Khulasa e Qur'an - surah 65 | surah at talaq

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir


खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (065) अत तलाक़


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (065) अत तलाक़ 


(i) तलाक़ के नियम

तलाक़ इद्दत के लिए दी जाय, इद्दत का हिसाब रखा जाय, इद्दत के दौरान औरत को न घर से निकाला जाय और न वह ख़ुद निकलें। जब इद्दत पूरी होने के क़रीब हो तो शौहर चाहे तो बीवी को रोक ले और चाहे तो भले तरीक़े से अलग कर दे, उसपर गवाही क़ायम की जाय। इद्दत के दौरान वहां रखे जहां शौहर ख़ुद रहता हो। जुदाई के बाद भी अगर औरत को गर्भ है तो बच्चे के पैदा होने तक उसे ख़र्च दिया जाय, पैदाइश के बाद अगर औरत दूध पिलाये तो उसका ख़र्च शौहर पर देना अनिवार्य है। (1, 2, 6)


(ii) इद्दत पांच तरह से है

◆ वह औरतें जिन्हें तलाक़ दी गई हो उन की इद्दत तीन मासिक धर्म (हैज़) है। (अल बक़रह आयत 228)

◆ बेवा की इद्दत चार महीने दस दिन है। (अल बक़रह आयत 234)

◆ वह तलाक़ शुदा औरतें जिन को मासिक धर्म (हैज़) आना बंद हो गया हो उनकी इद्दत तीन महीने है।

◆ वह तलाक़ शुदा औरतें जिन को मासिक धर्म (हैज़) आया ही न हो उनकी इद्दत भी तीन महीने है।

◆ तलाक़ शुदा हो या बेवा औररतें अगर उसे हमल (pregnancy) है तो उनकी इद्दत बच्चे के पैदा होने तक है। (4)


(iii) रब की नाफ़रमानी का अंजाम

जब कोई क़ौम अपने रब की नाफ़रमानी में मुब्तिला हो जाती है तो उसपर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होता है। (8, 9)


(iv) सात आसमान और सात ज़मीन

अल्लाह ही है जिसने सात आसमान बनाये और उसी के समान ज़मीन बनाई। (12)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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