अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-6f)
सैयदना मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इस्राईल
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41- बछड़ा
बनी इस्राईल मिस्र के मुशरिकों के साथ कई शताब्दी रहे थे, मिस्र के क़िबती बहुत सी चीज़ों की पूजा करते थे, बनी इस्राईल उन्हें ऐसा करते अपनी आंखों से देखते थे। यह देखते देखते शिर्क से उनकी नफ़रत कम होने लगी थी और उसकी मुहब्बत उनके अंदर रिसने लगी थी जैसे कि पानी पुराने और कमज़ोर घर में रिसता है जब मौक़ा मिलता शिर्क की तरफ़ उनका झुकाव होने लगता जैसे कि पानी ढाल के तरफ़ बहने लगता है। उनके दिल टेढ़े हो गए थे उनके शौक़ में बिगाड़ आ गया था अगर उन्हें हिदायत का रास्ता मिलता तो भी उसे नहीं अपनाते और अगर गुमराही का रास्ता देखते तो उस पर चल पड़ते।
बनी इस्राईल ने नदी पार किया "उनका गुज़र ऐसी क़ौम पर हुआ जो अपनी मूर्तियों से लगे बैठे थे उन्होंने कहा, हे मूसा! आप हमारे लिए भी एक ऐसा ही माबूद बना दें जैसे इस क़ौम के पास माबूद है। मूसा ने कहा बेशक तुम एक नासमझ क़ौम हो।" (1)
हद हो गई यह कितना बड़ा ज़ुल्म है? अल्लाह ने तुमपर एहसान किया और तुम्हें वह दिया जो दुनिया में किसी को नहीं दिया था।
"क्या मैं अल्लाह के सिवा कोई और माबूद तुम्हारे लिए तलाश करूं हालांकि अल्लाह ही है जिसने तुम्हें दुनिया की क़ौमों पर फ़ज़ीलत दी है।" (2)
मूसा अलैहिस्सलाम तूर की जानिब चले और कुछ दिन उनसे ओझल रहे तो लोग शैतान के शिकार हो गए और शिर्क के जाल में फंस गए।
उनमें एक व्यक्ति जिसका नाम सामिरी था "उनके लिए एक बछड़े की सूरत बनाई जिससे बैल जैसी आवाज़ निकलती थी लोग पुकार उठे यही है तुम्हारा और मूसा का ख़ुदा, मूसा तो भूल ही गए हैं।" (3)
इस बछड़े के ज़रिए बनी इस्राईल को आज़माया गया और वह अंधे बहरे होकर गिर पड़े।
"क्या उन्हें नज़र नहीं आता था कि न तो वह उनकी बात का जवाब देता है और न उनके फ़ायदे और नुक़सान का कुछ इख़्तियार रखता है।" (4)
"क्या उन्हें यह भी नज़र नहीं आया कि वह न उनसे बोलता है न किसी मामले में उनकी रहनुमाई करता है।" (5)
हारून अलैहिस्सलाम ने उन्हें इस काम से रोका और समझाने की बहुत कोशिश की। उन्होंने कहा ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हें इस बछड़े के ज़रिए आज़माया गया है बेशक तुम्हारा रब तो बहुत रहम करने वाला है। मेरे पीछे चलो और मेरा हुक्म मानो।" (6)
लेकिन बनी इस्राईल पर सामिरी का जादू चल चुका था और बछड़ा उनके दिलों में घर कर गया था चुनांचे उन्होंने कहा "हम तो इसी को पूजते रहेंगे जब तक की मूसा हमारे पास वापस न आ जाएं।" (7)
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1, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 138
2, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 140
3, सूरह 20 ताहा आयत 88
4, सूरह 20 ताहा आयत 89
5, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 148
6, सूरह 20 ताहा आयत 90
7, सूरह 20 ताहा आयत 91
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42- अंजाम
अल्लाह ने मूसा को ख़बर दी कि बनी इस्राईल को सामिरी ने गुमराह कर दिया है तो वह अपनी क़ौम की तरफ़ ग़ुस्से में भरे हुए लौटे।
