Roza aur zabt e nafs ki khwaishein

Roza aur zabt e nafs ki khwaishein


रोज़ा और ज़ब्ते नफ्स की ख्वाइशें


रोज़ा

रोज़ा हर उम्मत पर फर्ज़ किया गया है रोज़े से मुराद यह है कि इंसान सुबह से शाम तक खाने पीने और मुबाशरत से परहेज़ करे। नमाज़ की तरह रोज़ा भी शुरू से ही पैगमंबरों की शरीअत में फर्ज़ रहा है। रोज़े के बेशुमार अखलाकी फायदे हैं, एक फायदा है इंसान में ज़ब्ते नफ्स की ताक़त पैदा करता है।

 

ज़ब्ते नफ्स

सबसे पहले तो हमें ये जानना ज़रूरी है कि ज़ब्ते नफ्स क्या है ज़ब्ते नफ्स से मुराद है इंसान की खुदी जिस्म और उसकी ताकतों पर अच्छी तरह काबू याफता हो और नफ्स की खाहिशात और जज़्बात पर उसकी गिरफ्त बोहोत मज़बूत हो। इंसान के वजूद मे खुदी का मकाम वही है जो कि एक सल्तनत में हुक्मराँ का मकाम हुआ करता है

नफ्स की हैसियत इसके सिवा कुछ भी नही के वो खुदी के हुज़ूर अपनी खाहिशात को दरखास्त के तौर पर पैश करे। ये फ़ैसला खुदी के इख्तियार में के वो इन ताकतों को किस मक़सद के लिए इस्तेमाल करे और नफ्स की गुज़ारिश में किसे क़ुबूल करे किसे रद्द करे।

इसके बरअक्स अगर खुदी इतनी कमज़ोर हो कि जिस्म की मुम्लिकत में वो अपना हुक्म अपनी मंशा के मुताबिक़ न चला सके और इसके लिए नफ्स की खाहिशआत अहकाम का दर्जा रखती हो तो वो एक बेब्स मगलूब खुदी है इसकी मिसाल उस सवार के जैसी है जो अपने घोड़े के काबू में आ गया हो।

ऐसे कमज़ोर इंसान दुनियां में किसी किस्म की कामयाबी हासिल नही कर सकते। तारीखे इंसानी में जिन लोगों ने अपना कोई नक्शा छोड़ा है वे वही लोग थे जिन्होंने अपनी ताकतों को अपना महकूम बना कर रखा है इनके इरादे पुख़्ता रहे थे। बहुत ज़्यादा फ़र्क है उस खुदी में जो ख़ुद खुदा बन जाए और उस खुदी में खुदा के ताबे फ़रमान बनकर काम करे।

कामयाब ज़िंदगी के लिए खुदी का काबू में होना बेहद ज़रूरी है अगर खुदी अपने खालिक से आज़ाद और दुनियां के मालिक से बेनियाज़ हो को किसी कानून की पाबंद न हो तो अगर जिस्म और नफ्स की ताकतों पर काबू पाकर पुरज़ोर खुदी बन जाए तो वो दुनियां में फिरोन और नमरूद जैसे बड़े मुफ्सिद ही पैदा कर सकती है और ऐसा ज़ब्ते नफ्स कबीले तारीफ़ है जो अपने खुदा के आगे अपनी खुदी को सरे-तस्लीम खम करदे उसके सामने अपने आपको जवाब दे समझे।

यह है इस्लामी नुकता नज़र से ज़ब्ते नफ़्स की असल हकीकत रोज़ा किस तरह इंसान में यह ताकत पैदा करता है।अगर हम नफ्स व जिस्म के मुतालबात का जायज़ा ले तो मालूम होगा इनमे तीन मुतालबे असल बुनियाद का हुक्म रखते हैं वही सबसे ज़्यादा ताकतवर मुतालबे हैं-

(1) गिज़ा का मुतालबा 
(2) सिंफी मुतालबा
(3) आराम का मुतालबा

गिज़ा जिसपर बकाए हयात का इन्हिसार है।

सिंफि जिसपर बकाए नूअ का इन्हिसार है।

आराम का मुतालबा कुववते कारकर्दगी के लिए ज़रूरी है। 

ये तीनों मुतालबे अपनी हद के अंदर हैं तो मंशाए फितरत है लेकिन नफ्स व जिस्म के पास ये तीनों फंदे ऐसे हैं कि ज़रा सी ढील पाते ही इंसान उनके जाल में फस कर खुदी को गुलाम बना बैठता है।  


रोज़ा नफ्स की तीन खाहिश

रोज़ा इन्ही तीन खाहिशो को अपने ज़ाबते की गिरफ्त में लेता है और खुदी को इनपर काबू कराने की मशक कराता है। वो उस खुदी को जो खुदा पर ईमान ला चुकी है उसे ये ख़बर देते है कि आज तुझ पर खाना पानी हराम कर दिया गया है। इस मुद्दत के अंदर तेरे मालिक ने आज तेरी सिंफी ख्वाहिश पर भी पाबंदी आयद करदी है वो इसे ये इत्तिला भी देता है कि तेरे रब की खुशी इसी में है कि दिन भर की भूख प्यास के बाद जब तो इफ्तार करे तो निढाल होकर लेट मत जा बल्कि आम दिनों से ज़्यादा उसकी इबादत कर। 

वो ये हुक्म भी देता है कि जब इंसान नमाज़ की लम्बी रकातों से फारिग होकर आराम करे तो सुबह मदहोश होकर पड़ा ने रहे बल्कि मामूल की मुताबिक उठ और सेहरा कर अपने जिस्म की गिजा दे। ये सिर्फ एक दिन की मशक भी बल्कि पूरे तीस दिन यही मशक करनी है साल भर में 720 घंटे के लिए ये प्रोग्राम बना दिया गया है। 

ये सारी मशक महज़ इस लिए नही की मोमीन की खुदी सिर्फ़ भूख प्यास शहवत और आराम तलबी पर काबू पा ले बल्कि इंसान नफ्स और जिस्म पर एक रमज़ान के महीने ही नही बल्कि बाकी ग्यारह महीने भी खुदा ने जो हम पर फ़र्ज़ की इस भलाई की कोशिश करे जिसमें खुदा की रज़ा हो हर उस बुराई से दूरी बना ले जो अल्लाह पाक को नापसंद हो। 

इंसान नफ्स के कब्ज़े में न हो कि जिधर वो चाहे इंसान को खींचे खींचे फिरे इसका इरादा इतना कमज़ोर न हो कि फर्ज़ को फर्ज़ जनता हो अदा भी करना चाहता हो मगर जिस्म पर उसका हुक्म ही न चलता हो। नहीं जिस्म की मुम्लिकत में वो उस ज़बरदस्त हाकिम की तरह रहे जो अपने हस्बे मंशा से काम के सके यही ताक़त पैदा करना रोज़े का असल मक़सद है जिसने अपने रोज़े से ये ताक़त हासिल न की उसने खाहमखा अपने आप को भूख प्यास और रत जगे की तकलीफ दी।

क़ुराअन और हदीस में इस बात को साफ साफ बयान कर दिया गया है कि रोज़े तुम इस लिए फर्ज़ कर दिए गए है ताकि तुम तकवा इख्तियार कर सको। 

हदीस में हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिसने रोज़े की हालत में झूठ बोलना न छोड़ा उसका खाना पानी छुड़वाने की  खुदा को कोई हाजत नही।


आपकी दीनी बहन  
उज़मा

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