Jannati aurton ki sardar kon-kon hain? (part 5)

Jannati aurton ki sardar kon-kon hain? (part 5)

जन्नती औरतों की सरदार (क़िस्त 5)


4. फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा बिन्ते मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत:

ग़ुलू (अतिवाद) एक ऐसी लाइलाज बीमारी है जो इंसान के दिमाग को कैंसरग्रस्त कर देती है इसमें न केवल किसी की शान में तौसीफ़ व प्रशंसा के क़सीदे गाये जाते हैं बल्कि उसकी शान और मर्तबा से बढ़ाकर कहीं का कहीं पहुंचा दिया जाता है कि उसकी असल हक़ीक़त धूमिल हो जाती है और वह तौसीफ़ और प्रशंसा के क़सीदे अलापने वाले मुहब्बत के पर्दे में उन दुश्मनों से ज़्यादा ख़तरनाक साबित होते हैं जो किसी की शख्सियत में हमेशा उसकी ख़ामियां तलाश कर उसे बदनाम या उसके असल मुक़ाम से नीचे गिराने के लिए ख़ुद को हमेशा तैयार रखते हैं।

ईसा अलैहिस्सलाम के मानने वालों ने उनकी शान में इस क़दर ग़ुलू (हद से आगे बढ़ा देना) किया कि उन्हें ख़ुदा का बेटा और उनकी पाकीज़ा मां मरियम अलैहिस्सलाम को ख़ुदा की बीवी बना दिया (अल्लाह की पनाह) ऐसा उन्होंने दुश्मनी में नहीं किया बल्कि यह मुहब्बत और अक़ीदत का ग़ुलू था जो तमाम सीमाएं फलांग कर तस्लीस (trinity) की शक्ल में ज़ाहिर हुआ और ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बंदा और रसूल के बजाय ख़ुदा का स्थान दे दिया गया और ईसा अलैहिस्सलाम जो तौहीद का ख़ालिस दीन लेकर आए थे और अपने मानने वालों को जिसपर क़ायम और साबित क़दम रहने की वसीयत की थी उसे शिर्क के घिनौने अक़ीदे में तब्दील कर दिया।

यही कुछ बाद के दौर में भी हुआ, ख़ुद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में ऐसे अनगिनत   इबारतें और अशआर मिलेंगे जिसमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख़ुदा के समान बल्कि उससे भी अफ़ज़ल क़रार दिया गया है।

"क़ब्र का वह हिस्सा जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि  वसल्लम के बदन मुबारक से मिला हुआ है वह काबा से अफ़ज़ल है, अर्श से अफ़ज़ल है, कुर्सी से अफ़ज़ल है यहां तक कि की आसमान व ज़मीन की हर जगह से अफ़ज़ल है।" [फ़ज़ाएल ए आमाल जिल्द दोम फ़ज़ाएल ए हज्ज, नव्वीं फ़सल आदाबे ज़्यारत में]


वही जो मुस्तवी ए अर्श था "ख़ुदा" होकर,

उतर पड़ा है मदीने में "मुस्तफ़ा" होकर।

 (आसी ग़ाज़ीपूरी)


ख़ुदा की सूरत कोई नहीं और ख़ुदा की सूरत कोई अगर है,

तो वह हरीफ़ नुक़ूश तस्वीर तेरी सूरत में जलवह गर है।

(ताजवर नजीबाबादी)


ऐ सब्ज़ गुंबद वाले मंज़ूर दुआ करना,

जब वक़्त नज़ा आए दीदार अता करना।


अली रज़ि अल्लाहु अन्हु के बारे में भी यही हाल है-


कहीं तो रब है अली और कहीं अली है रब,

यहां तो एक हैं ज़ात व सिफ़ात की बातें।


यहां तक कि मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैहि के बारे में क्या कुछ नहीं कहा गया है,


