अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13q)
अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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11. ग़ज़वा मूतह
1, मुसलमान सफ़ीर का क़त्ल और गवर्नर का अंजाम
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हारिस बिन उमैर अज़दी रज़ि अल्लाहु अन्हु को ख़त देकर बुसरा के गवर्नर शरजील बिन अम्र ग़स्सानी के पास भेजा जो रोम के बादशाह के अधीन था। उसने उनको रस्सियों से जकड़ दिया फिर उनकी गर्दन मार दी गई हालांकि उस समय तक बादशाहों और अमीरों के यहां सफ़ीरों और क़ासिदों का क़त्ल नही किया जाता था इसमें क़ासिद (डाक वाहक) और सफ़ीरों का ही नहीं बल्कि उनके भेजने वाले का अपमान समझा जाता था, यह एक भयानक जुर्म था इसलिए उस ज़ालिम को सबक़ सिखाना ज़रूरी हो गया था।
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2, रोम की ज़मीन पर पहला इस्लामी लश्कर
जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू वसल्लम को अपने सफ़ीर के क़त्ल की सूचना मिली तो उन्होंने इरादा किया कि एक लश्कर बुसरा की जानिब भेजें, सन आठ हिजरी जमादिल अव्वल का महीना था। लोगों ने तैयारी की, वह कुल तीन हज़ार थे, ज़ैद बिन हारिसा को कमांडर बनाया गया जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम थे, हालांकि इस लश्कर में बड़े-बड़े मुहाजिर और अंसार सहाबा शामिल थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर ज़ैद शहीद हो जाएं तो जाफ़र बिन अबु तालिब लश्कर के कमांडर होंगे और अगर जाफ़र भी शहीद हो जाएं तो अब्दुल्लाह बिन रवाहा लश्कर के कमांडर होंगे। जब वह निकलने लगे तो लोगों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अमीरों को रुख़्सत किया, उनके सामने लंबा, कठिन और मुश्किलों से भरा सफ़र था और बहुत ही सख़्त और घाघ दुश्मन का सामना था।
लश्कर चलते-चलते मआन के इलाक़े में पहुंचा तो मुसलमानों को पता चला कि रोम के शहर बलक़ा में हिरक़्ल एक लाख लश्कर के साथ पहले से मौजूद है और उसके साथ बहुत से अरब क़बीले भी आकर मिल गए हैं तो उन्होंने मआन में दो रातें गुज़ारी ताकि वह वहां के हालात के विषय में पता लगा सकें उन्होंने मशविरा किया कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पत्र भेज कर अपने दुश्मन की तादाद के बारे में सूचना दें कि या तो हमारी मदद लोगों के द्वारा करें या हमको जो आदेश मिले उसका पालन करें।
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3, हम लोगों से तादाद और ताक़त के बल पर नहीं लड़ते
अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि अल्लाहु अन्हु ने लोगों को हमीयत दिलाई और कहा है मेरी क़ौम के लोगों! अल्लाह की क़सम तुम जिस चीज़ को नापसंद करते हो और जिस (शहादत) की तलाश में निकले हो तो जान लो कि हम लोगों से तादाद और ताक़त में कम या अधिक होने की बुनियाद पर जंग नहीं करते बल्कि हम तो जंग इस दीन के लिए करते हैं जिसके द्वारा अल्लाह ने हमें इज़्ज़त दी है। चलो दो भलाइयों में से एक को अपना लो कामयाबी या शहादत। यह सुनकर लोग चल पड़े।
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4, शहादत की इच्छा रखने वालों की जंग तथा शेरों का हमला
जब लोग बलक़ा में थे तो उन्हें रोम और अरब के मिले-जुले लश्कर ने घेर लिया और दुश्मन क़रीब हुआ तो मुसलमान एक देहात की तरफ़ गए उस स्थान को मुता कहा जाता था यहीं पर दोनों लश्कर का आमना सामना हुआ और उन्होंने जंग की।