अपनी क़ौम पर बहुत नाराज़ हुए और अपने भाई हारून पर भी अल्लाह की ख़ातिर नाराज़ हुए और कहा "ऐ हारून क्या तुमने रोका नहीं जब उन्हें गुमराह होते देखा तुमने मेरी पैरवी नहीं की बल्कि मेरे हुकुम की नाफ़रमानी की।" (1)
हारून अलैहिस्सलाम ने क्षमा प्रार्थी हुए और कहा मुझे तो डर था कि तुम कहोगे कि तुमने बनी इस्राईल के टुकड़े कर दिए और मेरे फ़ैसले का इंतेज़ार न किया बेशक क़ौम ने मुझे कमज़ोर कर दिया था और मुमकिन था कि मुझे क़त्ल भी कर देते।" (2)
मूसा ने कहा ऐ मेरे रब! तू मुझे और मेरे भाई को माफ़ कर दे और अपनी रहमत में दाख़िल कर तू सब रहम करने वालों से बढ़कर रहम करने वाला है।" (3)
फिर मूसा अलैहिस्सलाम ने सामिरी की तरफ़ तवज्जुह की और पूछा "ऐ सामिरी तेरा क्या मामला है"? (4) सामिरी ने अपना जुर्म को क़ुबूल कर लिया और कहा "मेरी तबीयत को यही बात अच्छी लगी।" (5)
मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा "चला जा तेरे लिए ज़िन्दगी में यही सज़ा है कि तू कहता फिरे कि मैं अछूत हूं मुझे छूना नहीं।" (6)
मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे तन्हाई की सज़ा दी, वह अकेला रहता था, अकेला चलता था और जंगली जानवरों की तरह जीता था न उसका कोई साथी था और न उससे कोई मुहब्बत करने वाला था इससे बढ़कर उसकी सज़ा और क्या हो सकती थी। बेशक जिसने लोगों की मुहब्बत को शिर्क से गंदा किया फिर ज़रूरी था कि लोग उससे बचें और नफ़रत करें। जो अल्लाह और बन्दों वके दरमियान तफ़रीक़ (फूट डाले) पैदा करें तो फिर ज़रूरी है कि उसके और लोगों के दरमियान तअल्लुक़ बाक़ी न रहे। जो गुनहगार लोगों को अल्लाह की ज़मीन में शिर्क की तरफ़ बुलाए तो ज़रूरी है कि पूरी ज़मीन को उसके लिए क़ैदख़ाना बना दिया जाए।
फिर मूसा अलैहिस्सलाम ने उस मलऊन बछड़े की तरफ़ तवज्जुह की और उसको जलाने का हुक्म दिया चुनांचे उसे जलाया गया फिर उसे समुद्र में बहा दिया गया। बनी इस्राईल ने बछड़े का अंजाम देखा जिसे उन्होंने अपना ख़ुदा बनाया था उन्होंने उसकी कमज़ोरी और दुर्बलता भी देखी। मूसा अलैहिस्सलाम फिर बनी इस्राईल के तरफ़ मुतवज्जह हुए और कहा है "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुमने बछड़े को अपना माबूद बनाकर अपने ऊपर बड़ा ज़ुल्म किया है इसलिए तुम अपना पैदा करने वाले के सामने तौबा करो और अपनी जानों को हलाक करो इसी में तुम्हारे पैदा करने वाले के नज़दीक तुम्हारी भलाई है।" (7)
बनी इस्राईल ने ऐसा ही किया उन लोगों ने जिन्होंने बछड़े की पूजा नहीं की थी उन लोगों को क़त्ल किया जिन्होंने बछड़े की पूजा की थी और इस तरह अल्लाह ने उनकी तौबा को क़ुबूल की।
अल्लाह तआला ने फ़रमाया "बेशक जिन लोगों ने बछड़े को माबूद बना लिया था बहुत जल्द उनपर उनके रब का ग़ज़ब नाज़िल होगा वह दुनिया की ज़िन्दगी में ज़लील है। हम झूठ घड़ने वाले मुजरिमों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं।" (8) और क़्यामत के दिन भी बछड़े के पुजारियों की ऐसी ही हालत होगी और मुशरिकों के साथ भी क़्यामत के दिन ऐसा ही मामला होगा।
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1, सूरह 20 ताहा आयत 93
2, सूरह 20 ताहा आयत 94
3, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 151
4, सूरह 20 ताहा आयत 95
5, सूरह 20 ताहा आयत 96
