Kya haya (sharm) sirf auraton ke liye hai? (Part-6)

Kya haya (sharm) sirf auraton ke liye hai? (Part-6)


क्या हया (शर्म) सिर्फ़ औरतों के लिए है?

हया की हिफाज़त कैसे करें?

जैसा की हदीस से हमने जाना कि हया ईमान का हिस्सा है। 

रसूलल्लाह (ﷺ) ने फरमाया, “ईमान की सत्तर से कुछ ज्यादा शाखें हैं और हया [शर्म] भी ईमान की एक शाख है।” [सहीह बुख़ारी 9]

इसलिय हमें हया की हिफ़ाज़त करनी चाहिए इससे हमारा ईमान मजबूत होगा और इमान को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी है की हम बेहयायी से बचें।


अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और अल्लाह के रसूल ﷺ ने बेहयाई से बचने के बहुत से तरीके बयान किए हैं-


1. नमाज़ :

बेहयाई से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका नमाज है। जब एक शख्श खुलूस से दिन में 5 बार अपने रब को याद करता है तो उसमें रब के अहकामात की फिक्र पैदा होती है और इस तरह वो बेहयाई के कामों से बच जाता है।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है, 

"यक़ीनन नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से रोकती है।" [सूरह अनकबूत 29:45]


2. निकाह:

हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि से रिवायत है कि नबी-ए-रहमत ﷺ ने नौजवानों को हिदायत दी, "ऐ नौजवानो की जमाअत ! तुम में से जो निकाह करने की माली हैसियत रखता हो उसे निकाह करना चाहिए क्योंकि निकाह नज़र को झुकाने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अमल है और जो कोई निकाह करने की माली हैसियत न रखता हो,वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।) [सहीह बुखारी 1905; सहीह मुस्लिम 3398]

निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है। 

हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया, "जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।" [मिश्कात उल मसाबीह 3096]


 3.नफ्ली रोजों का एहतमाम करें:

नबी करीम ﷺ ने निफ़्ली रोजों की अहमियत वाजेह करते हुए इरशाद फ़रमाया, "और जो कोई निकाह करने की माली हैसियत न रखता हो,वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।)" [सहीह बुखारी 1905; सहीह मुस्लिम 3398]


4. कुरान पढ़ाना:

अल्लाह के नेक बन्दों को खुदा की मुहब्बत नसीब होती हैं क़ुरान से बन्दा अपने रब के करीब होता हैं उसे रूहानी सुकून और अपनी ज़िन्दगी में मिठास नसीब होती हैं जिसे लफ्ज़ो में बयां नहीं किया जा सकता।

नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया, "तुम अल्लाह की तरफ़ रुजू करने के लिये कुरआन से बढ़कर कोई और ज़रिआ नहीं पा सकते।" [सुनन तिरमिजी : 2912]

अल्लाह फ़रमाता है, 

"सच्चे ईमानवाले तो वो लोग हैं जिनके दिल अल्लाह का ज़िक्र सुनकर काँप उठते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो उनका ईमान बढ़ जाता है  और वो अपने रब पर भरोसा रखते हैं।" [सूरह अनफ़ाल: 2]


5 नेक अमल:

नेक अमल कर के इंसान का किरदार निखर जाता है और वो बाहया हो जाता है।  

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है, 

"जो शख़्स भी अच्छा काम करेगा, चाहे वो मर्द हो या औरत, बशर्ते कि हो वो ईमानवाला, उसे हम दुनिया में पाकीज़ा ज़िन्दगी बसर कराएँगे,  और (आख़िरत में) ऐसे लोगों को उनके बदले उनके बेहतरीन आमाल के मुताबिक़ देंगे।" [क़ुरआन 16: 97]


6 जिक्र इलाही और तौबा अस्तग्फार:

जिक्र इलाही और इस्तगफार से इंसान गुनाहों से दूर होता है। मोमिन बन्दे की यह खासियत होती है कि गुनाह हो जाने के बाद वो अल्लाह की तरफ पलटता है और पिछले गुनाहों से सच्ची तौबा करता है।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है,

"और ये वो लोग हैं कि अगर कभी कोई बेहयाई का काम कर भी बैठते हैं या अपनी जान पर ज़ुल्म कर गुजरते हैं तो फ़ौरन अल्लाह तआला को याद करते हैं, पस वह उससे अपने गुनाहों की माफ़ी माँगते हैं, और अल्लाह तआला के सिवा कौन है, जो गुनाहों को माफ़ कर दे,और ये अपने किये (गुनाहों या बुरे कामों) पर जानबूझ कर अड़ते नहीं हैं।" [सूरह आले इमरान 3:135]

रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया, "जो शख्स इस्तिगफार को लाज़िम पकड़े, (कसरत से इस्तिगफार करे) अल्लाह तआला उसके लिए हर दुश्वारी से निकलने का रास्ता बना देंगे, और हर फ़िक्र को हटाकर कुशादगी फरमा देंगे, और उसको ऐसी जगह से रिज़्क़ देंगे, जहां से उसको गुमान भी नहीं होगा।" [अबू दाऊद 1518]

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है,

اِنَّ اللّٰہَ یُحِبُّ التَّوَّابِیۡنَ  وَ یُحِبُّ الۡمُتَطَہِّرِیۡنَ 

"अल्लाह तौबा करने वाले को और पाक रहने वालों को पसन्द करता है।" [सूरह बक़रह 222]

"अलबत्ता जो तौबा कर ले और ईमान ले आए और अच्छे काम करें फिर सीधा चलता रहें उसके लिए मैं बहुत माफ करने वाला हूं।" [सूरह ताहा 82]

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया, "सारे इंसान खताकार हैं और खताकारों में सब से बेहतर वो हैं जो तौबा करने वाले हैं।" [जामे तिर्मिजी : 2499]


7 नेक दोस्त और अच्छी संगत:

अल्लाह के नबी ﷺ ने नेक लोगों से दोस्ती करने की तरग़ीब करते हुए फ़रमाया:

"एक आदमी अपने दोस्त के दीन पर होता है इस लिए एक आदमी को देख लेना चाहिए कि वह किससे दोस्ती कर रहा है।" [जामेअ तिर्मिज़ी 2378; सुनन अबू दाउद 4833]

आप ﷺ ने नेक संगत की मिशाल और अहमियत कुछ इस तरह बयान की, "अच्छे और बुरे दोस्त की मिसाल खुशबू बेचने वाले और भट्टी धूंकने वाले के जैसे है कि खुशबू बेचने वाला या तो तुम्हें तोहफे के तौर पर दे देता है या तुम उस से कुछ खरीद लेते हो या उसके पास रहने की वजह से तुझे अच्छी खुशबू मिलती है, और भट्टी धूंकने वाला या तो तेरे कपड़े जला डालेगा या तुझे उसके पास से नागवार धुंआ पहुंचेगा।" [सहीह बुखारी 5534; सहीह मुस्लिम 2628]


8:नफ्स परस्ती  (इन्सानी ख़्वाहिशात)से बचें:

नफ्स परस्ती शिर्क हैं, इन्सानी ख़्वाहिशात समुंदर से ज़्यादा गहरी और ज़मीन व आसमान से ज़्यादा वुस्अत रखती है। कुरान की इस आयत पर गौर करें,

"कभी तुमने उस शख़्स के हाल पर ग़ौर किया है जिसने अपने नफ़्स (मन) की ख़ाहिश को अपना ख़ुदा बना लिया हो? क्या तुम ऐसे शख़्स को सीधे रास्ते पर लाने का ज़िम्मा ले सकते हो?" [सूरह फुरकान 43]

अल्लाह हमें नफ्स परस्ती से बचाए, ख़ुश नसीब हैं वह लोग जो इस्लामी तालीमात पर अमल करते हुए ख़्वाहिशात की पैरवी से बचने की कोशिश करते हैं और अल्लाह का तकवा इख्तियार करते हैं। 


9.नेक कामों में मशगूल रहें:

सच्चे मोमिन वो हैं जो सबर करते हैं और नेक काम में लगे रहते हैं। ईरशाद ए बारी तआला है, 

"तुममें कुछ लोग तो ऐसे ज़रूर ही रहने चाहिएँ जो नेकी की तरफ़ बुलाएँ भलाई का हुक्म दें और बुराइयों से रोकते रहें। जो लोग ये काम करेंगे, वही कामयाब होंगे।" [क़ुरआन 3: 104]


10.सब्र करें :

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को सब्र करने वाले बंदे बहुत पसन्द है। सब्र इबादत के सबसे सच्चे और सबसे पअच्छे तरीकों में से एक है। सब्र  करके, हम अल्लाह की रजा हासिल कर सकते हैं हमरा हर अमल अल्लाह और उसके रसूल की फर्माबरदारी के लिए होना चाहिए।

