Khulasa e Qur'an - surah 25 | surah al furqan

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir

खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (025) अल फ़ुरक़ान 


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (025) अल फ़ुरक़ान 


(i) तौहीद

ज़मीन व आसमान का मालिक अल्लाह ही है। उसका न कोई बेटा है न कोई साझी, उसने हर चीज़ को पैदा करके उसे एक नपा तुला अंदाज़ अता किया है जबकि अल्लाह के इलावा जिन माबूदों को घड़ लिया गया है उनका हाल तो यह कि वह ख़ुद बनाये गए हैं, अपने लिए लाभ हानि का कोई इख़्तियार नहीं रखते। भला वह दूसरे की ज़िंदगी, मौत और फिर दोबारा ज़िन्दगी के मालिक कैसे हो सकते हैं। (1 से 3)


(ii) क़ुरआन की हक़्क़ानियत

क़ुरआन के सिलसिले में कुफ़्फ़ार दो तरह के इल्ज़ाम लगाते थे: 1, यह मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का अपना घड़ा हुआ कलाम है जिसमें कुछ लोगों ने उनकी मदद की है। 2, यह पिछ्ली क़ौमों के क़िस्से कहानियां हैं जो सुबह शाम लिखवाता है। (4 से 5)


(iii) रिसालत

कुफ़्फ़ार कहते थे भला यह कैसा इंसान है जो खाता पीता और बाजारों में चलता फिरता है। क्यों न कोई फ़रिश्ता नाज़िल किया गया और अगर इंसान को ही रसुल बनाया जाना था तो क्या इस ग़रीब और यतीम के बजाए दुनयावी लिहाज़ से खुशहाल लोग मौजूद न थे। कुफ़्फ़ार के इस बातिल नज़रियात को वाज़ेह दलाएल से रद्द किया गया है। (7 से 9)


(iv) क़यामत

क़यामत के दिन के काफ़िरों के झूठे माबूदों से अल्लाह सवाल करेगा कि "क्या तुम ने मेरे बन्दों को बहकाया था या यह ख़ुद भटक गए थे? तो वह अपने पुजारियों को झूठा साबित कर देंगे और अर्ज़ करेंगें, सुबहान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमारे लिए किसी तरह भी तरह मुनासिब न था कि हम तुझे छोड़कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते। मगर इन्होंने तुझे भुला दिया। हक़ीक़त में ये ख़ुद बर्बाद होने वाले लोग थे। फिर काफ़िरों को जहन्नम में झोंक दिया जाएगा। (17 से 19)

क़यामत के दिन ज़ालिम सिवाए अफ़सोस कुछ न कर सकेंगें वह ग़ुस्से में अपने हाथों को काटेंगे और कहेंगे काश हमने रसुल की बात मान ली होती, फ़ुलां और फ़ुलां को दोस्त न बनाते, नसीहत आ जाने के बाद भी हमें शैतान ने बहका कर अपमानित कर दिया। (26 से 29)


(v) रसुल की गवाही

जिन लोगों ने क़ुरआन को पढ़ना, समझना, उसपर अमल करना और उसे लोगों तक पहुंचाने का दायित्व छोड़ रखा है उनके ख़िलाफ़ रसुल ख़ुद गवाही देंगे

 وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يَـٰرَبِّ إِنَّ قَوۡمِى ٱتَّخَذُواْ هَـٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ مَهۡجُورًا

और रसूल (अल्लाह के दरबार में) अर्ज़ करेगें कि "ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो इस क़ुरआन को छोड़ ही दिया था। (30)

(आज उम्मत क़ुरआन से कितना दूरी इख़्तियार कर चुकी है। इस हवाले से ख़ुद को तब्दील करने की ज़रूरत है)


(vi) अल्लाह की क़ुदरत के दलाएल

छाया (shadow) का फैलना और सिमटना, सूरज का निकलना, ऊंचा होना, और डूबना, रात को लिबास, नींद को सुकून, दिन में फिर ज़िंदा करके उठाना, हवा का चलना, बादल का आना, आसमान से साफ़ पानी बरसना, बारिश से मुर्दा पड़ी ज़मीन का ज़िंदा होना, इंसानों और जानवरों के पीने का इंतेज़ाम, दो समुन्द्रों का आपस में मिलने के बावजूद एक रुकावट होना और एक तरफ़ पानी का मीठा व स्वादिष्ट तथा दूसरी तरफ़ का कड़वा तथा खारा होना, पानी से इंसान की तख़लीक़ और नसब व ससुराल दो अलग अलग सिलसिले, आसमान, ज़मीन और उन दोनों के दरमियान तमाम चीज़ों की छह दिनों में तख़लीक़, आसमान के बुरुज, और एक चिराग़ (सूरज) और चमकता चांद, और दिन रात का एक दूसरे के पीछे आना। (45 से 49, 53, 54, 59 से 61)


(vii) अल्लाह के नेक बंदों की पहचान

1, ज़मीन पर नरम चाल चलते हैं। 

2, जाहिलों से बहस करने के बजाए सलाम करके गुज़र जाते हैं। 

3, रातों को तन्हाई में सज्दा और क़याम करते हैं। 

4, यह दुआ करते हैं कि

  رَبَّنَا ٱصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا 

(ऐ हमारे रब हमसे जहन्नम के अज़ाब को दूर रख क्योंकि जहन्नम का अज़ाब तो चिमट जाने वाली चीज़ है) 5, न तो कंजूसी करते है और न फ़िज़ूल ख़र्ची बल्कि बीच का रास्ता इख़्तियार करते हैं। 6, शिर्क के क़रीब भी नहीं फटकते। 7, किसी को नाहक़ क़त्ल नहीं करते। 8, ज़िना नहीं करते। 9, झूठी गवाही नहीं देते।10, बेहूदा बात नहीं करते। 11, जब अल्लाह की आयात सुनाई जाती हैं तो अंधे बहरे बनकर नहीं गिर पड़ते बल्कि क़ुरआन का असर क़ुबूल करते हैं और अक़्ले सलीम के साथ उसकी पैरवी करते हैं 12, और यह दुआ करते हैं

 رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا 

(हमारे रब हमारी बीबियों और औलादों को हमारी ऑंखों की ठन्डक बना दे और हमको परहेज़गारों का इमाम बना) (63 से 74)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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