खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (060) अल मुमतहिना
सूरह (060) अल मुमतहिना
(i) इस्लाम दुश्मनों को हमराज़ न बनाया जाय
उन ग़ैर मुस्लिमों को दोस्त बनाया जा सकता है जिन से तुम्हारी जंग न चल रही हो। पहली आयत हातिब बिन अबी बलतआ रज़ियल्लाहु अन्हु के सिलसिले में नाज़िल हुई जब उन्होंने मक्का पर हमले का राज़ ज़ाहिर कर दिया था लेकिन फ़ौरन आप अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बा ख़बर कर दिया। (1, 8)
(ii) सुलह हुदैबिया
सुलह हुदैबिया में एक शर्त यह थी कि अगर मक्का से कोई व्यक्ति ईमान ला कर मदीना जाय तो उसे कुफ़्फ़ार को वापस कर दिया जाएगा। लेकिन जब उम्मे कुलसूम बिन्ते उक़बा बिन मुईत पहुंची तो औरतों को इस शर्त से अलग रखा गया क्योंकि यह शर्त मर्दों के लिए ख़ास थी। (10)
(iii) मोमिन औरतों से बैअत
मोमिन औरतों से निम्न शर्तो के साथ बैअत लेने का हुक्म दिया गया
◆ शिर्क नहीं करेंगी,
◆ चोरी नहीं करेंगी,
◆ ज़िना नहीं करेंगी,
◆ औलाद को क़त्ल नहीं करेंगी,
◆ न हाथ और पैरों के दरमियान से कोई बुहतान घड़ कर लाएंगी,
◆ भले कामों में नाफ़रमानी नहीं करेंगी। (12)
(iv) कुछ अहम बातें
◆ किसी मुशरिक के लिए मग़फ़िरत की दुआ नहीं की जा सकती। (4)
◆ जिसे अल्लाह और आख़िरत पर यक़ीन हो उसके लिए रसूल की जिंदगी ही बेहतरीन नमूना (model) है। (6)
◆ मोमिन औरतें कुफ़्फ़ार के लिए हलाल नहीं है और न कुफ़्फ़ार की औरतें मोमिनों के लिए हलाल है। (10)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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