ज़मज़म के पानी का इतिहास
ज़मज़म कुआँ सऊदी अरब के मक्का शहर में मस्जिद अल-हरम के भीतर स्थित एक कुआँ है। यह इस्लाम के सबसे पवित्र स्थान काबा से 20 मीटर (66 फ़ीट) पूर्व में स्थित है।
करिश्मा:
इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी बीवी और अपने इकलौते बेटे इस्माईल को अल्लाह के हुकुम से मक्का में छोड़ा था।
मक्का ऐसी जगह थी जहाँ न तो घास फूस थी और न पेड़ पौधे, वही मक्का जहां न कोई कुआं था न कोई नहर। वही मक्का जहां न कोई इंसान बस्ता था और न कोई जानवर।
इब्राहीम अलैहिसलाम ने जाते जाते अल्लाह से दुआ की-
"परवरदिगार! मैंने एक बे-आबो-गयाह [ ऊसर] घाटी में अपनी औलाद के एक हिस्से को तेरे मोहतरम घर के पास ला बसाया है। परवरदिगार! ये मैंने इसलिये किया है कि ये लोग यहाँ नमाज़ क़ायम करें, तू लोगों के दिलों को इनका ख़ाहिशमन्द बना और इन्हें खाने को फल दे, शायद कि ये शुक्रगुज़ार बनें।" [क़ुरआन 14:37]
इस्माईल अलैहिस्सलाम को प्यास लगी, उनकी मां ने पानी पिलाने के विषय में सोचा।
लेकिन पानी कहां था?
हाजरा अलैहिस्सलाम ने पानी तलाश करना शुरू किया। कभी सफ़ा पहाड़ी से मरवा पहाड़ी जाती थीं और कभी मरवा से सफ़ा पहाड़ी पर।
तब अल्लाह ने हाजरा अलैहिस्सलाम की मदद की और उन दोनों के लिए पानी का एक चश्मा जारी किया। पानी ज़मीन से निकला जिसे इस्माईल अलैहिस्सलाम और हाजरा अलैहिस्सलाम ने पिया। [बुख़ारी 3364 में पूरा वाकया मौजूद है उसका कुछ हिस्सा यहां बयान हुआ है।]
और बाक़ी पानी ज़मज़म के कुआं में तब्दील हो गया। अगर हाजरा अलैहिस्सलाम ने जल्दी न की होती (और ज़मज़म के पानी के पास मुंडेर न बनातीं) तो आज वो एक बहता हुआ चश्मा होता।" [बुखारी 3362]
इब्राहीम अलैहिसलाम अंततः वापस लौटे और उन्होंने पाया कि न केवल उनके बेटे और बीवी ज़िंदा थे, बल्कि अल्लाह ने उनकी दुआ क़ुबूल कर ली थी अब यहां वन्यजीव, पक्षी, फ़सलें उग रही थीं और यमन से लोग और यात्री आ रहे थे, जिन्होंने मीठे पानी और ताज़े भोजन की प्रचुरता के कारण मक्का में बसना पसंद किया था। बाद में, अपने बेटे इस्माईल की मदद से, उन्होंने अल्लाह के हुक्म को पूरा किया और बैतुल्लाह (काबा) की तामीर की।
अल्लाह ने ज़मज़म में बरकत दी। यह वही कुआं है जिस का पानी हज्ज व उमरा पर जाने वाले लोग पीते हैं और भर भर अपने अपने मुल्क भी ले जाते हैं।
इतिहास:
जब इब्राहीम के बेटे इस्माईल प्यासे थे और अपनी मां हाजरा के साथ रेगिस्तान में रह रहे थे, तब अल्लाह ने चमत्कारिक रूप से पानी दिया।
ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि इस्माईल का मक्का में आगमन तथा उनका जन्म के लगभग 1910 ईसा पूर्व में हुआ था, यही वह वर्ष था जब ज़मज़म प्रकट हुआ था। हिजरी कैलेंडर के अनुसार आज से लेकर ज़मज़म के पहली बार प्रकट होने के बीच लगभग 4000 साल का अंतर है।