6, सूरह 20 ताहा आयत 97
7, सूरह 02 अल बक़रह आयत 54
8, सूरह 07 अल आराफ़ आयत 152
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43- बनी इस्राईल की बुज़दिली
बनी इस्राईल मिस्र ग़ुलामी, ज़िल्लत और रुसवाई में पले बढ़े थे इसी हालत में बच्चे जवान और जवान बूढ़े हुए उनकी रगों में ख़ून ठंडा पड़ गया था, वह न तो सरदारी के ख़्वाब देखते थे, न जंग व जिहाद (अपने हक़ के लिए लड़ने) की बात करते थे।
बनी इस्राईल अपने अजनबी दिनों के क़िस्से सुनाया करते थे जब न उनका कोई वतन था और न हुकूमत।
अल्लाह की वही पर मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने बाप दादा की मुक़द्दस ज़मीन में दाख़िल होने का इरादा किया जहां वह आज़ाद बादशाहों की तरह निवास कर सकें लेकिन मूसा बनी इस्राईल की बुज़दिली और कमज़ोरी से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे उन्होंने शौक दिलाना चाहा कि वह काम उनपर आसान हो जाए।
इसलिए कि मुक़द्दस ज़मीन पर सख़्त लड़ाकू क़ौम का कब्ज़ा था जो बहुत ताक़तवर और ज़ोर वाले थे और बनी इस्राईल उस मुक़द्दस ज़मीन में इन लड़ाकू लोगों को वहां से निकाले बग़ैर दाख़िल नहीं हो सकते थे।
मूसा अलैहिस्सलाम ने उन नेअमतों को याद दिलाया जो उनपर अल्लाह ने किया था और उनको तमाम दुनिया पर फ़ज़ीलत अता की थी ताकि वह अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए तैयार हो सकें और इस ज़िल्लत भरी नामुनासिब ज़िन्दगी से नफ़रत करने लगें।
“याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा था ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की उस नेअमत को याद करो जो उसने तुम्हें दी थी। उसने तुम में नबी पैदा किए, तुमको हाकिम बनाया और तुमको वह कुछ दिया जो दुनिया में किसी को नहीं दिया था।” (1)
फिर कहा, बेशक अल्लाह ने मुक़द्दस ज़मीन को तुम्हारे नसीब में लिख दिया है अब इसके इलावा कोई सूरत नहीं कि तैयार हो जाओ और उसे दुश्मनों से छीन लो। अल्लाह किसी चीज़ को जब किसी के लिए लिख देता है तो उसे उसका मुक़द्दर बना देता है फिर उसे लेना उसके लिए आसान कर देता है और अल्लाह के इरादे को कोई टाल नहीं सकता।
"ऐ मेरी क़ौम उस मुक़द्दस ज़मीन में दाख़िल हो जाओ जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है।” (2)
मूसा अलैहिस्सलाम को अंदेशा हुआ कि क़ौम पर कहीं बुज़दिली न ग़ालिब आ जाए इसलिए कहा “पीछे न हटो वरना नुक़सान में रहोगे।”
आख़िर वही हुआ जिस बात का मूसा को डर था मूसा ने जो बातें भी कही थी उनका एक ही जवाब था “ऐ मूसा वहां सख़्त लड़ाकू लोग हैं हम उन्हें हरगिज़ नहीं निकाल सकेंगे यहांतक कि वह ख़ुद निकल जाए।” (4)
उन्होंने इत्मीनान और सुकून से कहा “हां अगर वह ख़ुद निकल गए तो हम ज़रूर दाख़िल हो जाएंगे।” (5)
डरने वाली क़ौम में दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिन पर अल्लाह ने फ़ज़ल किया था उन्होंने कहा शहर के दरवाज़े से दाख़िल हो जाओ। अगर तुम दाख़िल हो गए तो तुम ही ग़ालिब रहोगे अल्लाह पर भरोसा रखो अगर तुम मोमिन हो।” (6)
लेकिन क़ौम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा लोगों ने कहा अगर दाख़िल होना ही ज़रूरी है तो तुम ही दाख़िल होकर चमत्कार दिखाओ। जब वहां तुम्हारे दाख़िल होने की सूचना हमें मिलेगी तो हम भी आ जाएंगे और सुकून व इत्मीनान के साथ दाख़िल हो जाएंगे।
