Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye (Part-8): Dawood/Sulaiman as

Anbiya ke waqyaat Bachchon ke liye: Dawood as


अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-8)

सैयदना दाऊद और सुलैमान अलैहिस्सलाम

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1- क़ुरआन ने केवल बीते हुए दिनों का ज़िक्र नहीं किया

क़ुरआन ने केवल बीते हुए दिनों का ज़िक्र नहीं किया और न केवल नबी या रसूलों को उनकी क़ौम की जानिब से झूठलाए जाने, मज़ाक़ उड़ाए जाने, बेइज़्ज़त किये जाने और धुत्कार दिए जाने का बयान है जिनकी तरफ़ वह नबी या रसूल बनाकर भेजे गए थे और न रसूलों के झुठलाने, उनका मज़ाक़ उड़ाने, उनके ख़िलाफ़ चाल चलने और उनके क़त्ल के मंसूबे बनाने पर उन उम्मतों के अंजाम, सज़ा, और उनकी तबाह व बर्बादी का बयान है जैसा कि नबियों के क़िस्से में गुज़र चुका है।

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2- क़ुरआन अल्लाह की नेअमतों के बारे में बयान करता है

बल्कि क़ुरआन ने अल्लाह की बहुत सी नेअमतों का तज़किरा भी किया है, कहीं बहुत विस्तार से और कभी संक्षेप में बेपनाह नेअमतों के बारे में बताया है जो अल्लाह ने बहुत से नबियों पर की थी, उनमें दाऊद और सुलैमान थे, अयूब और यूनुस थे और ज़कारिया और यहया भी थे (अलैहिमुस्सलाम)। 

दाऊद और सुलैमान को अल्लाह ने ज़मीन में ग़लबा आता किया था और उनको बड़ी वुसअत दी थी उन्हें ख़ूब इल्म दिया था और बहुत सी ऐसी बातें सिखाई थी जो लोग नहीं जानते थे। बड़े ताक़तवर और शरकाश लोगों को उनके कंट्रोल में दे दिया था। चाहे जानवर हों, परिंदे हो या पेड़ पौधे किसी की क़ैद न थी इसलिए फ़रमाया:

"हमने दाऊद और सुलैमान को इल्म अता किया, उन्होंने कहा कि शुक्र है उस ख़ुदा का जिसने हमको अपने बहुत से ईमानवाले बन्दों पर बड़ाई दी। और दाऊद का वारिस सुलैमान हुआ। उसने कहा, “लोगो! हमें परिंदों की बोलियाँ सिखाई गई हैं और हमें हर तरह की चीज़ें दी गई हैं, बेशक ये (अल्ल्लाह की) विशेष कृपा है।” (1)

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1, सूरह 27 अन नमल आयत 15, 16 

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3- दाऊद को मिली नेअमतें 

अल्लाह ने पहाड़ और परिन्दों को दाऊद के कंट्रोल में दे दिया था वह उनके साथ दुआ और तस्बीह करते थे और अल्लाह ने उन्हें ज़िरह बनाना सिखाया और लोहे को उनके लिए नरम कर दिया था।

"हमने दाऊद को अपने यहाँ से बड़ा फ़ज़ल दिया था।(हमने हुक्म दिया कि) ऐ पहाड़ो, उसके साथ तालमेल क़ायम करो, (और यही हुक्म हमने परिन्दों को दिया था हमने लोहे को उसके लिए नर्म कर दिया इस हिदायत के साथ कि ज़िरहें बना और उनके हल्क़े (कुण्डलों) को ठीक पैमाने पर रख। (ऐ दाऊद के लोगो) भले काम करो, जो कुछ तुम करते हो, उसको मैं देख रहा हूँ।" (1)

दाऊद के साथ हमने पहाड़ों और परिन्दों को ख़िदमत में लगा दिया था जो तस्बीह करते थे। इस काम के करनेवाले हम ही थे। और हमने उसको तुम्हारे फ़ायदे के लिए ज़िरह (कवच बनाने का हुनर सिखा दिया था ताकि तुमको एक-दूसरे की मार से बचाए। (फिर क्या तुम शुक्रगुज़ार हो? (2)

