अपने आप पर गौर ओ फिक्र
इस सच्चाई को जान लेने के बाद के हम ऐसे बीज से बने हैं जो इतना छोटा है कि हमारी आंख उसे देख भी नहीं सकती, हाय कुछ वक्त निकाल कर हम थोड़ा सा अपने जिस्म पर गौर ओ फिक्र करें, शायद कि हम किसी अहम हकीकत तक पहुंच जाए। अगर तफ़सील मे शरीर के हिस्सों के बारे में लिखना चाहे तो पढ़ने के लिए वक्त कम पड़ जाएगा इसलिए हम कुछ खास हिस्सों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे:
1. दिमाग (Brain):
हमारा दिमाग जो हमारे पूरे वजूद को कंट्रोल करता है उसकी बनावट बहुत पेचीदा है, दिमाग में ब्रेन सेल्स (Brain cells) की तादाद तकरीबन 10 अरब है जो के बिजली के तारों की तरह आपस में जुड़े होते हैं। उन जोड़ों (node connections) की तादाद तकरीबन 1000 अरब के बराबर है। एक अरब इतना बड़ा है कि अगर आप गिनती (counting) करें तो तकरीबन 30 साल में 1 अरब की तादाद पूरी हो।
इंग्लैंड जैसे 30 बड़े मुल्क हों और इन पर घने दरख़्त (पेड़) लगा दिया जाए और हर पेड़ पर 10,000 पत्ते हो तो कुल पत्तों की तादाद हमारे दिमाग के नोड सेल्स (node cells) के बराबर होगी। हमारे दिमाग से नर्व सेल्स (nerve cells) कर पूरे जिस्म में फैली हुई है जिन पर पैगामात (message) आते जाते हैं ताकि दिमाग का पूरे जिस्म से राबता बरकरार रह सके। नर्व सेल्स पर चलने वाले मैसेज की तादाद सेकंड में हजारों में है। आपके दिमाग में हर वक्त हजारों कैलकुलेशन (calculations) होती रहती हैं और बहुत पेचीदा हिसाबी मुसावातें (Couple differential equation) हल होती रहती हैं। अभी आप इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं तो आपका दिमाग इसे समझने का काम कर रहा है, इसी तरह देखने, सुनने, सांस लेने, दर्जा हरारत महसूस करने, हवा के महसूस करने, सूंघने, आंखें झपकने, दिल की हरकत (heart beating), खून की गर्दिश, जिगर का काम करना, पेट का काम करना, इसके अलावा जितने भी काम है उन सब से हर वक्त दिमाग का राब्ता रहता है। हमारे नाखून लगातार बढ़ रहे हैं, बाल बाढ़ रहे हैं, वक्त के साथ हमारे शरीर में होने वाले तब्दीली को हमारा दिमाग कंट्रोल कर रहा होता है, शरीर का तवाज़ुन (balance), पेशाब और पाखाने का कंट्रोल वगैरह भी इसी के ज़िम्मे है।
गौर फरमाए: अगर हमारे दिमाग में खराबी पैदा हो जाए, हमारा पेशाब काबू ना रह सके, आंखें सही सलामत होते हुए भी हम देख ना सके, हमारी याददाश्त खत्म हो जाए, अगर तवाज़ुन को दिमाग कंट्रोल ना करे तो कुछ सेकंड बाद हम खड़े हो या बैठे हो फौरन वहीं गिर जाए। इन चीजों को कंट्रोल करने के लिए हमारे दिमाग में जो कपल डिफरेंशियल इक्वेशन हल हो रही है किसी एक अमल (process) फार्मूले और इक्वेशन लिखी जाए तो कई पेज भर जाए। इस दौरान अगर एक जगह गलती हो जाए तो पूरा अमल गलत हो जाए और हम फौरन गिर जाए। दिमाग और जिस्म के दौरान दो तरफा राब्ता (two way traffic) है, दिमाग का जिस्म के हिस्सों से और जिस्म के हिस्सों का दिमाग से।
जो काम दिमाग कर रहा है दुनिया का जदीद तरीन सुपर कंप्यूटर (super computer) भी नहीं कर सकता। इंसान ने कई सालों की मेहनत से इंसानी रोबोट (robot) बनाया है जो चल सके वो भी सिर्फ उस हद तक चलता है जिस हद तक उसमें कोडिंग की जाती है और अक्सर गिर भी जाता है जबकि इंसान जिस तरफ चाहे चले, सीधे जाए, दाएं मुड़े, बाएं जाए, आगे चले या पीछे मुड़े। कितनी आसानी से हर तरह की हरकत कर सकता है। सोचने की बात ये है कि दिमाग की यह तमाम सलाहियत गोश्त मे रखी गई हैं। सारे औजार (instruments) जो जदीद (आधुनिक/Modern) रोबोट और सुपर कंप्यूटर में इस्तेमाल होते हैं उनसे कहीं जदीद आलात (modern instruments) गोश्त में रख दिए गए हैं और थोड़ा सा गोश्त इतना दंग कर देने वाला काम सर अंजाम दे रहा है।
आपसे सवाल!
