Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13h): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13h): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13h)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने के बाद 

31. तायेफ़ का सफ़र और वहां पहुंचाई गई तकलीफ़

जब अबु तालिब की मृत्यु हो गई तो क़ुरैश की जानिब से तकलीफ़ें पहुंचाने का सिलसिला पहले से भी ज़्यादा सख़्त हो गया, ऐसा वह अबु तालिब की ज़िन्दगी में नहीं करते थे। अब तो उन्होंने अपने क़बीले के बेवक़ूफ़ और लफंगों को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे लगा दिया, वह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिर पर मिट्टी फेंका करते थे।

जब क़ुरैश की जानिब से शिद्दत की तकलीफ़ पहुंचने लगी और इस्लाम को रोकने के सिलसिले में वह बिल्कुल डट गए तो फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तायेफ़ गए कि शायद बनी सक़ीफ़ से कोई मदद मिल जाए और वहां के लोग इस्लाम क़ुबूल कर लें।

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तायेफ़ गए और बनी सक़ीफ़ के सरदारों और संभ्रांश (सम्मानित) लोगों से मिले ,उनके पास बैठे और उन्हें अल्लाह के दीन की दावत दी तो उन्होंने इसका जवाब सख़्त बुराई से दिया, उनका जी भरकर मज़ाक़ उड़ाया और अपनी क़ौम के बेवक़ूफ़, ग़ुलाम और लफंगों को उनके पीछे लगा दिया जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गालियां देते, चीख़ते, शोर मचाते, पत्थर चला चला कर मारते, आप एक पेड़ के साये में चले गए। उस समय नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सख़्त ज़ख्मी हुए, वह बहुत ज़्यादा तकलीफ़ में थे क्योंकि जितनी तकलीफ़ वहां आप को पहुंचाई गई थी उतनी तो मक्का के मुशरिकों ने भी नहीं पहुंचाई थी। तायेफ़ वाले दो लाइन बनाकर रास्ते के दोनों जानिब बैठे गए जबतक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चलते रहे वह बराबर पत्थर फेंक कर मारते रहे यहांतक कि आपका शरीर ख़ून ख़ून हो गया, आपकी दोनों एड़ियों से भी बराबर ख़ून बहे जा रहा था।आपके दिल और ज़ुबान पर फ़र्याद जारी थी, आप अपनी कमज़ोरी, मजबूरी और असबाब की कमी की शिकायत अल्लाह तआला से कर रहे थे और उसी की पनाह, मदद, और समर्थन मांग रहे थे। आप की ज़ुबान पर यह दुआ थी:

اللهم إليك أشكو ضعف قوتي، وقلة حيلتي، وهواني على الناس، أرحم الراحمين، أنت أرحم الراحمين، إلى من تكلني، إلى عدو يتجهمني، أو إلى قريب ملكته أمري، إن لم تكن غضبان علي فلا أبالي، غير أن عافيتك أوسع لي، أعوذ بنور وجهك الذي أشرقت له الظلمات، وصلح عليه أمر الدنيا والآخرة، أن تنزل بي غضبك، أو تحل علي سخطك، لك العتبى حتى ترضى، ولا حول ولا قوة إلا بك

" ऐ अल्लाह मैं तुझसे अपनी कमजोरी, बेबसी, और लोगों के नज़दीक अपनी नाक़दरी की शिकायत करता हूं ऐ करुणा के भंडार! तू कमज़ोरों का रब है और मेरा भी रब है, तूने मुझे किस ग़ैर के हवाले कर दिया है जो मुझसे सख़्ती से पेश आए हैं या किस दुश्मन को तूने मेरे मामले का मालिक बना दिया है। अगर तू मुझसे नाराज़ नहीं है तो फिर मुझे कोई परवाह नहीं है लेकिन तेरी रहमत मेरे लिए ज़्यादा कुशादह है। मैं तेरे चेहरे के उसे नूर की पानाह चाहता हूं जिससे अंधेरे उजाले में बदल जाते हैं और जिसपर दुनिया व आख़िरत के मामलात ठीक हो जाते हैं। ऐ अल्लाह मुझपर तेरा ग़ज़ब नाज़िल हो या नाराज़गी मैं तो उस समय तक दुआ करता रहूंगा जबतक कि तू राज़ी न होजाय। तेरे इलावा किसी के पास न कोई शक्ति है और न ताक़त" (1)

अल्लाह तआला ने पहाड़ों के फ़रिश्तों को भेजा उसने आकर आपसे गुज़ारिश की अगर आप अनुमति दें तो मैं तायेफ़ वालों को दोनों पर पहाड़ के दरमियान पीस डालूं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया नहीं, बल्कि मुझे उम्मीद है कि उनकी आने वाली नस्लों में ऐसे लोग जन्म लेंगे जो केवल अल्लाह की इबादत करेंगे और उसके साथ किसी को शरीक नहीं करेंगे।