अल्लाह मियां ने अपना हिन्द में नाम,

रख लिया ख़्वाजा ग़रीब नावज़।


जन्नती औरतों की सरदार सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा के मुक़ाम व मर्तबा, हुस्ने सीरत और नेक अमल के मुतअल्लिक़ कौन नहीं जानता उनकी फ़ज़ीलत में  बहुसंख्यकीय हदीसें और आसार हदीस और तारीख़ की किताबों में मौजूद है जिनकी रौशनी में उनकी ज़िन्दगी का मुकम्मल जीवनी को पेश किया जा सकता है और किया भी गया है। अल्लाह की इबादत का एहसास, ईसार व क़ुर्बानी, दीन के तमाम मामलात में एक आइडियल ख़ातून का तसव्वुर उभरता है जिसके अध्ययन से औरतों को एक फ़िक्र मिलती है, सब्र और अज़ीमत का सबक़ मिलता है और ज़िन्दगी में कुछ करने का जज़्बा पैदा होता है।

फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से मुतअल्लिक़ जहां बहुत सी सही और मूस्तनद अहादीस मौजूद हैं और उनकी फ़ज़ीलत व अज़मत को बयान करती हैं वहीं उनके बारे में बल्कि उनकी अज़मत और तौसीफ़ में ऐसी रिवायत घड़ी गई है कि उनके लिए कि उनके मर्तबे को कायनात की तख़लीक़ का सबब बल्कि अंतिम नबी व रसूल मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तख़लीक़ का कारण बताया गया है।

फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से मुहब्बत का दावा करने वालों ने उनकी मुहब्बत व अक़ीदे में ग़ुलू करके और उनके इलावा कुछ साज़िशी दिमाग़ रखने वालों ने इस्लाम को बदनाम करने की नीयत से बहुत सी बे सिर पैर की रिवायात घड़ीं उन्होंने ख़त्मुर रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मर्तबे से भी कई दर्जा बढ़ा दिया इसलिए इंसाफ़ का तक़ाज़ा यही था कि जहां उनकी अज़मत व तौसीफ़ में बहुत ही सही अहादीस पेश की गई हैं और यह साबित किया गया है वह जन्नत में औरतों की सरदार होंगी वहीं उन रिवायात से भी पर्दा उठाया जाए जो उनके बारे में घडी गई हैं

फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा की अज़मत अपनी जगह मुसल्लम है उनके विषय में जितनी सही अहादीस हैं उनकी अज़मत और उनके बुलंद किरदार को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं उनकी शान तो ऐसी है कि किसी झूठी या ज़ईफ़ रिवायत का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं है यहां उनके बारे में उन ज़ईफ़ और मनघड़त रिवायात को ज़िक्र किया गया है जो उनके विषय मे मुख़्तलिफ़ किताबों में मिलती हैं।


01. अबु हुरैरह और ज़ैद बिन अरक़म रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अली, फ़ातिमा, हसन, और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुम की तरफ़ देखकर फ़रमाया, "मैं तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन और तुम्हारे दोस्त का दोस्त हूं।" [जामे तिर्मिज़ी 3870/ मुसनद अहमद 11398/ मिश्कातुल मसाबीह 6154/अल मुस्तदरक लिल हाकिम  4713, 4714]

नोट: तलीद बिन सुलैमान कज़्ज़ाब रावी हैं इसके झूठे होनेपर सभी का इत्तेफ़ाक़ है।

______________________


02. इमाम जाफ़र सादिक़ अपने वालिद इमाम बाक़र के हवाले से और वह इमाम ज़ैनुल आबेदीन के हवाले से अली रज़ी अल्लाह का यह बयान नक़्ल करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से फ़रमाया, "बेशक अल्लाह तआला तेरी नाराज़गी से नाराज़ होता है और तेरी ख़ुशी से ख़ुश होता है।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4730]

नोट: हुसैन बिन ज़ैद मुनकर रावी है।

______________________


03. जमीअ बिन उमर ने बयान किया "मैं अपनी फूफी के साथ उम्मुल मुमेनीन आयेशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास गया मैंने उनसे पूछा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सबसे ज़्यादा कौन महबूब था उन्होंने जवाब दिया फ़ातिमा उनसे पूछा गया मर्दों में से फ़रमाया, "उनके शौहर, मैंने उनको रोज़ेदार और रात भर जागने वाला पाया।" [ज़ईफ़, अल मुस्तद्रक लिल हाकिम 4744]