बनी इस्राईल ने यहांतक कह दिया कि "ऐ मूसा हम हरगिज़ दाख़िल नहीं हो सकते जबतक कि वह लड़ाकू क़ौम वहां मौजूद है तुम जाओ और तुम्हारा रब जाए हम तो यहीं बैठे रहेंगे।" (7)
मूसा अलैहिस्सलाम को ग़ुस्सा आ गया, वह उनसे मायूस हो गए उन्होंने दुआ की, "यारब मैं स्वयं और भाई के इलावा किसी पर क़ुदरत नहीं रखता आप हमें और इस फ़ासिक़ क़ौम को अलग-अलग कर दें। अल्लाह ने जवाब दिया "अच्छा तो वह मुल्क चालीस वर्ष तक इनपर हराम है यह ज़मीन में मारे मारे फिरेंगे, इन नाफ़रमानों की हालत पर हरगिज़ तरस ना खाओ।" (8)
इस मुद्दत में वह नस्ल ख़त्म हो जाएगी जो मिस्र में ग़ुलामी और ज़िल्लत में पली बढ़ी थी और दूसरी नस्ल उस रेगिस्तान में सख़्ती और तंगी में परवान चढ़ेगी वही भविष्य की क़ौम होगी और हर युग में यहूदियों का यही ठिकाना था, वह ज़िल्लत और ग़ुलामी में जीते रहे।
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1, सूरह 05 अल माएदा आयत 20
2, 3, सूरह 05 अल माएदा आयत 21
4, 5, सूरह 05 अल माएदा आयत 22
6, सूरह 05 अल माएदा आयत 23
7, सूरह 05 अल माएदा आयत 24
8, सूरह 05 अल माएदा आयत 25, 26
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44- इल्म की तलाश में
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत है कि मूसा अलैहिस्सलाम एक दिन बनी इस्राईल के दरमियान ख़ुत्बा देने खड़े हुए। उनसे पूछा गया कि लोगों में सबसे ज़्यादा इल्म वाला कौन है? आपने फ़रमाया "मैं" जब उन्होंने अल्लाह की तरफ़ निस्बत नहीं की तो यह बात अल्लाह को नागवार गुज़री। उनकी तरफ अल्लाह ने वही भेजी कि मेरे बन्दों में से एक बन्दादरियाओं के संगम (जहां फ़ारस ईरान और रोम के समुद्र मिलते हैं) पर मिलेगा वह तुमसे बड़ा आलिम है। मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा मेरे रब उनसे मेरी मुलाक़ात कैसे होगी?
हुक्म हुआ एक मछली ज़नबील में रख लो जहां यह मछली ग़ायब हो जाए वह बन्दा तुम्हें वहीं मिलेगा।
मूसा अलैहिस्सलाम चल पड़े अपने साथ एक नौजवान यूशा बिन नून को साथ लिया, एक मछली ज़नबील में रखी और तलाश में निकल पड़े। जब वह एक चट्टान के पास आराम करने के लिए रुके और दोनों को नींद आ गई "वह मछली ज़नबील से निकली और समुद्र में छलांग लगा दी।" (1) मूसा ने और नौजवान के लिए यह अजीब बात थी फिर वह वहां से उठकर चल दिए रात भर चलते रहे "जब सुबह हुई तो मूसा अलैहिस्सलाम ने साथी से कहा नाश्ता लाओ हमें लगातार सफ़र से थकान आ गई है।" (2) मूसा को थकान का एहसास उस समय हुआ जब वह चिन्हित जगह पार कर गए थे जहां का उन्हें आदेश दिया गया था तभी नौजवान ने जवाब दिया "क्या आपने देखा नहीं कि जब हम चट्टान के पास ठहरे थे तो मछली ज़िन्दा होकर पानी में चली गई थी उफ़ मैं तो आपको बताना भूल ही गया।" (3) यह सुनकर मूसा अलैहिस्सलाम बोले हमें उसी जगह की तो तलाश थी चुनांचे वह वापस हुए" जब उस चट्टान के क़रीब पहुंचे तो एक शख़्स को कपड़ा ओढ़े हुए मौजूद पाया। मूसा अलैहिस्सलाम ने उन्हें सलाम किया।
ख़िज़्र बोले आपकी ज़मीन पर सलाम कैसे हो? मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा, मैं मूसा हूं।
ख़िज़्र ने पूछा बनी इस्राईल के मूसा।
मूसा बोले, जी हां!