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1, सूरह 34 सबा आयत

2, सूरह 21 अल अंबिया आयत 79, 80

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4- इस नेअमत पर दाऊद का शुक्र 

दाऊद इस लंबी चौड़ी सल्तनत और और ज़बरदस्त इक़्तेदार (सत्ता) के बावजूद अल्लाह से डरने वाले और उसी की तरफ की तरफ़ पलटने वाले, हमेशा अल्लाह को याद करने वाले, लंबी तस्बीह और दुआ करने वाले और इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करने वाले थे, वह लोगों के दरमियान हक़ के साथ फ़ैसला करते थे और फ़ैसले में किसी का लिहाज़ नहीं करते थे। अल्लाह फ़रमाता है।

"ऐ दाऊद, हमने तुझे ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया है, लिहाज़ा तुम लोगों के बीच हक़ के साथ हुकूमत करो और मन की ख़ाहिश की पैरवी न करो कि वह तुम्हें अल्लाह की राह से भटका देगी। जो लोग अल्लाह की राह से भटकते हैं यक़ीनन उनके लिए सख़्त सज़ा है कि वह हिसाब के दिन को भूल गए।" (1)

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1, सूरह 38 साद आयत 31

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5- अल्लाह की नेअमतें सुलैमान पर

अल्लाह ने हवाओं को सुलैमान अलैहिस्सलाम के कंट्रोल में दे दिया था वह उनके आदेश से चलती थीं और उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाती थीं चुनांचे वह कम समय में जहां चाहते बहुत जल्द पहुंच जाते थे, ताक़तवर और माहिर जिन्नों और सरकश शैतानों पर उनका कंट्रोल था जो उनके आदेश का पालन करते और कराते और उनके निर्माण योजना को मुकम्मल करते थे।

"और सुलैमान के लिए हमने तेज़ हवा को वश में कर दिया था जो उसके हुक्म से उस सर-ज़मीन (भूमि) की तरफ़ चलती थी जिसमें हमने बरकतें रखी हैं। हम हर चीज़ का इल्म रखने वाले थे। और शैतानों में से हमने ऐसे बहुतों को उसका मातहत (अधीन) बना दिया था जो उसके लिए ग़ोते (डुबकी) लगाते और इसके इलावा दूसरे काम करते थे। उन सबके निगराँ हम ही थे।" (1)

"और सुलैमान के लिए हमने हवा को ख़िदमत में लगा दिया, सुबह के वक़्त उसका चलना एक महीने की राह तक और शाम के वक़्त उसका चलना एक महीने की राह तक। हमने उसके लिए पिघले हुए ताँबे का चश्मा बहा दिया और ऐसे जिन्न उसके मातहत कर दिए जो अपने रब के हुक्म से उसके आगे काम करते थे। उनमें से जो हमारे हुक्म से मुँह मोड़ता, उसको हम भड़कती हुई आग का मज़ा चखाते। वह उसके लिए बनाते थे जो कुछ वह चाहता जैसे ऊँची इमारतें, तस्वीरें, बड़े-बड़े हौज़ जैसे लगन और अपनी जगह से न हटनेवाली भारी देगें। (ऐ दाऊद के लोगो, अमल करो शुक्र के तरीक़े पर, मेरे बन्दों में कम ही शुक्रगुज़ार हैं।" (2)

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1, सूरह 21 अल अंबिया आयत 81, 82

2, सूरह 34 सबा आयत 12, 13

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6- गहरी समझ और गहरा इल्म

सुलैमान अलैहिस्सलाम की ज़हानत और सही फ़ैसले पर क़ुदरत का पता उस समय चला जब एक मुक़द्दमा उनके पिता के दरबार में पेश हुआ। कुछ लोगों का अंगूर का बाग़ था जिसमें गुच्छे निकल आये थे तभी कुछ लोगों की भेड़ बकरियां बाग़ में दाख़िल हो गईं और फ़सल को तबाह कर दिया मुक़द्दमा सुनकर दाऊद अलैहिस्सलाम ने भेड़ बकरियां बाग़ के मालिक को देने का फ़ैसला सुनाया सुलैमान अलैहिस्सलाम बोल पड़े, ऐ अल्लाह के नबी इस के इलावा फ़ैसला ऐसे भी तो हो सकता है। दाऊद अलैहिस्सलाम ने हैरत से पूछा कैसे? सुलैमान बोले, ऐसे कि बाग़ भेड़ बकरियों वालों को दे दिया जाय वह उसकी ऐसी देख भाल करें कि बाग़ पहले जैसा हो जाए और भेड़ बकरियां बाग़ के मालिक को दे दी जाएं कि वह उनसे फ़ायदा उठाये यहां तक कि बाग़ पहले की तरह हो जाय तो बाग़ उसके असली मालिक को और भेड़ बकरियां उसके असली मालिक के हवाले कर दी जाएं। अल्लाह ने उन्हें गहरा इल्म और गहरी समझ अता की थी।