नोट: जमीअ बिन अम्र अत तमीमी की रिवायात ज़ईफ़ होती है, इब्ने हिब्बान के नज़दीक राफ़ज़ी था और हदीस घड़ता था। 

______________________


04. अब्दुल रहमान बिन औफ़ रज़ि अल्लाहु अन्हु के द्वारा आज़ाद किये गए ग़ुलाम मिनाअ बिन बीन अबू मीनाअ ने बयान किया मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फ़रमाते हुए सुना मैं एक दरख़्त हूं तो फ़ातिमा उसकी शाख़ है और अली उसका लिक़ाह (नर खुजूर का शगूफ़ा) हसन और हुसैन इसके फल हैं और हमारी जमाअत के लोग इसके पत्ते हैं और इस दरख़्त की जड़ें अदन जन्नत  में हैं और उसके बाक़ी हिस्से जन्नत के दूसरी जगहों पर हैं। [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4755]

नोट: ज़ईफ़, इस रिवायत में ताबई साकित हैं यानी उनका नाम ग़ायब है।

______________________


05. अनस बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि मैंने अपनी मां से फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्ह के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उनका चेहरा चौदहवीं रात के चांद की तरह था या उस सूरज की तरह था जिसे बादलों ने छुपा रखा हो फिर जब वह बादलों से निकलता है तो ख़ूब चमकदार होता है। उनका रंग लाल सफ़ेद था, बाल बेइंतहा काले थे वह शक्ल व सूरत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जैसी थीं।

بَيْضَاءُ تَسْحَبُ مِنْ قِيَامٍ شَعْرِهَا ... وَتَغِيبُ فِيهِ وَهُوَ جَثْلٌ أَسْحَمُ

"فَكَأَنَّهَا فِيهِ نَهَارٌ مُشْرِقٌ ... وَكَأَنَّهُ لَيْلٌ عَلَيْهَا مُظْلِمُ"

"उसका रंग सफ़ेद है लेकिन बालों की वजह से जब वह उनमें छुप जाता है तो यूं लगता है जैसे बेइंतहा काला हो उसके रंग की सफ़ेदी का यह आलम है कि गोया वह चमकने वाला दिन है और बालों की स्याही का यह आलम है कि गोया वह घनघोर अंधेरी रात है।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4759]

नोट: यह मनघड़त रिवायत है।

______________________


06. जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "हर औरत की औलाद मर्द की जानिब मंसूब होती है मगर फ़ातिमा के दोनों बेटों का वली मैं हूं और यह दोनों मेरी जानिब मंसूब होते हैं।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4770]

नोट: रिवायत सही नहीं है। मुल्ला अली क़ारी, इब्ने जौज़ी और अल्बानी ने ज़ईफ़ क़रार दिया है जबकि इमाम अहमद ने इसे मनघड़त कहा है।

______________________


07. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा से फ़रमाया, "हुसैन के बालों का वज़न करके उसके बराबर चांदी सदक़ा करो और दाई को अक़ीक़ा के जानवर की खुर दे देना।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4828]

नोट: यह रिवायत सही नहीं है।

______________________


08. इमरान बिन हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुसे रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया "ऐ फ़ातिमा क़ुर्बानी के जानवर के पास खड़ी हो जाओ और उसे क़ुर्बान होते हुए देखो क्योंकि इसके ख़ून का पहला क़तरा गिरते ही तेरी ज़िन्दगी के तमाम गुनाहों को माफ़ कर दिया जाएगा और क़ुर्बानी के वक़्त यह दुआ मांगो

إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهُ رَبِّ الْعَالَمِينَ لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا مِنَ الْمُسْلِمِينَ

"मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरा जीना और मेरा मरना सब कुछ अल्लाह के लिए है जो तमाम संसार का पालनहार है उसका कोई शरीक नहीं और इसीलिए मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं मुसलमान बनकर रहूं।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 7524, 25]

