बनाओ और बिगाड़
अल्लाह तआला ने हर चीज़ को मुकम्मल और हसीन बनाया है जैसे पहाड़,जानवर और इंसान। लेकिन इन सब को एक साथ ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कुछ उसूल मुक़र्रर किये है। इंसान भूका न रहे तो उसके लिए अल्लाह ने हुकुम दिया है कि "खाओ उसमे से जो रिज़्क़ हमने तुमको दिया।" जानवर भूखे ना रहे तो उसके लिए एक ऐसा निज़ाम बनाया की हर जानदार अपने से छोटे को खाता है जैसे बिल्ली चूहे को, और समुन्दर में बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को।
बहुत लोग सोचते है कि अल्लाह तआला ने जानवरो को ही एक दूसरे का रिज़्क़ क्यों बना दिया?
इस का जवाब यही है कि अगर ज़मीन के और समुन्दर के जानवर आपस में एक दूसरे को ना खाते तो शायद उनकी इतनी आबादी हो जाती की इंसानो के लिए रहने की जगह न बचती या जैसे शाकाहारी जानवर घास फूस और पत्ते खाते है ठीक उसी तरह मांसाहारी जानवर इंसानो को खाते, पर अल्लाह ने इंसानो के लिए जानवर पैदा फ़रमाये है, जानवरो के लिए इंसान को पैदा नही किया गया। ये खुदा का निज़ाम है। हम जिसे बिगाड़ समझते है दरअसल वही बनाओ होता है, और जिसे हम बनाओ समझते है असल में वही बिगाड़ होता है। और अल्लाह तआला के निजाम में सिर्फ बनाओ की अहमियत है।
अल्लाह तआला ने दुनियां बनाई और उसमें लोगों को बसाया ताकि वो जांच सके कि जन्नत के मुस्तहिक़ कौन है?और कौन जहन्नुम का हकदार है। ये साबित कैसे होगा? इसका फैसला बनाओ और बिगाड़ पर होगा। इसकी मिसाल हम ऐसे समझते है कि,
एक होटल में एक मैनेजर हैउससे पहले उसके दादा और परदादा भी इसी पोस्ट पर थे। वो मेहमानों से सलीके से बात करते, उनकी अमानत (समान) का ध्यान रखते, उनकी आबरू की हिफाज़त करते। जिससे मेहमान खुश रहते और उनके मालिक से उसकी तारीफ करते।
पर अब जो मैनेजर है वो सिर्फ इस वहम में मुब्तला है कि सदियों से इस होटल का मैनेजर मेरा खानदान रहा है। वो अपने खानदान वालो का सिर्फ लक़ब ले कर फिरता है मगर मिजाज़ बिल्कुल भी वैसा नही है। जैसे वो मेहमानों से बदसुलूकी करता है, उनकी अमानत का ध्यान नही रखता, उनकी आबरू को वो तहफ़्फ़ुज़ नही देता जो उन्हें मिलना चाहिए।इस वजह से वो मेहमान उससे नाराज़ रहते है और उसके मालिक से उसकी शिकायत करते है।अब सिर्फ इस बिना पर की उसकी बहुत सी पीढ़िया यहां मैनेजर रही है तो मालिक उसे कुछ नही कहेगा? अपने होटल को पस्ती की तरफ जाने देगा? ज़रा सोचिए! नही, हरगिज़ नही।
वो मालिक सोचेंगा की इससे पहले के लोगो ने बेशक इस होटल से वफादारी की है पर उनका जो हक़ था वो उन्हें मिल गया, उनके बेहतरीन काम पर उन्हें बेहतरीन मुआवज़ा दिया जा चुका है। अब जो इंसान मैनेजर है उसे उस हिसाब से बदला दिया जाना चाहिए जिस तरह उसने काम किया है। अगर मैनेजर सुधरता है तो तो बढ़िया वरना मालिक को वक़्त नही लगेगा उसकी जगह किसी और को लाकर खड़ा करने मे।
ठीक इसी तरह अल्लाह का निज़ाम है।सिर्फ ये कह देने से के मैं मुहम्मदी हु और इस्लाह करने वाला हु। काफी नही है। उसके लिए कुछ अमल भी कर के दिखाना होगा। अल्लाह ने हमे ज़िन्दगी दी, खाने के लिए नेमते दी, बात करने के लिए रिश्ते और दोस्त दिए।
अब हम पर ये फ़र्ज़ बनता है कि हम दुनिया मे वो काम करें जिससे मुआशरे का और इंसानियत का भला हो। अगर भलाई के काम हम जात-पात और मज़हब देख कर करेंगे तो भी बनाओ नही सिर्फ बिगाड़ होगा। हम सभी को अपनी ख्वाहिश का हक़ नही बल्कि हक़ को ख्वाहिश बनाना पड़ेगा।
बिगाड़ को समझने के लिए हमे चार चीज़े समझनी होगी:
1. खुदा से बेखोफी: यानी जब हमारे दिल मे अल्लाह का खोफ नही होगा तो हम बिगाड़ वाले काम ही करेंगे। जब हम खुदा से नही डरेंगे तो हम दूसरों पर रहम करना,उनके साथ इंसाफ का मुआमला करना भूल जाएंगे।
2. खुदा की हिदायत से बे नियाज़ी: जब हम अल्लाह की हिदायत को नज़र अंदाज़ करना शुरू कर देंगे तो हमारे दिलों दिमाग से हलाल और हराम निकल जायेगा, हम सही गलत में फर्क नही समझ सकेंगे।
3. खुदगर्ज़ी: जब हम दूसरों के हुक़ुक़ भूल जाएंगे तो हम मांग करेंगे सिर्फ अपने हक़ की,अपने मफाद की। और इसी वजह से हम बेराह हो जायेगे जो इस बिगाड़ का आखरी पॉइंट है।
4. सलाहियत: जब हम अल्लाह की दी हुई सलाहियतों को उस तरह इस्तेमाल नही करेंगे जैसा उनका हक है तो अल्लाह उनका इस्तेमाल इस तरह हम से करवाएगा की हम फिर हिदायत की राह को खो देंगे। (अल्लाह हम सब को बचाये)
बनाओ को हम चार बातो से आसानी समझ सकते है:
1. खुदा का खोफ: जिस इंसान के दिल मे अल्लाह का खोफ होगा उस दिल मे गुनाह की कमी होगी, वो मख़लूक़ पर रहम करने वाला, इंसाफ वाला होगा।
2. खुदाई हिदायत की पैरवी: जो अल्लाह की हिदायत पर चलेंगा वो खुद को नफ़सानी ख्वाहिशात और शैतानी वसवसों से बचने वाला होगा, वो दूसरे के हुक़ुक़ की हिफाज़त करने वाला होगा।
3. निज़ाम ए इंसानियत: जो खुदा से डरेगा और दूसरों के हुक़ुक़ अदा करेंगा वो यह भी फिक्र रखेंगा की अल्लाह ने दुनिया मे जिन चीज़ों को जान बख्शी है उनकी हिफाज़त करे।
4. सलाहियत: सिर्फ धर्म, रंग, नस्ल की बुनियाद पर दंगे न करे न होने दे। किसी को हक़ीर न जाने। और जब कोई इंसान ऐसा करेंगा तो वो अमल ए स्वलिहा करने वाला होगा जो बनाओ का आखरी पॉइंट है जो खुदा ने सलाहियत दी है वो उस सलाहियत को सही तरीके से और सही जगह लगाएगा। जिससे समाज मे भलाई फैलेंगी। (इंशाअल्लाह)
सबिहा
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