- क्या यह दिमाग बगैर किसी के बनाए खुद-ब-खुद बन गया है?
- क्या इतने काम खुद-ब-खुद कर रहा है?
- क्या इसे बनाने और चलाने वाला कोई ना होगा?
- क्या इसे कंट्रोल करने वाला कोई ना होगा?
सोचिए!
2. दिल (Heart):
दिल हमारे जिस्म मैं धड़कने वाला एक गोश्त का टुकड़ा है जो लगातार धड़के जा रहा है। हम सो रहे हों, जाग रहे हों, खड़े हो बैठे हों, चल रहे हों या दौड़ रहे हो यह लगातार अपना काम करता रहता है। कभी हमने सोचा कि यह 1 मिनट में 70 से 100 बार धड़कता है। 1 दिन में तकरीबन 100000 मर्तबा धड़कता है। पूरी जिंदगी (70 साल) में तकरीबन 2.5 अरब बार धड़कता है।
सोचने की बात!
- क्या इस दिल को किसी ने डिजाइन (Design) ना किया होगा?
- क्या गोश्त खुद-ब-खुद दिल की शक्ल में तब्दील हो गया होगा?
- क्या यह लगातार खुद-ब-खुद चल ( धड़क) रहा है?
इतनी नाज़ुक चीज को बड़े हिफाजत से सीने की मजबूत हड्डियों के जाल (ribs) के अंदर रखा गया है क्योंकि इस पर जिंदगी का दारोमदार है। इसे ऐसी जगह रखा गया है जहां इसकी मुकम्मल हिफाजत हो सके। इंसान चाहे दौड़े, लेटे, गिरे, उसे कोई चोट आए, इन हादसों का असर आसानी से दिल तक नहीं पहुंचता।
- क्या इसे इतनी महफूज जगह रखने की किसी ने मंसूबाबंदी ना की होगी?
- क्या इंसान का अपना इसमें कोई अमल दखल है?
यकीनन नहीं, इसे अल्लाह ने बनाया है और इंतिहाई महफूज जगह बसाया है और इसे लगातार चला रहा है ताकि हम जिंदा रह सके, लेकिन इंसान अल्लाह का शुक्र अदा नहीं करता। अल्लाह फरमाता है:
"इनसे कहो अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, तुमको सुनने और देखने की ताक़तें दीं और सोचने समझनेवाले दिल दिये, मगर तुम कम ही शुक्र अदा करते हो।"
[कुरान 67:23]
3. बाल (Hair):
अल्लाह ने चेहरे की खूबसूरती और दिमाग की हिफाजत के लिए बाल अता फरमाए। गोश्त से बारीक धागों की तरह घास जैसे बालों का निकलना अल्लाह की बहुत बड़ी निशानी है। वह अल्लाह है जिसने गोश्त को बालों में बदल दिया। चेहरे पर मौजूद दाढ़ी और मूंछ के बाल तो बढ़ते हैं लेकिन पलकों, भौहों और जिस्म के बाल एक हद तक बढ़ते हैं उसके बाद उनकी ग्रोथ रुक जाती हैं।
जबकि यह बाल भी उसी गोश्त से निकल रहे हैं जिससे दाढ़ी और मूंछ के बाल उगते हैं। अगर पलकों और भौहों के बाल भी लगातार बढ़ते रहते तो देखने में बहुत परेशानी आती है और नाजुक आंखों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता जख्मी होती रहती और हमें हर वक्त मैं काटने की फिक्र पड़ी रहती। क्या इन बालों ने खुद फैसला कर लिया है कि हम नहीं बढ़ेंगे जब के दाढ़ी और मूंछ ओके बाल बढ़ते रहेंगे। इसी तरह औरतों का चेहरा भी गोश्त से बना है लेकिन उसकी ठोड़ी (chin) और मूछों पर बाल नहीं। यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि इन तमाम चीजों को किसी ने जरूरत के मुताबिक जैसे चाहा डिजाइन किया और उसी के हुक्म के ताबा यह बाल परवरिश पाते हैं।
4. दांत (Teeth):
हमारे दांत हम पर अल्लाह का बहुत बड़ा एहसान है। गोश्त से निकालें गए है। दांतो का सफेद रंग चेहरे के लिए सबसे ज्यादा सही था। सफेद के अलावा कोई और रंग जैसे काला या गहरा रंग होता तो इंसान से डर लगता। दातों में अल्लाह की बहुत बड़ी निशानियां हैं।- क्या इनको हमने रोका है?