नोट: सनद में नज़र बिन इस्माईल अबुल मुग़ीरह कमज़ोर रावी हैं, अबू हमज़ा इन्तेहाई ज़ईफ़ रावी हैं, अतिया बिन सअद अल ऊफ़ी अल कूफ़ी वाही रावी है वह ज़ईफ़ भी हैं और तदलीस बहुत करते हैं।

______________________


09. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम सैयदना सौबान रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब सफ़र के लिए रवाना होते तो अपने अहल के जिस व्यक्ति से सब से आख़िर में मुलाक़ात करते वह सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा होतीं और जब वापस आते तो सबसे पहले सैयदा फ़ातिमा के यहाँ तशरीफ़ लाते, आप एक ग़ज़वा से वापस आए जबकि सैयदा फ़ातिमा ने अपने दरवाज़े पर टाट या पर्दा लटकाया हुआ था और  हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा को चाँदी के कंगन पहनाए हुए थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए मगर अन्दर नहीं गए तो सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा को गुमान हुआ कि आप के अन्दर न आने का सबब यही है जो उन्होंने देखा है। चुनांचे उन्होंने पर्दा फाड़ दिया और बच्चों से कंगन उतार दिए और उनके सामने ही उन्हें तोड़ डाला तो वह रोते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास चले गए। आप ने उन दोनों से वह लिया और फ़रमाया: ऐ सौबान ! उन्हें फ़ुलाँ घर वालों के पास ले जाओ। जो मदीना वालों में से थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:  ये लोग (फ़ातिमा, अली, हसन, हुसैन) मेरे अहले-बैत हैं, मुझे यह बात पसन्द नहीं कि यह अपनी नेकियों का बदला इसी दुनिया में खा लें। ऐ सौबान ! फ़ातिमा के लिए मोतियों का एक हार और हाथी दांत के दो कंगन ख़रीद लाना। [सुनन अबु दाऊद 4213/ मिशकातुल मसाबीह 4471/ मुसनद अहमद 8082]

नोट: इस रिवायत में हुमैद अश शामी और सुलैमान अल मनहा मजहूल रावी हैं।

______________________


10. अबू हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु में बयान किया "ख़ातून ए जन्नत फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने शिकायत की, या रसूलुल्लाह! आपने मेरा निकाह अली बिन अबी तालिब से कर दिया है जबकि उनका हाल यह है कि उनके पास कोई माल व दौलत नहीं है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, ऐ फ़ातिमा क्या तुम इस बात पर राज़ी नहीं हो कि अल्लाह तआला ने तमाम ज़मीन में से केवल दो लोगों को चुना है उनमें एक तुम्हारा वालिद है और दूसरा तुम्हारा शौहर।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4645]

नोट: इमाम तबरानी ने अल मुअजम अल कबीर में और ख़तीब बग़दादी ने तारीख़ुल बग़दाद में इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा के हवाले से नक़ल किया है। यह तमाम तुरूक़ से मनघड़त है।

______________________


11. अनस बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक बार बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्हू फ़जर की नमाज़ में पीछे रह गए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे पूछा, बिलाल! कहां रुक गए थे? बिलाल ने जवाब दिया मैं सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास रुक गया था वह चक्की चला रही थीं और बच्चा था कि रोये जा रहा था मैंने उनसे अर्ज़ किया आप चाहे तो मैं चक्की चला दूं और आप बच्चे को संभालें या मैं बच्चे को संभालूं और आप चक्की चलाएं। उन्होंने कहा तुम्हारी अपेक्षा मैं बच्चे पर ज़्यादा मेहरबान हूं तो इस काम के कारण देर होगई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "तुमने फ़ातिमा पर रहम किया अल्लाह तुमपर रहम फ़रमाए।" [मुसनद अहमद, 11649/ बाक़ी मुसनदुल मुक्सेरीन, मुसनद अनस बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु]

 नोट; यह ज़ईफ़ रिवायत है, रावी अम्मार बिन अम्मारह ने अनस रज़ि अल्लाहु का ज़माना नहीं पाया।

