Muslim auraton ki saamajik zimmedariyan

Muslim auraton ki saamajik zimmedariyan | society | women


मुस्लिम औरतों की सामाजिक ज़िम्मेदारियां

इस दुनियां में बेशुमार कोमें नस्ले और जमात थी । उनमें में से कुछ अपने इल्म व हुनर तहज़ीब व तमद्दुन तरक्की और खुशहाली में बोहोत नामवाली भी थी लेकिन इन सबके होते हुए वे अपने खालिक को भूली हुई थी । पूरे संसार में इस सिरे से उस सिरे तक अल्लाह पाक की नाफरमानी में ज़िंदगी गुज़ार रहीं थी ।कोई उन्हें उनके अंजाम से खबरदार करने वाला नही था ।


मुस्लिम उम्म्त की ज़िम्मेदारी

ये वे हालात थे जब अल्लाह पाक ने अपने आखिरी रसुल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़रिए अपनी एक उम्मत खड़ी करी ताकि वह दुनियां को दीन की तरफ बुलाएं कुफ्र शिर्क से उसे निकालें और उसे समझाएं खुदा एक है हमें सिर्फ और सिर्फ उसकी ही इबादत करनी है ।इसी में इंसान की भलाई और कामयाबी है। ख़ुदा से बगावत और नाफरमानी बड़ी ही ख़तरनाक है इससे उसकी दुनियां और अखिरत दोनों ही तबाह हो जाएंगी। 

मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये उम्मत पूरी दुनियां की ख़ैर व फ्लाह की बनाई गई है। और इसे "खैरे उम्मत" का लक़ब दिया गया है । और इसका काम है "भलाई का हुकम देना और बुराई से रोकना"

"तुम सबसे बेहतर उम्म्त हो जिसे लोगों के लिए निकला गया है ।तुम भ्लाई का हुक्म देते हो और बुराई से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो।" [क़ुरआन 3:110]


उम्मत की औरतें इस ज़िम्मेदारी में शरीक

क़ुरआन पाक का खिताब मर्दों और औरतों दोनो से है। मुस्लिम उम्म्त पर जो ज़िम्मेदारी डाली गई है उसमें मर्द और औरत दोनों ही शरीक हैं। ये सोचना बिल्कुल भी दुरुस्त नही होगा कि ये ज़िम्मेदारी सिर्फ मर्दों पर है इसमें औरतों को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभानी है।

सच बात ये है कि भलाई का हुक्म देना बुराई से रोकना पूरी उम्म्त की ज़िम्मेदारी है जिसमें मर्द और औरत दोनों ही शामिल है। यह उम्मत की उन विशेषताओं में से है जिनके बग़ैर इसकी कल्पना नही की जा सकती।

"ईमानवाले मर्द और ईमानवाली औरतें एक दूसरे के मददगार है। भलाई का हुक्म देते और बुराई से रोकते हैं।" [कुरआन 9:71]

इस आयत से ये बात साफ़ हो जाती है कि भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकने की ज़िम्मेदारी में मर्द से साथ औरत भी शरीक है दोनों को मिल जुलकर इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने को कोशिश करनी चाहिए।

समाज को बनाने और बिगाड़ने में औरत एक अहम रोल अदा करती है। इसलिए इस्लामी समाज को बनाने में औरत सबसे ज़्यादा अहम भूमिका निभा सकती हैं ।

कुरआन और हदीस ने ये भी बयान कर दिया है कि समाज में दावत के काम और समाज सुधार की कोशिश मर्द और औरत दोनों की ज़िम्मेदारी है। 


हक की राह में औरतों की साबित क़दमी

इस्लाम सभी इंसानों को अल्लाह की इबादत और उसकी फ़रमाबरदारी की दावत देता है। नाफरमानी और बगावत से बचने का हुक्म देता है। सच्चाई के रास्ते पर चलने का और झूठ से बचने का हुक्म देता है। अल्लाह की ज़मीन पर हर जगह उसी का हुक्म चले सिर्फ उसी की इबादत की जाए।


दहकती आग में डाले गए

अल्लाह के दीन का खुल्लम खुल्ला एलान करना और उसपर जमे रहना आसान काम नही। ये बोहोत मुश्किल काम है यहां क़दम क़दम पर इंसान को आज़माया जाता है उसकी साबित क़दमी का इम्तहान होता रहता है। खुदा की खास रहमत होती है उन लोगो पर जो इन रास्तों पर हंसते मुस्कुराते गुजर जाते हैं। सब्र और शुक्र से काम लेते हैं।

कुरआन पाक में एक जगह उन हौंसलामंद लोगों का जिक्र किया है वे सिर्फ इसी जुर्म में कि वे इस दुनियां के ख़ालिक पर ईमान रखते थे उसके हुक्म का पालन करते थे आग में ज़िंदा डाल दिए गए लेकिन उन हस्तियों की साबित क़दमी में कोई कमी नही आई। उनमें मर्द भी थे और औरतें भी शामिल थी।

इन ज़ालिम और दरिंदा सिफत लोगों को कुरआन में "असहाबुल उखदूद" अर्थात "ख़न्दकवाले" का नाम दिया गया है।

"मारे गए ख़न्दकवाले ईंधन भरी आग ख़न्दकवाले जबकि वे उसके किनारे बैठे हुए थे। और जो कुछ वो लोग ईमान वालों के साथ कर रहे थे उसे देख रहे थे। उन इमानवालो से सिर्फ उन्होंने इसलिए बदला लिया कि वे उस खुदा पर ईमान लाए जो ज़बरदस्त और तारीफ़ के क़ाबिल है, जिसकी जिसकी बादशाहत आसमान और ज़मीन पर है और अल्लाह हर चीज़ को देख रहा है ।बेशक जिन लोगों ने ईमानवाले मर्द और इमानवाली औरतों पर ये ज़ुल्म किया और तौबा नहीं की। उनके लिए जहन्नुम का अज़ाब है और उनके लिए जलने की सज़ा है। और जो लोग ईमान लाए लाए नेक काम किए उनके जन्नत के बाग़ है जिनके नीचे नेहरे बहती होंगी। ये बड़ी कामयाबी है।" [क़ुरआन 84 : 4-11]


ईमानवालों के लिए पैगंबर दुआ करते हैं

जो लोग पूरे खुलूस से ईमान लाकर दिल और जान से उसपर अमल करते हैं अल्लाह उन्हें दुनिया और आखिरत दोनों में अपनी रहमत से नवाज़ता है।

एक जगह अल्लाह के रसूल को हुक्म हुआ कि आप अल्लाह के नेक बंदों के लिए मगफिरत की दुआ फरमाते रहें ।अगर उनसे कोई गलती हो गई तो अल्लाह उन्हें माफ़ कर दे ।

"जान लो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही है,और अपनी गलती के वास्ते माफ़ी मांगते रहो और मोमिन मर्द और मोमिन औरतों के लिए मगफिरत की दुआ करते रहो अल्लाह तुम्हारी सरगर्मियों को भी जनता है और तुम्हारे ठिकानों से भी वाक़िफ है।" [कुरआन 47:19]

किसी ईमानवाले मर्द या औरत के लिए इस्से बड़ी खुशनसीबी और क्या हो सकती है कि उसके लिए अल्लाह के रसूल मगफिरत की दुआ करें। यह वह दौलत है जिसपर रश्क किया जा सकता है और हर ईमानवाले को रश्क (एक दूसरे से आगे निकलने की होड़) करना चाहिए।


आपकी दीनी बहन 
उज़मा

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