Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13b): Muhammad saw

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-13b): Muhammad saw


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-13b)

अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
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नबी बनाये जाने से पहले 

1. मक्का और क़ुरैश

सैयदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मक्का जाने का इरादा किया, मक्का मुसलसल पहाड़ों के बीच एक घाटी था जहां पर लोगों के जीवित रहने कोई सामान ना था, न दाना था न पानी था। इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ उनकी पत्नी हाजिरा और उनके बेटे इस्माईल भी थे। वह दुनिया में फैली हुई मूर्तिपूजा से भाग कर यहां आए थे। वह वहां एक ऐसा केंद्र बनाना चाहते थे जिसमें केवल अल्लाह की इबादत हो, वह लोगों को उसकी तरफ़ दावत देना चाहते थे और उनकी ख़्वाहिश कि वह हिदायत का मीनार और लोगों के लिए सवाब (पुन) का माध्यम हो।

अल्लाह ने उनकी इस ख़्वाहिश और अमल को क़ुबूल किया, इस स्थान को बरकत वाला बना दिया और इस छोटे और मुबारक ख़ानदान (परिवार) जो मां और बेटे पर मुश्तमिल था और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिन्हें लाकर संसार से बिल्कुल अलग एक मरुस्थल छेत्र में छोड़ा था वहां पानी का एक चश्मा बहा दिया वह ज़मज़म का कुआँ था अल्लाह ने इस पानी मे बड़ी बरकत दी कि लोग आज भी उस पानी को लगातार पीते भी हैं और संसार के भिन्न भिन्न भागों में लेकर भी जाते हैं।

इस्माईल जब कुछ बड़े हुए और दौड़ने फिरने लगे तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने इकलौते बेटे को ज़बह करने का इरादा किया अल्लह की मुहब्बत पर अपनी मुहब्बत को तरजीह देते हुए और उसे सच सिद्ध करने के लिए जो उन्होंने ख़्वाब में देखा था। इस्माईल ने इस आदेश के आगे ख़ुशी ख़ुशी सिर झुका दिया और क़ुर्बान होने के लिए तैयार हो गए। अल्लाह ने इस महान क़ुर्बानी के बदले (एक दुंबा) फ़िदिया में दिया ताकि अल्लाह की तरफ़ दावत देने में इस्माईल अपने वालिद के मददगार बनें। और सबसे अफ़ज़ल और अंतिम नबी व रसूल उनकी नस्ल से हों।

इब्राहीम अलैहिस्सलाम मक्का आए और पिता व पुत्र दोनों ने मिलकर अल्लाह के घर की बुनियाद डाली और उन्होंने यह दुआ की कि "या अल्लाह इस घर को क़ुबूल करले और इसमें बरकत रखदे और यह दुआ भी की कि वह दोनों इस्लाम के लिए जीवित रहें और इस्लाम पर ही उनकी मौत हो और उनकी मौत से इस्लाम ख़त्म न हो बल्कि उनकी नस्ल में अल्लाह एक नबी भेजे जो अपने दादा की दावत की तजदीद (नवीनकरण) करे और उस काम को मुकम्मल करे जिसे उन्होंने आरम्भ किया है

وَإِذۡ يَرۡفَعُ إِبۡرَٰهِـۧمُ ٱلۡقَوَاعِدَ مِنَ ٱلۡبَيۡتِ وَإِسۡمَٰعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلۡ مِنَّآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ 

رَبَّنَا وَٱجۡعَلۡنَا مُسۡلِمَيۡنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَآ أُمَّةٗ مُّسۡلِمَةٗ لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبۡ عَلَيۡنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ 

رَبَّنَا وَٱبۡعَثۡ فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡهُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَيُزَكِّيهِمۡۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ 

"याद करो इब्राहीम और इस्माईल जब उस घर की दीवारें उठा रहे थे तो दुआ करते जाते थे, “ऐ हमारे रब! हमारी ये ख़िदमत क़बूल कर ले, तू सबकी सुनने और जानने वाला है।

ऐ रब! हम दोनों को अपना मुस्लिम [फ़रमाँबरदार] बना, हमारी नस्ल से एक ऐसी क़ौम उठा जो तेरी मुस्लिम हो, हमें अपनी इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा को क़ुबूल फ़रमा बेशक तू बड़ा माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।

