क्या हया (शर्म) सिर्फ़ औरतों के लिए है?
मर्दों का गैर मेहरम औरतों से मिलना
गुज़िश्ता पोस्ट में हमने हया के ताल्लुक़ से कुछ अहादीसों पर ग़ौर वा फ़िक्र किया। अब इसी कड़ी में मर्दों को गैर मेहरम औरतों से मिलने कुछ एहकाम बयान हुए हैं:
नबी ﷺ ने फरमाया, "(ज़रूरत के वक़्त भी) तुम ऐसी औरतों के घरों में दाखिल मत हो, जिनके शौहर घरों में मौजूद न हो क्योंकि शैतान तुम में से हर एक के अंदर ऐसे ही दौड़ता है जिस तरह खून जिस्म में दौड़ता है।" [सुनन तिर्मिज़ी 1172]
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरआन में नबी करीम ﷺ की बीवियों की मिसाल देते हुए फ़रमाया:
"जब तुम्हें (नबी की बीवियों / °तावीले आम में° गैर महरम औरतों से) कुछ माँगना हो तो पर्दे के बाहर से माँगा करो यही तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के वास्ते बहुत सफ़ाई की बात है।" [सूरह अहज़ाब 33:53]
हयादारी के फायदे:
1 कामयाबी की बशारत:
ईरशाद ए बारी त'आला है,
"यक़ीनन क़ामयाब हो गये ईमान वाले, जो अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करते हैं।" [सूरह मुमीनून 23:1-5 से मफ़हूम]
2.जन्नत की ज़मानत:
रसूलल्लाह ﷺ ने जन्नत की खुशखबरी देते हुए फ़रमाया, "जो शख्स मुझे जबान और शर्मगाह की हिफाज़त की ज़मानत (गारण्टी) दे तो मैं उसे जन्नत की ज़मानत देता हूँ।" [सहीह बुख़ारी 6474]
3. अर्श के साये में जगह:
रसूलल्लाह ﷺ ने बताया कि, "क़यामत के दिन जब अल्लाह के अर्श के साये के सिवा कोई और साया न होगा, तो उस दिन अल्लाह 7 तरह के ख़ुशनसीब लोगों को अपने अर्श के साये में जगह देगा। जिनमें से एक शख़्स वो होगा जिसे किसी ख़ूबसूरत और खानदानी औरत ने ज़िना की तरफ़ बुलाया और उसने कहा कि “मैं अल्लाह से डरता हूँ।” [सहीह बुखारी 6474; सहीह मुस्लिम 2380]
4. नेक आमाल का वसीला दे कर अल्लाह से मदद:
नबी ﷺ ने एक सच्चा वाक्या बयान किया, जिसमें 3 आदमी एक गार (गुफा) में फंस गये और तीनों ने अपने नेक आमाल का वसीला दे कर अल्लाह से मदद माँगी तो अल्लाह ने उन्हें उस गार में मरने से बचा लिया। उनमें से एक शख़्स वो भी था जिसने अल्लाह से डर कर अपनी शर्मगाह की हिफाज़त की और ज़िना से रुक गया। [सहीह बुखारी 2215; सहीह मुस्लिम 6949]
इस पुरफितन दौर में बेहयाई और बेशर्मी आम होती जा रही है और ताज्जुब होता है कि आज इसे बुरा समझा ही नहीं जा रहा है बल्कि बाकायदा इसे प्रमोट किया जा रहा है जो हमारे ईमान को खोखला कर रहा है हमारी नस्लों को बुज़दिल और कमज़ोर किया जा रहा है और अफ़सोस की हमें इस बात का एहसास तक नहीं।
बेहयाई और बेशर्मी के कामों से रोकने का हुक्म कई बार दिया है, मसलन इरशाद फ़रमाया:
"बेशक अल्लाह तआला अद्ल-इन्साफ़ और एहसान और रिश्ते जोड़ने का हुक्म देता है और बुराई और बेहयाई और ज़ुल्म व ज़्यादती से मना करता है। वो तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम सबक़ लो।" [सूरह नहल 16:90]
हम शैतान के शिकंजे में कैद होते जा रहे हैं, दज्जालियत के गिरफ़्त में क़ुरआन वा सुन्नत से दूर हम ख़ुद को और आने वाले नस्ल को जहन्नम का ईंधन बनाने पर तुले हुए हैं, कहते हैं इंसान जब एक बार कीचड़ में पैर रख दे तो फिर उसे उसी में लुत्फ आने लगता है।
शर्म वा हया का ताल्लुक़ मर्द औरत दोनों से है।
अगली कड़ी (पार्ट-5) में कुछ अहम बिंदुओं पर रोशनी डालेंगे इन शा अल्लाह!
तब तक के लिए दुआ करें अल्लाह उम्मत के हालात बदल दे।
आमीन
आपकी दीनी बहन
फ़िरोज़ा
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