"और इसी नेअमत से हमने दाऊद और सुलैमान को नवाज़ा। याद करो वह मौक़ा जबकि वह दोनों एक खेत के मुक़द्दमे के सिलसिले में फ़ैसला कर रहे थे जिसमें रात के वक़्त दूसरे लोगों की बकरियाँ फैल गई थीं, और हम उनकी अदालत ख़ुद देख रहे थे। उस वक़्त हमने सही फ़ैसला सुलैमान को समझा दिया; हालाँकि हिकमत और इल्म हमने दोनों ही को दिया था। दाऊद के साथ हमने पहाड़ों और परिन्दों को ख़िदमत में लगा दिया था जो तस्बीह करते थे। इस काम के करने वाले हम ही थे।" (1)

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1, सूरह 21 अल अंबिया आयत 78, 79

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7- सुलैमान परिन्दों और जानवरों की बोली भी जानते थे

क़ुरआन ने एक हिकमत भरा क़िस्सा बयान किया है जिससे अपनी सल्तनत की तदबीर और अपने इक़्तेदार का दबदबा क़ायम रखने में सुलैमान की होशियारी का पता चलता है। कैसे अल्लाह ने उनमें दुनिया और आख़िरत की ख़ुशबख़्ती, बदशाहत, इक़्तेदार और दीन में नबूवत को इकट्ठा कर दिया था। वह परिन्दों और जानवरों की बोली भी जानते थे। एक बार उन्होंने अपने जिन्न, इंसान और परिन्दों का लश्कर इकट्ठा किया और निहायत शान व शौकत के साथ सवार होकर निकले वह पूरी तैयारी के साथ और व्यवस्थित थे। लश्कर अपने सरदार की रहनुमाई में चल रहा था तभी उनका गुज़र चींटी की घाटी से हुआ, चींटियों की सरदार को अपने क़बीले के सिलसिले में ख़ौफ़ महसूस हुआ कि कहीं घोड़े अपनी खुरों से कुचल दें और सुलैमान और उनके लश्कर को इसकी ख़बर भी न हो चुनांचे उसने सभी को अपने अपने घरों में दाख़िल होने का आदेश दिया सुलैमान उसकी बात को समझ गए लेकिन ग़ुरूर और घमंड नहीं किया क्योंकि वह अल्लाह के नबियों में से एक नबी थे बल्कि इस बात ने उन्हें अल्लाह की प्रशंसा, उसकी नेअमत पर शुक्र और नेक अमल के तौफ़ीक़ की दुआ पर और अल्लाह के नेक बन्दों में शामिल होने पर आमादा किया।

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8- हुदहुद का क़िस्सा

हुदहुद सुलैमान अलैहिस्सलाम का रहनुमा और जासूस था वह पानी की जगहों और लश्कर की मंज़िलों की तरफ़ रहनुमाई करता था सुलैमान अलैहिस्सलाम को वह नज़र नहीं आया तो उन्हें नागवार हुआ और उसे (ज़बह की) धमकी भी दी। वह कुछ समय ग़ायब रहा फिर आया और सुलैमान अलैहिस्सलाम को बताया कि में ऐसी ख़बर लाया हूं जिसकी सूचना न आप को है और न आप के लश्कर को। मैं सबा और उसकी मलिका के बारे में बिल्कुल सच्ची ख़बर लाया हूं। उनके पास बड़ा मुल्क और लंबी चौड़ी सल्तनत है लेकिन अक़्लमंदी, सल्तनत और हुकूमत के बावजूद वह बेवक़ूफ़ और नादान हैं, लोग अल्लाह को छोड़कर सूरज को सज्दा करते हैं, समझते नहीं हैं और एक अल्लाह की इबादत की हिदायत नहीं पाते।