मूसा फिर बोले "क्या मैं आपके साथ चल सकता हूं ताकि आप मुझे वह बातें सिखाएं जो अल्लाह ने ख़ास तौर पर आपको सिखाई हैं।" (4)
ख़िज़्र बोले "तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे।" (5) ऐ मूसा मुझे अल्लाह ने वह इल्म दिया है जो तुम नहीं जानते और तुम्हें जो इल्म दिया है उसे मैं नहीं जानता।
मूसा ने कहा, "इंशाअल्लाह आप मुझे सब्र करने वाला पाएंगे और किसी भी मामले में आपकी नाफ़रमानी नहीं करूंगा।" (6)
फिर दोनों समुद्र के किनारे किनारे पैदल चले उनके पास कश्ती नहीं थी जल्द ही उनके पास से एक कश्ती गुज़री उन्होंने बातचीत की और दोनों को बिठा लिया। चूंकि वह ख़िज़्र को पहचानते थे इसलिए बग़ैर किराए के बिठाया। इतने में एक चिड़िया आई और कश्ती के किनारे पर बैठ गई फिर समुद्र में उसने एक या दो चोंच मारी। यह देखकर ख़िज़्र बोले ऐ मूसा मेरे और तुम्हारे इल्म ने अल्लाह के इल्म से इतना भी कम न किया होगा जितना इस चिड़िया ने समुद्र से।
फिर ख़िज़्र ने कश्ती से उतरते ही उसमें जानबूझकर एक सूराख़ कर दिया।
मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़ौरन पूछा इन लोगों ने हमें किराया लिए बग़ैर सवार किया और अपने जानबूझ कर उनकी कश्ती में सूराख़ कर दिया कि वह डूब ही जाएं।
ख़िज़्र ने याद दिलाया कि "मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे।" (7)
मूसा ने कहा "आप मेरी भूल पर न पकड़ें और मेरे मामले में तंगी न करें।" (8)
यह मूसा की पहली भूल थी।
दोनों फिर आगे बढ़े, देखा एक लड़का बच्चों के साथ खेल रहा है ख़िज़्र ने उसका सिर ज़ोर से पकड़ा और उसे क़त्ल कर दिया।
मूसा बोल पड़े "आपने एक बेगुनाह बच्चे को नाहक़ मार डाला।" (9)
ख़िज़्र ने फिर याद दिलाया "मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ सब्र नहीं कर सकोगे।" (10)
मूसा ने कहा, अब अगर इसके बाद मैं कोई सवाल करूं तो आप अपने साथ मुझे न रखें।
"फिर दोनों आगे बढ़े यहांतक कि एक बस्ती से गुज़र हुआ उनसे ख़ुद को अपना मेहमान बनाने के लिए कहा लेकिन बस्ती वालों ने मेहमान बनाने से इनकार कर दिया, वहां उन्हें एक दीवार मिली जो बिल्कुल गिरने के क़रीब थी ख़िज़्र ने अपने हाथ के इशारे से उसे सीधा कर दिया।" (11)
मूसा अलैहिस्सलाम से फिर बर्दाश्त नहीं हुआ और बोल पड़े कि "अगर आप चाहते तो इसकी उजरत ले सकते थे।" (12)
ख़िज़्र ने कहा "अब हमारे दरमियान जुदाई का वक़्त आ गया है।" (13)
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह मुसा पर रहम करे कुछ देर और सब्र करते तो कुछ और वाक़िआत ( More Events) हमारे सामने आते। (14)
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(सही बुख़ारी 122 किताबुल इल्म)
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1, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 61
2, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 62
3, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 63
4, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 64
5, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 66
6, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 67
7, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 69
8, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 72
9, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 73
10, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 74
11, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 75
12, 13, 14, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 77
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45- तावील