उधर उतबा बिन रबीआ और शैबा बिन रबीआ ने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह हालत देखी तो उनकी शराफ़त और रिश्तेदारी जागी उन्होंने अपने ईसाई ग़ुलाम अददास को आवाज़ देकर बुलाया और कहा इस अंगूर में से एक गुच्छा उठाओ, एक प्लेट में रखो फिर उस इंसान को ले जाकर दो और कहना कि वह उसे खा ले। अरदास ने वैसा ही किया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बातें सुनकर और उनका अख़लाक़ देखकर मुसलमान हो गया।

फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तायेफ़ से मक्का लौटे और उनकी क़ौम उनका विरोध, दुश्मनी और मज़ाक़ उड़ाने और कटाक्ष करने में पहले से भी ज़्यादा सख़्त हो गई।

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1, तबरानी, अल मुअजम अल कबीर यह रिवायत ज़ईफ़ है अस सिलिसिला अज़ ज़ाईफ़ा 2933.

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32. मेअराज और नमाज़ की अनिवार्यता

फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मस्जिद ए हरम से मस्जिद अक़्सा ले जाया गया और वहां से जहां तक अल्लाह ने चाहा अपने पैगंबर को अपने क़रीब आसमान की सैर कराई, अनेक निशानियों का अवलोकन कराया और अंबिया की जमाअत को दिखाया।

مَا زَاغَ ٱلۡبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ  لَقَدۡ رَأَىٰ مِنۡ ءَايَٰتِ رَبِّهِ ٱلۡكُبۡرَىٰٓ

"निगाह न चुन्धियाई न हद से आगे बढ़ी। और उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं" 

(सूरह 53 अन नज्म आयत 17, 18)

वास्तव में यह अल्लाह की तरफ़ से अतिथि सत्कार (मेहमान नवाज़ी) तथा संतुष्टि व तसल्ली का सामान था और तायेफ़ में जो कुछ पेश आया था उसका बदला था।

जब दूसरे दिन सुबह सूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़ुरैश के दरमियान आए और इसकी ख़बर दी तो उन्होंने इसका इनकार कर दिया, इसे असंभव जाना, झूठलाया और ख़ूब ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया। केवल अबु बकर थे जिन्होंने कहा अल्लाह की क़सम वह जो कुछ कहते हैं बिल्कुल सच कहते हैं इसमें तअज्जुब की क्या बात है! अल्लाह की क़सम उन्होंने मुझे बताया है कि उनके पास आसमान से ज़मीन पर दिन और रात के एक समय में ख़बर आती है मैं उनकी तस्दीक़ करता हूं क्या इसके बाद भी तुम्हें उनकी बातों पर तअज्जुब है?

अल्लाह तआला ने उनपर और उनकी उम्मत पर रोज़ाना पचास नमाज़ें फ़र्ज़ की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बराबर इसको कम करने का मुतालिबा करते रहे यहांतक कि अल्लाह तआला ने दिन और रात में केवल पांच नमाज़ कर दी। जो ईमान और सच्चे दिल के साथ इसे अदा करेगा उसको पचास नमाज़ों का सवाब मिलेगा।

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33. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अरब के क़बीले

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज्ज के मौक़ा पर अरब के क़बीलों से संपर्क किया और उन्हें दावत देना शुरू किया वह उनको दावत देते थे कि उन्हें दुश्मनों से बचाए और कहते थे "बेशक मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं, अल्लाह तुमको आदेश देता कि केवल अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न करो, उनकी बंदगी उनकी ग़ुलामी छोड़ दो जिनकी इसके साथ शरीक बनाकर तुम इबादत करते हो। तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और उसकी तस्दीक़ करो और मेरी हिफ़ाज़त करो यहांतक कि मैं उस बात को स्पष्ट कर दूं जिसके लिए अल्लाह ने मुझे भेजा है।

जैसे ही रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात मुकम्मल होती अबु लहब फ़ौरन खड़ा होता और कहता, ऐ फ़ुलां! यह तुमको दावत देता है कि तुम लात और उज़्ज़ा की बंदगी से निकल जाओ और अपने मददगार जिन्नों को भूल जाओ। यह जो कुछ बिदअत (नई चीज़) और गुमराही लाया है तो तुम न उसकी बात मानो और न उसे सुनो।

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34. क़बीले अंसार में इस्लाम 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज्ज के मौसम में निकले जब वह एक घाटी के पास थे कि अंसार के क़बीले ख़ज़रज के कुछ लोगों से मुलाक़ात हो गई। आपने उन्हें अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाया, उनके सामने इस्लाम पेश किया और क़ुरआन की तिलावत की।

