अल्लाह से धोका और बगावत (मुसलमान ज़िम्मेदार)
3. बिदअत का आगाज़ और बचाव (पार्ट 03)
3.3. बाज़ औरतों की जहालतें और खुराफ़ात
बाज औरतों की जहालत है और खुराफात में से एक यह भी है कि वो हायज़ा को दूध पिलाने वाली के पास जाने, अनाज वगैरह की काश्त वाले खेतो और जिसकी आंखों में तकलीफ हो, उसके पास जाने से मना करती हैं और यह ख्याल करती है कि इस तरह से उन लोगों को खेतों को ना क़ाबिल तलाफ़ी नुकसान पहुंचेगा और फ़साद होगा।
इस तर्ज़े अमल के क़रीब क़रीब अमल है जो यहूदियों ने अपनी हायज़ा औरतों के साथ रवैया रखा था 'वो उनसे जिमाअ ना करने के साथ-साथ उनके क़रीब ना जाते। उनके साथ सकूनत ना करते और ना ही उन्हें अपने पास खाना खाने की इजाजत देते थे। दीन फितरत और आसान दीन इस्लाम ने यहूदियों के इस अमल परफेक्ट इनकार किया और उस जाहिलाना रवैया को बातिल करार दिया।
इस्लाम ने हालत ए हैज़ में औरतों से वती और जिमाअ को हराम क़रार दिया, ताकि इंसान गंदगी और नुकसान से बच जाए और जिमाअ के अलावा बाकी तमाम अफ़आल को बाज़ शराइत के साथ जायज करार दिया।
अनस बिन मालिक रज़ि अन्हु से रिवायत है,
अगर (यहूदियों की) कोई औरत हायज़ा हो जाती तो यहूदी उसे अपने साथ ना खाना खाने देते और ना ही अपने घर में इकट्ठा बैठने देते। तो सहाबा ने इसके बारे में नबी सल्लल्लाहु वाले वसल्लम से पूछा तो अल्लाह तआला ने यह आयत नाजिल फरमाई, "और आप से ये हैज़ का हुक्म मालूम करते हैं आप कह दीजिये ये गंदगी है।" [सूरह बक़रा 222]
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, "जिमाअ के अलावा तमाम जाएज़ काम कर सकते हैं।" [सहीह मुस्लिम 302 किताब उल हैज़]
आप ने फ़रमाया, "हम बीवियों में से कोई जब हायज़ा होती इस हालत में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अगर मुबाशरत का इरादा करते तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इज़ार बाँधने का हुक्म दे देते बावजूद हैज़ की ज़्यादती के। फिर बदन से बदन मिलाते।" आप ने कहा, तुममें ऐसा कौन है जो नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरह अपनी शहवत पर क़ाबू रखता हो। इस हदीस की पैरवी ख़ालिद और जरीर ने शैबानी की रिवायत से की है। (यहाँ भी मुबाशरत से साथ लेटना बैठना मुराद है)।
बल्कि नबी صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ से यह भी साबित है की औरतों को ईदेन की नमाज के लिए ईदगाह की तरफ निकलने का हुक्म देते थे और हायज़ा औरतों को नमाज़ की जगह से दूर रहने, खुतबा सुनने, तकबीर कहने और दुआयें खैर में शामिल होने का हुक्म देते थे।
हम अपनी कुँवारी जवान बच्चियों को ईदगाह जाने से रोकती थीं। फिर एक औरत आई और बनी ख़लफ़ के महल में उतरी और उन्होंने अपनी बहन (उम्मे-अतिया) के हवाले से बयान किया जिनके शौहर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ बारह लड़ाइयों में शरीक हुए थे। और ख़ुद उन की अपनी बहन अपने शौहर के साथ छः जंगों में गई थीं। उन्होंने बयान किया कि हम ज़ख़्मियों की मरहम पट्टी किया करती थीं और मरीज़ों की ख़बरगीरी भी करती थीं। मेरी बहन ने एक मर्तबा नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा कि अगर हम में से किसी के पास चादर न हो तो क्या उसके लिये उसमें कोई हरज है कि वो (नमाज़ ईद के लिये) बाहर न निकले। