Jahil ya be-ilm kaun hai?

Jahil ya be-ilm kaun hai?

जाहिल कौन?

  • जाहिल कौन है? 
  • जाहिल क्या है? 

'जीम' 'हा' और 'लाम' से बना 'जहल' और उससे जाहिल बना जिसका मतलब है ला-इल्म या बे इल्म! 

  • आख़िर कौन है ये बे इल्म या जाहिल? 
  • क्या करने या न करने पर लोगों को जाहिल कहा जा सकता है?

इसको जानने से पहले हमें पता करना होगा कि इल्म वाला कौन है, अगर कोई जाहिल है तो कोई इल्म वाला भी होगा। अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की नज़रों में इंसान क्या अध्ययन करने से या क्या पढ़ने लिखने से इल्म वाला बनता है । 

दुनिया में पढ़ने की काफ़ी अच्छी अच्छी फील्ड्स हैं, जैसे एक इंसान डॉक्टर बनके मुआशरे को फ़ायदा पहुँचा सकता है बेशक यह बहुत अच्छा काम है अल्लाह उसकी जज़ा देगा, मगर क्या अल्लाह की नज़रों में वो इल्म वाला है? 

नहीं। 

तो फिर साइंटिस्ट? सोसायटी को नये इन्वेंशन्स देना तो क्या वो है इल्म वाला? 

नहीं। 

तो आख़िर अल्लाह की नज़दीक इल्म वाला कौन है? 

अल्लाह की नज़र में कुरआन और सुन्नत सीखने और पढ़ने वाला इल्म वाला है। नॉलेज सिर्फ़ कुरआन से है! जिसको हम हिकमत कहते हैं वो सिर्फ़ कुरआन और सुन्नत में है! तो समझ में ये आया कि असल विजडम कुरआन में है। 

मगर असली विजडम क्या है? 

क्योंकि नॉलेज तो और भी काफी सारी दुनिया में है। 

देखिए सारी दुनिया का इल्म इसी दुनिया में रह जाएगा और वो आख़िरत का कुछ हिस्सा नहीं रखता, सिर्फ अंदाज़े लगाता है। मगर दुनिया - ज़माने का इल्म, इस ज़िन्दगी का नॉलेज, हम कैसे अपनी ज़िन्दगी गुज़ारें, अगली आने वाली दुनिया का इल्म, हम ऐसा क्या करें कि नेक्स्ट लाइफ़ में परेशानियाँ न उठानी पड़े इसका इल्म आपको सिर्फ कुरआन और सही अहादीस से मिलेगा!

तो क्या दुनिया की नॉलेज न ले बंदा? बिलकुल ले, मगर सिर्फ दुनिया की भागदौड़ में मुब्तिला होकर रह जाना सही नहीं है, अल्लाह सूरह अत-तकासुर में-फ़रमाता है,

اَلۡهٰٮكُمُ التَّكَاثُرُۙ‏ 

अल हाकुमुतकासुर 

"लोगों तुमको माल की बहुत सी तलब ने गुमराह कर दिया।''

अल्लाह फ़रमा रहा है कि इस दुनिया के कॉम्पिटीशन में तुम सब भूले बैठे हो। अपना परिवार, अपना वक़्त, यहाँ तक कि लोग अपनी खुद की ज़िन्दगी भूल जाते हैं बस पैसा, पैसा, पैसा।

حَتّٰى زُرۡتُمُ الۡمَقَابِرَؕ‏ (हत्ता ज़ुरतुमुल मक़ाबिर) 

"यहाँ तक की तुम कब्रों तक पहुंच जाते हो।" 

अब यहाँ अल्लाह ने बिलकुल साफ़ कर दिया कि तुम लोग उस पैसे, उस फेम के पीछे लगे रहते हो। यहाँ तक कि तुम अपनी कब्रों में आ पहुँचते हो।

كَلَّا سَوۡفَ تَعۡلَمُوۡنَۙ‏ (कल्ला सउफ़ा तअलमून) 

"नहीं ! अनक़रीब ही तुम जान लोगे!"