ज़ैद बिन हारिसा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलम (झंडा) को उठाये जंग करते रहे यहांतक कि वह शहीद हो गए उनके शरीर पर हर तरफ़ नेज़ों ही नेज़ों के ज़ख़्म थे। उनके शहीद होते ही जाफ़र ने आगे बढ़कर अलम उठा लिया और जंग शुरू की यहांतक कि जब जंग सख़्त हो गई वह घोड़े से कूद गए और उसके पैर काट दिए फिर जंग की, उनका दाया हाथ कट गया तो झंडे को बाएं हाथ से पकड़ लिया जब बायां हाथ कट गया तो उन्होंने कटे हुए बाज़ुओं की सहायता से अलम को सीने से लगा लिया, फिर वह भी शहीद हो गए उस समय उनकी आयु 33 वर्ष थी और मुसलमानों ने उनके सीने और कंधे के बीच 90 से ज़्यादा ज़ख़्म गिने जो तलवार, तीर, और नेज़े के थे और सब के सब सामने थे।
जब जाफ़र रज़ि अल्लाहु अन्हु शहीद हो गए तो अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने आगे बढ़कर अलम उठा लिया वह आगे बढ़े, घोड़े से उतरे उनके चाचा के बेटे ने एक हड्डी पेश की जिसमें थोड़ा गोश्त लगा हुआ था और कहा इसके ज़रिए अपनी पीठ मज़बूत कर लो क्योंकि तुम्हें सख़्त हालात का सामना करना है उन्होंने हड्डी लेकर एक बार मुंह को लगाया फिर फेंक कर तलवार थाम ली और आगे बढ़कर लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।
(देखें सही बुख़ारी 4261)
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5, ख़ालिद बिन वलीद के नेतृत्व में
अब्दुल्लाह बिन रवाहा रज़ि अल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद लोगों ने ख़ालिद बिन वलीद को अमीर बना लिया, उन्होंने अलम उठाया और रक्षात्मक (defensive) जंग की (उस जंग में उनके हाथ से नौ तलवारें टूटीं, बुख़ारी 4265, 4266) वह इन्तेहाई बहादुर और अक़्लमंद तथा जंगी चालों के माहिर थे। वह इस्लामी लश्कर को दक्षिण की ओर ले गए जबकि दुश्मन उत्तर की तरफ़ था और जंग की फिर रात हो गई तो लोग लौट गए और दोनों गिरोहों ने सलामती को ही बेहतर समझा, जंग लगातार होती रही और रूमी ख़ालिद बिन वलीद की हिकमत से डर गए और अपने इरादे में नाकाम हो गए।
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6, मदीना में सूचना
इसी दौरान जब मुसलमान जंग लड़ रहे थे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना में अपने सहाबा को ख़बर दी कि लड़ाई में क्या कुछ हुआ? अनस बिन मलिक रज़ि अल्लाहु अन्हु का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ैद, जाफ़र और अब्दुल्लाह बिन रवाहा के बारे में लोगों को बताया कि ज़ैद ने अलम उठाया, वह शहीद कर दिए गए तो जाफ़र ने अलम उठा लिया वह भी शहीद कर दिए गए फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने अलम उठाया उन्हें भी शहीद कर दिया गया। यह बयान करते हुए आपकी आंखों से आंसू छलक पड़े। फिर अल्लाह की तलवारों में से एक तलवार ने झंडा उठाया और अल्लाह ने उसके हाथ पर फ़तह दी।
(सही बुख़ारी 3757, 4262)
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7, दो परों पर उड़ने वाले
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जाफ़र रज़ि अल्लाहु अन्हु के बारे में फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने उनके दोनों हाथ के बदले दो पर दिए हैं जिसके साथ वह जहां चाहते हैं जन्नत में उड़ते फिरते हैं। इसी कारण उनका नाम "जाफ़र तैयार" और "दो परों वाले" पड़ गया।
(देखें सही बुख़ारी 3709)
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8, हमला करने वाले हैं भगोड़े नहीं हैं
जब लश्कर मदीना के क़रीब आया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और मुसलमानों ने उनका स्वागत किया अलबत्ता कुछ लोगों ने उनपर मिट्टी फेंकी और मज़ाक़ उड़ाया "यह भगोड़े हैं।" अल्लाह के रास्ते से भागे हैं तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया, "यह भगोड़े नहीं है बल्कि यह फ़तह हासिल करने वाले हैं इन शा अल्लाह तआला"।
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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