Aurat aur islam | aurat maa, biwi aur beti




नारी (औरत) और इस्लाम

इतिहास में एक लम्बे समय से नारी पर अत्याचार होता आ रहा है, हर कौम और हर क्षेत्र में नारी उत्पीडित थी, दुनिया की अधिकांश सभ्यताओ में उसे समाज में कोई स्थान प्राप्त नहीं था। उसे फरियाद और आपत्ति करने  का भी अधिकार प्राप्त न था।

इस्लाम ने औरत को ज़ुल्म और अत्याचार से निकाला और  इन्साफ किया, उसे सारे मानव अधिकार दिए, समाज को उसका सम्मान करना सिखाया और इस बात का ऐलान किया कि एक इंसान और दूसरे इंसान के बीच जो झूठे भेदभाव दुनिया में  पैदा कर दिए गए हैं वो बिलकुल निराधार  पैदाइशी तोर पर ना कोई श्रेष्ठ है ना कोई हीन, ना कोई ऊंची जाति का है ना नीची जाति का।

इस्लाम ने औरतों को माँ, बीवी और  बेटी तीनों हैसियत में बड़ा ऊँचा मक़ाम प्रदान किया है।


माँ के रूप में औरत की हैसियत:

इस्लाम खुदा और  रसूल के बाद सबसे ऊंचा दरजा मां को देता है, कुरान में  कहा गया है-

"और हमने इंसान को अपने मां बाप का हक पहचानने की ताकीद की है। उसकी माँ ने सख्ती पर सख्ती झेलकर उसे अपने पेट में रखा और दो वर्ष में  उसका दूध छुटा। हमने आदेश दिया कि मेरे और अपने माँ बाप के शुक्रगुज़ार बनो। अन्ततः मेरी ही तरफ तुम्हें लौटना है।" [क़ुरआन 31:14]

अल्लाह के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ﷺ ने बाप के साथ भी सद्व्यवहार की ताकीद की और माँ के साथ सद्व्यवहार पर तीन गुना ज्यादा बल दिया।

हज़रत अबू हुरेरह फ़रमाते हैं कि एक आदमी नबी ﷺ के पास आया और  पूछा-

ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे अच्छे व्यवहार का ज़्यादा हक़दार कौन है?

आपने फरमाया- तेरी मां

उसने पूछा- फिर कौन?

आपने फरमाया- तेरी माँ

उसने फिर पूछा- फिर कौन?

आपने फरमाया- तेरी मां

उसने कहा- फिर कौन??

तो आपने फरमाया- तेरा बाप।

[इब्ने माजह 3658]

पत्नी के रूप में औरत की हैसियत: 

इस्लाम में निकाह की वजह से ना तो औरत का व्यक्तित्व पति के व्यक्तित्व में गुम हो जाता है और  ना वो इसकी दासी हो जाती है। 

बीवी के बारे में कुरान कहता है-

"अल्लाह की बहुत सी निशानियों में से  एक ये भी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही नसल से जोड़े बनाए ताकि तुम उनके पास आराम या शांति पा सको और तुम्हारे बीच प्रेम और  दयालुता पैदा कर दी। निःसंदेह इसमे निशानियां हैं उन लोगो के लिए जो सोच विचार करते हैं।" [क़ुरआन 30:21]

औरत के साथ व्यवहार के बारे में, उसके अधिकार के बारे में एक साहबी ने आप ﷺ से पूछा तो आपने फरमाया,

"जब तुम खाओ तो इसे भी खिलाओ, जब तुम पहनो तो इसे भी पहनाओ। (गुस्से से बेक़ाबू होकर) उसके मुंह पर मत मारो या उसको बुरा भला मत कहो, (उससे किनाराकाशी ज़रुरी हो जाए तो) उसे घर से मत निकाल दो बल्की घर के अंदर ही उससे अलग रहो।" [अबु दाऊद 2142]


अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया,

"ईमानवालो में सबसे परिपूर्ण ईमान वाला व्यक्ति वह है जिसका अखलाक सबसे अच्छे हो और तुममें बेहतर लोग वो हैं जो अपनी बीवी के हक में बेहतर हैं।" [तिर्मिज़ी 1162]


बेटियों के रूप और औरत की हैसियत:

दौर ए जाहिलियत (इस्लाम से पहले) में अरब के लोग लड़कों को गर्व का साधन और बेहतरीन पुंजी समझते थे और लड़कियों को बोझ समझते थे। उनके ज़िक्र से ही उनका सिर शर्म से झुक जाता था यहां तक कि कुछ सख्त दिल बाप अपने हाथों से अपनी बेटियों को जिंदा दफन कर देते थे।

कुरान ने फरमाया:

"अल्लाह ही के लिए आसमानो और ज़मीन की बादशाहत है, वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़किया देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है या उन्हें लड़के और लड़कियां दोनों देता है और जिसे चाहता है बांझ बना देता है ,बेशक वो सब जाननेवाला और सामर्थ्यवान है।" [क़ुरआन 42: 49-50]

अल्लाह के रसूल ﷺ ने लड़कियों की परवरिश के बारे में फरमाया,

"तुममें से जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हो और वो उनके साथ अच्छा व्यवहार करे तो वह जन्नत में ज़रूर दाखिल होगा।" [तिर्मिज़ी 1912]

इस प्रकार इस्लाम ने स्त्री के लिए संवैधानिक (कानूनी) अधिकार भी सुरक्षित किए हैं और नैतिक रूप से भी इसे उच्च सम्मान और प्रतिष्ठा का पद प्रदान किया है।


आपकी दीनी बहन 
आफरीन अली 

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