अंसार मदीना में यहूदियों के पड़ोसी थे और वह सुनते रहते थे कि बहुत जल्द एक नबी आने वाला है चुनांचे उन्होंने आपस में कहा ऐ क़ौम के लोगो! बेशक यह वही नबी है जिसकी धमकी ,तुमको यहूदी अबतक देते रहे हैं कहीं ऐसा न हो कि वह हमसे आगे बढ़ जाएं। यह सोच विचार करके फ़ौरन मुसलमान होगए, तस्दीक़ की। फिर बोले हमने अपनी क़ौम को ऐसी हालत में छोड़ा है कि जो बुराई और दुश्मनी आपस में उनके दरमियान है वह किसी और क़बीले में नहीं है क्या पता अल्लाह तआला आपके द्वारा उन्हें इकट्ठा कर दे। वापसी पर हम उनके सामने आपका मामला पेश करेंगे और आपके लाए हुए दीन की दावत देंगे जिसे हम क़ुबूल कर चुके हैं। अगर अल्लाह ने उन्हें इकट्ठा कर दिया तो आपसे ज़्यादा सम्मानित व्यक्ति कोई नहीं होगा।

अंसार मुसलमान होकर और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लाए हुए पैग़ाम की तस्दीक़ करके वतन लौटने का इरादा किया चुनांचे जब मदीना लौटे तो उन्होंने अपने भाइयों से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनकी इस्लाम की दावत का ज़िक्र किया यहांतक कि उनके यहां इस्लाम का चर्चा हो गया, फिर तो अंसार का कोई घर ऐसा नहीं था जहां रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम न लिया जाता हो।

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35. बैअत अक़बा ऊला

अगले वर्ष जब हज्ज का मौसम आया तो अंसार के बारह लोग मक्का आए और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुलाक़ात की और एक घाटी में बैअत की इस बैअत को "बैअत अक़बा ऊला" कहलाई उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निम्नलिखित बातों पर बैअत की"

1, हम एक अल्लाह के इलावा किसी की इबादत नहीं करेंगे और उसके साथ किसी को साझी नहीं बनाएंगे।

2, हम चोरी नहीं करेंगे

3, हम ज़िना नहीं करेंगे।

4, हम अपनी औलाद (लड़कियों) को क़त्ल नहीं करेंगे।

5, हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हर एक अच्छी बात मानेंगे।

जब उन्होंने मदीना लौटने का इरादा किया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके साथ मुसअब बिन उमैर रज़ि अल्लाहु अन्हू को यह आदेश देकर भेजा कि वह अंसार को क़ुरआन पढ़ाएं, इस्लाम सिखाएं और दीन समझाएं, इसी कारण मुसअब बिन उमैर को "मदीना का उस्ताद" कहा जाता है। वह असअद बिन ज़रारा के मेहमान रहे और अंसार को नमाज़ पढ़ाते थे।

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36. मदीना में इस्लाम का प्रचार

इस्लाम अंसार के दोनों क़बीलों और औस और ख़ज़रज के घरों में बहुत तेज़ी से फैलने लगा। सअद बिन मुआज़ और उसैद बिन हज़ैर दोनों अपनी क़ौम के सरदार थे उनका तअल्लुक़ बनी अब्दुल अशहल से था वह पहले मुसलमान होने वालों की हिकमत, उनके अच्छे व्यवहार और मुसअब बिन उमैर रज़ि अल्लाहु अन्हु की दावत की ख़ूबसूरती की वजह से मुसलमान हो गए और उनके इस्लाम कुबूल करने से बनी अब्दुल अशहल का पूरा क़बीला मुसलमान हो गया। अंसार का कोई घर बाक़ी नहीं था जहां पर कोई न कोई मर्द और औरत मुसलमान न हुआ हो।

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37. बैअत अक़बा सानिया (अक़बा की दूसरी बैअत)

मुसअब बिन उमैर रज़ि अल्लाहु अन्हु अगले वर्ष मक्का आए तो उनके साथ अंसार की एक तादाद थी जो अपनी क़ौम के मुशरिक साथियों के साथ हज्ज करने आए थे वह मक्का में दाख़िल हुए और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अक़बा में मुलाक़ात का वादा किया। चुनांचे जब हज्ज निमट गया और तीन रातें भी गुज़र गईं तो वह लोग अक़बा की घाटी में इकट्ठा हुए उनमें तिहत्तर पुरुष थे और दो महिला थीं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए तो उनके साथ उनके चाचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब भी थे जो अभी तक मुसलमान नहीं हुए थे।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को क़ुरआन सुनाया, अल्लाह के दीन की दावत दी और इस्लाम की तरफ़ तवज्जुह दिलाई। फिर कहा, मैं तुमसे इस बात पर बैअत लेता हूं कि तुम मेरी वैसे ही हिफ़ाज़त करोगे जैसे तुम अपने बीवी बच्चों की सुरक्षा करते हो, उन्होंने वादा किया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अहद लिया कि आप अपनी क़ौम की तरफ़ वापस नहीं लौटेंगे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसका वादा किया और कहा "आज से तुम मेरे हो और मैं तुम्हारा हूं, मैं उससे जंग करूंगा जिससे तुम जंग करोगे और मैं उससे सुलह करूंगा जिससे तुम सुलह करोगे। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनमें से बारह सरदार नौ ख़ज़रज से और तीन औस से मुक़र्रर किये।


किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि 
अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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