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया, "उसकी साथी औरत को चाहिये कि अपनी चादर का कुछ हिस्सा उसे भी उढ़ा दे फिर वो ख़ैर के मौक़े पर और मुसलमानों की दुआओं में शरीक हों (यानी ईदगाह जाएँ)।" फिर जब उम्मे-अतिया (रज़ि०) आईं तो मैंने उन से भी यही सवाल किया। उन्होंने फ़रमाया मेरा बाप आप पर फ़िदा हो हाँ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ये फ़रमाया था। और उम्मे-अतिया (रज़ि०) जब भी नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ज़िक्र करतीं तो ये ज़रूर फ़रमातीं कि मेरा बाप आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर फ़िदा हो। (उन्होंने कहा) मैंने आप को ये कहते हुए सुना था कि जवान लड़कियाँ पर्दे वालियाँ और हायज़ा औरतें भी बाहर निकलें और ख़ैर के मौक़ों मैं और मुसलमानों की दुआओं में शरीक हों और हायज़ा औरत जाए-नमाज़ से दूर रहे। हफ़सा कहती हैं मैंने पूछा क्या हायज़ा भी? तो उन्होंने फ़रमाया कि वो अराफ़ात में और फ़ुलाँ-फ़ुलाँ जगह नहीं जाती। यानी जब वो उन तमाम मुक़द्दस मक़ामात मैं जाती हैं तो फिर ईदगाह क्यों न जाएँ। [सहीह बुख़ारी 324]
अगर इन खुराफात और जहालत में से (नौज़ुबिल्लाह) कोई चीज भी सही होती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके बयान से कभी खामोश ना रहते अल्लाह ताला ने उसे वक्त तक आपकी रूह कब्ज नहीं कि जब तक की आपने लोगों तक मुकम्मल रिसालत ना पहुंचा दी और आपने वही (devine) की अमानत का पूरा-पूरा हक अदा किया अपनी उम्मत को रोशन और सीधे रास्ते पर छोड़कर गए उसे रास्ते (इस्लाम ) की रात भी दिन की तरह रोशन है और उसे वही मुंह मोड़ता है जो अपने आप को हलाक़ करने वाला है।
याद रहे इन अहदीसो से मसला साबित होता है कि हायज़ा के साथ खाना, पीना, ओढ़ना,बैठना सब जायज है इन हदीसो उन खुराफात और जहालतों का बातिल होना भी साबित होता है।
बल्कि उम्मत के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह साबित है। वह अपनी बीवी के साथ हालात ए हैज़ में बग़ैर जिमाअ के लेट जाते थे। आप कि प्यारी बीवी हज़रत आयेशा रज़ि अन्हा हालत ए हैज़ में होने के बावजूद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कंघी करती थी और इस हालत में भी आप उनका झूठा वही से मुँह लगाते जहाँ से हज़रत आयेशा रज़ि अन्हा ने पिया।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा, "क्या तुम्हें निफ़ास आ गया है?"
मैंने कहा हाँ।
फिर मुझे आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बुला लिया और मैं चादर में आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ लेट गई।
[सहीह बुख़ारी 298]
आयशा (रज़ि०) ने ख़बर दी कि वो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हायज़ा होने की हालत में कंघा किया करती थीं और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस वक़्त मस्जिद में एतिकाफ़ किये हुए होते। आप अपना सिर मुबारक क़रीब कर देते और आयशा (रज़ि०) अपने हुजरा ही से कंघा कर देतीं हालाँकि वो हायज़ा होतीं।" [सहीह बुख़ारी 296]
नीज़ ये भी फ़रमाया कि "मेरी गोद में सिर रख कर क़ुरआन पढ़ा।" [सहीह बुख़ारी 297]
तो इन सब बातों से पता चला कि ख़ुराफ़ात और जहालते लोगों ने बना रखी है उसका कोई दीन से ताल्लुक नहीं है।
अल्लाह हमें सही समझ अता फरमाए।
आमीन
जुड़े रहे आगे हम बताएंगे की उम्मत के अंदर कौन-कौन सी बिदअते ईजाद की गयीं हैं।
आपका दीनी भाई
मुहम्मद रज़ा
0 टिप्पणियाँ
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।