अल्लाह का फ़रमान है, 

"और अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी करो और आपस में झगड़ो नहीं, वरना तुम्हारे अन्दर कमज़ोरी पैदा हो जाएगी और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। सब्र से काम लो [ 37], यक़ीनन अल्लाह सब्र करनेवालों के साथ है।" [सूरह अनफाल 46]

"सब्र और नमाज़ से मदद लिया करो।" [सूरह बक़रह 45] 

"और सब्र कर, अल्लाह नेकी करनेवालों का बदला कभी बरबाद नहीं करता।" [सूरह हूद 115]


बेहयाई का अन्जाम 

रसूल-ए-अकरम ﷺ ने बेहयाई का एक बड़ा नुकसान यह बताया कि, "बेहयाई जिस चीज में भी हो उसे ऐबदार बना देगी और हया जिस चीज में भी हो उसे खूबसूरत बना देगी।" [सुनन तिर्मिज़ी 1974; सुनन इब्ने माजा 4185]

रसूलल्लाह ﷺ ने कौमों पर आने वाले अज़ाब के बारे में फरमाया, "जब किसी क़ौम में खुल्लम-खुल्ला फहश (बुराईयां और जिनाकारी) होने लग जाये तो उनमें ताऊन और ऐसी बीमारियां फूट पड़ती है, जो उनसे पहले लोगों में नहीं पाई जाती थी।" [सुनन इब्ने माजा 4019]


क्या क़यामत बेहया लोगों पर ही क़ायम होगी?

आखिरी नबी ﷺ ने खबर दी, 

"(आखिरी जमाने में) बदतरीन लोग बाकी रह जायेंगे, वो गधों की तरह खुले आम बदकारी करेंगे। इन्हीं बेहया लोगों पर क़यामत क़ायम होगी।" [सहीह मुस्लिम 2937; मुसनद अहमद 13012 (मफ़हूम)]


अल्लाह से हया का हक़

रसूलल्लाह ﷺ ने अपने सहाबा रज़ि को नसीहत करते हुए फ़रमाया, "अल्लाह तआला से शर्म-व-हया करो जिस तरह उससे शर्म-व-हया करने का हक़ है। (यानी अल्लाह से हर मामले में डरो और तक़वा इख्तियार करो)

सहाबा रज़ि ने जवाब दिया: ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ!

हम अल्लाह से शर्म-व-हया करते हैं और इस पर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं।

नबी-ए-रहमत ﷺ ने फरमाया, "हया का हक़ वो नहीं है जो तुमने समझ रखा है। 

अल्लाह से शर्म-व-हया करने का जो हक़ है वो यह है कि तुमने अपने सिर और इसके साथ जितनी चीज़ें हैं, उनकी हिफाज़त करो। (यानी अपना सर गैरुल्लाह के सामने न झुकाओ, न बुत खानों पर और न मजारों पर, तकब्बुर और दिखावे के साथ इबादत न करो और अपनी आंखों, कान और जबान का गलत इस्तेमाल न करो) 

और अपने पेट और इसके अंदर जो चीजें हैं, उनकी हिफाज़त करो। (यानी हराम कमाई से अपना पेट न भरो, इसी तरह अपनी शर्मगाह, हाथ पांव और दिल का इस तरह इस्तेमाल करो कि इससे कोई हराम काम न होने पाये) और 

मौत और हड्डियों के गल-सढ़ जाने को याद किया करो और जिसे आख़िरत की चाहत हो वो दुनिया की ज़ेबो जीनत को छोड़ दे।

फिर जिसने ये सब पूरा किया तो हक़ीक़त में उसी ने अल्लाह तआला से हया की जैसे कि उससे हया करने का हक़ है। 

[सुनन तिर्मिज़ी 2458; मिश्कात उल मसाबीह 1608]


अब तक जितनी भी कुरआन की आयतें और अहादीश बयान हुई हमने पाया कि हया मर्द और औरत दोनों के लिए है और हम सब को इसकी हिफाज़त करनी चाहिए। 

अल्लाह से दुआ कि उम्म्त को गुनाहों से बचने और नेक अमल करने की तौफीक इनायत फरमाए।

आमीन या रब्बल आलमीन।


आपकी दीनी बहन 
फ़िरोज़ा 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

क्या आपको कोई संदेह/doubt/शक है? हमारे साथ व्हाट्सएप पर चैट करें।
अस्सलामु अलैकुम, हम आपकी किस तरह से मदद कर सकते हैं? ...
चैट शुरू करने के लिए यहाँ क्लिक करें।...