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9- सुलैमान मलिका सबा को इस्लाम की दावत देते हैं

अल्लाह के नबी को यह नागवार गुज़रा कि उनके पड़ोस में एक मुल्क हो और वहां एक ऐसी उम्मत हो जिसको वह जानते न हों और वहां उनकी दावत न पहुंची हो, वहां बराबर सूरज की पूजा हो रही है। उनकी दीनी नबवी हमीयत ने जोश मारा और उन्होंने यही बेहतर समझा कि अपने ज़बरदस्त लश्कर के साथ हमला करने से पहले वह मलिका और उसके मुशरिक मंत्रियों के नाम एक ख़त लिखें और उसे इस्लाम, अल्लाह की फ़रमाबरदारी और इताअत की दावत दें चुनांचे उन्होंने एक प्रभावी ख़त लिखा और उसे इस्लाम और फ़रमाबरदारी की तरफ़ बुलाया। ख़त में रिक्क़त और नरमी भी थी और मज़बूती भी, अंबिया की विनम्रता भी थी और बादशाहों का जलाल भी था।

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10- मलिका अपने दरबारियों से मशविरा करती है

सुलैमान अलैहिस्सलाम में यह दोनों ख़ूबियां थीं और जो औरत इस मुल्क पर हुकूमत करती थी बहुत अकलमंद थी, हुक्म में जल्दबाज़ी करने वाली न थी उसके पास बादशाहों की सीरत और विजेताओं का इतिहास था। उसकी समझ ने केवल माबूद को पहचानने और उसकी इबादत करने के सिलसिले में ख़यानत की थी। उसमें बादशाहों की ग़ैरत नहीं आई और न अपनी राय पर डटी रही इसलिए उसने दरबारियों को इस पत्र के बारे में सूचना दी जो दूसरे पत्रों से भिन्न था, यह ख़त उस समय के सबसे बड़े बादशाह और एक नबी की जानिब से था जो अल्लाह की तरफ़ दावत देने वाला थे। 

जब दरबारियों ने मलिका की चापलूसी करते हुए उसे ख़ुश करने के लिए अपनी ताक़त और अपनी फ़ौज की ज़्यादती की दलीलें दीं जैसा कि हर युग में बादशाह और मंत्रियों के मुसाहिबों का हाल रहा है लेकिन मलिका ने उनके मशविरे को क़ुबूल नहीं किया और सहमति नहीं दी बल्कि उसने लोगों को बुरे अंजाम से डराया और विजयी बादशाहों का इतिहास याद दिलाया कि वह जीते हुए मुल्क पर क्या करते हैं और शिकस्त के बाद उनका अंजाम क्या होता है? फिर कहा, हमारे मुल्क और यहां के लोगों के साथ भी ऐसा ही मामला न हो जाए। दरबारियों से यह भी कहा मैं सुलैमान के पास हदिया (उपहार) भेजती हूं ताकि इसके द्वारा मैं उस का इम्तिहान लूं अगर उसने यह हदिया क़ुबूल कर लिया तो वह बादशाह है फिर तुम उससे जंग करो और अगर उसने यह हदिया क़ुबूल नहीं किया तो वह नबी है और तुम उसकी बात मान लो।

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11- हदया (उपहार) अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए

मलिका सबा ने बादशाहों की शान के लायक़ हदिया भेजा। जब वह सुलैमान अलैहिस्सलाम को मिला तो उन्होंने मुंह फेर लिया और उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया, बल्कि यह कहा तुम लोग मुझे माल से ख़रीदना चाहते हो कि मैं तुमको शिर्क और बादशाही पर छोड़ दूं जबकि अल्लाह ने मुझे मुल्क, माल और फ़ौज तुमसे बेहतर अता किया हैं और यह हक़ीक़त है कोई मज़ाक़ नहीं है। असल मामला तो दावत और इताअत का है माल व दौलत की बराबरी का नहीं है। और उन्हें अपने इरादे और उनकी सल्तनत पर हमला करने की धमकी दी।