अब इन दातों पर गौर करें, किसी भी चीज को खाने के लिए पहले काटने की जरूरत थी। अल्लाह ने सामने वाले दांत तेज और नुकीले बनाए ताकि हम खाने को आसानी से काट सकें और पिछले दांत चौड़े बनाए ताकि खाने को पीसा जा सके।
- क्या ये सब कुछ हमने अपनी मर्जी से किया है?
बिल्कुल नहीं, अल्लाह तक पहुंचने के लिए तो हमारे दांत ही काफी हैं जो जुबान हाल से अपने खालिक के वजूद का ऐलान कर रही है। काश हम इन दांतों से फायदा उठाते हुए अपने खाली को भी याद रखें और उस का शुक्र अदा करें।
- क्या मुंह का गोश्त खुद-ब-खुद दातों में तब्दील हो गया?
दातों के मटेरियल (Material) पर गौर करें: अगर यह नरम होता खाने को ना चबाना सकता और लोहे की तरह मजबूत होता तो हमारी जुबान को काट देता। खालिक ने ऐसे मटेरियल का चुनाव किया जो इस काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकता था। अक्ल वालों के लिए दांतों में कुदरत की बिल्कुल वाज़ेह निशानियां हैं।
5. जुबान (Tongue):
जुबान बहुत ही कामिल निज़ाम का एक हिस्सा है। जैसे जैसे बहुत महारत से डिजाइन किया गया है। यह से बनाई गई है जिसमें ज़ायका (taste) की सलाहियत है। बोलने के दौरान और खाना खाते हुए यह खुद-ब-खुद बड़ी तेजी से तेज और मजबूत दांतो के बीच चलती है लेकिन दांतो के नीचे नहीं आती। जरूरत के हिसाब से खाने पर पानी (लुआब/saliva) छिड़कती जाती है ताकि खाना हलक में ना फंस जाए और खाने को दातों पर इधर-उधर हरकत देती है ताकि लुकमा पीता जा सके। इसे जरूरत के हिसाब से ऐसे मटेरियल से बनाया गया है जो नरम और लचकदार होने के बावजूद इतनी आसानी से जख्मी नहीं होती। अगर हमे खुद इसे दातों से बचाना पड़े तो शायद हमारे लिए एक लुकमा खाना भी मुश्किल हो जाए।
- क्या ये कुदरत की कारीगरी की बहुत बड़ी दलील नहीं?
- क्या बोलते हुए और खाना खाते हुए कभी हमने अल्लाह की इस नेअमत के बारे में सोचा?