______________________


12. अली रज़ि अल्लाहु अन्हू ने बयान किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे कहा, "जन्नत में सबसे पहले दाख़िल होने वाले मैं, फ़ातिमा, हसन और हुसैन होंगे। मैंने पूछा या रसूलुल्लाह और जो हमसे मुहब्बत करते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया वह तुम्हारे पीछे होंगे।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4723]

नोट: मुनकर रिवायत है, इसमें तीन रावी इस्माईल बिन अम्र अल बजली, अल अजलह बिन अब्दुल्लाह अल किन्दी और आसिम बिन ज़मरह ज़ईफ़ और मुनकरुल हदीस हैं।

______________________


13.  "बेशक फ़ातिमा ने अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त की तो अल्लाह ने उसपर और उसकी नस्ल पर जहन्नम की आग हराम कर दी।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4726/ ज़ईफुल जामे 1885]

नोट: ज़ईफ़ और मनघड़त है। इसमें अम्र बिन ग़यास रावी मुनकरूल हदीस है दार क़ुतनी ने उन्हें ज़ईफ़ कहा है और इब्ने हिब्बान कहते हैं कि आसिम से ली गई रिवायत हदीस नहीं हो सकती। 

______________________


14. क़यामत के दिन एक पुकारने वाला पर्दे के पीछे से पुकारेगा, "ऐ महशर के लोगो! अपनी निगाहें नीची किये रखो यहां तक कि फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद यहां से गुज़र जाएं।" [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4728]

नोट: यह मनघड़त रिवायत है। इसमें अब्बास बिन वलीद एक रावी है जिसे इमाम दार क़ुतनी ने कज़्ज़ाब कहा है इमाम इब्ने जौज़ी, इमाम ज़हबी और शैख़ अल्बानी ने इस रिवायत को मनघड़त क़रार दिया है।

______________________


15. क़यामत के दिन एक पुकारने वाला पर्दे के पीछे से पुकारेगा ऐ महशर के लोगो! अपनी निगाहों को नीची किये रखो यहां तक कि फ़ातिमा बिन्ते मुहम्मद यहां से गुज़र जाएं चुनांचे हरे रंग की दो बड़ी चादरें ओढ़ कर गुज़र जाएंगी। एक रिवायत में लाल रंग का भी ज़िक्र है) [अल मुस्तरक लिल हाकिम 4757]

नोट: ज़ईफ़ रिवायत है इमाम ज़हबी ने ज़ईफ़ होने की वजह से ही अपनी तलख़ीस में जगह नहीं दी। यह कई तुरूक़ से रिवायत हुई है लेकिन किसी भी तुरूक़ से सही नहीं है। शैख़ अल्बानी ने इसे मौज़ूअ (मनघड़त) क़रार दिया है। [अस सिलसिला अज़ ज़ईफ़ा 2688]

एक रिवायत में यह भी है कि जब फ़तिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा पुल सिरात पर गुज़रेंगी तो उनके साथ बिजली के समान सत्तर हज़ार हूरें होंगी।

नोट: इमाम ज़हबी की किताब तलख़ीसुल एलल वल मुतनाहिया इसमें हुसैन अल अशकर मतरूक रावी और यह मनघड़त रिवायत है।

______________________


16. जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी फ़ातिमा का जन्म हुआ, आपने उनका नाम अल-मंसूरह रखा, तभी जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए और कहा, "ऐ मुहम्मद, आप पर और आपके यहां जन्म लेने वाली बच्ची पर सलामती हो।" उन्होंने यह भी कहा: "मेरे नज़दीक इससे ज़्यादा प्यारा कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ है, और उसका नाम जो मैंने रखा है उससे बेहतर है जो आपने रखा है, मैंने उसका नाम फ़ातिमा रखा है क्योंकि वह अपने मानने वालों को जहन्नम की आग से बचायेगी।"

नोट; इमाम ज़हबी ने मीज़ानुल ऐतेदाल में इस रिवायत को नक़्ल किया है किया है और इसे मनघड़त क़रार दिया है क्योंकि फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा का जन्म आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नबी बनाए जाने से पांच वर्ष पहले हुआ था।