अब इसमें अल्लाह तआला कह रहे हैं कि तुम अभी होश में नहीं आ रहे हो। ठीक है मत आओ पर तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा। 

अब इससे आप एक बात और पता लगा सकते हैं । 

वो क्या? 

देखिए कुरआन आया लोगों पे रहमत बनके, उनके लिए गाइडेंस बनके, उनको एक लॉ (शरीआ) देने। 

अगर हम जान रहे हैं कि कुरआन का मक़सद क्या है! क्योंकि देखने में लोग समझते हैं, कि अच्छा कुरआन में ये लिखा है, 

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अच्छा म्यूजिक हराम है? अच्छा रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इसको मना कर दिया, 

अच्छा शराब हराम है। फिर भी आप देखते हैं कि लोग, जो अपने आप को मुसलमान भी कहते हैं, वो इन बातों को भला कहाँ मान रहे हैं मैं ये नहीं कहता सबलोग, मगर अच्छी ख़ासी तादाद में ऐसे लोग है जो नहीं मान रहे हैं।  

ऐसे ही जब अल्लाह तआला बता रहे हैं कि जो दुनिया की भाग दौड़ में लगे रहेंगे, जरूरी नहीं है सिर्फ मुसलमान कहने वालों की बात हो रही हो, इसमें सब शामिल है! हर मजहब के मानने वाले या अपने आपको नास्तिक 'एथीस्ट' कहने वाले भी हैं! सबको मौत के बाद ही पछतावा होगा। 

असल में ऐसा क्यों होता क्या है, यहां एक बहुत बड़ा फ़र्क़ है जिसपे आपको ग़ौर करना है। 

देखिये अल्लाह तआला के कुरआन में बताने के बाद भी लोग कक्यों नहीं समझ रहे हैं ? 

क्या क़यामत तक लोग केवल दुनिया कमाने में लगे रहेंगे? इस इल्म को हासिल करने के बाद भी ऐसा लग नहीं रहा कि वो समझ रहे हैं, ऐसा क्यों? 

एक बहुत बड़ा फ़र्क़ है। इल्म आप हासिल कर सकते हैं, एक हद तक उसके मालिक भी बन सकते हैं, कि ये मेरा इल्म है मगर एक चीज़ और है-  हिदायत! और अल्लाह तआला कुरआन में फरमाते हैं सुरह क़सस की आयत 56  में,

اِنَّكَ لَا تَهۡدِىۡ مَنۡ اَحۡبَبۡتَ وَلٰـكِنَّ اللّٰهَ يَهۡدِىۡ مَنۡيَّشَآءُؕ وَهُوَ اَعۡلَمُ بِالۡمُهۡتَدِيۡنَ‏

"ऐ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम), आप हिदायत नहीं दे सकते, मगर अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है, और वो उन लोगों को ख़ूब जानता है जो हिदायत क़ुबूल करने वाले हैं।"

अब इसमें अल्लाह ने बिल्कुल वाज़ेह कर दिया है कि हिदायत तो सिर्फ अल्लाह ही देगा तुम्हें भले ही सातों आसमानों का इल्म आ जाए मगर, अगर अल्लाह ने तुम्हें हिदायत न दी तो सीधे रास्ते पे चलना तो दूर कभी  कभी इस रास्ते आओगे भी नहीं। 

इसका एक और बहुत अच्छा उदाहरण है अबू लहब उसके पास बहुत इल्म था, उसको अरबी भी बहुत अच्छी आती थी उसको क़ुरआन का तर्जुमा और तफसीर सब पता था! उसने नबी को भी बहुत क़रीब से देखा था, उसके आस पास बहुत लोग मोमिन भी थे, उसने बहुत से मोजिज़े अपनी आँखों से भी देखे, मगर उसका जो 'इल्म' था जिसका वो मालिक था, उसको जिसपे बहुत फ़ख़्र था, उसे वो कहा तक फ़ायदा पहुँचा पाया? इसी दुनिया तक शायद? 

अल्लाह ने उसको इल्म हासिल करने की तो बहुत तौफ़ीक़ दी लेकिन, हिदायत नहीं दी! क्यूँ नहीं दी भला अल्लाह ने ऐसा क्यों किया? क्या अल्लाह किसी का बुरा चाहता है? 