6. सांस लेना (Breathing):
सांस लेने के निजाम मे अल्लाह की बहुत बड़ी और सांप निशानियां मौजूद हैंl हम जिंदा रहने के लिए सबसे ज्यादा सांस और हवा के मोहताज हैं। हवा एक ऐसी जरूरी चीज है जो हमें ना मिले तो हमें जिंदगी से हाथ धोना पड़ जाएगा। अगर 1 मिनट भी हमारी सास बंद रहे, हवा अंदर ना जाए तो अपने होश खो बैठते हैं, दो-तीन मिनट के बाद दिमाग मुर्दा हो जाता है और इसके कुछ ही सेकंड बाद हम मर जाते हैं।
7. सांस की नाली:
सांस की नाली कुदरत की ऐसी निशानी है जो शक का मुकम्मल खात्मा करते हुए फौरन हमें रब तक पहुंचा देती है। चुंकि हमारे जिंदा रहने के लिए हवा बेहद जरूरी है इसलिए यह नाली इतनी सख्त होनी चाहिए थी ताकि इसकी दीवारें एक दूसरे से मिलकर हवा के रास्ते को बंद ना कर सके। इस बुनियादी जरूरत को पूरा करते हुए अगर इसे लोहे की तरह सख्त मटेरियल से बनाया जाता तो गर्दन सीधी अकड़ी रहती, हम इसे दाएं बाएं, ऊपर नीचे मोड़ ना सकते और अगर इस जरूरत को पूरा करने के लिए नरम बनाया जाता तो गर्दन मोड़ते हुए यह नाली बंद हो जाती।
इस तरह हमारी जिंदगी तमाम हो जाती। कुर्बान जाऊं मैं अल्लाह की कारीगरी पर जिसने इस नाली को बहुत महारत से डिजाइन किया के हमारी दोनों जरूरतें पूरी हो सके। लचकदार करी हड्डी (cartilage bone) को गोश्त जोड़ा तांके गर्दन की हरकत भी आसानी से हो सके और मटेरियल ऐसा इस्तेमाल किया जो लचक की वजह से बंद भी हो तो फौरन खुद ब खुद खुल जाए।
मोहतरम साथियों,
- ऐसी साफ निशानियां देखने के बाद भी क्या अल्लाह पर शक की गुंजाइश बाकी है?
- क्या इस सांस की नाली को बनाने में इंसान का कोई अमल दखल है?
यह सांस जो खुद ब खुद आ रही है, अगर हमें खुद सांस लेना पड़ जाए तो शायद हम 1 दिन से ज्यादा जिंदा ना रह सके। क्या हमे अल्लाह का फरमाबरदार और शुक्रगुजार नहीं होना चाहिए जिसने हमें यह नेमतें आता की।
एक और निशानी: गले के सुराख पर मौजूद एपिग्लॉटिस (epiglottis) है। जब खाने का लुकमा में नीचे जाता है तो यह तुरंत सांस की नाली को बंद कर देता है ताकि लुकमा नाली में ना गिर जाए, जैसे ही लुकमा ऊपर से फिसलता हुआ नीचे की तरफ जाता है तो यह तुरंत बंद हो जाता है ताकि सांस लिया जा सके।- सोचे अगर पूरा लुकमा सांस की नाली मे गिर जाए तो क्या होगा?
8. फेफड़े (Lungs):
यह वह मुकाम है जहां ऑक्सीजन (oxygen) खून में शामिल होती है। हमारे जिस्म मे अरबों सेल्स हैं और हर सेल को ऑक्सीजन की जरूरत है। हम रोज 23000 दफा सांस अंदर लेते हैं और इतनी ही दफा बाहर निकालते हैं और यह काम सोते जागते खुद-ब-खुद हो रहा है। जरूरत के मुताबिक फेफड़ों में तकरीबन 3.6 अरब हवा की थैलियां बनाएं जिनको अगर हम जमीन पर बिछा दे तो उनका एरिया टेनिस कोर्ट के साइज के बराबर बनता है। अगर फेफड़ों की साख जिस तरह है उस तरह ना बनाई जाती तो हवा से ऑक्सीजन खून में शामिल ना हो सकती और हमारा जिंदा रहना मुमकिन ना रहता।
क्या हमारे जिस्म का गोश्त खुद-ब-खुद हमारे फेफड़ों में मौजूद हवा की थैलियों मैं बदल गया है?
ऐसा हो नामुमकिन है?