______________________


17. मेरी बेटी फ़ातिमा इंसानी हूर है उसे कभी हैज़ नहीं आया, इसका नाम फ़ातिमा छुड़ाने वाली है क्योंकि अल्लाह तआला ने उसे और उससे मुहब्बत करने वालों को जहन्नम से आज़ाद कर दिया है।

नोट; मनघड़त रिवायत है, शैख़ अल्बानी ने इसे मौज़ूअ (मनघड़त) कहा है। [अस सिलसिला अज़ ज़ईफ़ा 428]

______________________


18. अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला ने बयान किया कि, मैंने अमीरुल मोमिनीन, सैयदना अली, रज़ि अल्लाहु अन्हु से सुना उन्होंने कहा: मैं, सैयदा फ़ातिमा, सैयदना अब्बास, और सैयदना ज़ैद बिन हारिसा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास इकट्ठे होकर गए। सैयदना अब्बास ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! मैं बूढ़ा हो गया हूं, मेरी हड्डियां कमज़ोर हो गई हैं और मेरे ऊपर बहुत सारा बोझ है इसलिए यदि आप मेरे लिए इतना वसक़ अनाज का हुक्म देना उचित समझें तो दे दीजिए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, हम ऐसे ही करेंगे। फिर सैयदा फ़ातिमा ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! जैसे आपने चचा जान के लिए हुक्म दिया है, वैसे ही अगर आप मेरे लिए उचित समझें तो हुक्म दे दें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हम ऐसा ही करेंगे। उसके बाद सैयदना ज़ैद बिन हारिसा ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! आपने मुझे ज़मीन का एक टुकड़ा दिया था, मेरी आजीविका उसी पर निर्भर थी, लेकिन फिर आपने वह ज़मीन मुझसे वापस ले ली, अगर आप मुनासिब समझें तो वह ज़मीन मुझे वापस कर दें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हम ऐसा भी करेंगे। फिर मैंने (अली) कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! अगर आप मुनासिब समझें तो अल्लाह की किताब के मुताबिक़ जो ख़ुम्स में हमारा हक़ है, आप अपनी ज़िन्दगी में मुझे इस का मालिक बना दें और आप की ज़िन्दगी में मैं ही इसे तक़सीम करता रहूं ताकि आप के बाद कोई मुझसे झगड़ा न करे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया हम ऐसा भी करेंगे। चुनांचे आप ने मुझे उसका ज़िम्मेदार बना दिया फिर मैं आप की ज़िन्दगी में उसे तक़सीम करता रहा। फिर सैयदना अबु बक्र ने वह मेरे ही ज़िम्मे रखा और मैं उनकी ख़िलाफ़त में भी उसे तक़सीम करता रहा फिर सैयदना उमर ने भी मुझे इसका संरक्षक बनाये रखा और मैं उनकी ख़िलाफ़त में उसे तक़सीम करता रहा यहां तक कि उनकी ख़िलाफ़त के आख़िरी  साल में बहुत ज़्यादा माल आया उन्होंने मुझे बुला भेजा लेकिन मैने कहा इस वर्ष हमें इसकी ज़रूरत नहीं है जबकि दूसरे मुसलमान इसके ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं, आप यह उन्हें दे दें। चुनांचे उन्होंने उसे मुसलमानों में तक़सीम कर दिया। फिर उमर के बाद मुझे किसी ने इसके लिए नहीं बुलाया, उमर फ़ारूक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु के यहाँ से आने के बाद अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु से मिला तो उन्होंने कहा: "ऐ अली! आज तुमने हमें एक हक़ से महरूम कर दिया है जो भविष्य में कभी हमें नहीं दिया जाएगा। और वह बड़े अक्लमंद आदमी थे।" [सुनन अबु दाऊद 2984/ मुसनद अहमद 5034]