नहीं! 

अब आप उदहारण से समझिए - एक स्टूडेंट है। उसकी टीचर बहुत अच्छी है, उसके क्लासमेट्स बहुत अच्छे हैं, उसका सिलेबस भी बहुत आसान है, और यहाँ तक कि उसको फ़ाइनल एग्ज़ाम्स के सवाल और उसके जवाब दोनों बता दिए गए हैं! अगर उसके बाद भी वो फ़ाइनल्स में फेल हो जाएतो ग़लती किसकी होगी? सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी! एक छोटी सी बात और है, जो कि बहुत बड़ी है। अल्लाह तआला क़ुरआन में मोमिनों को गाइडेंस (हिदायत) मांगना सिखा रहे हैं! कुरआन की सबसे पहली सूरत में सूरत-अल-फ़ातिहा में।

 اِهۡدِنَا الصِّرَاطَ الۡمُسۡتَقِيۡمَۙ‏ (इहदिनस सिरॉतल मुस्तक़ीम) 

"हमें सीधा रास्ता दिखा।"  

 صِرَاطَ الَّذِيۡنَ اَنۡعَمۡتَ عَلَيۡهِمۡ ۙ‏ غَيۡرِ الۡمَغۡضُوۡبِ عَلَيۡهِمۡ وَلَا الضَّآلِّيۡنَ‏ (सिरॉतल लज़ीना अनअमता अलैहिम ग़ैरिल मगदूबी अलैहिम वलदाल्लीन)

"उन लोगों का रास्ता जिनपर तू ने इनाम फ़रमाया, जो मातूब नहीं हुए (न उनका जिनपर तेरा गज़ब होता रहा), जो भटके हुए नहीं हैं।" 

[क़ुरआन  1:6-7]

इससे पता ये चला कि हिदायत को मांगना पड़ता है। यही एक डिफरेंस है इल्म और हिदायाह में। इल्म आप हासिल कर सकते हैं मगर हिदायत आपको बार बार माँगनी पड़ेगी । ताकि आप सिराते मुस्तक़ीम पे क़ायम रह सकें और असल कामयाबी हासिल कर लें। 

एक मुस्लिम के लिए असल कामयाबी क्या है? जन्नत, लेकिन पर उससे भी ज़्यादा बड़ी कामयाबी अल्लाह की रज़ा है क्योंकि उसके बगैर तो आप जन्नत में भी नहीं पा सकते। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि,

''तुम से किसी शख़्स को उसका अमल नजात नहीं दिला सकेगा।" 

सहाबा ने कहा कि और आप को भी नहीं या रसूलुल्लाह फ़रमाया : "हैं मुझे भी नहीं सिवाय इसके कि अल्लाह तआला मुझे अपनी रहमत के साये में ले ले। इसलिये तुमको चाहिये कि दुरुस्ती के साथ अमल करो और बीच की रविश इख़्तियार करो। सुबह और शाम इसी तरह रात को ज़रा सा चल लिया करो और एतिदाल (बीच का रास्ता) के साथ चला करो मंज़िल और मक़सद को पहुँच जाओगे।" [बुख़ारी 6463]

फिर वापस अत-तकासुर की अगली आयत पे आते हैं-

ثُمَّ كَلَّا سَوۡفَ تَعۡلَمُوۡنَؕ‏  (सुम्मा कल्ला सउफ़ा तअलमून) 

"फिर हरगिज़ नहीं ! अनक़रीब ही तुम जान लोगे!"

अब ये जो दूसरी आयत में सुम्मा जोड़ा गया है आप जानते हैं। ये क्यों आया है? 