अगर नहीं, तो फिर ईमान लाए और झुक जाएं उस परवरदिगार के सामने जिसने आपके फेफड़ों को डिजाइन किया और आपका जिंदा रहना मुमकिन हुआ।
9. आवाज (Sound):
आवाज पैदा करने के लिए इर्ति'आश (कँपन/shaking) की जरूरत होती है। अल्लाह ने आपके गोश्त से अच्छी क्वालिटी की आवाज पैदा की जिसकी बदौलत हम एक दूसरे से बात करते हैं। मर्द और औरत की आवाज में फर्क रखा जो के अल्लाह की निशानी है।
10. सुनना (Hearing):
आवाज के सुनने के लिए कान बनाएं। कानों को खास सूरत दी ताकि आवास की लहरें कान से टकराकर इधर-उधर भागने की बजाय कान की तरफ जाएं। आवाज सुनने के लिए कान में पर्दा बनाया जिससे लहरें टकराकर कँपन पैदा करती हैं। यह कंपन दिमाग में प्रोसेस में आने के बाद आवाज के सुनने का जरिया बनता है। फिजा में हर फ्रीक्वेंसी (frequency) मौजूद है, हमारे कान सिर्फ उस आवाज को सुन सकते हैं जिसकी फ्रीक्वेंसी 20-20,000 KHz होती है।
अगर हमारे कान बाकी फ्रीक्वेंसी को भी सुन सकते तो हमारा जिंदा रहना मुश्किल हो जाता। हम अपने जिस्म के अंदर के हिस्सों जैसे दिल वगैरा और फिजा में मौजूद लाखों आवाजें हर वक्त सुन रहे होते हमारा जीना मुश्किल हो जाता। कानों की बनावट ऐसी है कि पानी में नहाने से भी पानी कान के अंदर आसानी से दाखिल नहीं हो सकता।
- क्या हमारे जिस्म का गोश्त खुद-ब-खुद कानों में तब्दील हो सकता था?
अगर हम सोचते तो बनाने वाले के फरमाबरदार हो जाते।
11. चेहरे की तस्वीरकशी:
मां के पेट में परवरिश के दौरान गोश्त अलग-अलग अंगों (organs) मैं तब्दील हो रहा होता है, दिमाग, गुर्दे, जिगर, आंते वगैरह बन रहे हैं। पांचवें से नवें हफ्ते के दरमियान गोश्त के उभारों ने इंसान के खूबसूरत चेहरे की तस्वीर ढाल ली है। अल्लाह ने अपनी बेमिसाल हिकमत को इस चेहरे में दिखाया है जिसकी किसी और मखलूक में मिसाल नहीं मिलती। चेहरे की खूबसूरती और हर इंसान का चेहरा एक दूसरे से अलग होना अल्लाह की कारीगरी की बहुत बड़ी निशानी है।
हर इंसान के चेहरे पर मिलती-जुलती दो आंखें, दो कान, दो होंठ, ठोड़ी और माथा है लेकिन अरबों इंसानों में कोई भी दो इंसान पूरी तरह एक जैसे नहीं होते, कुछ ना कुछ फर्क जरूर होगा। यही चेहरा हमारे आपस में शिनाख्त की वजह भी है। अल्लाह ने इंसान के चेहरे की बेहतरीन बनावट का जिक्र फरमाया:
12. आंखें (Eyes):
हम अपनी पलकों को रोजाना 12 हजार बार झपकाते हैं। आंखों की तफसील में जाने के बजाय अपने आप से सिर्फ यही सवाल कर ले कि क्या इंसानी गोश्त के अंदर इतनी पेचीदा चीज जो आम गोश्त से बिल्कुल अलग हो, जिसमें शीशे की तरह का लेंस (lens) लेंस हो, जिसकी पुतलियां खुद ब खुद खुलती और बंद होती हो, पुतलियों की हरकत के लिए खास किस्म का लिक्विड निकलता जो पुतलियों को रगड़ से बच सकें, अगर यह लिक्विड जरूरत से ज्यादा निकले तो आंखों से हर वक्त पानी बहता रहे और हमें हर वक्त इसे साफ करना पड़े और अगर जरूरत से कम निकले तो आंख की पुतलियां हरकत ना कर सके और आंख अकड़ जाए।
फिर आंखों की नजाकत को देखते हुए इन्हें महफूज जगह हड्डी के गड्ढों में रखा ताकि चोट लगने पर बेकार होने से बच सकें।
- क्या इस अमल को आप खुद कंट्रोल कर रहे हैं?
- आंख की पुतलियों को अगर आपको खुद हरकत देना पड़े तो आपका क्या हाल होगा?
अगर हम इन चीजों पर खुद से कादिर नहीं तो यह गुमान कैसे किया जा सकता है कि यह सब कुछ खुद-ब-खुद हो रहा है। अगर हमें अल्लाह पर यकीन होता तो हम उसकी नेमतों की कद्र करते हैं और जरूर उसकी फरमाबरदारी में जिंदगी बसर करते।
ऐनक एक वाज़ेह निशानी: अगर गौर किया जाए तो ऐनक अल्लाह की ऐसी वाज़ेह निशानी है जो अल्लाह के वजूद पर ना-क़ाबिल-ए-तर्दीद (जिसको टाला न जा सके) दलील है। करीब या दूर की नजर के लिए अलग-अलग नंबर के शीशे (glasses) बगैर मशीनों में बनाए खुद-ब-खुद बनते जा रहे हैं,
- तो क्या कोई यकीन करेगा?
