Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13e): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13e): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13d)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने के बाद 

11. क़ौम की तरफ़ से दुश्मनी और अबु तालिब की सरपरस्ती

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम की दावत और हक़ का वैसे ही ऐलान किया जैसा कि अल्लाह तआला ने उनको हुक्म दिया था तो उनकी क़ौम उनसे दूर नहीं हुई और न इसका कोई जवाब दिया लेकिन जब उन्होंने उनके माबूदों का ज़िक्र किया और उनकी कमियां बताईं जिनका वह बहुत सम्मान करते और अहमियत देते थे तो आपकी मुख़ालिफ़त और दुश्मनी में सभी इकट्ठे हो गए।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचा अबु तालिब ने उनकी सरपरस्ती की और दुश्मनों को उनतक पहुंचने नहीं दिया, वह उनके दरमियान ओट बनकर खड़े हो गए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी दावत और हक़ के ऐलान में बराबर लगे रहे, उन्हें कोई चीज़ नहीं रोक सकी जबकि अबु तालिब बराबर उनकी सरपरस्ती करते रहे और दुश्मन की तकलीफ़ो से बचाते रहे।

जब काफ़ी समय बीत गया तो क़ुरैश के बहुत से लोग अबु तालिब के पास आए और कहा "ऐ अबु तालिब तुम्हारा भतीजा हमारे माबूदों को बुरा भला कहता है, हमारे दीन में कमियां निकलता है, हमारे नौजवानों को बेवक़ूफ़ बनाता है और हमारे बाप दादा को गुमराह कहता है अगर आप उसे रोक नहीं सकते तो हमारे दरमियान से हट जाएं क्योंकि आप हमारी तरह हमारे दीन और अक़ीदे पर क़ायम हैं।

अबु तालिब ने उनसे बहुत ही नरमी से बात की और बहुत ख़ूबसूरती से उन्हें लौटा दिया चुनांचे वह वापस चले गए।

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12. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबु तालिब के दरमियान बातचीत

क़ुरैश अक्सर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्र दुश्मनी में करने लगे वह एक दूसरे को भड़काते भी थे, वह दोबारा अबु तालिब के पास गए उन्होंने कहा ऐ अबु तालिब आप हमसे उम्र में बड़े हैं इज़्ज़त और मर्तबे में हमसे ज़्यादा हैं, हम आपके पास आए हैं कि आप अपने भतीजे को रोक लें अल्लाह की क़सम अब हम इस से ज़्यादा सब्र नहीं कर सकते जितना सब्र कर चुके हैं इस बात पर कि वह हमारे बाप दादा को बुरा भला करता है, हमारे बुज़ुर्गों को बेवक़ूफ़ बताता है और हमारे माबूदों में ऐब निकालता है। अगर आपने उसे नहीं रोका तो हम उससे और आपसे इस मामले में जंग करेंगे यहांतक कि दोनों में से कोई एक गिरोह हिलाक हो जाए। 

अबु तालिब को क़ौम की जुदाई और उनकी दुश्मनी बड़ी नागौर लगी उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लाये हुए इस्लाम को ख़ुद नहीं अपनाया था, चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बुला भेजो और कहा 

"ऐ मेरे भतीजे तेरी क़ौम के लोग मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझसे ऐसे और ऐसे कहा तो तू मुझे और अपने आप को बचा ले और मुझ पर इतना बोझ न डाल जो मेरी शक्ति से ज़्यादा हो।"

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13.  अगर दाहिने हाथ में सूरज और बाएं में चांद भी ला के रख दोगे

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम समझ गए कि अबु तालिब इस मामले में परेशान है और उनकी मदद तथा उनका साथ देने में कमज़ोरी महसूस कर रहे हैं। चुनांचे उन्होंने कहा, "ऐ चाचा अगर इस दावत को छोड़ने के लिए यह लोग मेरे दाहिने हाथ में सूरज और बाएं हाथ में चांद लाकर रख दें तो भी मैं इसे नहीं छोडूंगा यहांतक कि अल्लाह उनको ग़ालिब कर दे या मुझे दिलाक कर दे"