ये इसीलिए है कि इससे पहले जो बात हो रही थी उसपे ज़ोर डाला जाए मतलब अल्लाह तआला फरमा रहे हैं तुम्हें अनक़रीब मालूम हो जाएगा, बेशक तुम्हें अनकरीब मालूम हो जाएगा मतलब इस बात में शक ही न रहे कि वो वक़्त बहुत दूर है। बल्कि बहुत क़रीब है वो वक़्त जब तुम जान जाओगे। आखिर ऐसा क्या है जिसपे अल्लाह तआला इतना ज़ोर डाल रहा है, क्या जान जाओगे? फिर अल्लाह तआला फ़रमाता है,

كَلَّا لَوۡ تَعۡلَمُوۡنَ عِلۡمَ الۡيَقِيۡنِؕ‏ (कल्ला लउ तअलमूना इल्म अल यक़ीन) 

"हरगिज़ नहीं! काश तुम यक़ीनी इल्म से (इस रोज़ के अंजाम को) जानते होते (तो तुम्हारा ये तर्ज़ अमल नहीं होता)"

सबसे पहले हमने जो बात की थी कि इल्म होता क्या है, तो उसमें मैंने आपको बताया था कि अल्लाह के नजदीक असली इल्म क़ुरआन और हदीस का इल्म है। मगर यहाँ अल्लाह ताला ने ये वाजेह कर दिया कि बंदा चाहे जितना क़ुरआन पढ़ ले जितना सीरत का अध्ययन कर ले जितना चाहे इल्म हासिल कर ले लेकिन, अगर उसका यकीन नहीं है, तो फिर वो किसी काम का नहीं है। जैसा कि मैंने आपको बताया था कि इल्म तो अबू लहब के पास भी था मगर उसने यकीन करने से मना कर दिया था तो अल्लाह ने फिर सुरह मसद भी उतारी थी जैसा कि आप जानते हैं। 

बहरहाल पता ये चला कि इल्म जो आपने क़ुरआन पढ़ कर और नबी (:ﷺ,) की सीरत से हासिल किया उसपे यकीन और उसके साथ साथ अमल भी बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर आप किसी चीज़ पे यकीन करते हैं तो उसपे फिर अमल भी करते हैं सिर्फ कहने सुनने से कोई फायदा नहीं। मुसलमान पर 5 नमाज़ फर्ज़ है। आप चाहे जितने बड़े आलिम बन जाओ, अगर आप इसपे अमल नहीं करोगे तो आप बिल्कुल '0' हो। क्योंकि। देखिए बुखारी की सबसे पहली हदीस क्या है- |

  إِنَّمَا الْأَعْمَالُ بِالنِّيَّاتِ 

"आमाल का फैसला नीयत पे है।" 

इमाम बुखारी रहीमउल्लाह ने सबसे पहले इसी हदीस को क्यों लिखा है? 

अगर आप इसपे गौर करेंगे तो आपका पूरा ईमान वैसे ही बच जाएगा। हर अमल का पूरा बदला मिलेगा। और अगर नीयत साफ नहीं है तो सब रदद हो जाएगा। और नीयत तो तभी होगी ना जब आप कुछ करेंगे या करना चाहेंगे।

इस्लाम का सही अक़ीदा क्या है? 

तौहीद। 

हमें रोज़ इस अक़ीदे को ताज़ा करते रहना चाहिए क्योंकि ये हमारी क्रीड है। हम हर मजहब से अलग क्यों हैं। क्योंकि अल्हम्दुलिल्लाह हमारे पास तौहीद है और वही सच भी है। दुनिया में इस्लाम के अलावा और कोई मजहब ऐसा नहीं जिसमें तौहीद (एकेश्वरवाद) हो। यहूदियों ने उज़ैर (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का बेटा बना लिया, ईसाईयों ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का बेटा बना दिया बुतपरस्तों ने तो न जाने किस किस को क्या क्या बना दिया। ये मेजर रिलिजन है दुनिया के और सिर्फ इस्लाम तौहीद पे है, ला इलाहा इल्लल्लाह। नहीं है कोई इलाह मगर अल्लाह। इस अक़ीदे पे हमारी आखिरत है। याद रखिए शैतान रोज़ इस अक़ीदे को हिलाता है या हिलाएगा, बहुत वस्वसे डालेगा। कि क्या सच में ऐसा है, क्या ऐसा तो नहीं, वैसा तो नहीं, अगर ऐसा न हुआ तो, अगर वैसा न हुआ तो। मगर याद रखिए हमारे इस यक़ीन इस अक़ीदे पे ही हमारी मगफिरत का दारोमदार है, तो इसको रोज़ ताज़ा करते रहिए। 