हरगिज़ नहीं, लोग कहेंगे ये कैसे हो सकता है, ये नामुमकिन है।
अब अगर यही सवाल इस लेंस के बारे में किया जाए जो पहले से आपकी आंखों में मौजूद है, जो इन आर्टिफिशियल लेंस गुना बेहतर है, जो करीब और दूर की नजर दोनों के लिए काम करता है?
तो यहां हम धोखा खा जाते हैं, हम कहते हैं यह खुद ब खुद बन गया है। अफसोस है इंसान के फैसले पर, एक आर्टिफिशियल बेकार सी चीज के खुद-ब-खुद बनने को तस्लीम नहीं करता लेकिन इसी चीज की आला शक्ल (better quality) के खालिक का इंकार कर देता है।
- क्या सिर्फ इसलिए के हमारी आंखों में मौजूद लेंस को बनाने वाला नजर नहीं आता?
उसूल तो एक होना चाहिए। अगर हम बेउसूली और नाइंसाफी को छोड़कर सच्चाई और इंसाफ से काम ले तो यह ऐनक हमें हमारे खालिक तक रहनुमाई करने के लिए काफी है। अल्लाह हमें सच्चाई को तस्लीम करने की तौफीक दे। आमीन
13. हड्डियों का ढांचा (Skelton):
कभी हमने गौर किया क्या हमारे वजूद में हड्डियों का ढांचा कुदरत की कितनी बड़ी मेहरबानी है। उन हड्डियों की बदौलत ही हम बैठ सकते हैं, खड़े हो सकते हैं, चल फिर सकते हैं। अगर हड्डियां ना होती तो हम बेबस होकर हमेशा लेटे रहते। जरूरत के मुताबिक जगह-जगह जोड़ रखे गए हैं बैरंग की तरह काम करते हैं। हड्डियों के अंदर को बारीक बेनी (किवाड़ के एक पल्ले में लगी हुई एक छोटी लकड़ी जो दूसरे पल्ले को खुलने से रोकती है) से बना कर आपस में जोड़ा ताकि आसानी से हरकत कर सकें। जो कि कुदरत की अजी़म निशानी है। जोड़ों के दरमियान मुनासिब फासला (gap) बरकरार रखा है।
किसी खराबी की वजह से अगर यह फासला थोड़ा ज्यादा हो जाए तो शदीद दर्द महसूस होता है। हरकत के दौरान जोड़ों पर दबाव पड़ता है तो चिकनाहट (lubrication) पैदा करने के लिए उनसे खास किस्म का लिक्विड निकलकर सतह पर आ जाता है जिससे जोड़ रगड़ से बच सकें। लोहे जैसी मजबूत धातु से बने हुए औजार गीत बेयरिंग (bearings) वगैरह इस्तेमाल से साल दो साल बाद घिस जाते हैं, इन्हें बदलना पड़ता है लेकिन इंसान के जोड़ जिंदगी 70-80 साल तक चलते रहते हैं। पिछली उम्मत के लोगों की उम्र हजारों साल से ज्यादा थीं, उनकी हड्डियां उनकी जरूरत के मुताबिक बना दी गई। यह हड्डियों और जोड़ इतने मजबूत बनाए गए हैं कि इंसान इनकी बदौलत भारी भरकम बोझ उठा सकता है, कुछ लोग अढाई मन की बोरी आसानी से उठा लेते हैं।
हमारे जिस्म मे अल्लाह ने अलग-अलग तरह की 206 हड्डियां पैदा की है अलग-अलग काम करती हैं।
- क्या यह मुमकिन है की हमारी एंब्रीयॉनिक पीरियड के दौरान हमारे जिस्म में यह हड्डियां खुद ब खुद बन गई हो?
- अगर हम तस्लीम करते हैं कि यह अल्लाह ने बनाई है तो फिर हम इसके रास्ते पर क्यों नहीं चलते?
