Khulasa e Qur'an - surah 14 | surah ibrahim

Khulasa e Qur'an - surah | quran tafsir

खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (014) इब्राहीम


بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


सूरह (014) इब्राहीम


(i) तौहीद

तमाम आसमान और ज़मीन अल्लाह के बनाए हुए हैं। उसी ने आसमान से पानी बरसाया, फिर इस के द्वारा ज़मीन से क़िस्म क़िस्म के फल निकाले और पानी की सवारियों और नहरों को इंसान के अधीन कर दिया। सूरज और चांद, रात और दिन को इंसान के कामों में लगा दिया जो कुछ इंसानों ने मांगा अल्लाह ने अता किया। उसकी नेअमतें इतनी हैं कि इंसान गिन भी नहीं सकता। (32 से 34)


(ii) रिसालत

1, नबी अलैहिस्सलाम की तसल्ली के वास्ते बताया गया है कि पिछले अंबिया के साथ भी उनकी क़ौमों ने इंकार, मुख़ालिफ़त, दुश्मनी का रवैया इख़्तियार किया जो आप की क़ौम इख़्तियार किये हुए है। 

2, हर नबी अपनी क़ौम की ज़बान ही बोलता है। 

3, पिछली क़ौमों के झुठलाने वालों के कुछ संदेह, जैसे अल्लाह के वजूद के बारे में शक, इंसान रसुल नही हो सकता, बाप दादा का रास्ता कैसे छोड़ दें। (3)


(iii) क़यामत

काफ़िरों के लिए जहन्नम और मोमेनीन के लिए जन्नत का वादा है। जन्नत की नेअमतों और जहन्नम की हौलनाकियों का ज़िक्र है। क़यामत में हिसाब किताब हो चुकने के बाद शैतान गुमराहों से कहेगा जो वादा अल्लाह ने तुमसे किया था वही सच्चा था और जो वादा मैंने तुम से किया था वह झूठा था। मैंने तुम से ज़बरदस्ती तो नहीं की थी, तुम ख़ुद मेरे बहकावे में आ गए थे। अब मुझे मलामत करने के बजाय अपने आप को मलामत करो। (21, 22)


(iv) क़ब्र के चार सवाल

 आयत नंबर 27

 يُثَبِّتُ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ ۖ وَيُضِلُّ اللَّهُ الظَّالِمِينَ ۚ وَيَفْعَلُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ

क़ब्र में किये जाने वाले चार सवालों से मुतअल्लिक़ भी है जैसा कि हदीस में है, बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: क़ब्र के अज़ाब से अल्लाह की पनाह तलब करो। इसे 2 या 3 बार फ़रमाया, जरीर की रिवायत में इतना इज़ाफ़ा है और वह (मुर्दा ) उनके जूतों की चाप सुन रहा होता है जब वह पीठ फेर कर लौटते हैं उसी वक़्त उस से पूछा जाता है ऐ शख्स!


1, तुम्हारा रब कौन है (مَنْ رَبُّكَ)?

मोमिन जवाब में कहता है,

मेरा रब (माबूद) अल्लाह है (رَبِّيَ اللَّهُ)।

जबकि काफ़िर और मुनाफ़िक़ जवाब देते हैं,

हाय अफ़सोस हाय अफ़सोस! मुझे नहीं मालूम (هَاهْ هَاهْ هَاهْ لَا أَدْرِي)!!


2, तुम्हारा दीन क्या है? (مَا دِينُكَ ؟)

मोमिन जवाब में कहता है, 

मेरा दीन इस्लाम है। (دِينِيَ الْإِسْلَامُ)

जबकि काफ़िर और मुनाफ़िक़ जवाब देते हैं,

हाय अफ़सोस हाय अफ़सोस! मुझे नहीं मालूम (هَاهْ هَاهْ لَا أَدْرِي)!


3, ये शख़्स (यानी रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कौन है जो तुममें भेजे गये थे? (مَا هَذَا الرَّجُلُ الَّذِي بُعِثَ فِيكُمْ ؟)

कुछ अहादीस में है। तुम्हारा नबी कौन है (مَنْ نَبِيُّكَ)?

मोमिन जवाब में कहता है,

هُوَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ

यह तो अल्लाह के रसूल (ﷺ) हैं।

बुख़ारी के अल्फ़ाज़ है कि मोमिन गवाही देगा,

أَشْهَدُ أَنَّهُ عَبْدُ اللَّهِ وَرَسُولُهُ

“मैं गवाही देता हूं कि यह (ﷺ) अल्लाह के बन्दे और उस के रसूल हैं।”

जबकि काफ़िर और मुनाफ़िक़ जवाब देते हैं,

हाय अफ़सोस हाय अफ़सोस! मुझे नहैं मालूम (هَاهْ هَاهْ لَا أَدْرِي)!