ऐ रब ! इन लोगों में ख़ुद इन्हीं की क़ौम से एक ऐसा रसूल उठाना, जो इन्हें तेरी आयतें सुनाए, इनको किताब और हिकमत [तत्त्वदर्शिता] की तालीम दे और इनकी ज़िन्दगियाँ सँवारे। वास्तव में तू बड़ा ज़बरदस्त [प्रभुत्त्वशाली] और हिकमत वाला [तत्त्वदर्शी] है।" 

(सूरह 02 अल बक़रह आयत 127 से 129)

अल्लाह ने उनकी नस्ल में बरकत दी ख़ानदान ख़ूब फला फूला। अदनान के बहुत सी औलादें हुईं वह इस्माईल के पोतों की नस्ल में से थे। उनकी नस्ल में फ़हर बिन मालिक पैदा हुए, उनकी औलाद में कुसई बिन किलाब का जन्म हुआ वह इस घर यानी काबा के मुतवल्ली हुए, मक्का में उनका हुक्म चलता था वह ऐसे सरदार थे जिनकी हर बात मानी जाती थी। बैतुल्लाह शरीफ़ के हिजाबह(1), उसकी कुंजियां, सिक़ाया(2) पानी पिलाना) और रिफादह(3) का मनसब उनके पास था और नदवा की ज़िम्मेदारी भी थी जहां क़ुरैश राय मशविरे के लिए इकट्ठे होते थे और जंग में बग़ैर झंडे का अलम उठाने का उहदा भी उनके पास था अर्थात उनकी ज़ात में तमाम मक्का का शरफ़ जमा हो गया था।

कुसई बिन किलाब के बेटे अब्दे मुनाफ़ थे जो इज़्ज़त बुज़ुर्गी और शराफ़त में अपने पिता से भी आगे बढ़ गए। अब्दे मुनाफ़ के बड़े बेटे का नाम हाशिम था। हाशिम अपनी क़ौम के सरदार थे और रिफादह व सिक़ायह का मनसब उनके पास था।


हाशिम अब्दुल मुत्तलिब के पिता थे और अब्दुल मुत्तलिब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा थे। इनके पास सिक़ाया और रिफ़ादा का मनसब अपने चाचा मुत्तलिब बिन मुनाफ़ के बाद मिला था और वह इज़्ज़त व मर्तबे में वहां पहुंचे जहां उनके बाप दादा में से कोई नहीं पहुंच सका था। वह अपनी क़ौम के महबूब सरदार थे।


फ़हर बिन मालिक की औलाद "क़ुरैश" कहलाई। यह नाम धीरे-धीरे तमाम नामों पर ग़ालिब आ गया और इसी "क़ुरैश" के नाम से प्रसिद्ध हो गया। तमाम अरब के लोग क़ुरैश के नसब की बुलंदी, सरदारी, भाषा की फ़साहत, अच्छे अख़लाक़ और वीरता के क़ायल थे बल्कि लोगों में यह कहावत बन गई थी जिसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं था।

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2. मक्का और क़ुरैश में मूर्तिपूजा

क़ुरैश अपने दादा इब्राहीम ख़लीलुल्लाह और इस्माईल के दीन से चिमटे और तौहीद के अक़ीदे पर क़ायम रहे वह केवल अल्लाह की इबादत करते थे यहांतक कि उनमें अम्र बिन लुहई का जन्म हुआ। इस नस्ल में वह यह पहला व्यक्ति था जो इस्माईल के दीन पर न था उसने मूर्तियों का सम्मान औरबुतों के नाम पर जानवर छोड़े जाने का अक़ीदा घड़ लिया जिसकी अनुमति अल्लाह तआला ने उन्हें नहीं दी थी और न इब्राहीम की शरीअत में इसका कोई तस्व्वुर मौजूद था। अम्र बिन लुहई मक्का से शाम (सीरिया) गया वहां उसने लोगों को मूर्तिपूजा करते हुए देखा तो उसे पसंद आया चुनांचे उनमें से कुछ मूर्तियां वह मक्का ले आया और लोगों को उसकी पूजा करने और उसका सम्मान देने का आदेश दिया।

क़ुरैश जब यह मक्का से बाहर कहीं जाते तो काबा के बड़े पत्थर अपने साथ उठाए फिरते थे हरम की ताज़ीम करते हुए। उनका विचार था की इन पत्थरों का सम्मान वास्तव में हरम का सम्मान है और उसको क़ायम रखने का ज़रिआ है फिर क्या था इन पत्थरों की इबादत में उन्हें मजा आने लगा।

