Allah se dhokha aur bagawat (part-5) | 1. Imamo ki taqleed

Allah se dhokha aur bagawat (part-5) | 1. Imamo ki taqleed


अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)

5. सुन्नत ए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हटकर इमामो की अंधाधुन तकलीद

5.1. हदीस को किताब में लिखना


इस उम्मत में सबके लिए ये ज़रूरी है कि वो अल्लाह और उसके रसूल की बात को माने और किसी भी हस्ती की बात नबी करीम के खिलाफ तस्लीम न करें। जो लोग नबी करीम की बात के आगे किसी और की बात को रखेंगे वो खुले गुमराह हैं।

अल्लाह फरमाता है :

"ऐ (नबी) तेरे रब की क़सम ये लोग कामिल मोमिन नहीं हो सकते जब तक तुझे हर फ़ैसले में अपना हाकिम न बना लें।" [सूरह निसा 65]

आयत से वाज़ेह पता चलता है नही करीम की बात के आगे फ़ैसले आ जाने के बाद किसी और की बात को दिल में बिठाया या उसकी बात को ऊंचा रखा समझ लें वो दायर ए इस्लाम से खारिज है अल्लाह हमे महफूज रखे।

ये एक अहम मोजु है मैं चाहता हूँ इस टॉपिक को तमाम अहले इल्म और अवाम पढ़ें और इसकी मुकम्मल सीरीज को पढ़ते रहें।

उम्मत में सबसे बड़ा फितना जिससे फिरके बने कोई बरेलवी तो कोई देवबंदी तो कोई शिया इन सबका का सबब सिर्फ एक है तकलीद। ये क्या है क्यों हैं इसको हमे तफसील से जानेंगे आइए पहले कुछ तारीख में आपको लेकर चलता हूं।

एक वक्त था जब नबी करीम की हदीसो पर सभी सहाबा, ताबयीन अमल करते आ रहे थे सब कुछ बड़ी बेहतरीन तरीक़े से हो रहा था। सब लोग हदीस को मानते थे अमल करते थे। जब कोई शख़्स सहाबी के दौर में कोई नबी करीम की हदीस बयान करता तो सहाबा सुनने के लिए चौकन्ने हो जाया करते थे और उसकी बात सुनने को उतावले होते थे क्योंकी वो बात नबी करीम की होती थी। लेकिन एक वक्त ऐसा आया ताबयीन का ज़माना आया उस दौर में लोग हदीस बयान करने में झूठ से काम लेते थे यानी नबी करीम की तरफ बात मंसूब करते थे लेकिन वो नबी करीम ने बात कही नही होती थी फिर भी मंसूब करते थे। इसकी वजह ये थी वो लोगो की वाह वाही लूटने के लिए लोगो को अपने तरफ़ ध्यान खींचने के लिए नबी करीम की झूठी हदीस बयान करते थे। जैसा के आज देखने को मिलता है बाज़ ऐसे मौलाना आलिम होते हैं जो तकरीर करते करते झूठी हदीस बयान करना शुरू कर देते हैं। उस ज़माने में भी था। तो सहाबा किराम उनकी तरफ से चेहरा हटा लेते थे यानी जब झूठ आम हो गया तो सहाबा तहकीक करते थे क्या ये बात नबी की है या नहीं।

फिर सहाबा का ज़माना ख़त्म हुआ। ताबयीन का ज़माना खत्म हुआ। तबे ताबयीन का ज़माना था की लोगो झूठी हदीस नबी करीम की तरफ मंसूब करने लगे तो मुहद्दसीन ने सोचा अगर ऐसे लोग झूठी बात मंसूब करने लगेंगे तो दीन में बिगाड़ पैदा हो जाएगा। तब अल्लाह त'आला ने मुहद्दसीन के दिल में ख़याल डाला की हदीसों को जमा किया जाए और सच और झूठ में फर्क किया जाए। जो हदीस नबी करीम की तरफ झूठी गढ़ी है। उसको ख़त्म किया जाए तो मुहद्दसीन किराम ने हदीस को लिखने का सिलसिला शुरू किया और इस तरह से हदीस ऐ नब्वी को किताबी शक्ल दी गई ताकि किताब में महफूज रहे और यूं दुनिया की सबसे पहली हदीस की किताब वजूद में आई "मुवत्ता इमाम मालिक"। ये हदीस की सबसे पहली किताब थी। इसको लिखने वाले इमाम मालिक थे और इमाम मालिक ने अपनी मुवत्ता के अंदर सनद के साथ हदीस लिखना शुरू की।

सनद की जरूरत इसलिए पेश आई ताकि पता लगाया जा सके कि जिस रावी (शख्स) से इमाम मालिक हदीस ले रहे हैं। वो सच्चा है या नहीं वो शख्स कहां रहता था, अकीदा क्या था आदि। तब जाकर पूरी तसल्ली के बाद जब पता चल जाता था की ये रावी सच्चा हैं तो उससे हदीस लिख ली जाती थी। मुवत्ता इमाम मालिक इमाम शाफ़ई के नज़दीक सबसे अफजल किताब थी इस रु ए ज़मीन पर। फिर एक वक्त बीता। इमाम मालिक के बाद कई मुहद्दसीन पैदा हुए। उन्होंने किताब हदीस की लिखना शुरू की जैसे-

बुख़ारी शरीफ (इमाम बुख़ारी)

मुस्लिम शरीफ ( इमाम मुस्लिम)

अबू दाऊद ( इमाम अबू दाऊद )

तिरमिज़ी शरीफ (इमाम तिरमिजी)

सुनन नसाई (इमाम नसई)

इब्ने माजह ( इमाम इब्ने मजह) 

फिर इसके बाद उम्मत का इज्मा (majority) हुई की इस उम्मत में अल्लाह के क़ुरआन के बाद सबसे सहीह किताब बुखारी शरीफ और मुस्लिम है। इमाम शाफई का मुवत्ता इमाम मालिक को सबसे अफजल किताब मानना ये तब तब था जब इमाम बुखारी की बुखारी शरीफ उन्होंने देखी नहीं, अगर इमाम बुख़ारी की बुख़ारी देख लेते तो यक़ीनन इसी बुखारी को सामने रख कर अफजल कहते।

इमाम मुस्लिम की मुस्लिम शरीफ का जब हम मुकद्दमा पढ़ते हैं तो इमाम मुस्लिम ने एक बात हमे बताई की हमारे ज़माने में कुछ लोग लोग थे तो बिदात करते थे, नबी करीम की तरफ झूठी हदीस बयान करते थे, अब आम लोग उनको भी मुसलमान समझते थे तो इमाम मुस्लिम ने कहा हम अहले सुन्नत वल जमात [सुन्नत पर अमल करने वाली जमात] हैं और अपने मुकाबले में सामने वाले का नाम अहले बिदत (दीन में नया काम करने वाले ] कहा है। 

तभी से हमारा टाइटल हो गया अहले सुन्नत वल जमात यानी (in short) सुन्नी मुसलमान यानी किसी बातिल फिरके से ख़ुद को अलग करने के लिए इमाम मुस्लिम ने अपनी जमात का नाम बदल लिया तो आज हम अहले बिदात के मुकाबले में खुद को अहले हदीस कहें तो क्या हर्ज है?


ये कुछ तारीख पसेमंजर था सुन्नी बनने का इन शा अल्लाह आगे तारीख को और जानेंगे।  

अल्लाह दीन समझने की तौफीक अता फरमाए।

आमीन


आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा

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