14. हमारे हाथ (Hands):
हम आसान कामों से लेकर पेचीदातरीन काम करने के लिए अपने हाथों पर डिपेंडेंट है। सुई में धागा डालना, सामान पकड़ना, लिखना वगैरा इन हाथों की बदौलत ही है। हाथ और उंगलियां बड़ी तेजी से काम कर सकती हैं। अंगूठा सब उंगलियों पर फिरता है और बहुत अहम किरदार अदा करता है। तो हम हाथ से चुल्लू बना ले पानी पीने के लिए, चाहे दुश्मन से बचाव के लिए घूंसा बना ले। हमारी जरूरत के मुताबिक उंगलियां छोटी बड़ी बनाई है। यह बात भी साबित कर दी है कि उंगलियों की तादाद और तरतीब एहसन है और इससे बेहतर कोई और सूरत मुमकिन ना थी। दुनिया जहान के अक्लमंद मिलकर भी इससे बेहतर सूरत ना बना सकते थे इसीलिए रोबोट भी इसी तर्ज पर बनाए जाते हैं। दुनिया की सारी तरक्की इन हाथों से हुई, बड़ी-बड़ी इमारतें, सड़कें, मशीनें, कंप्यूटर और किताबे इन हाथों से ही बनी हैं। उंगलियों के आखिरी सिरों पर नाखून लगाए हैं ताकि चीजों को पकड़ने के दौरान मजबूती फराहम हो सके और खूबसूरत भी दिखे, गोश्त का नाखून में बदलना और उनका बाहर निकलते रहना कुदरत की बहुत बड़ी निशानी है।
हाथों की अंदरूनी सतह का गोश्त मजबूत है ताकि चीजों को पकड़ने और उठाने से हाथ जख्मी ना हो और सफेद है ताकि खूबसूरती हो। बाहरी खाल (skin) का इस्तेमाल बहुत कम हुआ है इसलिए इसका गोश्त नरम है, अगर ऊपरी जिल्द की तरह अंदरूनी जिल्द होती तो सामान को उठाने पकड़ने से हाथ जख्मी हो जाते। इंसान और जानवर में हाथों का फर्क है, इंसान का पूरा जिस्म पांव पर खड़ा किया और हाथ आजाद किए जब के जानवरों को हाथ की आजादी नहीं दी इसीलिए वह हमारे अपोजिट है वरना जितनी ताकत जानवरों में है अगर उनको हाथों की आजादी होती तो दुनिया में इंसान नजर ना आते। यू अल्लाह ने हिकमत के तहत जानवरों को काबू किया है।
- सोचे, क्या यह सब कुछ बिना किसी के बनाएं खुद-ब-खुद बन गया?
अफसोस है उन लोगों पर जो सोचते नहीं।
अल्लाह की इस नेमत को इस्तेमाल करते हुए उसकी शुक्र गुजारी नहीं करते। अगर हमारा पूरा जिस्म सलामत हो और हाथ ना हो तो हम कितने बेबस हो जाते हैं। क्या इन हाथों को हमने खुद बनाया है या अल्लाह के अलावा किसी और ने बनाया है। अगर हम सोचे और इंसाफ से फैसला करें तो हमारे हाथ हमें हमारे खालिक से जान पहचान कराने और उस पर यकीन पैदा करने के लिए काफी हैं।
15. पाव/पैर (Foot):
हमारे पाव कुदरत की तख्लीक का बहुत बड़ा कारनामा है। पांव का पंजा बनाया है ताकि पूरे जिस्म के वजन को बर्दाश्त कर सके चलने के लिए सटीक हो। हमारी एड़ी अल्लाह की बहुत बड़ी निशानी है। इसमें कुदरत की दो निशानियां है एक पीछे को बढ़े होना ताकि इंसान जब दो टांगों पर खड़ा हो तो पीछे की तरफ गिर ना जाए और दूसरी निशानी बाकी पाव के निस्बत ज्यादा सख्त होना क्योंकि ज्यादा वजन इसी पर पड़ता है।
अगर अल्लाह हमारा ऐसा पाव ना बनाता तो हम चलना सकते हैं, उठते तो गिर जाते। पांव के साथ ही मजबूत जोड़ बनाया जिसकी बदौलत हम चलने के काबिल हुए।
- क्या इसे हमने बना लिया?
- या गोश्त और हड्डियां खुद-ब-खुद इस सूरत में तब्दील हो गई हैं?
किताब: कायनात से ख़ालिक़ ए कायनात तक
हिंदी तरजुमा: Islamic Theology
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