उसके बाद ख़िज़्र ने बताया कि "वह कश्ती (जिसमें मैंने सूराख़ कर दिया था) कुछ ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत मज़दूरी करके गुज़ारा करते थे मैंने उसे ऐबदार बना दिया क्योंकि उनके पीछे एक ज़ालिम बादशाह था जो तमाम कश्तियां बेगार में पकड़ लेता था। वह लड़का जिसको मैंने क़त्ल कर दिया था उसके मां बाप दोनों मोमिन और नेक थे तो मुझे यह अंदेशा हुआ कि यह कहीं अपनी सरकशी और कुफ़्र में उन्हें फंसा न दे, हमारी ख़्वाहिश है कि उनका परवरदिगार उसके बदले में ऐसी औलाद अता फ़रमाये जो उससे पाक नफ़्सी और क़राबत में बेहतर हो। वह दीवार (जिसे मैंने खड़ा का दिया) शहर के दो यतीम बच्चों की थी और उसके नीचे ख़ज़ाना दफ़न था उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था चुनांचे तुम्हारे रब ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुंचें तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाना निकाल लें और मैंने कुछ भी अपनी मर्ज़ी से नहीं किया यह हक़ीक़त है उन वाक़िआत की जिनपर आप सब्र न कर सके।" (175)
अब मूसा को अभ्यास हो गया कि जो अल्लाह के इल्म को कवर कर सके। अल्लाह का कुछ इल्म किसी के पास है और कुछ किसी के पास और वह तमाम इल्म रखने वालों से बढ़कर इल्म रखने वाला है।
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1, सूरह 18 अल कहफ़ आयत 79 से 82
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46- बनी इस्राईल मूसा के बाद
मूसा अलैहिस्सलाम का इंतेक़ाल हो गया और बनी इस्राईल अल्लाह की जानिब से सज़ा और अपने कर्म की बदौलत ज़मीन में मारे मारे फिरते रहे। अल्लाह ने उनपर ज़िल्लत व रुसवाई मुसल्लत कर दिया वह अल्लाह के अज़ाब के शिकार हुए।
उन्होंने अल्लाह को नाराज़ किया था जिसने उनमें अनेक नबी और बादशाह भेजे और उनको वह दिया जो उनके ज़माने और संसार में किसी को नहीं दिया था।
अल्लाह ने बनी इस्राईल को फ़िरऔन से निजात दिलाई जो उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते थे उनके बच्चों को ज़बह कर देते थे और लड़कियों को ज़िन्दा छोड़ देते थे।
अल्लाह ने उनके लिए समुद्र को फाड़ दिया था और उनको बचा लिया था तथा फ़िरऔन और उसके लश्कर को उनकी आंखों के सामने डुबोया था।
अल्लाह ने उन पर बादलों की छाया किया और मन्न व सलवा उतारा था अल्लाह ने उनके लिए ज़मीन को फाड़ कर चश्मा निकाला और खाने-पीने की चीज़ों में ख़ूब इज़ाफ़ा किया।
इन तमाम एहसानात का बदला उन्होंने ऐसे दिया कि अल्लाह की आयात का इनकार किया, उसके आदेश की नाफ़रमानी की और हद से आगे बढ़ गए।
वह अपने नबी मूसा पर ग़ुस्सा हुए जो अल्लाह की मख़लूक़ में सबसे ज़्यादा उनपर मेहरबान थे बल्कि उन पर उनके माता-पिता से भी ज़्यादा शफ़क़त करने वाले थे वह उनसे ऐसी मुहब्बत करते थे जैसे दूध पिलाने वाली मां दूध पीते बच्चे से और शफ़ीक़ मां अपने यतीम बच्चों से करती है इसलिए जब-जब उन्होंने (क़ौम के लोगों ने) उन्हें बुरा भला कहा तो उनके लिए दुआ की और जब-जब मज़ाक़ उड़ाया उनके लिए रोए और जब-जब परेशान किया तो उनका ग़म दूर किया।
मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को फ़िरऔन की क़ैद से निजात दिलाई, मिस्र की कैद भरी ज़िन्दगी से निकालकर आज़ादी और इज़्ज़त दिलाई, बदबख़्त बन्दों के चंगुल से निकालकर स्वतंत्र और सम्मानित जीवन में ले आए।
क्रौम ने तो उनपर ग़ुस्सा किया था, उन्हें तकलीफ़ पहुंचाई थी, उनसे दुश्मनी का मामला किया था, उनका मज़ाक़ बनाया था और उन्हें अपने दरमियान एक कमतर आदमी समझा था जबकि अल्लाह के यहां उनका मर्तबा बहुत बुलंद था।
फिर क्या बनी इस्राईल इस अंजाम रुसवाई, ज़िल्लत और बेइज़्ज़ती और हमेशा की गुमराही के मुस्तहिक़ न थे। वह कभी कामयाब नहीं होंगे। क्यों नहीं। वह इसी के मुस्तहिक़ थे बल्कि अपने कर्म के बदौलत इससे भी ज़्यादा के हक़दार थे।
''अल्लाह ने उनपर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वह ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म करने वाले थे।" (1)
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1, सूरह 16 अन नहल आयत 18
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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