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3. हाथियों वाले

एक बड़ी घटना घटित हुई जो किसी बड़े वाकिआ के पेश आने की भविष्यवाणी थी। अल्लाह ने अरब के साथ भलाई का इरादा किया। काबा की शान दुनिया के तमाम घरों से निराली थी।

घटना यह घटित हुई की अबरहा अश्रम जो हबशा देश की तरफ़ से यमन का गवर्नर था उसने यमन की राजधानी सना में एक विशाल कनीसा (गिरजाघर) बनाया जिसका नाम कुलय्यस रखा गया। वह चाहता था कि अरब में होने वाला हज्ज जो कि लोगों के लिए सवाब (पुन) का वसीला था जिसकी तरफ़ लोग ख़ुशी-ख़ुशी सफ़र का कजावा बांधते थे और हर तरफ़ से आते थे वह चाहता था कि कनीसा को भी वही स्थान प्राप्त हो जाए।

अरबों को जब उसके गंदे इरादे का पता चला तो उन्हें बड़ा नागवार लगा। वह काबा की मुहब्बत और उसकी अक़ीदत का दूध पीकर बच्चे से जवान हुए थे वह किसी और घर को काबा के बराबर न समझ सकते थे और न उसे देख सकते थे इसलिए जब इस बात पर चर्चा हुई तो अबरहा का इरादा सुनकर दुख हुआ, एक किनानी ने इसका उत्तर यूं दिया कि उसने गिरजाघर में दाख़िल होकर शौच (toilet) कर दिया।

अबरहा को जब इसकी सूचना मिली तो उसे बड़ा क्रोध आया उसने क़सम खाई कि वह अवश्य बैतुल्लाह शरीफ़ पर आक्रमण करके उसे ढायेगा। फिर वह अपने साथ एक विशाल फ़ौज और हाथियों का एक लश्कर लेकर निकला। अरबों ने जब सुना कि वह उनपर बिजली की तरह नाज़िल होने वाला है तो लोगों ने उसे इज़्ज़त दी और उससे डर गए हालांकि उन्होंने उसे रोकने और जंग करने का इरादा किया था। लेकिन अब उन्होंने देखा कि उनमें अबरहा और उसकी विशाल फ़ौज से लड़ने की क्षमता नहीं है तो उन्होंने इस मामले को अल्लाह के हवाले छोड़ दिया। उन्हें पूरा भरोसा था कि इस घर का मालिक अवश्य इसकी सुरक्षा करेगा, इसका सुबूत वह डायलॉग है जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दादा और क़ुरैश के सरदार अब्दुल मुत्तलिब और अबरहा के दरमियान हुआ। अब्दुल मुत्तलिब जब अपना ऊंट लेने पहुंचे जिसे अबरहा के लश्करियों ने पकड़ लिया था।

 अब्दुल मुत्तलिब उसके पास गए और इजाज़त तलब की, अबरहा ने उन्हें सम्मान दिया अपनी मसनद से उठकर आया और उन्हें अपने साथ बिठाया, उनसे आने की ज़रूरत पूछी। अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया कि मेरी ज़रूरत यह है कि बादशाह मेरे सौ ऊंट मेरे हवाले कर दे जिसे पकड़ लिया गया है। अब्दुल मुत्तलिब का यह जवाब सुनकर अबरहा आश्चर्य से कहने लगा तुम मुझसे सौ ऊंटों के बारे में बात करने आए हो जिसे मैंने पकड़ रखा है और उस घर को छोड़ दिया जिससे तुम्हारा और तुम्हारे बाप दादा का दीन वाबस्ता है और उसे ढाने के लिए मैं आया हूं तुम उसके विषय में मुझसे कुछ बात नहीं करोगे?

अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया निसंदेह मैं ऊंटों का मालिक हूं और इस घर का एक रब है जो तुम्हें ज़रूर रोकेगा।

अबरहा ने कहा, अब मुझे कोई नहीं रोक सकेगा। 

अब्दुल मुत्तलिब में जवाब दिया तुम जानो और वह जाने।

इसके पश्चात क़ुरैश पहाड़ की चोटी और घाटी में पनाह लेने की तैयारी करने लगे उन्हें फ़ौज की लूटपाट का भय था परन्तु वह यह भी देखना चाहते थे कि अल्लाह तआला काबा को उन लोगों से कैसे बचाएगा जो उसकी पवित्रता को बर्बाद करने को तैयार खड़े हैं। घाटी पर जाने से पूर्व अब्दुल मुत्तलिब ने क़ुरैश के साथ काबा के आंगन में प्रवेश किया, अल्लाह से दुआ की और अबरहा और उसके लश्कर के ख़िलाफ़ मदद मांगी।

