ईद की शॉपिंग
"मैं नहीं जाऊँगी अब कभी वापस" शहला भर्राती आवाज़ बोली, "बर्दाश्त की भी एक हद होती है।"
"लेकिन हुआ क्या?" समीरा ने पूछा।
"कोई एक बात हो तो बताऊँ। मेरी तो पूरी जिंदगी जहन्नुम बन गई।" शहला फूट फूट कर रोने लगी।
समीरा अपनी बहन के आंसू देख कर आग बबूला हो गई। "पिछली बार भी तुम्हारे झगड़े में मैंने तुम्हें कहा था के जीजू की बातों में मत आना। फिर भी तुमने मेरी एक न सुनी। और चली गई सुसराल।"
"तुम सही कहती हो, मैं ही पागल थी जो बार बार उनकी बातों में आ जाती हूँ।" शहला सिसकते हुए बोली, "मेरी तो कोई वैल्यू ही नहीं है, कभी मेरी कोई बात नहीं मानते, ना कुछ दिलाते, ना कुछ खिलाते पिलाते। लोग तो ना जाने अपनी बीवी के कैसे कैसे नखरे उठाते हैं, और तुम्हारे जीजू, पूरी गर्मी निकल गई 10 रुपये का एक आइसक्रीम नहीं खिलाई। कल मैंने कहा आइसक्रीम का तो मना कर दिया। ईद आ रही है, अमेजन पर सेल चल रही, इतना सस्ता पर्स मांगा, वो भी मना कर दिया। जब भी कुछ मांगों तो वही पुराना बहाना, पैसे नहीं हैं। बीवी पर खर्च करने के पैसे नहीं थे तो शादी क्यूँ की?"
समीरा उसे ढांढस बांधने लगी। और उसके शौहर को बुरा भला कहने लगी "तुम्हें मेरे बर्थडे वाले दिन भी आने नहीं दिया था और कितने दिन हो गए आपी ,यही अबाया पहन रही हो।'
उनकी माँ ने पीछे से आवाज़ दी, "अरे क्या गपशप चल रही है, कब आयी तुम शहला?"
"बस थोड़ी देर हुई।"
"अरे वाह कितना प्यारा हैंडबैग है, कब लिया?"
"ये? ये तो पुराना है, पिछली ईद पर दिलाया था शाहिद ने।" शहला ने परेशान आवाज़ में कहा।
"अच्छा! मगर मैंने तो कोई दूसरा देखा था।" माँ हैरान होते हुए बोली।
"सेल थी ना, तो दो हैंड बैग लिए थे।"
"अच्छा! और ये अबाया तो कबसे पहन रही हो, मगर बिल्कुल नया लगता है, ये कहाँ से लिया था?"
"ये तो बहुत पुराना है अम्मी, पिछले साल लिया था, वो तो महँगा है तो अच्छी क्वालिटी है, इसलिए अच्छा दिखता है। ढाई हजार का था।"
अम्मी मुस्कराई, फिर पूछा, "इतने महँगा अबाया दिला देते हैं और दस रुपये की आइस क्रीम नहीं खिलाते, बड़े अजीब हैं।"
"अरे मम्मी, आपको नहीं पता, मैं कभी कुछ नहीं मांगती, कल रेस्तरां में खाने के बाद मैंने सिर्फ़ इतना कहा कि आईस क्रीम भी मंगा लो, बस डांटने लगे, तुम्हारी फरमाइशें कभी ख़त्म ही नहीं होती। मैं कौन सा रोज़ -रोज़ कुछ मांगती हूँ।" शहला फिर बिसूरने लगी।
"तुम्हारी बातें सुनकर मुझे एक हदीस याद आ गयी" माँ सोचते हुए बोलीं "रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया: मुझे दोज़ख़ दिखलाई गई तो इस में ज़्यादा-तर औरतें थीं जो कुफ़्र करती हैं।
कहा गया या रसूल अल्लाह! क्या वो अल्लाह के साथ कुफ़्र करती हैं?
आप ﷺ ने फ़रमाया, "वो शौहर की नाशुक्री करती हैं, और एहसान की नाशुक्री करती हैं, अगर तुम उम्र-भर उनमें से किसी के साथ एहसान करते रहो, फिर तुम्हारी तरफ़ से कभी कोई उनके ख़्याल में नागवारी की बात हो जाये तो फ़ौरन कह उठेंगी की मैंने कभी भी तुझसे कोई भलाई नहीं देखी।" [सहीह बुख़ारी :29]
शहला टुकुर टुकुर ताकने लगी।
"बताओ भला, जो कुछ शाहिद ने अच्छा किया वो तो भूल गई और कुछ बदमज़गी हो गई तो तमाम दुनिया मे बयान करती फिर रही हो।"
शहला नज़रें झुका कर बैठ गयी, अभी अभी जैसे वो होश में आयी थी।
फिर समीरा से मुख़ातिब होकर अम्मी ने प्यार से सिर पर हाथ फ़ेरा, "तुम अभी छोटी हो, यही उम्र है सही और ग़लत में फर्क़ सीखने की।"
फिर समझाते हुए बोलीं,
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "वो शख़्स हममें से नहीं है जो किसी औरत को उसके शौहर के ख़िलाफ़ उभारे।" [अबु दाऊद 2175]
समीरा भी नादिम हो गई।
फिर माँ शहला से कहने लगीं "मर्द औरतों पर कव्वाम है। ये मैंनें नहीं कहा बल्कि हमारे रब का क़ुरआन में फ़रमान है।
"एक बात गांठ बांध लो, अच्छी बातें याद रखो और कड़वी बातें भूल जाया करो। अपने शौहर की इतआ़त इबादत की नीयत से करो। तो दुनिया में सुकून मिलेगा और आख़िरत में कामयाबी क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया : "जो औरत 5 वक़्त की नमाज़ अदा करे, रमजान के रोज़े रखे, अपनी इफ़्फ़त व पाकदामनी की हिफाज़त करे, और अपने शौहर की फ़रमाबरदारी करे तो वो जन्नत के जिस दरवाज़े से चाहे दाख़िल हो जाएगी।" [सहीह इब्ने हिब्बान 4252]
क्या तुमने मुझे अपने अब्बा की नाशुक्री करते देखा है?
ये सुनकर शहला ने अपना बैग उठाया और सलाम कर के जाने लगी।
"अस्सलाम अलयकुम "
"किधर चली ?" माँ ने पूछा
"जन्नत हासिल करने।" शहला बोली और मुस्कुरा कर चल दी।
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