वापस आते हैं अत-तकासुर की छठी आयत पे। जिसमें अल्लाह फरमाते हैं-

لَتَرَوُنَّ الۡجَحِيۡمَۙ‏ (लतरावुन्नल जहीम) 

"तुम जहन्नम को देख कर रहोगे।" 

मतलब कि तुम सब उस दिन जब किसी को अपने सिवा किसी की परवाह न होगी। उस दिन के जिस दिन के बारे में अल्लाह तआला कुरआन-ए-मजीद में फ़रमाते हैं सूरह फज्र में।

 كَلَّاۤ اِذَا دُكَّتِ الۡاَرۡضُ دَكًّا دَكًّا ۙ‏ 

"हरगिज़ नहीं! जब ज़मीन को कूट कूट कर हमवार कर दिया जाएगा।"

 وَّجَآءَ رَبُّكَ وَالۡمَلَكُ صَفًّا صَفًّا ۚ‏ 

"और तुम्हारा रब जलवा फरमा होगा इस हाल में कि फ़रिश्ते सफ़ दर सफ़ खड़े होंगे।"

 وَجِاىْٓءَ يَوۡمَٮِٕذٍۢ بِجَهَنَّمَ 

 ۙ يَوۡمَٮِٕذٍ يَّتَذَكَّرُ الۡاِنۡسَانُ وَاَنّٰى لَـهُ الذِّكۡرٰىؕ‏ 

"और जिस दिन जहन्नम को लाया जाएगा, और उस दिन इंसान का कोई अमल काम नहीं आएगा।"

अल्लाह हु अकबर!

मैं आपको कुछ अहादीस का मिला जुला मफ़हूम बताता हूँ जिससे आपको कुछ तो अंदाज़ा हो जाएगा के वो दिन कितना सख़्त होगा, जब लोगों के सामने जहन्नम को लेके आया जाएगा। और जब जहन्नम पहली बार लोगों को देखेगी। जिसके लिए जहन्नम को बनाया गया है, हज़ारों लाखों साल जिसके लिए उसने इंतज़ार किया। और जहन्नम को जब लाया जाएगा तो ऐसे ही नहीं आ रही होगी। जहन्नम को 70 हज़ार ज़ंजीरों  से पकड़ कर लाया जा रहा होगा। और और उस हर एक ज़ंजीर पे 70 हज़ार फ़रिश्ते होंगे! अल्लाह हु अकबर। बस सोच कर देखो! करोड़ों फ़रिश्ते जहन्नम को पकड़े होंगे और जब इंसान इस मंज़र को देखेंगे वो सबके सब सजदे में गिर जाएंगे। मगर फिर किसी का सजदा कुछ काम नहीं आएगा! उस रोज़ इतनी दहशत होगी कि बच्चों के बाल सफेद हो जाएंगे। 

ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيۡنَ الۡيَقِيۡنِۙ‏ (सुम्मा लतरावुनहा अइनल यक़ीन)   

"फिर (सुन लो के) तुम बिल्कुल यकीन के साथ उसे देख लोगे।"

फिर अल्लाह तआला यकीन पे ज़ोर डाल रहे हैं। कि कोई बात नहीं तुमने दुनिया में हमारी आयतों का यकीन नहीं किया। कोई बात नहीं तुम ईमान नहीं लाए। कोई बात नहीं तुमने मुहँ फेर लिया। उस रोज़ जब तुम देखोगे ना रोज़ -ए -कयामत में तब तुम्हें कोई शक नहीं होगा, तुम्हें पता होगा की हाँ यही सच है, यही वो सच है जिस से मैं मुहँ फेरता रहा। मगर उस दिन, (अल्लाह हम सब की हिफ़ाज़त करे और हमसे राज़ी हो,) किसी को कोई नफा नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा सिवाय उस ज़ात के जो ज़ुल जलाल-वल इकराम है। फिर उस रोज़ तुमसे इन नेमतों के बारे में जवाब तलब की जाएगा! अब ये सूरह की भी आखरी आयत है और मैं भी इससे बेहतर आयत नहीं ढूँढ सकता इस टॉपिक को ख़त्म करने की। 