सुबह सवेरे अबरहा मक्का में दाख़िल होने और अल्लाह के घर को गिराने की तैयारी करने लगा और अपने बड़े हाथी जिसका नाम महमूद था आगे बढ़ाया। मगर यह क्या?  वह तो मक्का के रास्ते पर बैठ गया उसे उठाने के लिए बड़े तबर मारे गए लेकिन  उसने तो आगे बढ़ने से ही इनकार कर दिया हालांकि जब उसका मुंह यमन की तरफ़ करते तो वह उठकर दौड़ने लगता।

अभी लोग वहीं थे कि अल्लाह ने उनपर छोटे-छोटे समुद्री परिंदों का एक झुंड भेजा तमाम परिंदों की चोंच में कंकर था जिस व्यक्ति पर यह कंकर गिरता वह हिलाक हो जाता। हब्शा के लोग उस रास्ते पर गिरते पड़ते भागे जिससे वह आए थे तमाम रास्तों पर उनकी लाशें पड़ी थीं। अबरहा के शरीर पर भी एक कंकर गिरा, उसके लश्करी उसे किसी न किसी प्रकार अपने साथ ले गए मगर उसका हाल तो यह था गोश्त टुकड़े टुकड़े होकर गिर रहा था। वह सना पहुंच कर बदतरीन मौत मार गया। इस वाक़िआ का बयान क़ुरआन में यूं हुआ है

أَلَمۡ تَرَ كَيۡفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِأَصۡحَٰبِ ٱلۡفِيلِ  أَلَمۡ يَجۡعَلۡ كَيۡدَهُمۡ فِي تَضۡلِيلٖ  وَأَرۡسَلَ عَلَيۡهِمۡ طَيۡرًا أَبَابِيلَ  تَرۡمِيهِم بِحِجَارَةٖ مِّن سِجِّيلٖ  فَجَعَلَهُمۡ كَعَصۡفٖ مَّأۡكُولِۭ 

"क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे रब ने हाथी वालों के साथ क्या किया। क्या उसने उनकी चाल को बेकार नहीं कर दिया। उनपर परिंदों के झुंड के झुंड भेजे जो अपनी चोंच से कंकरियां फेंक रहे थे। फिर उनको खाए हुए भूसे की तरह बना दिया।"

(सूरह 105 आयत 1 से 5)

जब अल्लाह ने हब्शा वालों को मक्का से नामुराद लौटा दिया और जिस मुसीबत के वह शिकार हुए तो अरबों में क़ुरैश का सम्मान बहुत बढ़ गया और उनके विषय में यह कहा जाने लगा कि यह तो अल्लाह वाले हैं। अल्लाह ने उनके दुश्मनों को बर्बाद कर दिया और उन तक पहुंचने से रोक दिया। इस क़ि से अरबों की धाक बैठ गई और इस घटना से तारीख़ जुड़ गई और कहा जाने लगा कि यह हाथी वाले साल में हुआ था, यह हाथी वाले साल में पैदा हुआ और यह हाथी वाले हादसे के बाद हुआ इसी तरह उम्र का भी हिसाब लगाते। हाथी वाला क़ि 570 ईस्वी में हुआ था।

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(1) हिजाबह काबा की सफ़ाई और और सुरक्षा का प्रबंध।

(2) सिक़ायह  पानी पिलाना जब तक ज़मज़म दोबारा साफ़ न हो गया हज्ज के समय चमड़े का बड़ा हौज़ बनाकर काबा के सहन में रख दिया जाता था और पानी के चश्मों से पानी मंगवाकर उसमें भरा जाता था।

(3) रिफ़ादह  काबा में आने वालों की मेहमानदारी के लिए तमाम क़ुरैशचंदा इकट्ठा करते थे  जिससे आने वाले ग़रीब लोगों के खाने पीने का प्रबंध होता था।

(4) नदवा  यह मक्का की राष्ट्रीय विधानसभा थी। क़ुरैश जंग, सुलह और दूसरे बड़े मामलात के सिलसिले में राय मशविरा के लिए यहीं इकट्ठे होते थे।

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आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही  

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