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12- मलिका फ़रमाबरदार होकर आती है

 जब प्रतिनिधि मंडल मलिका के पास लौटा और पूरी कहानी सुनाई तो उसने और उसकी क़ौम ने सुनकर सिर झुका दिया। वह अपनी फ़ौज के साथ फ़रमाबरदार हो कर आई। जब सुलैमान को उनके आगमन का पता चला तो बहुत ख़ुश हुए और इरादा किया कि अल्लाह मुअजिज़ात में से कोई निशानी दिखाएं ताकि वह अल्लाह की क़ुदरत और नेअमत पर दलील हो जो उसने सुलैमान अलैहिस्सलाम को अता किया है चुनांचे उन्होंने ने उसका वह तख़्त लाने का आदेश दिया जो अमानतदार और मज़बूत इंसानों की हिफ़ाज़त में था उन्होंने अपने दरबारियों से कहा कि उसके यहां पहुंचने से पहले मलिका का अज़ीम तख़्त लाया जाय।

सुलैमान अलैहिस्सलाम ने जैसे ही इरादा किया बहुत कम समय में वह तख़्त उनके सामने था और यह एक मुअजिज़ा था। सुलैमान ने उसकी कुछ चीज़ों को तब्दील करने का हुक्म दिया और वह बदल दिया इसका उद्देश्य केवल उसके अक़्ल और इल्म का इम्तेहान था कि अगर मामला उसपर गडमड हो गया तो इस से ज़्यादा दूरगामी और सटीक मामलात में यह उसके अदूरदर्शीता (short sightedness) की दलील होगी। 

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13- शीशे का बड़ा महल

सुलैमान अलैहिस्सलाम ने इंसानों और जिन्नों में से इमारत बनाने वालों को शीशे की इमारत बनाने का हुक्म दिया। उन्होंने शीशे का एक विशाल महल बना दिया और उसके नीचे पानी का चश्मा इस तरह जारी कर दिया की जिसे मालूम न हो वह पानी गुमान करे जबकि शीशा चलने वाले और पानी के दरमियान होता था इसका असल उद्देश्य यह था कि मलिका उसे पानी ख़्याल करेगी तो अपने पाईंचे उठाएगी इस तरह उसकी ग़लती ज़ाहिर हो जाएगी और उसके नज़र का क़ुसूर और दृश्य से धोखा खाने का पता लग जायेगा वह और उसकी क़ौम सूरज को सज्दा करते थे क्योंकि रौशनी और ज़िंदगी के बड़े मज़ाहिर हैं जो कि अल्लाह की सिफ़ात में से है यहां उसकी आँखों से पट्टी खुल जाएगी तब उसे मालूम हो जाएगा कि जैसे शीशे के महल के मामले में पानी समझकर अपनी पाईंचे उठाने ग़लती की है ऐसे ही सूरज को ख़ुदा समझ कर और उसे सज्दा करने और उसकी इबादत करने की ग़लती की और यह तरकीब सौ ख़ुत्बे और हज़ार दलीलों से ज़्यादा प्रभावी होगी।

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14- मैं सुलैमान के साथ संसार के पालनहार पर ईमान लाती हूं

आख़िर ऐसा ही हुआ वह अपनी अक़्ल और समझदारी के बावजूद ग़लतफ़हमी का शिकार हो गई, उसने शीशे को चलता और मौजे मरता हुआ पानी समझा उसने अपने पाईंचे उठाये और उससे गुज़रने का इरादा किया। 

अल्लाह के नबी सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फ़ौरन उसकी नासमझी के बारे में बताया कि यह एक महल है जो शीशे से निर्मित है अब उसकी आंख से पर्दा हटा और उसे दृश्य को समझने, सूरज की पूजा और उसके आगे सज्दा करने की जिहालत का एहसास हुआ और वह पुकार उठी "ऐ मेरे रब मैंने ख़ुद पर बड़ा अत्याचार किया और अब मैं सुलैमान के रब (तमाम संसार के पालनहार) पर ईमान लाती हूं" (1)

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1, सूरह 27 अन नमल आयत 44

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15- सुलैमान अलैहिस्सलामका क़िस्सा क़ुरआन में

