन्हा, उनका इंतेक़ाल सबसे आख़िर में हुआ।
(7) उम्मुल मोमेनीन जैनब बिन्ते जहश रज़ि अल्लाहु अन्हा, वह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी उमैमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब के बेटी थीं।
(8) उम्मुल मोमेनीन जुवैरिया बिन्ते हारिस बिन अबु ज़रार रज़ि अल्लाहु अन्हा, इनका तअल्लुक़ क़बीला बनी मुस्तलक़ से था।
(9) उम्मुल मोमेनीन उम्मे हबीबा रमला बिन्ते अबु सुफ़ियान रज़ि अल्लाहु अन्हा
(10) उम्मुल मोमेनीन सफ़िया बिन्ते हुई बिन अख़तब रज़ि अल्लाहु अन्हा (हुई बिन अख़तब बनी नज़ीर का सरदार था)
(11) उम्मुल मोमेनीन मैमुना बिन्ते अल हारिस अल हिलालिया रज़ि अल्लाहु अन्हा यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी निकाह था।
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुई तो नौ बीवियां जीवित थीं जबकि दो ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद और ज़ैनब बिन्ते ख़ुज़ैमा रज़ि अल्लाहु अन्हुमा का इंतेक़ाल रसूलुल्लाह की ज़िंदगी में ही हो गया था।
दो बांदियां मारिया बिन्ते शमऊन क़िबतिया रज़ि अल्लाहु अन्हा जिन्हें मिस्र के बादशाह मक़ूक़स ने हदिया भेजा था उन्हीं से इब्राहीम पैदा हुए तथा रैहाना बिन्ते ज़ैद रज़ि अल्लाहु अन्हा इनका तअल्लुक़ बनी नज़ीर से था वह मुसलमान हो गईं तो आपने उनको आज़ाद करके उनसे निकाह किया।
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18, औलाद
ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा से क़ासिम पैदा हुए, उन्हीं के नाम पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुन्नियत अबुल क़ासिम थी बचपन ही में उनकी मृत्यु हो गई फिर ज़ैनब, रुक़य्या, उम्मे कुलसूम, फ़ातिमा और अब्दुल्लाह पैदा हुए अब्दुल्लाह का लक़ब तैयब और ताहिर था (उनका इंतेक़ाल भी बचपन में हो गया था) यह तमाम औलादें ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा से ही थीं। फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा को अपनी बेटियों में सबसे महबूब रखते थे और बताया कि मेरी यह बेटी जन्नती औरतों की सरदार है। अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्हु से उनका निकाह हुआ जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा अबु तालिब के बेटे थे। फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा के बेटे हसन और हुसैन थे उनके बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "हसन हुसैन जन्नत में नौजवानों के सरदार होंगे।" (जामे तिर्मिज़ी 3781)
मारिया क़िबतिया रज़ि अल्लाहु अन्हा से इब्राहीम पैदा हुए उनका इंतेक़ाल मां की गोद में ही हो गया था। जब उनका इंतकाल हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "आंखें आंसू बहाती हैं और दिल ग़मगीन है लेकिन हम ऐसी कोई बात नहीं कहेंगे जिससे हमारा रब नाराज़ हो, ऐ इब्राहीम बेशक हमें तेरा ग़म ज़रूर है।" (सुनन इब्ने माजा 1589)
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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