इतना कहते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखें डबडबा गई वह रो पड़े फिर उठ कर चल दिए।

लेकिन जैसे ही वह मुंह फेर कर गए अबु तालिब ने उन्हें आवाज़ दी और कहा, मेरे भतीजे इधर आओ। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए तो अबु तालिब ने कहा "मेरे भतीजे जा और कह जो तुझे पसंद है अल्लाह की क़सम भविष्य मैं कभी इस मामले में नहीं रोक टोक करूंगा।

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14. क़ुरैश का मुसलमानों को कष्ट पहुंचाना

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के दीन की तरफ़ लोगों को बुलाते रहे और क़ुरैश उनसे और अबु तालिब से मायूस हो गए तो उनका ग़ुस्सा उनपर फूटा जो उनके क़बीले के लोग इस्लाम ला चुके थे और जिन्हें बचाने वाला कोई न था।

हर क़बीला अपने क़बीले के मुसलमान पर टूट पड़ता, वह उन्हें क़ैद करते, तरह तरह से कष्ट देते, मारते, भूखा और प्यासा रख कर तड़पाते और मक्के की रेत जब ख़ूब गर्म हो जाती तो उस पर लेटा देते थे।

बिलाल हब्शी ने इस्लाम क़ुबूल किया तो उनके मालिक उमय्या बिन ख़लफ़ जब दोपहर भड़क उठती उन्हें पीठ के बल लिटा देता फिर एक बड़ा पत्थर लाने का हुक्म देता जिसे बिलाल के सीने पर रख दिया जाता फिर कहता, ख़ुदा की क़सम तुम ऐसे ही रहोगे यहांतक कि तुम्हें मौत आ जाए या तुम मुहम्मद का इनकार कर दो और लात व उज़्ज़ा की पूजा करो लेकिन बिलाल का इस हालत में यही जवाब होता अहद अहद (अल्लाह एक है अल्लाह एक है)।

अबु बकर सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु का गुज़र हुआ उन्होंने बिलाल की यह हालत देखी तो उमय्या को एक हब्शी ग़ुलाम जो बिलाल से ज़्यादा ताक़तवर और तंदुरुस्त था देकर बिलाल को उससे छुड़ा लिया और उन्हें आज़ाद कर दिया।

बनी मख़ज़ूम प्रतिदिन अम्मार बिन यासिर और उनके माता पिता को (जो इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे) जब दोपहर की गर्मी बढ़ जाती तो अज़ाब देने के लिए मक्का के पत्थरों पर लिटा देते थे उधर से जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुज़र तो कहते, "ऐ यासिर और यासिर के घर वालो सब्र करो और इस्लाम पर जमे रहो तुमसे जन्नत का वादा है। (अबु जहल ने) उनकी मां को क़त्ल कर दिया क्योंकि उन्होंने इस्लाम छोड़ने से इनकार कर दिया था।

मुसअब बिन उमैर मक्का के अति सुंदर और बे फ़िक्र नौजवान थे उनकी मां बहुत ही मालदार थी वह उन्हें उच्च कोटि का कपड़ा पहनाती। उन्हें जब सूचना मिली कि अरक़म बिन अरक़म के मकान में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लाम की दावत देते हैं तो वह वहां गए और इस्लाम क़ुबूल कर लिया लेकिन उन्होंने ख़ौफ़ के कारण अपने इस्लाम को अपनी मां और अपनी क़ौम से छुपाए रखा। वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास छुपते छुपाते मिलने आते थे। एक दिन उस्मान बिन तल्हा ने उन्हें नमाज़ पढ़ते हुए देख लिया तो उनकी मां और क़ौम को बता दिया। फिर तो क़ौम के लोगों ने उन्हें पकड़ लिया और क़ैद कर दिया, वह क़ैद में रहे यहांतक कि इस्लाम की पहली हिजरत करते हुए हब्शा की तरफ़ निकल गए। फिर वह मुसलमानों के साथ वापस आगये। जब वहां से लौटे तो बहुत कमज़ोर हो गए थे लेकिन उनकी मां ने उन्हें क़ुबूल करने से इनकार कर दिया।