ثُمَّ لَـتُسۡـَٔـلُنَّ يَوۡمَٮِٕذٍ عَنِ النَّعِيۡمِ‏ (सुम्मा लतुसअलुन्ना यौमइज़िन अनिन नईम) 

"फिर उस रोज़ तुमसे इन नेमतों के बारे में जवाब तलबी की जाएगी।" 

यानि उस रोज़ तुमसे नेमतों के बारे में अल्लाह पूछेगा जो तुम्हें पूरी ज़िंदगी में दिया है जिसको तुम नज़रअंदाज़ करते रहे। अगर तुम्हारे पास सेहत है और एक छत है सर छुपाने को तो "It is as if you are the king of the world" मतलब की ऐसा है कि तुम राजा हो दुनिया के! हम सिर्फ खुद पे ही गौर करें, जो अल्लाह ने हमें दिया है, जिसको हमने for granted ले रखा है। हमारा जिस्म और उसके एक एक हिस्से पर। हमें अंदाजा भी नहीं है कि कैसे करामाती हमारा जिस्म है! हमारे जिस्म की धमनियों (ब्लड वेसेल्स) को अगर निकालकर मापें तो 2 बार पूरी धरती का चक्कर लगा सकते हैं। हमारे दिमाग़ में तकरीबन 100 बिलियन न्यूरोन्स होते हैं। हमारा दिल इतना ताक़तवर है कि वो खून को 30 फुट की दूरी तक फेंक सकता है। हमारा जिस्म, हर एक सेकंड में 38 लाख नयी कोशिकाएं बनाता है - अल्लाह हू अकबर, सुब्हानअल्लाह, बस... लाजवाब। और भी कई चीजें हैं जिनकी सूची कभी ख़त्म नहीं हो सकती है!  जैसे कि अगर हमने अपने जिस्म का DNA खोला तो 575 बिलियन किलोमीटर तक फैल सकता है - सुब्हा नअल्लाह, आप इन दूरियों की कल्पना भी नहीं कर सकते जो दुनिया का हर इंसान अपने जिस्म में लिए बैठा है।

एक शेख का वाक़्या है - बहुत पैसे वाला था। एक बार वो बीमार पड़ गया और उसे हॉस्पिटल में अड्मिट करना पड़ गया। और कुछ मेडिकल कारणों के चलते उसको सांस नहीं आ रही थी, उसको कुछ समय ऑक्सीजन पे रखना पड़ा। फिर जब वो ठीक हुआ तो हॉस्पिटल वालों ने उसको मेडिकल बिल दिया, जो डिस्चार्ज होते समय दिया जाता है, तो वो शेख रोने लगे, लोगों ने पूछा कि आप टेंशन न लें हम इस बिल को कम करवा देते हैं अगर आपको ये ज्यादा लग रहा है, तो शेख ने कहा नहीं, मुझे इसको भरने में कोई समस्या नहीं हैl मेरे पास अल्हम्दुलिल्लाह बहुत पैसा है, बस मेरे दिमाग में ये आ गया कि मैं कुछ दिन यहां अड्मिट रहा और तुमने मुझे ऑक्सीजन दी तो इतना सारा पैसा ले लिया, और मेरे रब मुझे पूरी जिंदगी ऑक्सीजन देता रहा और कभी कुछ भी नहीं लिया।  सुब्हानअल्लाह

मैं क़ुरआन की एक पसंदीदा आयत से इस ब्लॉग को यहीं खत्म करूंगा और उम्मीद करता हूँ आपको इससे कोई न कोई फायदा ज़रूर पहुंचेगा। 

इंशाल्लाह

فَبِاَىِّ اٰلَاۤءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبٰنِ‏  (फ़बी अइआला इ'रब्बिकुमा तुकज़्ज़िबान) 

"तुम अपने रब की कौन कौन सी नेमतों और कुदरतों को झुठलाओगे।"

अगर इस ब्लॉग में आपको कुछ भी अच्छा मिले तो वो अल्लाह की तरफ से है और जो भी गलती है वो मेरी है। अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि वबरकातुहू।

                                                     

आपका दीनी भाई 
मुहम्मद अशहर

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