सुलैमान ने परिन्दों का जाइज़ा लिया और कहा, “क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ। क्या वह कहीं ग़ायब हो गया है? मैं उसे सख़्त सज़ा दूँगा, या उसे ज़बह कर दूँगा, वरना उसे मेरे सामने मुनासिब वजह पेश करनी होगी। ज़्यादा देर न गुज़री थी कि उसने आकर कहा, “मैंने वह मालूमात हासिल की हैं जो आपकी जानकारी में नहीं हैं। मैं सबा के बारे में पक्की ख़बर लेकर आया हूँ। मैंने वहाँ एक औरत देखी जो उस क़ौम की बादशाह है। उसको हर प्रकार का सामान दिया गया है और उसका तख़्त बड़ा ही शानदार है। मैंने देखा कि वह और उसकी क़ौम अल्लाह के बजाय सूरज के आगे सज्दा करती है। शैतान ने उनके बुरे आमाल को उनके लिए आकर्षक बना दिया और उन्हें सही रास्ते से भटका दिया है, इस कारण वह सीधा रास्ता नहीं पाते कि उस ख़ुदा को सज्दा करें जो आसमानों और ज़मीन की छुपी चीज़ें निकालता है और वह सबकुछ जानता है जिसे तुम लोग छुपपाते या ज़ाहिर करते हो। अल्लाह के सिवा कोई इबादत का हक़दार नहीं, वह बड़े अर्श का मालिक है। सुलैमान ने कहा, “अभी हम देख लेते हैं कि तुमने सच कहा है या झूठ बोल रहे हो। मेरा यह ख़त ले जाओ और इसे उन लोगों की तरफ़ डाल दो, फिर अलग हटकर देखो कि वह क्या प्रतिक्रिया करते हैं।

मलिका बोली, “ऐ दरबारियो, मेरी तरफ़ एक बड़ा अहम् ख़त फेंका गया है। यह सुलैमान की तरफ़ से है और अल्लाह रहमान और रहीम के नाम (बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम) से शुरू किया गया है। उसका मज़मून यह है कि “मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और मुस्लिम (फ़रमाँबरदार) होकर मेरे पास हाज़िर हो जाओ। ख़त सुनाकर मलिका ने कहा, “ऐ क़ौम के सरदारो! मेरे इस मामले में मुझे मशविरा दो, मैं किसी मामले का फ़ैसला तुम्हारे बिना नहीं करती हूँ।” उन्होंने जवाब दिया, “हम ताक़तवर और लड़नेवाले लोग हैं आगे फ़ैसला आपके हाथ में है। आप ख़ुद देख लें कि आपको क्या हुक्म देना है।”

मलिका ने कहा, “बादशाह जब किसी देश में घुस आते हैं तो उसे ख़राब और उसके इज़्ज़तवालों को बेइज़्ज़त कर देते हैं। यही कुछ वह किया करते हैं। मैं उन लोगों की तरफ़ एक हदया (उपहार) भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि मेरे दूत क्या जवाब लेकर पलटते हैं।” 

जब मलिका का दूत सुलैमान के यहाँ पहुँचा तो उन्होंने कहा, “क्या तुम लोग माल से मेरी मदद करना चाहते हो? जो कुछ ख़ुदा ने मुझे दे रखा है वह उससे बहुत ज़्यादा है जो तुम्हें दिया है। तुम्हारा हदया तुम्हीं को मुबारक रहे।

ऐ मलिका के दूत! वापस जाओ अपने भेजने वालों की तरफ़। हम उनपर ऐसे लश्कर लेकर आएँगे जिनका मुक़ाबला वह नहीं कर सकेंगे और हम उन्हें ऐसी बेइज़्ज़ती के साथ वहां से निकालेंगे कि वह बेइज़्ज़त होकर रह जाएँगे। 

सुलैमान ने कहा, “ऐ दरबारियो, तुममें से कौन उसका तख़्त मेरे पास लाता है, इससे पहले कि वह लोग फ़रमाँबरदार बनकर मेरे पास हाज़िर हों?” जिन्नों में से एक ताक़तवर और महाशक्तिशाली जिन्न ने कहा, “मैं उसे हाज़िर कर दूँगा इससे पहले कि आप अपनी जगह से उठें। मैं इसकी ताक़त रखता हूँ और अमानतदार हूँ।”

