खुलासा ए क़ुरआन - सूरह (113) अल फ़लक़
सूरह (113) अल फ़लक़
जिन परिवारों के कुछ लोगों ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया था उनके दिलों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़िलाफ़ हर वक़्त नफ़रत की भट्टियां सुलगती रहती थीं, घर घर में आप को कोसा जा रहा था, छुप छुप कर क़त्ल के मशविरे हो रहे थे, जादू टोने किये जा रहे थे कि आप को मौत आ जाए، सख़्त बीमार पड़ जाएं या पागल हो जाएं, इंसानी और जिन्नाती शैतान चारों तरफ़ फैल गए थे कि अवाम के दिलों में आप और आप के दीन के ख़िलाफ़ कोई न कोई वसवसा डाल दें जिस से बदगुमान होकर लोग आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से दूर भागने लगें, बहुत से लोगों के दिलों में हसद की आग भी जल रही थी क्योंकि वह अपने या अपने क़बीले के इलावा किसी और का चिराग़ जलते न देख सकते थे। जैसे कि अबु जहल ख़ुद कहता था "हमारा और बनी अब्दे मुनाफ़ का आपस के मुक़ाबला था, उन्होंने खाना खिलाया हमने भी खिलाया, उन्होंने ने सवारियां दीं हमने भी सवारियां दीं, उन्होंने दान (donation) दिए तो हमने भी दान दिया। जब इज़्ज़त और सम्मान में दोनों बराबर हो गए तो अब वह कहते हैं कि हम में एक नबी है जिस पर आसमान से वही उतरती है भला इस मैदान के हम कैसे उनका मुक़ाबला कर सकते हैं? अल्लाह की क़सम हम हरगिज़ उसकी बात नहीं मानेंगे और उसकी तस्दीक़ नहीं करेंगे" (सीरत इब्ने हिशाम जिल्द 1) ऐसे माहौल में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से फ़रमाया गया कि
"उन लोगों से कह दो कि मैं पनाह मांगता हूं सुबह के रब की मख़लूक़ के शर से, रात के अंधेरे से, गिरहों में फूंकने वाले जादूगरों और जदुगार्नियो के शर से और हासिदों के शर से। (1 से 5)
आसिम अकरम (अबु अदीम) फ़लाही
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