"ज़मज़म के कुएं का इस्तेमाल 4,000 सालों से किया जा रहा है, इससे हमें लगता है कि अगर सऊदी अरब में बारिश नहीं होगी, तो पानी ख़त्म हो जाएगा। हालांकि, यह देखते हुए कि जलवायु की स्थिति स्थिर और अपरिवर्तित है, वैज्ञानिक बताते हैं कि कुआं वैसे ही जारी रह सकता है।"
वैज्ञानिक तथ्य:
1. ज़मज़म के अंदर मौजूद मिनरल और दीगर तत्व लंबे समय तक बदलते नहीं हैं और जैसे के तैसे रहते हैं।
2. ज़मज़म का पानी और ज़मज़म कुआँ जैविक वृद्धि (बैक्टीरिया या कवक) से दूषित नहीं होता है।
3. ज़मज़म के पानी को किसी भी तरह के प्रदूषण से मुक्त बताया गया है और इसका किसी भी तरह से केमिकल ट्रीटमेंट नहीं किया गया है।
4. यहां तक कि ज़मज़म में कुछ हद तक एंटी फंगल सिफत (properties) भी पाई गई हैं।
5. ज़मज़म पानी खनिजों से भरपूर होता है। इसके आधार पर, ज़मज़म पानी के स्वास्थ्य गुण (स्वाद, गंध और महक) स्थिर होते हैं और समय के साथ नहीं बदलते।
6. ज़मज़म पानी में चार ज़रूरी धातु आयरन प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं। इनमें सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम शामिल हैं।
सुब्हाअल्लाह!!!
आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि ज़मज़म का पानी बरकत वाला है। और वो खाना भी है और खाने की तरह पेट भर देता है। [सही मुस्लिम 2473] इसमें शिफ़ा है। [सही अल जामि 3322]
शिफ़ा:
ज़मज़म के पानी में कुछ प्रसिद्ध गुण शामिल हैं:
1. यह भूख की शिद्दत को कम करने में मदद करता है।
2. इसे आँखों पर लगाने से दृष्टि और आँखों से संबंधित अन्य समस्याओं में सुधार होता है।
3. यह अम्लता को कम करने में मदद करता है।
4. यह दांतों में सड़न को रोकने में मददगार है।
5. यह पोषण का एक अच्छा स्रोत है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है।
6. इसे पीते वक़्त दुआ मांगने पर अल्लाह तआला दुआ क़ुबूल करते हैं।
7. यह क्षतिग्रस्त त्वचा कोशिकाओं की मरम्मत में मदद करता है।
8. यह मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करता है।
बाबरकत:
लाखों मुसलमान उमराह और हज यात्रा करते हैं, हर साल इस कुएं से पानी पीते हैं, क्योंकि इसे मुक़द्दस माना जाता है और इसमें शिफ़ा है।
सफ़ा और मरवा पहाड़ियों के बीच 7 बार चलना और/या दौड़ना, जैसा कि हाजरा अलैहिस्सलाम ने किया था, न केवल हज के दौरान एक जिस्मानी रस्म है, बल्कि रूहानी भी है जो मुसलमानों को सब्र, मेहनती, सकारात्मक रहने और अल्लाह पर गहरा भरोसा रखने और यह यक़ीन करने की याद दिलाता है कि वही सब कुछ फ़राहम करने वाला और मददगार है।
अल्लाह तआला फ़रमाता है -
"जो कोई अल्लाह से डरते हुए काम करेगा अल्लाह उसके लिये मुश्किलात से निकलने का कोई रास्ता पैदा कर देगा। और उसे ऐसे रास्ते से रिज़्क़ देगा जिधर उसका गुमान भी न जाता हो। जो अल्लाह पर भरोसा करे उसके लिये वो काफ़ी है। अल्लाह अपना काम पूरा करके रहता है। अल्लाह ने हर चीज़ के लिये एक तक़दीर मुक़र्रर कर रखी है।" [क़ुरआन 65:2-3]
Islamic Theology
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