नोट: इस रिवायत में हुसैन बिन मैमून अल खंदफ़ी अल कूफ़ी मारूफ़ रावी नहीं है। अबु ज़ुरआ और हातिम ने कहा है कि उनकी रिवायत मज़बूत नहीं होती।

______________________


19. अली रज़ि अल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी फ़ातिमा रुख़सत होकर मेरे यहां आई उस रात हमारा बिस्तर केवल एक मेंढे की खाल था। [सुनन इब्ने माजा 4154]

नोट; सनद में हारिस आवर और मुजाहिद दोनों ज़ईफ़ हैं।

______________________


20. जब फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा को अली रज़ि अल्लाहु अन्हु के पास भेजा गया तो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम उनके सामने, जिब्रील अलैहिस्सलाम दाएं जानिब मीकाईल अलैहिस्सलाम बायीं तरफ़ और सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उनके पीछे थे जो अल्लाह तआला की तस्बीह और पाकी बयान कर रहे थे यहां तक कि फ़ज्र का वक़्त हो गया।

नोट: इमाम इब्ने जौज़ी ने मनघड़त क़रार दिया है।

______________________


21. साद बिन मालिक रज़ि अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, मेराज की रात जिब्रील मेरे पास जन्नत का एक फल लाए मैंने उसको खाया ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने उसे फ़ातिमा के गले में डाल दिया चुनांचे मुझे जब भी जन्नत की ख़ुशबू सूंघने का शौक होता तो फ़ातिमा का गला सूंघ लेता हूं। (मनघडंत) [अल मुस्तदरक लिल हाकिम 4738]

नोट; मुस्लिम बिन ईसा अस सेगार मजहूल रावी है यह हदीसें घड़ता था शिहाब बिन हरब भी मजहूल रावी है सनद और मतन दोनों लिहाज़ से ज़ईफ़ है।

______________________


22. अल्लाह तआला ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आदेश दिया कि उस बर्तन से जन्नत की ताज़ा खुजूरें खायें जो जिब्रील अलैहिस्सलाम उनकी तरफ़ लाए हैं फिर ख़दीजा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास जायें आपने ऐसा ही किया तो ख़दीजा को फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा का गर्भ ठहर गया। [अस सिलसिला अज़ ज़ईफ़ा 3242]

नोट: मनघड़त रिवायत है, इब्ने जौज़ी ने अल मौज़ूआत में इसे जगह दी है।

______________________


23. जब मुझे आसमान की सैर कराई गई तो जिब्रील अलैहिस्सलाम ने मुझे जन्नत में दाख़िल किया उस समय मुझे एक सेब दिया मैंने वह खा लिया तो मेरी पुश्त में एक नुत्फ़ा बन गया जब मैं नीचे उतरा तो मैं ख़दीजा से हमबिस्तरी की, फातिमा उसी नुत्फ़े से है।

नोट: मनघड़त रिवायत है। इसकी सनद में मुहम्मद बिन ख़लील मजहूल रावी है इमाम इब्ने जौज़ी ने अपनी किताब "अल लआली अल मस्नूआ" में उसे कज़्ज़ाब कहा है।

______________________


24. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हसन और हुसैन का हाथ पकड़ा और फ़रमाया जो इन दोनों से, दोनों के बाप और मां से मुहब्बत करेगा वह क़यामत के दिन मेरे साथ मेरे दर्जे में होगा। [जामे तिर्मिज़ी 3733/ मुसनद अहमद 11394]

नोट: इस रिवायत में अली बिन जाफ़र बिन मुहम्मद मारूफ़ रावी नहीं हैं।

______________________


25. मैं, फ़ातिमा और अली जन्नत में एक सफ़ेद ख़ेमे में होंगे जिसकी छत रहमान का अर्श होगा।

नोट: मनघड़त रिवायत है।

______________________


26. अल्लाह तआला ने मुझे आदेश दिया है कि मैं फ़ातिमा का निकाह अली से कर दूं चुनांचे मैने ऐसा ही किया [अस सिलसिला अज़ ज़ईफ़ा 1845]

जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आसमान में ख़ुत्बा दिया और फ़ातिमा का निकाह अली से करा दिया?