जिस शख़्स के पास किताब का इल्म था वह बोला, “मैं आपकी पलक झपकने से पहले पहले उसे लाए देता हूँ।” पलक झपकते ही सुलैमान ने वह तख़्त अपने सामने रखा हुआ देखा तो वह पुकार उठे, “यह मेरे रब की मेहरबानी है ताकि वह मुझे आज़माए कि मैं शुक्र करता हूँ या नाशुक्रा बन जाता हूँ। और जो कोई शुक्र करता है तो उसका शुक्र उसके अपने ही लिए फ़ायदेमंद है, और अगर कोई नाशुक्री करे तो मेरा रब बेनियाज़ (निस्पृह) और अपनी ज़ात में आप महमूद (प्रशंसित) है।

सुलैमान ने कहा, “अनजान तरीक़े से उसका तख़्त उसके सामने रख दो, देखें वह सही बात तक पहुँचती है या उन लोगों में से है जो सीधी राह नहीं पाते। मलिका जब हाज़िर हुई तो उससे कहा गया कि तेरा तख़्त ऐसा ही है? वह कहने लगी, “यह तो जैसे वही है। हम तो पहले ही जान गए थे और हमने फ़रमाँबरदारी में सिर झुका दिया था। उसको (ईमान लाने से) जिस चीज़ ने रोक रखा था वह उन माबूदों की इबादत थी जिन्हें वह अल्लाह को छोड़कर पूजती थी, क्योंकि वह एक कुफ़्र करने वाली क़ौम से थी। उससे कहा गया कि महल में दाख़िल हो। उसने जो देखा तो समझी कि पानी का हौज़ है और उतरने के लिए उसने अपने पाईंचे उठा लिये। सुलैमान ने कहा, “यह शीशे का चिकना फ़र्श है। इस पर वह पुकार उठी, “ऐ मेरे रब, (आजतक) मैं ख़ुद पर बड़ा ज़ुल्म करती रही, और अब मैंने सुलैमान के साथ संसार के पालनहार अल्लाह की फ़रमाँबरदारी क़बूल करती हूं।” (1)

यह थे अल्लाह के नबी सुलैमान। अल्लाह की तरफ़ दावत औऱ तौहीद की दावत के सिलसिले में उनका मौक़िफ़, रणनीति, उसकी समझ और अपने दीन और अक़ीदे की ग़ैरत को आपने देखा।

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1, सूरह 27 अन नमल आयत 20 से 44

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16- सुलैमान ने कुफ़्र नहीं किया बल्कि शैतानों ने कुफ़्र किया 

यहूदियों ने उनकी जानिब ऐसी बात मंसूब की जो किसी भी सामान्य मोमिन के लिए मुनासिब नहीं है जिसके सीने को अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया हो। नबी तो बहुत ख़ास होते हैं अल्लाह उन्हें हिकमत अता करता है, नबूवत से नवाज़ता है और ख़िलाफ़त के ज़रिए इज़्ज़त देता है। यहूदियों ने इल्ज़ाम लगाया कि सुलैमान अलैहिस्सलाम जादू करते थे, कुफ़्र व शिर्क के सिलसिले में वह नरम रवैया रखते थे और अपनी बीवियों के कारण तौहीद के मामले में इज़तेराब के शिकार थे लेकिन अल्लाह ने उनके द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों को ग़लत क़रार दिया। 

फ़रमाया: 

"सुलैमान ने कुफ़्र नहीं किया बल्कि शैतानों ने कुफ़्र किया वह लोगों को जादू सिखाते थे।" (1)

"दाऊद को हमने सुलैमान (जैसा बेटा) दिया, बेहतरीन बन्दा, अपने रब की तरफ़ बार बार पलटने वाला।" (2)

"यक़ीनन इसके लिए हमारे यहाँ सम्मानित मुक़ाम और बेहतर अंजाम (ठिकाना) है।" (3)

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1, सूरह 02 अल बक़रह आयत 102

2, सूरह 38 साद आयत 30

3, सूरह 38 साद आयत 40

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मुसन्निफ़ : सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहिस्सलाम 

अनुवाद : आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही 

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