كُنْتُ أَقُولُ مَا يَقُولُ النَّاسُ

मैं तो वही कहता था जो दूसरे लोग कहते थे (यानी मुझे ख़ुद तो कुछ नहीं मालूम, बस जो लोग कहते थे मैं भी अन्धा धुंध उनकी पैरवी करता था, कभी मैंने ख़ुद रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शख़्सियत को नहीं जाना।)

 فَيُقَالُ:‏‏‏‏ لَا دَرَيْتَ وَلَا تَلَيْتَ

फिर उससे कहा जायेगा कि, “ना तूने जानने की कोशिश की और ना समझने वालों की राय पर चला।”


4, तुम्हें ये सब बातें कहाँ से मालूम हुई? (وَمَا يُدْرِيكَ؟)

तो मोमिन जवाब में कहता है,

قَرَأْتُ كِتَابَ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏فَآمَنْتُ بِهِ، ‏‏‏‏‏‏وَصَدَّقْتُ،

मैंने अल्लाह की किताब पढ़ी और उस पर ईमान लाया और उसको सच समझा। और जरीर की हदीस में यह इज़ाफ़ा है "अल्लाह तआला के क़ौल 

 ‏‏‏‏‏يُثَبِّتُ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الآخِرَةِ سورة إبراهيم آية 27،

(जो लोग तौहीद पर सच्चे दिल से ईमान लाए उनको अल्लाह दुनिया की ज़िन्दगी में भी साबित क़दम रखता है और आख़िरत में भी साबित क़दम रखेगा) उन्हें सवाल व जवाब में कोई दिक्कत न होगी) से यही मुराद है।

इस सवाल जवाब के बाद मोमिन के लिए नेअमतों का दरवाज़ा खोल दिया जाता है। और मुनाफ़िक़ और काफ़िर के लिए अज़ाबे क़ब्र मुसल्लत कर दिया जाता है। [सहीह बुख़ारी 1374/ किताबुल जनाएज़, मुर्दा जूतों की चाप सुनता है के बारे में और सुनन अबू दाऊद 4753/ किताबुस सुन्नह क़ब्र के सवाल और उसके अज़ाब के सिलसिले में]


(iv) कुछ अहम बातें

◆ अल्लाह की किताब का मक़सद लोगों को कुफ़्र के अंधेरे से निकाल कर ईमान की रौशनी में लाना है। (1)

◆ शुक्र से नेअमत में इज़ाफ़ा होता है और ना शुकरों के लिए अल्लाह तआला का सख़्त अज़ाब है। 

◆ काफ़िरों के आमाल की मिसाल राख की सी है कि तेज़ हवा आये और सब उड़ा ले जाए (18)

◆ हक़ और ईमान (तौहीद) का कलेमा एक पाकीज़ा दरख़्त के समान है जिसकी जड़ बहुत मज़बूत है और उसकी टहनियाँ आसमान में लगी हों जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर वक्त फ़ला फूला रहता है। जबकि गन्दी बात (शिर्क) की मिसाल गोया एक गन्दे दरख़्त की सी है (जिसकी जड़ ऐसी कमज़ोर हो) कि ज़मीन के ऊपर ही से उखाड़ फेंका जाए (क्योंकि) उसको कुछ ठहराव नहीं होता और फल भी नहीं देता। (24 से 26) 

◆अल्लाह ज़ालिमों के करतूतों से बेख़बर नहीं है।


(v) कुछ दुआएं

इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने रब से छह चीज़ें मांगी

1, अमन व शांति वाला मुल्क, 
2, शिर्क से हिफ़ाज़त, 
3, नमाज़ क़ायम करना, 
4, रिज़्क़ ल, 
5, मक्का को मरकज़ (केंद्र) 
6, आख़िरत के दिन निजात।

رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَٰذَا ٱلۡبَلَدَ ءَامِنٗاوَٱجۡنُبۡنِي وَبَنِيَّ أَن نَّعۡبُدَ ٱلۡأَصۡنَامَ

ऐ मेरे रब इसे (मक्के को) अम्न (शांति) का शहर बना दे,मुझे और मेरी औलाद को बूत परस्ती से बचा। (35)

رَّبَّنَا إِنِّي أَسْكَنتُ مِن ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيْرِ ذِي زَرْعٍ عِندَ بَيْتِكَ الْمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُوا الصَّلَاةَ فَاجْعَلْ أَفْئِدَةً مِّنَ النَّاسِ تَهْوِي إِلَيْهِمْ وَارْزُقْهُم مِّنَ الثَّمَرَاتِ لَعَلَّهُمْ يَشْكُرُونَ

ऐ रब मैने तेरे मुहतरम घर (काबे) के पास एक बेखेती के (वीरान) बियाबान (मक्का) में अपनी औलाद को ला बसाया है ताकि ये लोग यहाँ नमाज़ क़ायम करें तो तू कुछ लोगों के दिलों को उनकी तरफ़ माएल कर और उन्हें तरह तरह के फलों से रोज़ी अता कर ताकि ये लोग (तेरा) शुक्र करें। (37)

رَبِّ ٱجۡعَلۡنِي مُقِيمَ ٱلصَّلَوٰةِ وَمِن ذُرِّيَّتِيۚ رَبَّنَا وَتَقَبَّلۡ دُعَآءِ رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لِي وَلِوَٰلِدَيَّ وَلِلۡمُؤۡمِنِينَ يَوۡمَ يَقُومُ ٱلۡحِسَابُ 

ऐ मेरे रब मुझे और मेरी औलाद को नमाज़ क़ायम करने वाला बना, ऐ रब हमारी दुआओं को क़ुबूल कर ले। ऐ हमारे रब तू मेरी, मेरे वालिदैन और तमाम अहले ईमान की मग़फ़िरत फ़रमा जिस दिन हिसाब किताब होगा। (40, 41)


आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही

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