गुमनाम दास्तानें
जिंदगी कितनी हसीं होती है, आज मैने जाना,
जिंदगी की हकीकत को आज पहचाना।
आज तन्हाई में बैठी सोचती हूं कि काश जिंदगी से कभी मुलाकात ही ना होती,
काश मेरी जिंदगी इतनी उदास न होती।।
कुछ जवानी की मीठी यादें,
तो कभी उनकी याद में गुजरती मेरी दर्द भरी रातें,
मैं एक पंछी थी, आजाद गगन की।
काश कोई मुझे सिखा देता मेरी ख्वाहिशत की सरहदें,
मैं तो उड़ना चाहती थी, खुले गगन में,
मगर नहीं जानती थी कि दरिंदे बैठे हैं हर आंगन में।
कितनी मासूम जवानी थी, हर कोई अपना लगता था,
मोहब्बत को पाना ही मेरा एक सपना था। ।
मोहब्बत की खातिर मै तेरे दर तक आ गई,
अर्जुन और अब्दुल में जरा फर्क में ना कर पाई।
आज सोचती हूं, काश कि मैं जान पाती, मोहब्बत एक फरेब है,
काश के जान पाती इज्जत कितनी अनमोल हे। ।
आज अपना धर्म परिवर्तन कर अर्जुन के घर आ बैठी हूं,
अल्लाह के हर एहकाम को छोड़ बैठी हूं।
आज मैं ना इसकी रही, ना उसकी रही,
आज मुहोब्बत के नाम पर मेरे मेहबूब ने मुझे दूसरे के आगे दस्तरख्वान बना दिया। ।
काश कि इस जिंदगी से बेहतर मुझको मौत आ जाती,
ना ये मुझको जीने देता है, ना मुझको मौत आती है।
ऐ मेरी प्यारी मां, तेरा आंगन छोड़ कर, तेरी बड़ी याद आती है,
मेरी मां तेरी वो बात बड़ी याद आती है। ।
मेरी जिंदगी में राजकुमार आएगा मुझे लेने, तू मुझे बताती थी,
ओर मां तू आज भी मुझे सपने में आकर बताती है।
मां कोई राजकुमार नहीं आया,, मैं खुद ही अपने राजकुमार की तलाश में अपना सब कुछ छोड़ आई,
अपने धर्म से मुंह मोड़ आई। ।
मेरी हर रात बड़ी अजियत नाक बन जाती है,
जब मै एक नहीं, बहुत सारे राजकुमारों की रानी एक ही रात में बना दी जाती हूं।
ऐ काश मेरी मां तूने मुझे राजकुमार के सपने ना दिखाए होते,
तो मैं अपने राजकुमार की तलाश में अपना सब कुछ छोड़ कर, ना इसके साथ आई होती। ।
मेरी मां काश तूने मुझे ये बताया होता कि अल्लाह के एहकाम को,
उसके मजहब को छोड़ने की सज़ा ये होती है, कि एक जिंदा को जिंदगी मौत से भी बदतर मिलती है।
मुझे पढाया लिखाया,, काश कि मुझे दीन की सही समझ दी होती,
तो आज मैं किसी अर्जुन की नहीं, बल्कि किसी अब्दुल की रानी होती। ।
मैं पैरों से ना कुचली जाती, मैं सर का ताज होती,
मैं तो मासूम थी, नासमझ थी, जिंदगी से अंजान, सपनों की दुनिया में मगन थी।
मगर क्या मै जिसके घर में पैदा हुई, वो भी अंजान थे?
क्या वो ना समझ थे?
क्यूं नहीं उन्होंने मुझे अल्लाह के एहकामात बताए?
क्यूं नहीं उन्होंने मुझे सही रास्ता दिखाया?
क्यूं उन्होने मुझे नहीं रोका, जब उन्हें पहली बार पता चला कि
मैं किसी अर्जुन, अरविंद को दिल दे बैठी हूं?
क्यूं वो मेरी इन चीज़ों को बचपन कि ना समझी समझते रहे?
मुझसे ये ज़िल्लत भरी जिंदगी का बोझ नहीं उठता अब,
जिंदगी से छुटकारा मिलेगा, मर जाउंगी तब।
मेरी कोख में पल रही, ना जाने कितनी जानो को मौत दे दी गई,
इतनी भयानक सज़ा मुझे मेरे मज़हब को छोड़ने की दी गई। ।
काश कि मैं लौट सकती, काश कि मैं लौट सकती,
ए काश कि मैं लौट सकती। ।
मुसन्निफ़ा: खिजरा इस्लाही
1 टिप्पणियाँ
बेह्तरीन
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