______________________


27. जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आसमान में ख़ुत्बा दिया और फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा का निकाह अली रज़ि अल्लाहु अन्हु से करा दिया।

नोट: यह मनघड़त रिवायत है। 

______________________


28. ऐ अली अल्लाह ने तेरा निकाह फ़ातिमा से कर दिया है और उसकी मेहर ज़मीन मुक़र्रर की है। जो भी ज़मीन पर तुमसे नफ़रत करते हुए चलेगा वह हराम चलेगा।

नोट: मनघड़त, इब्ने जौज़ी ने "अल मौज़ूआत" और अल लआली अल मस्नूआ में ज़िक्र किया है। 

______________________


29. जो मूझसे मुहब्बत करता हो उसे अली से ज़रूर मुहब्बत करनी चाहिए और जो अली से मुहब्बत करता हो उसे फ़ातिमा से ज़रूर मुहब्बत करनी चाहिए।

नोट: इसकी सनद में अब्दुल्लाह बिन हफ़स कज़्ज़ाब रावी है।

______________________


30. ऐ अहमद अगर तुम न होते तो मैं यह दुनिया न बनाता और अगर अली न होता तो मैं तुम्हें पैदा न करता और अगर फ़ातिमा न होती तो मैं तुम दोनों को पैदा न करता। 

يا أحمد لولاك لما خلقت الأفلاك، ولولا علي لما خلقتك، ولولا فاطمة لما خلقتكما، 

[मुस्तरक सफ़ीनतुल बहार शैख़ अली अन नमाज़ी अश शाहरुदी जिल्द 8 सफ़हा 243]

नोट: यह रिवायत हदीस की किसी भी मुस्तनद किताब में नहीं है। यह मनघड़त है इसकी कोई असल नहीं है।

इसका एक हिस्सा बहुत मशहूर हुआ है।

لولاك لما خلقت الأفلاك،

(ऐ मुहम्मद) अगर तुम न होते तो मैं यह दुनिया न बनाता। 

इस रिवायत को इमाम शौकानी ने अल फ़वाए­दुल मजमूआ फ़ी अहादीसिल मौज़ूआ" में और शैख़ अल्बानी ने अस सिलसिला अज़ ज़ईफ़ा 282 में नक़्ल किया है और इमाम सग़ानी ने भी मनघड़त क़रार दिया है।

______________________


31 सैयदा उम्म सल्मा रज़ि अल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि जब सैयदा फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा मौत की बीमारी से पीड़ित थी तो मैं उनकी बीमारी के दिनों में उनकी देखभाल करती थी। एक दिन वह ख़ुश ख़ुश थीं तभी अली रज़ि किसी काम से बाहर गए, सय्यदा फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: हे अम्मा! मेरे नहाने के लिए पानी रख दें मैंने उनके लिए नहाने का पानी रख दिया, उन्होंने बहुत अच्छे से ग़ुस्ल किया और फिर बोलीं: माँ,! मेरे लिए नए कपड़े लाएं, मैं उनके लिए नए कपड़े लाई, जिसे उन्होंने पहना। फिर कहा: माँ! मेरा बिस्तर कमरे के बीच में लगा दें, मैंने ऐसा ही किया। वह क़िबला की ओर मुंह करके लेट गईं और अपना हाथ अपने गाल के नीचे रख लिया। फिर कहा: अम्मा जान! मैं अब मरने ही वाली हूं, मैं नहा चुकी हूं, मुझे नहलाने के लिए कोई मेरे कपड़े न उतारे, चुनांचे वहीं उनका इंतेक़ाल हुआ। जब सैयदना अली आए, तो मैंने उन्हें सैयदा फ़ातिमा की मृत्यु के बारे में सूचना दी। [मुसनद अहमद 11377/ मुसनदुल क़ाबएल, उम्मे सलमा ज़े मरवी हदीसें]

नोट: इब्ने इस्हाक़, और उबैदुल्लाह बिन अली ज़ईफ़ रावी हैं इसलिए यह हदीस बहुत ज़ईफ़ हैं।


आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...