ऐसे ही कुछ मुसलमानों को क़ुरैश के प्रसिद्ध और सम्मानित मुशरिकों ने पनाह दे रखी थी, वह उन्हें बचाते थे और उनकी हिफ़ाज़त करते थे। उस्मान बिन मज़ऊन वलीद बिन मुगीरा की पनाह में थे फिर उनकी ग़ैरत ने उसकी पनाह में रहने वसे इनकार कर दिया, उन्होंने उसकी पनाह वापस कर दी, वह वफ़ादार और बेहतरीन पड़ोसी थे, उन्होंने कहा कि मुझे अल्लाह के इलावा किसी की पनाह की ज़रूरत नहीं। एक बार उनका किसी मुशरिक से झगड़ा हो गया, मुशरिक को ग़ुस्सा को आ गया वह खड़ा हुआ और उसने उनकी आंख पर घूंसा मारा जिससे उनकी आंख से ख़ून बहने लगा, वलीद बिन मुगीरा कहीं क़रीब ही खड़ा देख रहा था उसने आवाज़ दी मेरे भतीजे! यह जो दूसरी आंख है यह इसलिए बची है कि तू महफ़ूज़ पनाह में था। उस्मान ने कहा ऐ अब्दे शम्स के बाप! बल्कि अल्लाह की क़सम मेरी दूसरी आंख भी उसी की मुश्ताक़ है जो मेरी इस चोटिल आंख को पहुंचा है, बेशक मैं उसकी पनाह में हूं जो तुझसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला और तुझसे शक्ति वाला है।

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15. क़ुरैश की जानिब से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुख़ालिफ़त और नित नए कष्ट देना

जब इस्लाम कुबूल करने वाले नौजवानों को तकलीफ़ पहुंचा कर क़ुरैश को किसी प्रकार की कामयाबी नहीं मिली और न उन्हें वह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दूर ही कर सके तो उन्हें बहुत नागवार महसूस हुआ उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे अपनी क़ौम के मनचले लोगों को लगा दिया। वह उन्हें झूठलाते, हर प्रकार की तकलीफ़ देते, उनपर जादूगर, शायर, काहिन और पागल होने का इल्ज़ाम लगाते और बराबर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नित नई तकलीफ़ें देते और सारी सीमाएं पार कर जाते। 

एक दिन कुछ सम्मानित लोग "हजर" के स्थान पर इकट्ठा थे उसी समय रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए और  बैतुल्लाह का तवाफ़ किया। उनमें से किसी ने कोई फब्ती कसी और उसे तीन बार दोहराया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुनकर थोड़ा रुके फिर कहा ऐ क़ुरैश के लोगो! क्या तुम सुन रहे हो। क़सम उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है मैं तुम्हारे पास मौत का पैग़ाम लाया हूं यह सुनकर पूरी क़ौम ख़ामोश हो गई, कोई अपनी जगह से हरकत न कर सका और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से नरमी से बात करने लगे।

अगली सुबह वह लोग फिर वहीं पर बैठे हुए थे जहां पर कल बैठे थे जैसे ही रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए सभी ने तुरंत उनपर छलांग लगा दी, उनको चारों तरफ़ से घेर लिया और एक आदमी चादर गले मे डालकर मज़बूती से खींचने लगा अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु वहां मौजूद थे उन्हें रोना आ गया, रोते हुए कह "क्या तुम ऐसे इंसान को क़त्ल करना चाहते हो जो कहता है कि मेरा रब अल्लाह है" यह सुनकर वह लौट गए और अबू बकर भी लौट आए। उस दिन रसूलुल्लाह सलाम के सर में दर्द होने लगा क्योंकि उन्होंने आपकी दाढ़ी खींची थी उस दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब बाहर निकले तो आपसे जो भी मिला चाहे वह आज़ाद हो या ग़ुलाम उसने आपको झुठलाया और तकलीफ़ पहुंचाई, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर लौट आए और तकलीफ़ की शिद्दत तथा सदमे से चादर ओढ़ कर लेट गए उसी समय अल्लाह ने यह आयत नाज़िल की 

يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمُدَّثِّرُ  قُمۡ فَأَنذِرۡ 

"ऐ चादर ओढ़ने वाले खड़े हो और डराओ।"

(सूरह 74 अल मुद्दस्सिर आयत 1,2)

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16. कुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने अबु बकर के साथ क्या किया

अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु एक दिन लोगों को अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ बुला रहे थे कि मुशरिक उनपर टूट पड़े, उन्हें बहुत मारा, उतबा बिन रबीआ ने उन्हें तल्ले लगे हुए जूते से मारा जिससे उनका चेहरा ऐसा हो गया कि वह पहचान में न आते थे।

बनी तमीम अबु बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु को उठा कर ले गए, उन्हें उनकी मौत का गुमान होने लगा लेकिन दिन के अंतिम पहर में होश आया। होश आते ही उनका पहला सवाल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़ैरियत के विषय में था। यह सुनकर लोग मलामत करने लगे और उन्हें छोड़कर चले गए। उनके क़रीब ही उम्मे जमील थीं जो मुसलमान हो चुकी थीं, उनसे रसूलुल्लाह के बारे में पूछा। उम्मे जमील ने कहा यहां आप की मां हैं जो सुन रही हैं। अबु बकर ने कहा तुम्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। फिर उन्होंने बताया कि रसूलुल्लाह बिल्कुल ठीक और बेहतर हैं। अबू बकर रज़ि अल्लाहु अन्हु बोले अल्लाह की क़सम मैं उस समय तक न कुछ खाऊंगा न पियूंगा जबतक कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख न लूं। उन दोनों ने इंतेज़ार करने को कहा। जब लोग सो गए और हर तरफ़ सन्नाटा छा गया तो वह दोनों पकड़ कर रसूलुल्लाह के पास ले गईं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन्हें देखकर बहुत दुखी हुए और उनकी वालिदा के हक़ में दुआ की फिर उन्हें अल्लाह के दीन की दावत दी चुनांचे वह फ़ौरन मुसलमान हो गईं।

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17. रसूलुल्लाह की दावत के विषय में क़ुरैश का सोच विचार

क़ुरैश रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मामले में मशविरे के लिए इकट्ठे हुए कि उन्हें क्या कहा जाए और उन लोगों को कैसे रोका जाए जो इनके पास दूर दूर से आते हैं या उनकी बात बहुत ध्यान से सुनते हैं। वह इकट्ठे होकर वलीद बिन मुगीरा के पास गए जो उनमें उम्र और अक़्ल के लिहाज़ से बड़ा था। हज्ज का मौसम भी आने ही वाला था, वलीद ने उनसे कहा, क़ुरैश के लोगो! बेशक हज्ज का मौसम आ चुका है और अरब के प्रतिनिधि मंडल तुम्हारे पास आएंगे, उन्होंने इस व्यक्ति के बारे में भली भांति सुन रखा है ऐसा करो तुम सब एक राय पर इकट्ठे हो जाओ एक दूसरे से इख़्तेलाफ़ न करो ऐसा न हो कि तुम्हारी बातों में विरोधाभास हो जाये और तुम ख़ुद ही एक दूसरे की बात का उल्टा कर दो। उनके दरमियान लंबी बातचीत हुई लेकिन वलीद बिन मुगीरा ने सबको रद्द कर दिया। फिर लोगों ने कहा अबु शम्स के पिता! तुम्हीं कुछ कहो। वलीद ने कहा बेहतर यही है कि तुम उसे जादूगर मशहूर कर दो। ऐसा जादू जो बाप को बेटे से, भाई को भाई से, शौहर को बीवी से और व्यक्ति को ख़ानदान से अलग कर देता है।

वह लोग चले गए और प्रत्येक रास्तों पर महफ़िलें लगा कर बैठ गए जब कोई हज्ज के लिए आता तो उसे रसूलुल्लाह के पास जाने से रोकते और उनके बारे में बताते। (इस प्रकार उन्होंने ख़ुद ही लोगों से रसूलुल्लाह का परिचय करा दिया। जो सुनता वह दावत के विषय में जानने के लिए रसूलुल्लाह के पास छुपते छुपाते पहुंच जाता)


आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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