अंबिया के वाक़िआत बच्चों के लिए (पार्ट-9)
सैयदना अय्यूब अलैहिस्सलाम
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1- वाक़िआत का एक दूसरा सिलसिला
अय्यूब अलैहिस्सलाम का क़िस्सा क़ुरआन के क़िस्सों की एक दूसरी कड़ी और साबिर व शाकिर मोमिन बन्दों और प्यारे अंबिया अलैहिमुस्सलाम पर अल्लाह की नेअमत का एक नमूना (आदर्श) है।
अय्यूब अलैहीस्सलाम को अल्लाह ने चौपाये, मवेशी, खेत और हर चीज़ अता किया था और ख़ुश रखने वाली औलाद भी। चुनांचे उनको इन तमाम चीज़ों में आज़माया गया यहां तक कि आख़िरी चीज़ भी हाथ से निकल गई फिर उनके शरीर को (बीमारी में डाल कर) आज़माया गया। उनके पास दिल और ज़बान के इलावा कुछ भी बाक़ी नहीं रहा जिससे वह अल्लाह को याद करते थे। उनके साथी उनका साथ छोड़ गए और वह एक कोने में अकेले और तन्हा रह गए। उनकी पत्नी (जो उनकी ख़िदमत करती थीं) के इलावा लोगों में से कोई भी बाक़ी नहीं रहा जो उनसे मुहब्बत से पेश आता, पत्नी भी मुहताज हो गईं उन्हें अपने गुज़ारे के लिए लोगों के घरों में काम करना पड़ा।
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2- अय्यूब अलैहिस्सलाम का सब्र
तमाम मुसीबत और परिशानियों के बावजूद अय्यूब अलैहिस्सलाम ने सब्र किया और बराबर शुक्र अदा करते रहे। उनकी ज़बान पर हमेशा अल्लाह का ज़िक्र होता और शुक्र अदा करते रहते, कभी शिकायत नहीं करते, न उकताहट महसूस करते, न तंगी का रोना रोते और न ग़ुस्सा आता। इसी हालत में कई वर्ष मुसलसल बीत गए। वह बनी इस्राईल की ईबादतगाह में पड़े रहे और चौपाये उनके जिस्म के पास से गुज़रते रहे।
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3- मुसीबत और इनआम
जब आज़माइश का दौर पूरा हो गया जिसका अल्लाह ने इरादा किया था, उस आज़माइश का मक़सद मुक्कमल करना, दर्जा की बुलंदी और मुक़द्दर के फ़ैसले पर बिना चूं चरा राज़ी होना था फिर अल्लाह ने उनके दिल में क़ुबूलियत वाली दुआ डाल दी जिससे उनकी आजिज़ी और तकलीफ़ ज़ाहिर होती थी और यह भी दिल में बैठ गया कि बेशक अल्लाह के इलावा कहीं कोई पनाह की जगह नहीं है, और वह हर चीज़ पर क़ादिर है तो अल्लाह ने उनके जिस्म को पहले जैसा ठीक कर दिया और उन्हें तथा उनके घर वालो को सुकून दिया, उनकी तमाम दौलत उन्हें लौटा दिया बल्कि हर चीज़ में बरकत अता की कि वह पहले से भी कई गुना ज़्यादा हो गया। अल्लाह तआला फ़रमाता है
"याद करो जबकि अय्यूब अपने रब को पुकारा
وَ اَیُّوْبَ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗۤ اَنِّیْ مَسَّنِیَ الضُّرُّ وَ اَنْتَ اَرْحَمُ الرّٰحِمِیْنَ
मेरे रब मुझे बीमारी लग गई है और तू रहम करने वालों में सबसे बढ़कर रहम करने वाला है। हमने उसकी दुआ क़बूल की और जो तकलीफ़ उसे थी उसको दूर कर दिया, और सिर्फ़ उसके ख़ानदान के लोग ही उसको नहीं दिए बल्कि उनके साथ उतने ही और भी दिए, अपनी ख़ास रहमत के तौर पर और इसलिए कि यह एक सबक़ हो इबादतगुज़ार बन्दों के लिए।" (1)
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1, सूरह 21 अल अंबिया आयत 83, 84
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किताब: कसास उन नबीयीन
मुसन्निफ़: सैयद अबुल हसन नदवी रहमतुल्लाहि अलैहि
अनुवाद: आसिम अकरम अबु अदीम फ़लाही
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